अंटार्कटिका से दिल्ली से भी बड़े क्षेत्रफल का एक हिमखंड अलग हो गया है. लेकिन इस हिमखंड के अलग होने की वजह जलवायु परिवर्तन नहीं है. और इसे खतरे की स्थिति भी नहीं माना जा रहा.
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दुनिया के एकमात्र निर्जन महाद्वीप अंटार्कटिका से एक बड़ा हिमखंड टूटकर अलग हो गया है. इस हिमखंड का आकार 1,500 वर्ग किलोमीटर यानी दिल्ली के आकार से भी बड़ा है. दुनिया के वैज्ञानिक इस घटना के इंतजार में थे. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये घटना जलवायु परिवर्तन की वजह से नहीं हुई है. इस हिमखंड को डी 28 नाम दिया गया था. हिमखंड टूटने की इस घटना को यूरोपीय संघ के उपग्रह सेंटिनल 1 ने कैद कर लिया.
यह अंटार्कटिका के अमेरी हिम इलाके से अलग हुआ है. नासा और दूसरी एजेंसियों के मुताबिक पिछली बार ऐसा बड़ा हिमखंड अंटार्कटिका से अलग होने की घटना 1960 में हुई थी. तब एक करीब 9800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का हिमखंड अंटार्कटिका से अलग हो गया था.
वैज्ञानिकों के मुताबिक इस हिमखंड के अलग होने के पीछे जलवायु परिवर्तन नहीं है. ये एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में किसी भी बड़े ग्लेशियर का एक हिस्सा सालों तक उस ग्लेशियर से अलग होता रहता है. यह हिमखंड भी पिछले 10 साल से अपने मूल ग्लेशियर से अलग होने की प्रक्रिया में था. इसकी दांतेदार संरचना की वजह से अब इसे अलग अलग निकनेम दिए जा रहे हैं. स्क्रिप्स इंस्टीट्यूट ऑफ ओशेनोग्राफी के वैज्ञानिक हेलेन फ्रिकर ने ब्रिटिश न्यूज सर्विस बीबीसी से बात करते हुए कहा कि लोग अंटार्कटिका को लेकर बेहद चिंतित हैं लेकिन इस हिमखंड का अलग होना किसी तरह की चेतावनी नहीं है. इस हिमखंड का अलग होना प्राकृतिक है. इससे अंटार्कटिका को कोई खतरा नहीं है.
आइसलैंड ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से उसका एक ग्लेशियर पिघल चुका है. दुनिया के अन्य हिस्सों में मौजूद ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं. एक नजर डालते हैं कि दुनिया में मौजूद प्रमुख ग्लेशियरों की स्थिति पर.
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मर गया एक ग्लेशियर
आइसलैंड ने अपनी 'ओक्जोकुल' बर्फ की चादर को श्रद्धांजलि अर्पित की है. जलवायु परिवर्तन की वजह से आइसलैंड ने अपने एक ग्लेशियर को खो दिया. ओक्जोकुल को लोग 'ओके' भी कहते हैं. वर्ष 2014 में इसने ग्लेशियर का दर्जा खो दिया. ओक्जोकुल के खत्म होने पर दुख जताने पहुंचे लोगों ने एक पट्टिका का अनावरण किया जिसमें कहा गया था कि देश के मुख्य ग्लेशियरों का हाल अगले 200 वर्षों में ओक्जोकुल की तरह होने की उम्मीद है.
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अंटार्कटिका: विशाल ग्लेशियर, बड़ा जोखिम
माना जा रहा है कि पश्चिमी अंटार्कटिक का हिस्सा थ्वेट्स ग्लेशियर भविष्य में समुद्र के बढ़ते जल स्तर के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है. इस साल के शुरुआत में नासा के एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि अगर यह टूट कर समुद्र में बहता है तो समुद्री जलस्तर में 50 सेंटीमीटर का इजाफा हो सकता है. अंटार्कटिका में दुनिया के पहाड़ों पर मौजूद सभी ग्लेशियरों की तुलना में 50 गुना अधिक बर्फ है.
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पटागोनियन भी पिघल रहा
चिली का ग्रे ग्लेशियर पैटागोनियन आइसफील्ड्स में है जो अंटार्कटिका के बाहर दक्षिणी गोलार्ध के सबसे बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है. शोधकर्ता इस क्षेत्र में बर्फ पिघलने का नजदीक से अध्ययन कर रहे हैं. इससे वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसे दूसरे ग्लेशियर के बारे में समझने में सहायता मिलेगी.
स्विट्जरलैंड में रोन ग्लेशियर रोन नदी का स्रोत है. कई सालों से वैज्ञानिक यूवी रेसिस्टेंट वाले सफेद कंबल से गर्मियों के समय में इसे ढंक रहे हैं ताकि यह कम पिघले. शोधकर्ता कहते हैं कि गर्म होती जलवायु की वजह से इस सदी के अंत तक अल्पाइन ग्लेशियरों का दो तिहाई हिस्सा पिघल सकता है.
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तेजी से सिकुड़ रहा फ्रांज जोसेफ ग्लेशियर
न्यूजीलैंड के दक्षिण द्वीप में फ्रांज जोसेफ ग्लेशियर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. ग्लेशियर की खासियत यह है कि यह कभी आगे बढ़ता है, कभी पीछे होता है. लेकिन वर्ष 2008 के बाद से यह तेजी से सिकुड़ रहा है. पहले गाइड पर्यटकों को सीधे ग्लेशियर पर पैदल ले जाते थे लेकिन अब वहां जाने का एकमात्र साधन हेलिकॉप्टर बचा है.
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गायब हो रहे अफ्रीकन बर्फ
किलिमंजारो पर्वत के ग्लेशियर पर भी खतरा मंडरा रहा है. वर्ष 2012 में नासा के सहयोग के शोध करने वाले शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि 2020 तक अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत किलिमंजारो से बर्फ गायब हो सकता है. किलिमंजारो तंजानिया में पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक बड़ा केंद्र है. साथ ही यह आय का भी एक बड़ा स्त्रोत है.
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100 गुना तेजी से पिघल रही बर्फ
अमेरिकी राज्य अलास्का में हजारों की संख्या में ग्लेशियर हैं. 2019 में एक अध्ययन में पाया गया कि वैज्ञानिकों ने जैसा अनुमान लगाया था, उससे 100 गुना तेजी से यहां के बर्फ पिघल रहे हैं. इस महीने की शुरुआत में वाल्देज ग्लेशियर झील पर कयाकिंग के बाद दो जर्मन और एक ऑस्ट्रियाई नागरिक मृत पाए गए थे. अधिकारियों का कहना है कि ग्लेशियर के बर्फ गिरने से पर्यटकों के मारे जाने की आशंका है.
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ग्लेशियर का क्षेत्र बढ़ने के बावजूद चिंता
जैकब्शेवन ग्रीनलैंड का सबसे बड़ा ग्लेशियर है. इस साल नासा द्वारा किए गए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि यह बढ़ रहा है. 2016 के बाद ग्लेशियर का एक हिस्सा जहां थोड़ा मोटा हो गया है, वहीं दूसरा हिस्सा तेजी से पिघल रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर में वृद्धि उत्तरी अटलांटिक से असामान्य रूप से ठंडे पानी के बहाव के कारण है. (रिपोर्टः लवडे राइट)