सबसे बड़ा जीनोम सबसे बड़े जीव का नहीं होता. पृथ्वी के सबसे बड़े जीव ब्लू व्हेल और इंसान का जीनोम भी इतना विशाल नहीं है, जितना इस छोटे से पौधे का है.
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पृथ्वी के सबसे बड़े जीव ब्लू व्हेल, जमीन पर घूमने वाले सबसे बड़े जीव अफ्रीकी हाथी या फिर सबसे बड़े पेड़ रेडवुड ट्री का जीनोम भी इतना बड़ा नहीं होता, जितना फ्रांस के कैलेडोनिया में पाए जाने वाले इस छोटे से पौधे का होता है.
जीनोम किसी जीव के डीएनए या आरएनए का पूरा सेट होता है, जिसमें सभी जीन और गैर-कोडिंग अनुक्रम शामिल होते हैं. इसमें जीव की सभी अनुवांशिक जानकारियां जमा होती हैं.
वैज्ञानिकों ने पाया है कि दक्षिणी प्रशांत महासागर में स्थित न्यू कैलेडोनिया द्वीप पर उगने वाले इस छोटे से पौधे का जीनोम पृथ्वी पर सबसे विशाल है. नए शोध में पाया गया है कि मेसिपटेरिस ओब्लांसियोलाटा नाम के इस पौधे का जीनोम इंसांन के जीनोम से 50 गुना ज्यादा बड़ा है.
फिंगरप्रिंट का सबक: अनोखा है हर इंसान
125 साल पहले अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानियों ने कैदियों के फिंगरप्रिंट लिये. तब से अब तक कैसा रहा है पहचान और शिनाख्त की वैज्ञानिक दुनिया का सफर.
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125 साल बाद भी आधुनिक
1891 में अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानी खुआन वुसेटिच ने मॉर्डन स्टाइल फिंगरप्रिंट आर्काइव बनाना शुरू किया. तब से फिंगरप्रिंट को अहम सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इस तस्वीर में चोरी के बाद पुलिस अफसर दरवाजे के हैंडल को साफ कर रहा है, ताकि फिंगरप्रिंट साफ दिखाई पड़ें.
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सहेजना और तुलना करना
मौके से फिंगरप्रिंट जुटाने के लिए एक चिपचिपी फिल्म का इस्तेमाल किया जाता है. अचूक ढंग से फिंगरप्रिंट जुटाने में कई घंटे लग जाते हैं. एक बार फिंगरप्रिंट जुटाने के बाद जांचकर्ता उनकी तुलना रिकॉर्ड में संभाले गए निशानों से करते हैं. इन दिनों तेज रफ्तार कंप्यूटर ये काम बड़ी तेजी से कर देते हैं.
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स्याही की जरूरत नहीं
पहले फिंगरप्रिंट जुटाना बहुत ही मुसीबत भरा काम होता था, स्याही से हाथ भी गंदे हो जाते थे. लेकिन अब स्कैनर ने स्याही की जगह ले ली है. स्कैन करती ही डाटा सीधे बायोमैट्रिक डाटा बैंक को भेज दिया जाता है.
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क्यों खास है फिंगरप्रिंट
कंप्यूटर अंगुली की बारीक लाइनों और उनके पीछे के उभार को पहचान लेता है. अंगुली के केंद्र से अलग अलग लाइनों की मिलीमीटर के बराबर छोटी दूरी, उनकी घुमावट, उनकी टूटन सब दर्ज हो जाती है. दो लोगों के फिंगरप्रिंट कभी एक जैसे नहीं हो सकते, भले ही वे हूबहू दिखने वाले जुड़वा क्यों न हों.
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कहां कहां इस्तेमाल
नाइजीरिया में चुनावों में धांधली रोकने के लिए अधिकारियों ने फिंगरप्रिंट स्कैनर का इस्तेमाल किया. यही वजह है कि सिर्फ रजिस्टर्ड वोटर ही वोट डाल पाए वो भी सिर्फ एक बार.
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कौन कहां से कब आया
शरणार्थी संकट का सामना करते यूरोप में भी अधिकारी फिंगरप्रिंट का सहारा ले रहे हैं. यूरोपीय संघ के जिस भी देश में शरणार्थी पहली बार पहुंचेगा, उसका फिंगरप्रिंट वहीं लिया जाएगा. फिंगरप्रिंट लेने के लिए स्थानीय पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग दी गई है, उन्हें स्कैनर भी दिये गए हैं.
