अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा कोविड-19 का इलाज बताई गई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई मरीजों पर किए गए अब तक के सबसे बड़े परीक्षण में असफल हुई है. इस दवाई को लेकर भारत में बहुत चर्चा हुई थी.
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न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसन में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई कोविड-19 के मरीजों को ठीक करने संबंधित एक और और अब तक हुए सबसे बड़े टेस्ट में असफल साबित हुई है. यह दवाई मलेरिया के उपचार में इस्तेमाल की जाती है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कोविड-19 की शुरुआत से ही इस दवाई को लेकर उत्साहित थे और इसे कोरोना के इलाज में एक 'गेम चेंजर' बता रहे थे. इस रिसर्च में कहा गया है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से ना तो बीमार लोगों को हो रही सांस लेने की दिक्कत पर कोई असर पड़ा और ना ही उनकी मौत का खतरा कम हुआ है.
इस शोध को करने वाली टीम के प्रमुख डॉक्टर नील श्लूगर ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए कहा, "हमने इस दवाई से कोविड-19 के मरीजों में कोई फायदा महसूस नहीं किया है. इससे ना तो उनको सांस लेने में आ रही दिक्कत से फायदा हो पा रहा है और ना ही इससे मौतों की संख्या पर कोई नियंत्रण हो रहा है. जिन भी मरीजों को ये दवाई दी गई है उनकी सेहत पर इसका कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ है." जिन लोगों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दी गई थी उनमें से 32.3 प्रतिशत मरीजों को या तो वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी या फिर उनकी मौत हो गई. जबकि जिन लोगों को ये दवा नहीं दी गई उनमें ये संख्या 14.9 प्रतिशत है.
डॉक्टरों ने कई मरीजों को ये दवाई दी. इस पर हुई रिसर्च से सामने आया कि इस दवाई से मरीजों को कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन कोई फायदा भी वहीं हुआ है. श्लूगर की टीम ने बताया कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल अर्थेराइटिस के इलाज में भी किया जाता है. इस दवाई को कई मराजों को एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसीन के साथ भी दिया गया. लेकिन तब की कोई फायदा नहीं दिखाई दिया. जिन मरीजों को सिर्फ एजिथ्रोमाइसीन दी गई उन्हें भी कोई फायदा नहीं हुआ.
पिछले महीने अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ वेटेरंस अफेयर्स के डॉक्टरों ने कहा था कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से कोविड-19 के मरीजों के इलाज में कोई मदद नहीं मिल रही है और इससे मौत का खतरा भी बढ़ रहा है. उनके आंकड़ों के मुताबिक जब मानक इलाज के साथ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दी गई तो मौत की दर 28 प्रतिशत थी और जब सिर्फ मानक इलाज दिया गया तो यह दर 11 प्रतिशत थी.
हाल के प्रयोग में 811 मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दी गई थी जबकि 565 मरीजों को नहीं दी गई थी. डॉक्टर श्लूगर ने कहा कि अब अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए नए निर्देश जारी कर इस दवाई का इस्तेमाल ना करने के निर्देश दिए गए हैं. श्लूगर ने कहा कि चीन के कुछ शोधों में सामने आया था कि ये दवाई ठीक काम कर रही है लेकिन ये बहुत छोटे शोध थे. ऐसे में इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
अभी तक कोविड-19 का कोई टीका या दवाई नहीं आई है. पिछले हफ्ते अमेरिकी सरकार ने इबोला की दवाई रेम्डेसिविर का इस्तेमाल कोविड-19 के मरीजों पर भी करने की अनुमति दी थी. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर भारत में काफी बहस छिड़ी रही है. मार्च में भारत ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को कोविड-19 के लिए जरूरी दवा बताया था. ट्रंप ने भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ना देने पर बदला लेने की बात भी कही थी. इसके बाद भारत ने बहुत से देशों को इस दवाई का निर्यात किया था.
डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन मंगाई थी. लेकिन क्या यह दवा वाकई कोविड-19 का इलाज कर सकती है?
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किस दवा की बात हो रही है?
डॉनल्ड ट्रंप भारत से जो दवा मंगाना चाहते हैं उसका नाम है हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन. 1940 के दशक से इस दवा का इस्तेमाल मलेरिया का इलाज करने के लिए होता रहा है.
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मलेरिया और कोरोना का क्या नाता है?
