जर्मनी इकलौता ऐसा देश है जिसने पूरी तरह से अपने परमाणु संयंत्रों को बंद कर दिया है. लेकिन ऊर्जा की पूर्ति के लिए यहां अब दोबारा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को शुरू करने पर बहस छिड़ गई है.
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अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के प्रमुख राफेल ग्रोसी ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कहा कि जर्मनी अगर परमाणु ऊर्जा पर वापस लौटना चाहता है तो ये एक तार्किक फैसला होगा. जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए से बात करते हुए ग्रोसी ने कहा, "मुझे लगता है यह फैसला सही है. जर्मनी दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जिसने 2023 में परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया है."
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कॉप29 सम्मेलन में रखी बात
अजरबैजान की राजधानी बाकू में चल रहे संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन कॉप29 में ग्रोसी ने कहा, "आप सोच रहे होंगे कि परमाणु ऊर्जा पर बाकी दुनिया चीजों को अलग तरह से क्यों देखती है. मैं इस मामले में जर्मन राजनीति का सम्मान करता हूं, फिलहाल आप कठिन दौर से गुजर रहे हैं, इसलिए हम इस पर विचार करेंगे."
उन्होंने कहा कि जर्मनी के परमाणु ऊर्जा पर वापस लौटने की बहस 'मेरे लिए चौंकाने' वाली बात नहीं थी क्योंकि इसके इस्तेमाल से लगभग नहीं के बराबर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. ग्रोस ने कहा, "यही वजह है कि जिन देशों के पास परमाणु ऊर्जा संयंत्र हैं वे इसे बढ़ाना चाहते हैं और जिनके पास यह सुविधा नहीं है, वे जल्द से जल्द से इसे हासिल करना चाहते हैं."
ग्रोस इस बात पर भी जोर देते हैं कि जर्मनी को इस बात को समझना होगा कि वो किस तरह से और कैसे अपने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को दोबारा शुरू कर सकेंगे.
बाकू में आयोजित कॉप29 से हैं कैसी उम्मीदें
11 नवंबर को अजरबैजान के बाकू में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन कॉप29 शुरू हो रहा है. सम्मेलन में किसी संधि पर सहमति होना एक मुश्किल लक्ष्य है. जानिए कौन कौन हैं इस सम्मेलन के मुख्य प्रतिभागी और क्या हैं उनकी मांगें.
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चीन
सम्मेलन में करीब 200 देश हिस्सा ले रहे हैं. इनमें चीन सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित करने वाला देश है. चीन का कहना है कि अमेरिका और अन्य औद्योगिक देशों को जलवायु के लिए सबसे पहले और सबसे तेज कदम उठाने चाहिए. उसके पुराने जलवायु राजदूत शी शेनुआ रिटायर हो चुके हैं और इस बार देश के पूर्व उप विदेश मंत्री लिउ शेनमिन देश का प्रतिनिधित्व करेंगे.
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अमेरिका
अमेरिका दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है. इस बार तो व्हाइट हाउस वरिष्ठ सलाहकार जॉन पेडेस्टा के नेतृत्व में जल्द सत्ता छोड़ देने वाले बाइडेन प्रशासन के वार्ताकार ही सम्मेलन में हिस्सा लेंगे, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डॉनल्ड ट्रंप की जीत ने एक नए वैश्विक क्लाइमेट फाइनेंस टारगेट पर एक मजबूत संधि की संभावना को कम कर दिया है.
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यूरोपीय संघ
27-सदस्यीय यूरोपीय संघ (ईयू) ने कॉप29 के सबसे ज्यादा विवादास्पद मुद्दों पर अभी तक अपनी स्थिति साफ ही नहीं की है. लेकिन संघ यह मांग करने में नहीं हिचकिचाया है कि चीन और तेजी से विकास करने वाले अन्य देश क्लाइमेट फाइनेंस में योगदान दें. अभी तक ईयू और उसके सदस्य देशों ने ही क्लाइमेट फाइनेंस में सबसे ज्यादा योगदान किया है. 2023 में यह योगदान 28.6 अरब यूरो था.
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ब्रिटेन
ब्रिटेन की लेबर पार्टी सरकार के ऊर्जा मंत्री एड मिलिबैंड ने कहा है कि ब्रिटेन "जलवायु नेतृत्व" संभालने फिर से आ गया है. देश ने बाकू में ही 2035 के लिए उत्सर्जन घटाने के अपने लक्ष्यों को पेश करने का वादा किया है, जो ऐसा करने की समय सीमा से तीन महीने पहले होगा. ब्रिटेन ने एक महत्वाकांक्षी फाइनेंस टारगेट की भी अपील की है, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि ब्रिटेन की सरकार कितना योगदान दे पाएगी.