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ये मेरा डाटा है
अब कई स्मार्टफोन फिंगरप्रिंट डिटेक्शन के साथ आ रहे हैं. आईफोन और सैमसंग में टच आईडी है. फोन को सिर्फ मालिक ही खोल सकता है, वो भी अपनी अंगुली रखकर. अगर फोन खो जाए या चोरी भी हो जाए तो दूसरे शख्स को फोन का डाटा नहीं मिल सकता.
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ATM बैंकिंग
स्कॉटलैंड के डुंडी शहर में ऑटोमैटिक टेलर मशीन (एटीएम). इस मशीन से सिर्फ असली ग्राहक पैसा निकाल सकते हैं. फिंगरप्रिंट के जरिये मशीन कस्टमर की बायोमैट्रिक पहचान करती है. यह मशीन फर्जीवाड़े की संभावना को नामुमकिन कर देती है.
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पासपोर्ट की सेफ्टी
जर्मनी समेत कई देशों ने 2005 से पासपोर्ट में डिजिटल फिंगरप्रिंट डाल दिया. पासपोर्ट में एक RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी कंट्रोल्ड आईडी) चिप होती है. चिप के भीतर बायोमैट्रिक फोटो होती है, यह भी फिंगरप्रिंट की तरह अनोखी होती है.
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चेहरे की बनावट से पहचान
फेशियल रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर भी पहचान को बायोमैट्रिक डाटा में बदलता है. कंप्यूटर और उससे जुड़े कैमरे की मदद से संदिग्ध को भीड़ में भी पहचाना जा सकता है. इंटरनेट और कंप्यूटर कंपनियां भी अब फेशियल रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर का काफी इस्तेमाल कर रही हैं.
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जेनेटिक फिंगरप्रिंट के जनक
एलेक जेफ्रीज ने 1984 में किसी संयोग की तरह डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की खोज की. उन्होंने जाना कि हर इंसान के डीएनए का पैटर्न भी बिल्कुल अलग होता है. डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की उन्होंने एक तस्वीर तैयार की जो बारकोड की तरह दिखती है.
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हर इंसान के लिये बारकोड
जर्मनी की फेडरल क्रिमिनल पुलिस ने 1998 से अपराधियों का डीएनए फिंगरप्रिंट बनाना शुरू किया. जेनेटिक फिंगरप्रिंट की मदद से जांचकर्ता अब तक 18,000 से ज्यादा केस सुलझा चुके हैं.
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निर्दोष की मदद
परिस्थितिजन्य सबूतों या वैज्ञानिक सबूतों के अभाव में कई बार निर्दोष लोग भी फंस जाते हैं. घटनास्थल की अच्छी जांच और बायोमैट्रिक पहचान की मदद से निर्दोष लोग झेमेले से बचते हैं. किर्क ब्लड्सवर्थ के सामने नौ साल तक मौत की सजा खड़ी रही. अमेरिका में डीएनए सबूतों की मदद से 100 से ज्यादा बेकसूर लोग कैद से बाहर निकले.
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पीड़ित परिवारों को भी राहत
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का पहली बार बड़े पैमाने पर इस्तेमाल स्रेब्रेनित्सा नरसंहार के मामले में हुआ. सामूहिक कब्रों से शव निकाले गए और डीएनए तकनीक की मदद से उनकी पहचान की गई. डीएनए फिंगरप्रिंट को परिजनों से मिलाया गया. पांच साल की एमा हसानोविच को तब जाकर पता चला कि कब्र में उनके अंकल भी थे. 6,000 मृतकों की पहचान ऐसे ही की गई.
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फोन और कंप्यूटर में बायोमैट्रिक डाटा
बायोमैट्रिक डाटा के मामले में काफी काम हो रहा है. वैज्ञानिक अब आवाज के पैटर्न को भी बायोमैट्रिक डाटा में बदलने लगे हैं. वॉयस रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर की मदद से धमकी देने वालों को पहचाना जा सकता है. फिंगरप्रिंट की ही तरह हर इंसान के बोलने के तरीका भी अलग होता है. मुंह से निकलती आवाज कई तरंगों का मिश्रण होती है और इन्हीं तरंगों में जानकारी छुपी होती है.
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अब तक सबसे बड़ा जीनोम जापान के एक पौधे पैरिस जापोनिका का आंका गया था. लेकिन मेसिपटेरिस का जीनोम उससे भी सात फीसदी ज्यादा बड़ा है.
