आईआईटी दिल्ली का ई-स्कूटर चलेगा 20 पैसे प्रति किलोमीटर
२४ मार्च २०२१
आईआईटी-दिल्ली के इंक्युबेटेड स्टार्टप गेलियोस मोबिलिटी ने लगभग 20 पैसे प्रति किलोमीटर की दर से चलने वाला इलेक्ट्रिक स्कूटर 'होप' विकसित किया है.
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ई-स्कूटर होप डिलिवरी और आने-जाने के लिए किफायती स्कूटर है. यह स्कूटर 25 किमी घंटे की रफ्तार से चलेगा. साथ ही ई-वाहन को मिलने वाली छूट की श्रेणी में भी यह आता है. इसको चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस या पंजीकरण की जरूरत भी नहीं है. होप के साथ पोर्टेबल चार्जर और पोर्टेबल लिथियम आयन बैटरी आती है, जिसे घर में इस्तेमाल होने वाले सामान्य प्लग से चार्ज कर सकते हैं. सामान्य बिजली से यह बैटरी 4 घंटे में पूरी तरह चार्ज हो जाती है. अपनी आवागमन की जरूरतों के हिसाब से आदर्श स्थिति में ग्राहकों के पास दो अलग-अलग रेंज 50 किलोमीटर और 75 किलोमीटर की बैटरी क्षमता को चुनने का विकल्प है.
आईआईटी-दिल्ली के मुताबिक, यह स्कूटर बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम, डाटा मॉनिटरिंग सिस्टम और पेडल असिस्ट यूनिट जैसी आधुनिक तकनीकों से लैस है. इसमें आईओटी है जो डाटा एनालिटिक्स के माध्यम से ग्राहकों को हमेशा अपने स्कूटर की जानकारी देता है. इन खूबियों के कारण ही होप भविष्य के स्मार्ट और कनेक्टेड स्कूटर की श्रेणी में आता है.
गेलियोस मोबिलिटी उन चुनिंदा कंपनियों में से है, जिसके स्कूटर में पेडल असिस्ट सिस्टम जैसा खास फीचर दिया गया है. यात्रा के दौरान ग्राहक अपनी सुविधा अनुसार पेडल या थ्रॉटल का विकल्प चुन सकते हैं. सुविधाजनक पार्किंग के लिए होप विशेष रिवर्स मोड तकनीकी से युक्त है, जिसकी सहायता से कठिन जगहों पर भी स्कूटर पार्क किया जा सकता है.
अत्याधुनिक उपयोग के लिए होप में एक मजबूत और कम वजन का फ्रेम बनाया गया है. स्कूटर की संरचना और इसकी लीन डिजाइन, इसे भारी यातायात में से आसानी से निकलने की क्षमता देता है. कंपनी द्वारा अधिकतम उपयोग किए जाने वाले मार्गों पर स्कूटर के चार्जिग और मेंटेनेंस के लिए हब स्थापित किए जाएंगे. आपात स्थिति में, आकस्मिक सेवाएं जैसे रास्ते पर सहायता और बैटरी को बदलने की सुविधा कंपनी की ओर से दी जाएगी. गेलियोस मोबिलिटी के संस्थापक और सीईओ आदित्य तिवारी के मुताबिक, "हम प्रतिदिन बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं और पूरी इंडस्ट्री में खासकर ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में सतत प्रयास की जरूरत है. हमने 3 साल पहले गेलियोस मोबिलिटी की शुरुआत आने-जाने के लिए इकोसिस्टम बनाने के दृष्टिकोण से किया था, इस प्रयास में होप हमारा प्रमुख कदम है."
भारत में पहले से ही कई बड़ी कंपनियां ई-स्कूटर के बाजार में मौजूद हैं. सरकार ने भी ई-वाहन को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनाई है.
आईएएनएस
कितने ईको फ्रेंडली हैं इलेक्ट्रिक स्कूटर
इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग इको फ्रेंडली बताया जा रहा है. लोगों से इसका ज्यादा उपयोग करने की अपील की जा रही है. लेकिन क्या यह इतना इको फ्रेंडली और सुरक्षित है जितना बताया जा रहा है? इसके क्या-क्या खतरे हैं?
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स्कूल टाइम की याद दिलाती साइकिल
पहले जब भी घर के बाहर घूमने का मन होता, बस पैडल मारिए और साइकिल पर घूमिए. लेकिन आज इलेक्ट्रिक साइकिल जैसे विकल्प उपलब्ध हैं जिनमें पैडल मारने की जरूरत नहीं होती. लेकिन ये ई वाहन उतने ईको फ्रेंडली नहीं है जितने हमको लगते हैं. साथ ही इनसे दूसरी समस्याएं भी होती हैं.
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दुर्घटनाओं में वृद्धि
साधारण साइकिल और बाइक का सबसे बढ़िया विकल्प फिलहाल ई-बाइक है. बैटरी और मोटर तेज चलने और चढ़ाई आराम से चढ़ने में मदद करती हैं. लेकिन एक समस्या भी है. आज कल ई बाइक्स को बुजुर्ग लोग ज्यादा चलाते हैं जो साधारण ट्रैफिक में नहीं चल पाते. इससे दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है.
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बैटरी की समस्या
दूसरी समस्या है ई बाइक की बैटरी, इन बैटरियों का उत्पादन करने में बहुत सारे प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है. ई बाइक रिचार्ज की जा सकने वाली लीथियम बैटरी से चलती है. लीथियम को जमीन से खनन करके निकाला जाता है. बैटरियों के लिए लीथियम निकालने के लिए बड़ी खदानों की जरूरत पड़ती है. और यह एक सीमित संसाधन भी है. साल 2018 में संसार में बस 53.8 टन लीथियम बचे होने का अनुमान है.
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बढ़ती हुई ऊर्जा की जरूरत
इलेक्ट्रिक वाहनों से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता लेकिन इन्हें नियमित चार्ज करना होता है. सभी तरह के इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है. और यह बिजली की आवश्यकता सिर्फ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरी नहीं होगी.
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नए विचार और नई बैटरियां
चार्ज करने के लिए बैटरियों की संख्या बढ़ती जा रही है. हर रोज नए ई-गैजेट आ रहे हैं. हर नए गैजेट में नई बैटरी की जरूरत होती है चाहे वो ई-बाइक हो, ई-यूनीसाइकिल या ई-हॉवरबोर्ड.
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छोटी दूरी के स्कूटर
ई-स्कूटर कुछ-कुछ बच्चों के स्कूटरों जैसे लगते हैं. बस फर्क इतना है कि ये सिर्फ पैर के सहारे नहीं चलाने पड़ते, इनमें बैटरी भी लगी होती है. ये एक ईंधन से चलने वाले इंजन की तुलना में ईको फ्रेंडली है. लेकिन अधिकांश लोग इनका इस्तेमाल छोटी दूरी के लिए ही कर रहे हैं. जैसे घर से ऑफिस के पार्किंग तक कार से और पार्किंग से ऑफिस तक ई-स्कूटर से.
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कई जगह अभी गैर-कानूनी हैं ये
जर्मनी में ई-स्कूटर से घूमना आज तक गैर कानूनी है. वजह है इनका छोटा इंजन. इंजन लगा होने की वजह से कार की तरह इसका भी परमिट चाहिए लेकिन इतने छोटे इंजन का परमिट अभी उपलब्ध ही नहीं है. 2019 की गर्मियों से जर्मनी में 20 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ई-स्कूटर चलाने की अनुमति होगी. अमेरिका में फिलहाल इन्हें चलाने की अनुमति है.