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कोविड-19 के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई बेकार

८ मई २०२०

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा कोविड-19 का इलाज बताई गई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई मरीजों पर किए गए अब तक के सबसे बड़े परीक्षण में असफल हुई है. इस दवाई को लेकर भारत में बहुत चर्चा हुई थी.

Coronavirus - Hydroxychloroquin
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Zuma/Quad-City Times/K. E. Schmidt

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसन में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई कोविड-19 के मरीजों को ठीक करने संबंधित एक और और अब तक हुए सबसे बड़े टेस्ट में असफल साबित हुई है. यह दवाई मलेरिया के उपचार में इस्तेमाल की जाती है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कोविड-19 की शुरुआत से ही इस दवाई को लेकर उत्साहित थे और इसे कोरोना के इलाज में एक 'गेम चेंजर' बता रहे थे. इस रिसर्च में कहा गया है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से ना तो बीमार लोगों को हो रही सांस लेने की दिक्कत पर कोई असर पड़ा और ना ही उनकी मौत का खतरा कम हुआ है.

इस शोध को करने वाली टीम के प्रमुख डॉक्टर नील श्लूगर ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए कहा, "हमने इस दवाई से कोविड-19 के मरीजों में कोई फायदा महसूस नहीं किया है. इससे ना तो उनको सांस लेने में आ रही दिक्कत से फायदा हो पा रहा है और ना ही इससे मौतों की संख्या पर कोई नियंत्रण हो रहा है. जिन भी मरीजों को ये दवाई दी गई है उनकी सेहत पर इसका कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ है." जिन लोगों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दी गई थी उनमें से 32.3 प्रतिशत मरीजों को या तो वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी या फिर उनकी मौत हो गई. जबकि जिन लोगों को ये दवा नहीं दी गई उनमें ये संख्या 14.9 प्रतिशत है.

डॉक्टरों ने कई मरीजों को ये दवाई दी. इस पर हुई रिसर्च से सामने आया कि इस दवाई से मरीजों को कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन कोई फायदा भी वहीं हुआ है. श्लूगर की टीम ने बताया कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल अर्थेराइटिस के इलाज में भी किया जाता है. इस दवाई को कई मराजों को एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसीन के साथ भी दिया गया. लेकिन तब की कोई फायदा नहीं दिखाई दिया. जिन मरीजों को सिर्फ एजिथ्रोमाइसीन दी गई उन्हें भी कोई फायदा नहीं हुआ.

पिछले महीने अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ वेटेरंस अफेयर्स के डॉक्टरों ने कहा था कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से कोविड-19 के मरीजों के इलाज में कोई मदद नहीं मिल रही है और इससे मौत का खतरा भी बढ़ रहा है. उनके आंकड़ों के मुताबिक जब मानक इलाज के साथ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दी गई तो मौत की दर 28 प्रतिशत थी और जब सिर्फ मानक इलाज दिया गया तो यह दर 11 प्रतिशत थी.

हाल के प्रयोग में 811 मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दी गई थी जबकि 565 मरीजों को नहीं दी गई थी. डॉक्टर श्लूगर ने कहा कि अब अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए नए निर्देश जारी कर इस दवाई का इस्तेमाल ना करने के निर्देश दिए गए हैं. श्लूगर ने कहा कि चीन के कुछ शोधों में सामने आया था कि ये दवाई ठीक काम कर रही है लेकिन ये बहुत छोटे शोध थे. ऐसे में इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.

अभी तक कोविड-19 का कोई टीका या दवाई नहीं आई है. पिछले हफ्ते अमेरिकी सरकार ने इबोला की दवाई रेम्डेसिविर का इस्तेमाल कोविड-19 के मरीजों पर भी करने की अनुमति दी थी. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर भारत में काफी बहस छिड़ी रही है. मार्च में भारत ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को  कोविड-19 के लिए जरूरी दवा बताया था. ट्रंप ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ना देने पर बदला लेने की बात भी कही थी. इसके बाद भारत ने बहुत से देशों को इस दवाई का निर्यात किया था.

आरएस/ आरपी (रॉयटर्स)

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