ताज महल से ऊंचा जीनोम
जीनोम का आकार मापने की ईकाई डीएनए के जोड़ों यानी गुणसूत्रों की लंबाई होती है. अगर इस पौधे के डीएनए की हर कोशिका में पाए जाने वाले जीनोम का धागा बनाया जाए तो उसकी लंबाई करीब 350 फुट यानी अमेरिका के स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी या भारत के ताज महल से भी ज्यादा होगी. इसकी तुलना में इंसान के जीनोम की लंबाई मुश्किल से साढ़े छह फुट होती है.
मेसिपटेरिस न्यू कैलेडोनिया में आमतौर पर जमीन पर या किसी गिरे हुए पेड़ पर उगता है. इसके अलावा यह इसके पड़ोसी द्वीपों जैसे वनुआतु पर भी पाया जाता है.
यह शोधपत्र आईसाइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. इसके शोधकर्ताओं में से एक बोटैनिकल इंस्टिट्यूट ऑफ बार्सिलोना के जीवविज्ञानी खाउमे पेलिसर बताते हैं, "हम इतना बता सकते हैं कि यह पौधा कोई बहुत शानदार नजर नहीं आता. यह बहुत छोटा सा पौधा है. इसकी ऊंचाई 10-15 सेंटीमीटर होती है और इसे बड़ी आसानी से नजरअंदाज किया जा सकता है.”
मरने वाले अज्ञात लोगों की शिनाख्त के तरीके
ट्रेन, हवाई जहाज, बस के एक्सीडेंट या अन्य हादसों में अक्सर हादसे का शिकार हुए व्यक्ति की शिनाख्त मुश्किल होती है. ऐसे में कुछ खास तरीकों को पहचान के लिए अपनाया जाता है.
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फिंगरप्रिंट
बड़े हादसों में मरने वालों की संख्या भी आमतौर पर बड़ी होती है. ऐसे में पीड़ितों के फिंगरप्रिंट की मदद से उनकी पहचान होती है.
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शरीर पर निशान
अगर शरीर को ज्यादा क्षति नहीं हुई है तो शरीर पर मौजूद निशान से भी पहचान में मदद मिल सकती है. शरीर पर मौजूद कोई तिल, टैटू, किसी तरह की विक्लांगता या फिर जन्म से मौजूद निशान.
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दांतों की फोरेंसिक जांच
दांतों की बनावट और उनकी जबड़े में व्यवस्था भी लोगों में एक दूसरे से अलग होती है. विकसित देशों में डेंटिस्ट के पास नियमित रूप से जाना सामान्य बात है. दांतों के डॉक्टरों के पास मरीजों के दांतों के रिकॉर्ड होते हैं. इनसे व्यक्ति की पहचान में मदद मिल सकती है.
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एक्स-रे
मृत्यु से पहले और बाद की एक्स-रे रिपोर्ट की तुलना करके भी मरने वाले की शिनाख्त की जा सकती है. उदाहरण के लिए, अगर मरने वाले का पहले कोई एक्सिडेंट हुआ हो या कभी पहले कोई हड्डी टूटी हो, तो नए एक्सरे में उसकी पहचान की जा सकती है.
डीएनए जांच
सबसे नया तरीका है डीएनए ट्रैकिंग, इस तरह की फिंगरप्रिंटिंग में धोखा नहीं हो सकता है. मरने वाले के डीएनए सैंपल को परिवार के किसी सदस्य के डीएनए सैंपल से मिलाया जाता है. ये माता, पिता, भाई या बहन हो सकते हैं. तरीका बहुत सटीक है लेकिन इसमें तकनीकी योग्यता की बेहद जरूरत है.
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फोरेंसिक जांच
पुलिस फोरेंसिक जांच की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई जिसमें दुर्घटनास्थल पर मिली सामग्री की जांच से पीड़ित के साथ हमलावर की भी पहचान में मदद ली जाती है. अब इस विधि का इस्तेमाल दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों की पहचान के लिए भी किया जाने लगा है.
तस्वीर: fotolia
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इस शोध के लिए मेसिपटेरिस के नमूने पिछले साल न्यू कैलेडोनिया के ग्रैंड टेरे द्वीप से जमा किए गए थे. इसमें छोटी छोटी पत्तियां होती हैं लेकिन असल में वे पत्तियां नहीं बल्कि सपाट डंठल हैं. यह पौधा अपनी मूल प्रजाति के पौधे से करीब 35 करोड़ साल पहले, यानी डायनासोर के विलुप्त होने से भी लगभग 12 करोड़ साल पहले अलग होकर स्वतंत्र हो गया था.
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बड़ा जीनोम कितना अच्छा?
