आईआईटी कानपुर ने एक हल्के वजन का मानव रहित ड्रोन हेलीकॉप्टर तैयार किया है. यह दुश्मनों पर तो नजर रखेगा ही साथ ही साथ प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत कर्मियों की भी मदद करेगा.
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यह हेलीकॉप्टर पांच किलो भार को 50 किलोमीटर तक ले जा सकता है. दुश्मनों पर नजर रखने के साथ प्राकृतिक आपदा के समय जान बचाने में यह मानव रहित ड्रोन हेलीकॉप्टर बड़ा कारगर साबित हो सकता है. यह हेलीकॉप्टर माइनस 20 से 50 डिग्री सेल्सियस के बीच आसानी से काम कर सकता है. हेलीकाप्टर की 11,500 फीट की ऊंचाई लेह और जैसलमेर के रेगिस्तान पर टेस्टिंग हो चुकी है. यह हर जगह चलने में सक्षम है और यह चार घंटे तक लगातार उड़ान भर सकता है.
आईआईटी कानपुर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर अभिषेक की देखरेख में इसे तैयार किया गया है. यह हल्के वजन का हेलीकॉप्टर पांच किलोग्राम तक भारी वस्तु को 50 किमी तक ले जा सकता है. यही नहीं इसे एक इंसान द्वारा उठाकर दूसरे स्थान पर बड़े आराम से ले जाया जा सकता है.
प्रोफेसर अभिषेक ने बताया कि बॉर्डर और नक्सली इलाकों में इसमें लगे डे-नाइट कैमरे से बहुत आराम से दुश्मनों पर नजर रखी जा सकती है. इसमें लगे डे कैमरे 20 से 30 एक्स जूम की व्यवस्था है जो डेढ़ से दो किलोमीटर दूर खड़े इंसान को आराम से पहचान सकता है. इसके अलावा नाइट विजन कैमरे में 500 मीटर दूरी पर इंसान की पकड़ सकता कर सकता है.
प्रोफेसर के मुताबिक इसे रडार डिटेक्ट कर सकता है, क्योंकि अब छोटी सी छोटी चीज को रडार पकड़ने में सक्षम है. हालांकि यह हेलीकॉप्टर नीचे से भी उड़ सकता है तो दुश्मन को चकमा देने में सक्षम है. इस प्रकार का हेलीकॉप्टर ड्रोन यूरोप, चीन और अमेरिका पहले से ही बन रहा है.
हेलीकॉप्टर का वजन महज 4 किलोग्राम है. साथ ही यह अन्य हेलीकॉप्टर की तरह लैंडिंग या टेकऑफ नहीं करेगा, यह वर्टिकल टेकऑफ और लैंडिंग करने की वजह से किसी भी स्थान से आसानी से उड़ान भर सकेगा.
हेलीकॉप्टर के डिजाइन को सेना को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. हेलीकॉप्टर में मेडिकल किट बॉक्स के साथ सीबीआरएनई सेंसर, लिडार तकनीक के अलावा कई अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी है. लिडार तकनीक के माध्यम से यह पहाड़, नदियों में दुश्मनों का आसानी से पता लगा सकेगा.
हल्के हेलीकॉप्टर का उपयोग पहाड़ और दूरदराज के क्षेत्रों में जरूरी दवाएं और खाने-पीने की चीजें पहुंचाने में किया जा सकता है. यह सेना के अलावा पुलिस को भीड़-भाड़ वाले इलाके में निगरानी रखने में भी मदद कर सकता है.
अंतरिक्ष में जाने वाला पहला प्राणी कौन था? यूरी गागरिन, नहीं. पहला जीव कोई और था. जानिये अंतरिक्ष में जाने वाले जीवों की कहानी.
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अंतरिक्ष की पहली उड़ान
1947 में सोवियत संघ ने पहली बार जीव को अंतरिक्ष में भेजा. वह एक मक्खी थी. दस साल बाद 1957 में सोवियत संघ ने एक कुतिया को अंतरिक्ष में भेजा. लेकिन रॉकेट लॉन्च के कुछ घंटों बाद लाइका मर गयी.
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पहली सफलता
लाइका की मौत के बावजूद सोवियत संघ ने कुत्तों को अंतरिक्ष भेजना जारी रखा. धीरे धीरे रॉकेटों को ज्यादा सुरक्षित बनाया जाने लगा. 1960 में स्ट्रेल्का और बेल्का नाम के कुत्तों को अंतरिक्ष में वापस भेजा गया. दोनों सुरक्षित वापस लौटे. 1961 में स्ट्रेल्का का एक बच्चा तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी को भेंट भी किया गया.
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फिर बंदर की बारी
रूस जहां कुत्तों को अंतरिक्ष में भेज रहा था, वहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा बंदरों के भरोसे तैयारियां कर रही थी. 1958 में अमेरिका ने गोर्डो नाम के बंदर को अंतरिक्ष में भेजा लेकिन उसकी मौत हो गयी. साल भर बाद 1959 में मिस बेकर और एबल नाम के बंदरों को भेजा गया. दोनों सुरक्षित वापस लौटे.
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बंदरों पर असर
एबल और मिस बेकर पृथ्वी की कक्षा से जिंदा वापस लौटने वाले पहले बंदर थे. 500 किलोमीटर ऊपर भारहीनता ने बंदरों की हालत खस्ता कर दी थी. लैंडिंग के कुछ ही देर बाद एबल की मौत हो गयी. मिस बेकर 1984 में 27 साल की उम्र पूरी करके विदा हुई.
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कैप्सूल का प्रयोग
सैम भाग्यशाली रहा कि उस पर मिस बेकर और एबल की तरह भारहीनता के प्रयोग नहीं किये गए. सैम नाम के बंदर के जरिये अंतरिक्ष यात्रियों को जिंदा रखने वाले कैप्सूल का टेस्ट हुआ. सैम इस टेस्ट में कामयाब रहा.
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पहला चिम्पांजी
कुत्ते और बंदरों के बाद इंसान के बेहद करीब माने जाने वाले चिम्पांजी की अंतरिक्ष यात्रा का नंबर आया. 1961 में अमेरिका ने हैम नाम के चिम्पाजी को अंतरिक्ष में भेजा. उसने छह मिनट तक भारहीनता का सामना किया. वह जिंदा वापस लौटा. उसके शरीर का अध्ययन कर भारहीनता में शरीर कैसे काम करता है, यह समझने में मदद मिली.
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छोटे लेकिन टफ जीव
कुत्तों, बंदरों और चिम्पांजी को अंतरिक्ष में भेजने के बाद इंसान भी अंतरिक्ष में गया. लेकिन ऐसा नहीं है कि अब दूसरे जीवों को अंतरिक्ष में भेजने का काम बंद हो गया है. यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने 2007 में टार्डीग्रेड नाम के सूक्ष्म जीवों को अंतरिक्ष में भेजा. वे 12 दिन जीवित रहे. उनकी मदद से पता किया जा रहा है कि निर्वात और सौर विकिरण जीवन पर कैसा असर डालता है. (रिपोर्ट: लीजा हैनेल/ओएसजे)