वैज्ञानिक बहुत समय से सफेद छतों की सिफारिश करते आए हैं. एक नया अध्ययन कहता है कि गहरे रंग की छतों वाले घर सालाना हजारों अतिरिक्त रुपये खर्चते हैं.
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ऑस्ट्रेलिया में हुए एक शोध के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि अगर घर की छत सफेद हो तो लगभग 700 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (लगभग 40,000 रुपये) की सालाना बचत होती है क्योंकि गर्मी के मौसम में घरों को ठंडा रखने में कम बिजली खर्च होती है.
ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर सेबास्टियान फॉश कहते हैं, "गहरे रंग की छत का मतलब है कि आप घर को ठंडा करने में ज्यादा पैसा खर्च करेंगे. पिछले साल न्यू साउथ वेल्स राज्य में बिजली का औसत खर्च 1,827 डॉलर रहा. लेकिन जिनकी छतें हल्के रंग की थीं, उन्होंने 694 डॉलर तक कम बिल दिया. इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि सिडनी शहर में गहरे रंग की छत से बिजली का खर्च 38 फीसदी बढ़ जाता है."
भारत में कामयाबी
दुनिया के कई हिस्सों में घरों की छतों को सफेद रंगने के अभियान चल रहे हैं. भारत में 2009 में एक समाजसेवी संस्था ने गुजरात के अहमदाबाद में गरीब बस्तियों में ऐसा करना शुरू किया था. इस काम से प्रभावित होकर प्रशासन ने इसे अपनाया और 2017 में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया जिसके तहत 3,000 से ज्यादा घरों की छतों का रंग सफेद कर दिया गया. अहमदाबाद में गर्मियों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है.
आर्कटिक-अंटार्कटिक: दुनिया के दो छोरों में कितना अंतर
आर्कटिक और अंटार्कटिक, दुनिया के दो छोर हैं. पृथ्वी के दो सिरे. दोनों जगहों पर जहां तक देखो बर्फ ही बर्फ. सतही तौर पर दोनों एक से दिखते हैं, लेकिन इनमें काफी फर्क है. आर्कटिक और अंटार्कटिक में क्या अंतर है, देखिए.
तस्वीर: picture alliance/Global Warming Images
भूगोल की एक काल्पनिक लकीर
पृथ्वी के बीच एक काल्पनिक रेखा मानी जाती है इक्वेटर, यानी विषुवत रेखा. जीरो डिग्री अक्षांश की यह लकीर पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में बांटती है. अंग्रेजी में, नॉदर्न और सदर्न हेमिस्फीयर. यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की आधी राह में है. आर्कटिक जहां उत्तरी गोलार्ध में है, वहीं अंटार्कटिक दक्षिणी गोलार्ध में है. तस्वीर में: अंटार्कटिक का माउंट एरेबस
तस्वीर: Danita Delimont/PantherMedia/Imago
एक समंदर है, दूसरा महादेश
बचपन में भूगोल के पाठ में आपने महादेशों और महासागरों के नाम याद किए होंगे. सात महादेशों में से एक है अंटार्कटिक और पांच महासागरों में से एक है आर्कटिक. अंटार्कटिक, सागर से घिरी जमीन है. वहीं आर्कटिक जमीन से घिरा सागर. यह दोनों इलाकों के बीच का सबसे बड़ा फर्क है.
तस्वीर: Jiri Vondrous/Zoonar/picture alliance
बर्फ में भी अंतर
आर्कटिक महासागर के ऊपर बर्फ की जो पतली परत है, वो लाखों साल पुरानी है. वैज्ञानिक इसे 'पेरीनियल आइस' कहते हैं. आर्कटिक की गहराई करीब 4,000 मीटर (चार किलोमीटर) है. उसकी अंदरूनी दुनिया को हम अब भी बहुत नहीं जानते. दूसरी तरफ अंटार्कटिक बर्फ की बहुत मोटी परत से ढका है. तस्वीर: अंटार्कटिक में गोता लगाती एक व्हेल
तस्वीर: Ann Inger Johansson/ZUMAPRESS/picture alliance
पेंग्विन और पोलर बियर
पेंग्विन और ध्रुवीय भालू, इन दोनों को आप साथ नहीं देखेंगे. पेंग्विन केवल दक्षिणी गोलार्ध में पाए जाते हैं. सबसे ज्यादा पेंग्विन अंटार्कटिक में रहते हैं. इसके अलावा गलापगोस आइलैंड्स, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड में भी इनकी कुदरती बसाहट है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
पोलर बियर का घर
पोलर बियर पृथ्वी के सुदूर उत्तरी हिस्से आर्कटिक में रहते हैं. देशों में बांटें तो इनकी बसाहट ग्रीनलैंड, नॉर्वे, रूस, अलास्का और कनाडा में है. पेंग्विन और पोलर बियर में एक समानता ये है कि क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण दोनों के घर और खुराक पर बड़ा जोखिम मंडरा रहा है.
