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90 साल की भारतीय ने 75 साल बाद देखा रावलपिंडी का अपना घर

२१ जुलाई २०२२

पुणे में रहने वालीं रीना वर्मा भारत-पाक बंटवारे के 75 साल बाद अपना घर देखने पाकिस्तान के रावलपिंडी पहुंचीं. उस गली में लोगों ने ढोल-ताशों और फूलों से उनका स्वागत किया.

Pakistan 90-jährige Inderin, Frau Reena Verma besucht nach 75 Jahren ihre Heimat Rawalpindi
तस्वीर: Waseem Khan/REUTERS

90 वर्षीय रीना वर्मा ने 75 साल बाद अपना वो घर देखा जिसमें वह जन्मी थीं. सरहदों को बांट दिए जाने के बाद भारत से पहली बार पाकिस्तान गईं वर्मा को घर देखकर अपना बचपन याद आ गया. उनकी आंखें भीग गई थीं. उन्होंने कहा, "मैं यहां खड़ी होकर गाती थी. ये खुशी के आंसू हैं."

रीना वर्मा को अपना बचपन साफ-साफ याद है. उन्हें वह दिन याद है जब उन्हें और उनके परिवार को रावलपिंडी का छोटा सा तिमंजिला घर छोड़ना पड़ा था. जब वह उसी गली से 75 साल बाद वापस घर की ओर जा रही थीं तो लोगों ने उन पर गुलाब की पत्तियों की बारिश की. लोगों ने ढोल बजाकर उनका स्वागत किया. भावुक वर्मा उनके साथ नाचीं भी.

वर्मा का परिवार उन करोड़ों हिंदू परिवारों में से एक था जिन्हें बंटवारे के वक्त पाकिस्तान छोड़कर भारत आना पड़ा था. 1947 की वह घटना दुनिया का सबसे बड़े मानवीय विस्थापनों में गिना जाता है, जिसमें डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना-अपना घर छोड़कर अलग मुल्क में जाना पड़ा था. उस दौरान दस लाख से ज्यादा लोगों की जानें गई थीं.

पुरानी यादें ताजा हुईं

वर्मा की यादों की तरह उनका घर भी साबुत मिला, जिस पर उन्हें बहुत खुशी हुई. उन्होंने वहां कई घंटे बिताए और अपने बचपन को याद किया. उन्होंने साथ बैठे लोगों को बताया कि अपने पांच भाई-बहनों और माता-पिता के साथ उनका बचपन कैसा था.

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एक वक्त जब वह बिना सहारे के सीढ़ियां नहीं चढ़ पाईं तो ठहाका मारकर हंसीं और बोलीं कि "इन सीढ़ियों पर मैं चिड़िया की तरह फुदक कर चढ़ जाती थी." उस घर में अब एक परिवार रहता है, जिसने बहुत चाव से वर्मा को अपना घर दिखाया.

90 साल की रीना वर्मा उसी घर में एक बार फिरतस्वीर: Waseem Khan/REUTERS

वर्मा का परिवार पाकिस्तान से भागकर भारत के पुणे में जा बसा था. तब वह 14 साल की थीं. उनके परिवार के बाकी सदस्य इस उम्मीद में ही दुनिया से चले गए कि कभी अपना पुराना घर देख पाएंगे.

1947 के बाद से तीन युद्ध लड़ चुके पाकिस्तान और भारत के बीच आना-जाना सरल नहीं है. बल्कि लगभग असंभव है और अगर कोई यात्रा करना चाहे तो उसे वीजा की बेहद दुरूह प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. दोनों देशों के रिश्ते आज भी अच्छे नहीं हैं और तनाव का असर आम लोगों पर पड़ता है.

दशकों की कोशिश से मिला वीजा

रीना वर्मा पाकिस्तान जाने के लिए वीजा की कोशिश दशकों से कर रही थीं. आखिरकार पिछले हफ्ते उन्होंने सड़क मार्ग से वाघा पर सीमा पार की और लाहौर पहुंचीं. इंडिया-पाकिस्तान हेरिटेज क्लब चलाने वाले इमरान विलियम और सज्जाद हैदर दोनों देशों की साझी विरासत को लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं. उनका एक मकसद बिछड़े हुए परिवारों का मिलवाना भी है. उनकी मदद से ही रीना वर्मा को वीजा मिल पाया.

इस मौके पर वर्मा ने दोनों देशों से गुजारिश की कि वीजा प्रक्रिया को आसान बनाएं ताकि लोग ज्यादा से ज्यादा खुलकर एक दूसरे से मिल पाएं. उन्होंने कहा, "अब 75 साल हो गए हैं बंटवारे को. नई पीढ़ी बड़ी हो चुकी है. इस नई पीढ़ी को प्यार का पैगाम मिलना चाहिए. वे मिलकर कोशिश करें कि सारा कुछ आसान हो. वही लोग कर सकते हैं. युवा ही यह बदलाव ला सकते हैं."

वर्मा ने कहा कि हमारी संस्कृति एक जैसी है, सब कुछ एक जैसा है और हमें शांति और भाईचारे के साथ रहना चाहिए. उन्होंने बताया कि जब वह रावलपिंडी में रहती थीं तो उनकी गली हिंदू गली थी लेकिन मुसलमान, ईसाई और सिख सब शांति से रहते थे. उन्होंने कहा, "मैं कहूंगी कि इंसानियत से बड़ा कुछ नहीं है. सब धर्म इंसानियत सिखाते हैं."

वीके/एए (रॉयटर्स)

 

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