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'तिगड़ी'
अपने आप को 'ट्राइका' (तिगड़ी) कहने वाले कॉप28, कॉप29 और कॉप30 के मेजबान देश यूएई, अजरबैजान और ब्राजील ने पिछले साल कहा था कि वो इस सालाना सम्मेलन के आयोजन में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए हाथ मिला रहे हैं. तीनो अर्थव्यवस्थाएं मुख्यत: जीवाश्म ईंधनों पर आधारित हैं. यूएई और ब्राजील दुनिया के 10 सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से हैं और अजरबैजान अपने प्राकृतिक गैस उद्योग का तरफदार है.
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'बेसिक' देश
ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (बेसिक) देश जलवायु परिवर्तन का सामना करने की पूरी दुनिया की क्षमता पर काफी बड़ा असर डाल सकते हैं. इन सभी देशों ने "साझा लेकिन अलग अलग जिम्मेदारियों" के आधार पर ज्यादा क्लाइमेट फाइनेंस की मांग की है. इसका मतलब है ऐतिहासिक रूप से सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले अमीर देशों को इस समस्या से निपटने के लिए ज्यादा योगदान देना चाहिए.
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जी77 प्लस चीन
77 विकासशील देशों और चीन के इस गठबंधन का भी कहना है कि उत्सर्जन को कम करना गरीब देशों से ज्यादा अमीर देशों की जिम्मेदारी है.
अफ्रीकी देश सम्मेलन में ज्यादा क्लाइमेट फाइनेंस और कार्बन बाजार नियम पर पेरिस संधि के अनुच्छेद छह को अगले साल की शुरुआत तक लागू करवाने की कोशिश करेंगे. उनकी यह भी योजना है कि लॉस एंड डैमेज फंड की तकनीकी सहायता एजेंसी के मुख्यालय को जिनेवा में रखने के फैसला का विरोध किया जाए. उनका कहना है कि जिनेवा एक महंगा शहर है और मुख्यालय उसकी जगह नैरोबी में होना चाहिए था.
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छोटे द्वीप देश
छोटे द्वीपीय देश समुद्र का जलस्तर बढ़ने जैसी जलवायु समस्याओं से हाकियों से कहीं ज्यादा प्रभावित हैं. उन्होंने अपना गठबंधन बनाया हुआ है और अपनी सारी कोशिशें क्लाइमेट फाइनेंस में अरबों डॉलर सुनिश्चित करने में और जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को धीरे धीरे खत्म करने की कोशिशों को मजबूत करने में लगाया हुआ है.
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सबसे कम विकसित देश
इस समूह के 45 देशों को भी जलवायु परिवर्तन से बहुत खतरा है और वो विकसित देशों से अच्छी खासी फंडिंग की मांग कर रहे हैं, वो भी अनुदान के रूप में. वो लॉस एंड डैमेज फंड में भी और पैसे डालने के समर्थक हैं.
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ऊंची महत्वाकांक्षा वाला गठबंधन
मार्शल आइलैंड्स की अध्यक्षता वाला यह समूह उत्सर्जन घटाने के ज्यादा आक्रामक लक्ष्यों और नीतियों की मांग कर रहा है. सीके/आरपी (रॉयटर्स)
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क्यों बंद किया परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल
1969 में जर्मनी का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र शुरू होने के बाद से ही पर्यावरणवादियों ने देश में इसके खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था. 1986 में चरनोबिल और 2011 में फुकुशिमा जैसी परमाणु आपदाओं ने देश के संयंत्रों को बंद करने के आंदोलनों में तेजी भर दी.
मार्च 2011 में जापान में आए तेज भूकंप की वजह से फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र को भयंकर नुकसान हुआ था और लोगों के लिए खतरा पैदा हो गया था.
जापान की घटना को देखने के बाद तत्कालीन जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने जर्मनी के परमाणु संयंत्रों को पूरी तरह से बंद करने की बात कही थी.
संयंत्र बंद करने से हुआ नुकसान
संयंत्रों को बंद किए जाने से पहले देश की ऊर्जा का 13.3 फीसदी हिस्सा परमाणु ऊर्जा से प्राप्त किया जाता था. परमाणु ऊर्जा से दूर जाने और रूसी गैस पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर होने की वजह से जर्मनी में ऊर्जा का संकट पैदा हो गया. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद ये हालात पैदा हुए. इसके बाद रूसी ईंधन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए गए.
सीडीयू पार्टी की नेता अंगेला मैर्केल ने जर्मन चांसलर के तौर पर परमाणु ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की शुरुआत की थी. लेकिन अब जर्मन संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर मौजूद सीडीयू का संसदीय दल सत्ताधारी मध्य-वाम गठबंधन की आलोचना कर रहा है कि उसने 2022 और 2023 में परमाणु ऊर्जा को खत्म करने के कदम को क्यों नहीं रोका.
इस साल इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सस्टेनेबल एनर्जी के एक लेख में कहा गया कि जर्मनी परमाणु ऊर्जा को खारिज करने की बजाय इसे अपनाकर न सिर्फ सैकड़ों अरब यूरो बचा सकता था और बल्कि कार्बन उत्सर्जन को भी 70 फीसदी तक कम कर सकता था.