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इंसानी रिहाइश
हजारों साल से आर्कटिक में इंसान रहते आए हैं. जैसे कि मूलनिवासी इनौइत्स और सामी. वहीं दक्षिणी ध्रुव से हमारी पहचान को बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता. 19वीं और 20वीं सदी में जिस तरह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों तक पहुंचने की होड़ लगी थी, वैसी ही महत्वाकांक्षा साउथ पोल के लिए भी थी. काफी कोशिशों के बाद दिसंबर 1911 में नॉर्वे के खोजी रोल्ड एमंडसन को दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने में कामयाबी मिली.
तस्वीर: LISI NIESNER/REUTERS
हरियाली
अंटार्कटिक का ज्यादातर हिस्सा स्थायी रूप से बर्फ से ढका रहता है. ऐसे में पौधों के उगने के लिए बहुत कम ही जगह है. यहां ज्यादातर लाइकेन्ज और मॉस के रूप में ही वनस्पति है. आर्कटिक अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा हरा-भरा है. यहां करीब 900 प्रजातियों की काई और 2,000 से भी ज्यादा प्रकार के वैस्क्यूलर प्लांट पाए जाते हैं. इनमें ज्यादातर फूल के पौधे हैं.
तस्वीर: picture alliance/Global Warming Images
मौसम का फर्क
आर्कटिक के लिए जून का महीना 'मिड समर' है, यानी आधी गर्मी बीत गई और आधी बची है. मार्च से सितंबर तक सूरज लगातार क्षितिज से ऊपर होता है और 21 जून के आसपास यह सबसे ऊंचे पॉइंट पर पहुंचता है. वहीं अंटार्कटिक में इसका उल्टा है. वहां 21 दिसंबर के आसपास मिड समर होता है, यानी सूरज क्षितिज में सबसे ऊपर पहुंचता है.
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अहमदाबाद की कामयाबी के बाद यह अभियान पूरे देश के कई शहरों में फैल चुका है. जिन इलाकों में गर्मियों में तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, वहां खासतौर पर यह नीति अपनाई गई है और इसके फायदे भी हुए हैं.
2020 में अहमदाबाद प्रशासन ने वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक अध्ययन किया था. गांधीनगर स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों ब्रह्मभट्ट और प्रिया दत्त ने हल्के रंग की छत वाले घरों की तुलना गहरे रंग की छत वाले घरों से की. उन्होंने पाया कि हल्के रंग की छत वाले घर का तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक कम था.
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कैसे फायदेमंद हैं हल्के रंग की छतें
हल्के रंग की छत के अलग-अलग प्रकार उपलब्ध हैं. जैसे कि एक तरह की छत में कार्डबोर्ड और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. इसे मॉडरूफ कहते हैं. गुजरात में हुए अध्ययन के मुताबिक मॉडरूफ के नीचे का तापमान कंक्रीट की छतों वाले घरों से 4.5 डिग्री सेल्सियस तक कम था.
इस पूरी प्रक्रिया को ‘कूल रूफिंग' कहा जाता है. इसके तहत छतों को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि वे कम सौर किरणें सोखें. इस तरह कम गर्मी घर के अंदर पहुंचती हैं. साथ ही, इमारत जो गर्मी सोखती है, उसका कुछ हिस्सा भी ये छतें परावर्तित कर देती हैं. इस तरह इमारत के अंदर ठंडक ज्यादा रहती है.
गर्मी से बचाव करने वाली खास छत
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प्रोफेसर फॉश कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए शहरों में इन छतों का होना बहुत जरूरी है. वह कहते हैं, "फिलहाल दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन के 75 फीसदी के लिए शहर ही जिम्मेदार हैं. इसलिए शहरों को ठंडा करना बेहद जरूरी है."
फॉश कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन जितना ज्यादा बढ़ेगा, शहर उतने ज्यादा गर्म होते जाएंगे. इसका असर जीवन के हर पहलू पर होगा. वह कहते हैं, "गर्मी में तपते शहर जीवन को सिर्फ मुश्किल नहीं बनाते. वे खतरनाक भी होते हैं. सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में अत्यधिक गर्मी के कारण जितने लोग मरते हैं, उतने किसी अन्य प्राकृतिक आपदा में नहीं मरते.”