ऐसा नहीं है कि बड़ा जीनोम होने का कोई फायदा होता है. पेलिसर कहते हैं, "हमें लगता है कि मेसिपटेरिस का विशाल जीनोम विकास में होने वाले किसी फायदे के लिए नहीं है. हालांकि ऐसा क्यों है, यह हमें अभी नहीं पता है, क्योंकि हम इसका निष्क्रिय डीएनए अलग कर पाने में सफल नहीं हो पाए हैं.”
जीनोम के आकार के कई तरह के फायदे या नुकसान होते हैं. मसलन, अगर जीनोम बड़ा होगा तो उसके डीएनए को बढ़ने या मरम्मत के लिए ज्यादा संसाधनों की जरूरत होगी. डीएनए का बढ़ना एक अहम प्रक्रिया है, जिसका इस्तेमाल कोशिकाएं प्रोटीन बनाने के लिए करती हैं. यह जीव के काम करते रहने के लिए जरूरी होता है.
ऐसे निर्धारित होती है आपकी उम्र
अगर आप लंबी उम्र की कामना करते हैं, तो जानिए कि वे कौन से कारण हैं, जो तय करते हैं कि आप का जीवन काल क्या होगा. रिसर्च इन पांच कारणों के बारे में बताती है.
तस्वीर: imago/Westend61
डीएनए
डीएनए लंबी उम्र के लिए अच्छे जीन्स का होना जरूरी है. जीन्स हमें अपने माता पिता से मिलते हैं. अकसर देखा गया है कि जो मां बाप लंबा जीते हैं, उनके बच्चों की उम्र भी लंबी होती है. इसकी वजह हमारे डीएनए में छिपी है. सही जीन के होने से हमारी जीवन प्रत्याशा बढ़ सकती है. हमारी उम्र पर इनका 25 से 30 फीसदी तक असर होता है.
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लिंग
महिलाएं आम तौर पर पुरुषों से लंबा जीती हैं. ऐसा क्यों है, इसका जवाब शायद हमारे क्रोमोजोम में छिपा है. महिलाओं में दो एक्स क्रोमोजोम होते हैं, जबकि पुरुषों में एक एक्स और एक वाय. अगर वाय में कुछ गड़बड़ी हो जाए, तो एक्स कोई मदद नहीं कर सकता. इसलिए पुरुषों में जीन डिफेक्ट अधिक देखे जाते हैं.
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खान पान
अच्छी सेहत के लिए सही तरह का खाना बेहद जरूरी है. जैसे कि मेडिटरेनियन डाइट यानी भूमध्यसागर के इलाकों में रहने वाले लोगों का खान पान. ऑलिव ऑयल, सब्जियां और सलाद खाने वालों की उम्र लंबी होती है. साथ ही, दिन भर में कितनी कैलोरी लेते हैं, ये भी उम्र को निर्धारित करता है. सही आहार के जरिए अपने वजन पर काबू करने वाला लंबा जीता है.
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रवैया
अमेरिका में हुए एक शोध में देखा गया कि जो लोग अपनी बढ़ती उम्र को ले कर सकारात्मक रवैया रखते हैं, वे लंबा जी पाते हैं. रिसर्च के अनुसार रिटायर होने के बाद आराम करने वालों की तुलना में वो लोग जो साठ-पैंसठ की उम्र के बाद भी खुद को व्यस्त रखते हैं, वे चार साल लंबा जीते हैं. यानी बुढ़ापे में व्यस्त रहने से उम्र लंबी होती है.
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कसरत
नियमित रूप से कसरत करना और चलते फिरते रहना सेहत और उम्र दोनों के लिए अच्छा है. जो लोग जॉगिंग करते रहे हैं, उसका फायदा उन्हें तब भी मिलता है, जब वे बुढ़ापे में दौड़ना भागना बंद कर देते हैं. कसरत करने से शरीर की कोशिकाओं में ऐसे बदलाव होते हैं, जो कसरत करना छोड़ने पर भी बने रहते हैं. कसरत करने से शरीर लंबी उम्र के लिए तैयार होता है.
तस्वीर: Colourbox
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एक अन्य शोधकर्ता ओरियाने हिडाल्गो बताती हैं, " (संसाधनों की) ज्यादा मांग से पौधे की ऊर्जा और पोषक तत्वों पर दबाव बढ़ सकता है, जो असल में उसके विकास, पुनरोत्पादन और आपातकालीन परिस्थितियों से लड़ने में काम आते.”
वैज्ञानिकों ने अब तक लगभग 20 हजार जीवित ईकाइयों के जीनोम का ही आकलन किया है. उन्होंने पाया है कि जीनोम का बड़ा आकार अपवाद ही होता है.