लेबनान के सैन्य अधिकारियों का कहना है कि सीरियाई शरणार्थियों और एक स्थानीय नियोक्ता के बीच लेनदेन के विवाद के बाद शिविरों में आग लगा दी गई, जिससे सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं.
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संयुक्त राष्ट्र और लेबनान के अधिकारियों ने रविवार को कहा कि उत्तरी लेबनान में एक शरणार्थी शिविर में आग लग गई थी, जिससे लगभग 300 सीरियाई शरणार्थी बेघर हो गए हैं. खबरों के मुताबिक एक स्थानीय नियोक्ता और शरणार्थियों के बीच पैसे को लेकर विवाद हुआ, जिसके कारण शिविर में आग लगा दी गई. यूएनएचसीआर का कहना है कि मिन्या इलाके में सीरियाई शरणार्थी के करीब 75 परिवार उन शिविर में रह रहे थे जिसमें आग पकड़ ली थी.
लेबनान के एक सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि लेबनानी सेना आग के कारणों की जांच कर रही है और जिम्मेदार लोगों को गिरफ्तार करने के लिए छापेमारी हो रही है. एक अन्य सैन्य सूत्र ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि स्थानीय लोगों के लिए काम करने वाले सीरियाई शरणार्थियों में मजदूरी को लेकर विवाद था और फिर दोनों पक्षों के बीच लड़ाई हुई थी.
लेबनान में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के प्रवक्ता खालिद कबारा ने कहा कि अस्थायी शिविर किराए की जमीन पर स्थित थे और वहां लगभग 375 शरणार्थियों को रखा गया था. उन्होंने बताया है कि शिविर पूरी तरह से जल गए हैं. उन्होंने कहा, "आग के कारण शिविरों में रखे गैस सिलेंडरों में भी विस्फोट हो गया, जिससे कुछ परिवार डर की वजह से भाग गए."
लेबनान का कहना है कि उसने लगभग 15 लाख सीरियाई शरणार्थियों को शरण दी है, जिनमें से लगभग दस लाख ने संयुक्त राष्ट्र के साथ पंजीकरण कराया है. अधिकारियों का कहना है कि शरणार्थियों को अब अपने वतन लौटना चाहिए, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि युद्ध ग्रस्त सीरिया अभी भी सुरक्षित जगह नहीं है. 2011 में सीरिया संकट के बाद से ही वहां से लोग जान बचाकर भाग रहे हैं और पड़ोसी देशों में शिविरों में रहने को मजबूर हैं.
पिछले महीने उत्तरी लेबनान के शहर बशारा में एक सीरियाई शरणार्थी पर एक लेबनानी की गोली मारकर हत्या करने का आरोप लगा था. जिसके बाद तनाव बढ़ गया था और 270 शरणार्थी परिवारों को इस क्षेत्र से जाना पड़ा था. देश में चल रहे गृहयुद्ध के कारण वहां से भाग रहे सीरियाई शरणार्थियों के बीच तनाव अब आम बात है. लेबनान की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है और वहां लाखों सीरियाई शरणार्थियों के रहने से देश के बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव पड़ रहा है.
करीब 100 रोहिंग्या शरणार्थियों का एक समूह चार महीनों की समुद्री यात्रा कर जब इंडोनेशिया पहुंचा, तो प्रशासन ने उन्हें उतारने से इंकार कर दिया. लेकिन स्थानीय लोगों ने सरकार से लड़ कर शरणार्थियों को बचाया और वहां शरण दी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Mirza
जोखिम भरी यात्रा
करीब 100 लोगों के इस समूह को इंडोनेशिया के मछुआरों ने 24 जून को देखा और अधिकारियों को सूचित किया. लेकिन प्रशासन ने कोविड-19 की चिंताओं को लेकर इन्हें उतारने की अनुमति नहीं दी.
तस्वीर: Reuters/Antara Foto/Rahmad
सरकार से लड़ कर बचाया
इंडोनेशिया के आचेह प्रांत के लोगों ने प्रशासन के आदेश का विरोध किया और इसके खिलाफ जाकर रोहिंग्याओं को खुद नाव से उतरा.
तस्वीर: Reuters/Antara Foto/Rahmad
चार महीनों बाद जमीन पर
शरणार्थियों का कहना है कि इस यात्रा के दौरान तस्करों ने उन्हें बहुत मारा. अपना मूत्र पी कर वे जीवित रहे. रास्ते में कुछ की मृत्यु भी हो गई और उनके शव को मजबूरी में नाव से समुद्र में फेंकना पड़ा.
तस्वीर: Reuters/Antara Foto/Rahmad
बांग्लादेश में भी रह ना सके
ये सभी म्यांमार से अपनी जान बचा कर बांग्लादेश पहुंचे थे, लेकिन वहां के शरणार्थी शिविरों के अमानवीय हालात से भी भागने पर मजबूर हो गए.
तस्वीर: Reuters/Antara Foto/Rahmad
तस्करों की दया पर
इन रोहिंग्याओं का कहना है कि नाव पर खाना खत्म हो जाने के बाद तस्करों ने इन्हें एक दूसरी नाव में बिठा दिया और समुद्र में बहने के लिए छोड़ दिया. आचेह में आप्रवासियों के एक केंद्र पर इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) की देख-रेख में पहचान पत्र के लिए इंडोनेशिया की पुलिस द्वारा तस्वीर खिंचवाता एक रोहिंग्या शरणार्थी.
तस्वीर: AFP/C. Mahyuddin
महिलाएं और बच्चे भी
समूह में 48 महिलाएं और 35 बच्चे भी हैं. एक महिला की रास्ते में मृत्यु हो गई और उसके बच्चे अकेले रह गए. तीन और बच्चे नाव पर बिना माता-पिता के आए थे. समूह में एक गर्भवती महिला भी है. तस्वीर में रोहिंग्या महिलाएं आप्रवासियों के केंद्र के बाहर पुलिस की पहचान प्रक्रिया से गुजरती हुईं.
तस्वीर: AFP/C. Mahyuddin
हर साल वही कहानी
आप्रवासियों के केंद्र के बाहर बैठा हुआ एक रोहिंग्या शरणार्थी. हर साल हजारों सताए हुए रोहिंग्या तस्करों को पैसे देकर पनाह की तलाश में समुद्र के जोखिम भरे सफर पर निकल पड़ते हैं. आईओएम के अनुसार इस साल अभी तक कम से कम 1400 रोहिंग्या समुद्र में फंसे मिले हैं.
तस्वीर: AFP/C. Mahyuddin
चैन की नींद, फिलहाल
म्यांमार में अपने घरों से और बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों से हजारों मील दूर जान की बाजी लगा कर पहुंचे आचेह के आप्रवासी केंद्र में चैन की नींद लेते रोहिंग्या शरणार्थी. जाने इनके भविष्य में आगे क्या है.