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शिक्षाभारत

IISER में आत्महत्या: फिर कटघरे में उच्च शिक्षा प्रणाली

प्रभाकर मणि तिवारी
७ अप्रैल २०२२

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च के एक छात्र की रहस्यमय हालात में मौत ने एक बार फिर उच्च शिक्षा प्रणाली और शोध के क्षेत्र में खामियों पर सवाल खड़ा कर दिया है.

प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटोतस्वीर: Klatt/IMAGO

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) के एक प्रतिभावान छात्र की रहस्यमय हालात में मौत ने एक बार फिर उच्च शिक्षा प्रणाली और शोध के क्षेत्र में खामियों पर सवाल खड़ा कर दिया है. आईआईएसईआर के शोध छात्र शुभदीप राय की रहस्यमय हालात में प्रयोगशाला में मौत हो गई थी. 29 साल के राय सॉलिड स्टेट फिजिक्स में सात साल अवधि की पीएचडी कर रहे थे.

शोधार्थियों की आत्महत्या या मौत की यह न तो पहली घटना है और न ही आखिरी. शिक्षाविदों का कहना है कि लगातार बढ़ती ऐसी घटनाओं से साफ है कि उच्च शिक्षा और खास तौर पर शोध के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी है. ऐसे किसी मामले के सामने आने पर दो-चार दिन इसकी चर्चा होती है. लेकिन उसके बाद फिर सब कुछ जस का तस हो जाता है.

लंबा है सिलसिला

कोलकाता में दमदम के रहने वाले शुभदीप राय की मौत अपनी तरह का कोई पहला मामला नहीं है. बीते महीने ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र संजय पटेल ने आत्महत्या कर ली थी. उससे पहले बीते साल जुलाई में भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी), चेन्नई के शोध छात्र उन्नीकृष्णन का शव भी परिसर के भीतर जली हुई हालत में बरामद किया गया था. बीते साल सितंबर में कोलकाता के ही इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस में भी कथित स्वास्थ्य कारणों से एक शोध छात्र ने आत्महत्या कर ली थी.

ऐसी घटनाओं की सूची काफी लंबी है. कोलकाता के छात्र ने तो डायरी में अपने गाइड की आलोचना करते हुए लिखा था कि वे किसी तरह का सहयोग नहीं करते और खुद भी कुछ लिखते-पढ़ते नहीं हैं. यह डायरी सामने आने के बाद संस्थान के छात्रों ने दोषी को शीघ्र गिरफ्तार करने की मांग में प्रदर्शन किया और नारेबाजी की. लेकिन उस प्रोफेसर को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.

संस्थान के निदेशक सौरव पाल कहते हैं, "यह बेहद दुखद है. हम इस मामले की पूरी जांच कराएंगे." लेकिन संस्थान के एक छात्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, "शुभदीप काफी प्रतिभाशाली और मेहनती थी. लेकिन प्रोफेसर की हरकतों की वजह से वह काफी परेशान था. शायद इसी से आजिज आकर उसने अपना जीवन खत्म करने का फैसला किया."

अब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आई है जिससे मौत की असली वजह का पता चल सके. लेकिन प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में खासकर शोध छात्रों की बढ़ती मौतों ने एक बार फिर शोध के क्षेत्र में जड़ें जमा चुकी गड़बड़ियों पर सवालिया निशान जरूर लगा दिया है.

फिर कटघरे में उच्च शिक्षा प्रणाली

भारत में छात्रों की आत्महत्या के मामले नए नहीं हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हर साल विभिन्न वजहों से हजारों छात्र आत्महत्या कर लेते हैं.  ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने के लिए कभी कोई ठोस पहल नहीं की गई है. कुछ साल पहले आईआईटी, खड़गपुर ने मानसिक अवसाद से जूझने वाले छात्रों की काउंसलिंग के लिए एक केंद्र खोला था. उसकी देखा-देखी कुछ अन्य संस्थानों ने भी ऐसे केंद्र खोले थे. लेकिन उसका खास फायदा नहीं नजर आ रहा है.

सेवानिवृत्त प्रोफेसर कुणाल कुमार घोष कहते हैं, "ऐसी हर घटना के बाद लीपापोती का प्रयास तेज हो जाता है. ज्यादातर मामलों को मानसिक अवसाद की आड़ में दबा दिया जाता है. लेकिन मूल कारणों की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. यही वजह है कि ऐसे मामले थमने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं."

वह बताते हैं कि ज्यादातर नामी-गिरामी संस्थानों में दाखिले के कुछ साल बाद ही संस्थान और संबंधित प्रोफेसरों के रुख के कारण शोध छात्र खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगते हैं. देश में शिक्षण संस्थानों में जड़ें जमा चुकी इन गड़बड़ियों के कारण ही हर साल भारी तादाद में शोध छात्र विदेशी विश्वविद्यालयों का रुख करते हैं, लेकिन सबके पास इतना सामर्थ्य नहीं होता. नतीजतन उनके पास देश में ही शोध करने का विकल्प बचता है.

कोलकाता के एक प्रतिष्ठित कालेज में मनोविज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर समर कुंडू कहते हैं, "मौजूदा प्रणाली में खासकर उच्च शिक्षा और शोध करने वाले छात्रों पर कई किस्म के दबाव होते हैं. लेकिन तमाम संबंधित पक्ष इस दबाव को नजरअंदाज कर देते हैं. संबंधित छात्र पर भी इसका असर नजर आने लगता है. लेकिन वह आगे बढ़ने की जिद में काम करता रहता है. ऐसे में वह कब मानसिक अवसाद की गिरफ्त में आ जाता है, इसका पता भी उसे देरी से चलता है."

शिक्षाविदों का कहना है कि सरकार को तमाम शिक्षण संस्थानों में खासकर शोध के क्षेत्र में कायम गड़बड़ियों को दूर करने की दिशा में ठोस पहल करनी होगी. ऐसा नहीं होने की स्थिति में देश से प्रतिभाओं का पलायन और तेज होने का अंदेशा है.

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