दिल्ली पुलिस को हर साल शहर के अलग अलग इलाकों में ठंड से अपनी जान गंवा चुके लोगों की लाशें मिलती हैं. अकेले दिल्ली ही नहीं बल्कि लगभग सभी बड़े शहरों में लाखों बेघर लोग सिर छुपाने की जगह ढूंढने को मजबूर हैं.
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बीजेपी ने आरोप लगाया है कि दिल्ली में सिर्फ दिसंबर 2022 में ठंड से 162 लोगों की मौत हो गई. दिल्ली बीजेपी के महासचिव हर्ष मल्होत्रा ने पत्रकारों को बताया कि दिल्ली पुलिस और एक एनजीओ के आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 की सर्दियों में 779, 2019-20 की सर्दियों में 749, 2020-21 की सर्दियों में 436 और 2021-22 की सर्दियों में 545 बेघर लोगों की मौत हो गई.
दिल्ली पुलिस ने इन आंकड़ों के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है. मल्होत्रा ने भी उस एनजीओ का नाम नहीं बताया जिसके आंकड़ों का उन्होंने हवाला दिया. लेकिन यह सच है कि दिल्ली में लाखों बेघर लोग रहते हैं और उनमें से कई लोगों की सर्दियों के दौरान ठंड से मौत भी हो जाती है.
देश में 17 लाख बेघर
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कुछ ही दिनों पहले दिल्ली के अलग अलग इलाकों में कम से कम पांच लाशें सड़क के किनारे जा फुटपाथ पर मिलीं. इन पांचों लाशों पर ना किसी चोट के निशान थे और ना किसी तरह के हमले के.
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हर साल सर्दियों में पुलिस को ऐसी कई लाशें शहर के अलग अलग हिस्सों में मिलती हैं. ये अक्सर उन बेघर लोगों की लाशें होती हैं जिनके पास शहर में सिर छुपाने की कोई जगह नहीं होती और इन हालात में इनके लिए ठंड से बचना नामुमकिन हो जाता है.
2011 की जनगणना के मुताबिक उस समय देश में 17 लाख से ज्यादा बेघर लोग थे, लेकिन समाज सेवी संगठनों का मानना है कि बेघर लोगों की असली संख्या सरकारी आंकड़ों में नहीं मिल पाती है. अनुमान है कि अकेले दिल्ली में 1.5 लाख से दो लाख बेघर लोग रहते हैं.
रैन बसेरों से नहीं चल रहा काम
इनमें से अधिकांश रोजगार की तलाश में दिल्ली आए लेकिन यहां रोजगार ना मिलने के बाद इन्हें सिर छुपाने के लिए कोई जगह भी नसीब नहीं हुई. दिल्ली सरकार का अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड इन लोगों के लिए 'रैन बसेरा' नाम के अस्थायी आश्रय चलाता है, जहां बेघर लोग निशुल्क रात बिता सकते हैं.
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लेकिन राजधानी में इस समय सिर्फ 195 रैन बसेरें हैं जिनमें अधिकतम 17,000 लोग रात बिता सकते हैं. लिहाजा सभी बेघर इन रैन बसेरों तक पहुंच नहीं पाते और दिसंबर से जनवरी के बीच जब ठंड ज्यादा बढ़ जाती है तब इनके लिए ठंड में बाहर खुले में जिंदा रह पाना ही एक चुनौती बन जाती है.
दिल्ली के उप-राज्यपाल वी के सक्सेना ने हाल ही रैन बसेरों का निरीक्षण करने के बाद उनमें कई कमियां पाईं. कहीं रैन बसेरा के बाहर ही लोग फुटपाथ पर सोते हुए मिले तो कहीं रैन बसेरा में शौचालय की व्यवस्था ना होने के कारण खुले में ही शौच करते पाए गए. रैन बसेरों में इन हालात को देखते हुए सक्सेना ने शेल्टर बोर्ड के सीसीओ का ट्रांसफर कर दिया.
बेघर लोगों की समस्या अकेले दिल्ली की नहीं, बल्कि लगभग सभी बड़े शहरों की है. अनुमान है कि मुंबई में करीब दो लाख, कोलकाता में करीब 1.5 लाख और चेन्नई में करीब 50,000 बेघर लोग रहते हैं.