मलेरिया मच्छर के काटने से होता है और कोविड-19 वायरस से. इसलिए दोनों का एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है. ऐसा नहीं है कि जिन लोगों को मलेरिया का खतरा ज्यादा होता है उन्हें कोविड-19 का खतरा भी होगा.
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कोरोना के लिए मलेरिया की दवा क्यों?
हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल मलेरिया के अलावा ऑटो-इम्यून बीमारियों को ठीक करने के लिए भी होता रहा है. कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है. इसलिए इस दवा से इम्यून सिस्टम को बचाने की बात हो रही है.
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क्या अमेरिका के पास नहीं है यह दवा?
ऐसी रिपोर्टें हैं कि अमेरिका में यह दवा पहले से ही भारी मात्रा में मौजूद है लेकिन डॉनल्ड ट्रंप इसे स्टॉक करना चाह रहे हैं. अमेरिका में बिना डॉक्टर की पर्ची के भी यह दवा खरीदी जा सकती है लेकिन इस बीच आम लोग इसे नहीं खरीद पा रहे हैं.
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डॉक्टरों का क्या कहना है?
खुद अमेरिका में ही डॉक्टरों की राय इस पर बंटी हुई है. ट्रंप के समर्थक इसे आजमाने की पैरवी कर रहे हैं लेकिन अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष का कहना है कि वे इसके इस्तेमाल की सलाह नहीं देंगी.
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रिस्क क्या है?
इस दवा का साइड इफेक्ट होने पर दिल पर बुरा असर पड़ सकता है. ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, मांसपेशियों और नसों को नुकसान हो सकता है. सीने में दर्द के साथ साथ धड़कनें कम हो सकती हैं.
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क्या पहले कभी इस्तेमाल हुई है?
राजस्थान में डॉक्टरों ने स्वाइन फ्लू, मलेरिया और एचआईवी की दवाओं को मिला कर इस्तेमाल किया और उन्हें सफलता मिली. हालांकि इस मिश्रण के बाकी मरीजों पर इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई है.
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कहां से आया दवा के इस्तेमाल का आइडिया?
किसी भी दवा को मरीजों पर तब ही इस्तेमाल किया जाता है जब लैब में उस पर टेस्ट हो चुके हों. इस दवा के मामले में भी ऐसा ही है. कुछ ऐसे टेस्ट हुए जिनके परिणाम आशाजनक दिखाई दिए.
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रिसर्च क्या कहती है?
एक रिसर्च ने दिखाया कि इस दवा के सेवन से कोरोना वायरस का शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है. एक अन्य रिसर्च के अनुसार इस दवा लेने से मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन यह रिसर्च सिर्फ 11 लोगों पर की गई.
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क्या ज्यादा लोगों पर भी हुई रिसर्च?
चीन में हुई एक रिसर्च ने दिखाया कि 10 अस्पतालों में कुल 100 मरीजों को जब यह दवा दी गई तो उनकी तबियत में सुधार आया. लेकिन तुलना करने के लिए इस रिसर्च में ऐसे मरीजों का कोई आंकड़ा नहीं था जिन्हें यह दवा नहीं दी गई.
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ट्रंप ने कौन सी रिसर्च पढ़ी?
डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है, "फ्रांस में उन्होंने (रिसर्चरों ने) एक बहुत अच्छा टेस्ट किया है." इसी को आधार बनाते हुए उन्होंने अमेरिका में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
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कितनी विश्वसनीय है फ्रांस की रिसर्च?
मार्च में जब फ्रांस में कोरोना वायरस फैलने लगा तब वहां कुछ रिसर्चरों ने हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन पर शोध शुरू किया. इस शोध पर अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज पर हुई चर्चा के तुरंत बाद ट्रंप ने इसकी तारीफ शुरू कर दी.
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WHO का क्या कहना है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वक्त कोरोना वायरस पर छह अलग अलग दवाओं को टेस्ट कर रहा है. इस वायरस को ले कर जल्दी प्रतिक्रिया ना देने को लेकर WHO की काफी आलोचना हो रही है.
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अब आगे क्या?
कोरोना स्थिति को देखते हुए अमेरिका समेत कई देश लैब टेस्टिंग का इंतजार नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि मौजूदा मरीजों पर ही ट्रायल एंड एरर किया जाएगा और शायद उसके बाद ही पता चलेगा कि दवा कारगर है या नहीं.