कोरोना वायरस के समय बेघरों की बेबसी
दुनिया भर में ऐसे कई लोग हैं जो कोरोना संकट के समय भी सड़क पर जिंदगी बिताने को मजबूर हैं. चाहे अमेरिका हो या फिर लंदन संकट के इस समय में भी कुछ बेघर सड़क पर ही रहने को मजबूर हैं. एक नजर बेघरों की हालत पर.
तस्वीर: Reuters/S. Marcus
लंदन, ब्रिटेन
लंदन में बेघर तख्ती पर अपनी स्थिति लिख लोगों से दान की अपील करते हुए. जिन लोगों के पास रहने के लिए घर नहीं वह किसी तरह से मेट्रो स्टेशन या फिर सड़क किनारे संकट के समय में जिंदगी बिता रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/H. McKay
डकार, सेनेगल
35 साल के इब्राहिम के पास रहने को घर नहीं है. वह रात के समय में इसी तरह से बेंच पर बैठ कर अपना समय काटते हैं. यहां 4 मई तक सुबह से लेकर शाम का कर्फ्यू लगा हुआ है.
तस्वीर: Reuters/Z. Bensemra
फ्लोरिडा, अमेरिका
ऐसा नहीं है कि अमीर देश अमेरिका में सबके पास रहने को मकान है. कोरोना संकट के समय भी लोग सड़क के किनारे रह रहे हैं. हालांकि स्वास्थ्य कर्मचारी उनके बारे में पता करने के लिए जरूर जाते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Bello
बैंकॉक, थाईलैंड
थाईलैंड में बेघरों को कोरोना वायरस से बचाने के लिए राहत शिविरों में रखा गया हैं. उन्हें सामाजिक दूरी के बारे में जानकारी दी जाती है और सख्ती से पालन करने को कहा जाता है. खाने के लिए भी लोग कतार में लगते हैं और बारी बारी से भोजन लेते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Perawongmetha
लास वेगस, अमेरिका
लास वेगस का नाम सुनते ही दिमाग में ऐसी तस्वीर आ जाती है जिसमें रात को चमकती इमारतें होती हैं, शानदार पार्टियां और ना जाने क्या-क्या. लेकिन कोरोना वायरस के कारण यहां की भी तस्वीर बदल चुकी है. बेघर लोग यहां अस्थायी पार्किंग की जगहों पर सो रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Marcus
प्राग, चेक गणराज्य
प्राग में भी बेघरों के रहने के लिए कुछ इस तरह से इंतजाम किए गए हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए बेघरों के टेंट एक दूसरे के बीच दूरी रख कर लगाए गए हैं.
तस्वीर: Reuters/D.W. Cerny
पेरिस, फ्रांस
फ्रांस की राजधानी पेरिस में हर साल लाखों लोग पर्यटन के लिए आते हैं. देश की कमाई भी इससे अच्छी खासी होती है लेकिन यहां भी बेघर हैं. संकट के दौर में किसी को आश्रय मिल गया तो कोई इसी तरह से सड़क पर है.
तस्वीर: Reuters/C. Platiau
ओस्लो, नॉर्वे
नॉर्वे जैसे छोटे देश में भी बेघर हैं. करीब 54 लाख की आबादी वाले देश ने बेघरों के रहने के लिए केंद्रों का इंतजाम किया है. सामाजिक दूरी को ध्यान में रखते हुए बिस्तर को अलग-अलग लगाया है. नॉर्वे ने बड़े आयोजनों पर प्रतिबंध को 1 सितंबर तक बढ़ा दिया है.
तस्वीर: Reuters/NTB Scanpix/H. Junge
रोम, इटली
रोम के मशहूर पर्यटन स्थल कोलोजियम के बाहर खड़े इस शख्स के पास रहने को घर नहीं है. महामारी का सबसे ज्यादा असर यूरोप के इसी देश पर पड़ा है. क्या अमीर और क्या गरीब कोरोना वायरस की मार सभी झेल रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/F. Monteforte
कोलकाता, भारत
भारत में केंद्र और राज्यों ने बेघरों के लिए अस्थायी केंद्र बनाए हैं जहां ऐसे लोग रह सकते हैं जिनके पास घर नहीं हैं. यहां उन्हें तीनों वक्त का भोजन दिया जाता है और चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं.