भारत में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ते-बढ़ते 22 लाख के पार चले गए हैं. आम मरीज तो इसकी चपेट में ही आ रहे हैं लेकिन डॉक्टरों की भी जान इस महामारी के कारण जा रही है. आईएमए ने सरकार से इस पर ध्यान देने की अपील की है.
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कोरोना वायरस महामारी के बीच भारत में डॉक्टरों की जान भी खतरे में आ गई है. जो डॉक्टर मरीजों की सेवा और उनको ठीक करने में लगे हुए हैं उनके अलावा जनरल प्रैक्टिशनर्स भी कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आने लगे हैं. भारतीय चिकित्सा संगठन यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने कहा है कि देश में अभी तक कुल 196 डॉक्टरों की मौत हो चुकी है. इनमें ज्यादातर जनरल प्रैक्टिशनर्स शामिल हैं. आईएमए ने प्रधानमंत्री मंत्री को चिट्ठी लिखकर इस ओर ध्यान देने का आग्रह किया है. आईएमए ने कोरोना वायरस के खिलाफ जारी लड़ाई में डॉक्टरों के जीवन की सुरक्षा को लेकर चिंता जताते हुए एक बयान में कहा, "आईएमए की तरफ से इकट्ठा किए गए ताजा आंकड़े के मुताबिक हमारे देश ने 196 डॉक्टरों को खो दिया, जिनमें से 170 की उम्र 50 साल से अधिक थी. इनमें 40 फीसदी जनरल प्रैक्टिशनर्स थे."
आईएमए का कहना है कि बुखार और इससे जुड़े लक्षणों के लिए ज्यादा संख्या में लोग जनरल प्रैक्टिशनर्स से संपर्क करते हैं और इसलिए वे पहला संपर्क बिंदु होते हैं. निजी क्लीनिक या फिर अस्पताल में आम मरीजों को डॉक्टरों से मिलने के पहले शरीर का तापमान लिया जाता है और कोरोना से संबंधित सवाल किए जाते हैं. हालांकि कई बार मरीज को भी पता नहीं होता है कि उसके शरीर के अंदर वायरस है.
आईएमए का कहना है कि कोरोना वायरस निजी और सरकारी डॉक्टरों के बीच भेदभाव नहीं करता है. आईएमए ने अपने पत्र में लिखा, "डॉक्टरों और उनके परिवारों को अस्पताल में बेड नहीं मिलने और दवाओं की कमी के बारे में परेशान कर देने वाली रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं. आईएमए महामारी के समय में सरकार से डॉक्टरों की सुरक्षा और देखभाल पर और अधिक ध्यान देने की अपील करता है." आईएमए देश के साढ़े तीन लाख डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक प्रभावशाली संगठन है.
24 घंटे में एक हजार से ज्यादा मौत
कोविड-19 से दुनिया में तीसरे सबसे अधिक प्रभावित देश भारत में पिछले 24 घंटे में 62,064 नए मामले आए और इस दौरान एक हजार से अधिक रिकॉर्ड मौतें दर्ज हुईं. देश में अब तक संक्रमित हुए लोगों की कुल संख्या 22,15,074 और मरने वालों की संख्या 44,386 हो गई है. देश में सक्रिय मामलों की संख्या 6,34,945 है वहीं 15 लाख से अधिक लोग अब तक ठीक हो चुके हैं. गौरतलब है कि एक ही दिन में सबसे अधिक 54,859 रोगी ठीक हुए, इसके साथ ही देश में रिकवरी दर 68.78 प्रतिशत हो गई है. रविवार को 7,19,364 नमूनों का परीक्षण हुआ. महाराष्ट्र 5,15,332 मामलों और 17,367 मौतों के साथ इस महामारी का सबसे अधिक प्रकोप झेल रहा है. इसके बाद तमिलनाडु में 2,90,906 मामले और 4,808 मौतें सामने आ चुकी हैं. इसके बाद दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली और उत्तर प्रदेश का स्थान है.
बच्चों को कोरोना वायरस से “करीब करीब सुरक्षित" बताने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का वीडियो तो सोशल मीडिया साइटों से हटा दिया गया. लेकिन बच्चों में कोरोना के खतरे को लेकर कई भ्रांतियां फैली हुई हैं.
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गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा कम
बच्चों के कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा काफी कम है. इसके भी सबूत हैं कि उनके संक्रमित होने की संभावना भी कम है. लेकिन एक बार संक्रमित होने के बाद वे इसे कितना फैला सकते हैं, इस बारे में अभी पक्की जानकारी नहीं है.
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उम्र के साथ बढ़ता है खतरा भी
सबसे ज्यादा प्रभावित देश अमेरिका की मिसाल देखें तो पता चलता है कि अस्पताल में भर्ती हुए कुल कोरोना मरीजों में केवल दो फीसदी ही 18 साल से कम उम्र के हैं. अमेरिका में कोविड-19 से मरने वालों में 18 से कम उम्र वालों का केवल 0.1 फीसदी हिस्सा है.
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लक्षण या तो नहीं या तो बहुत हल्के
कोरोना वायरस की शुरुआत जहां से हुई उस देश चीन में कराई गई एक स्टडी से पता चला कि जिन 2,143 बच्चों में कोरोना का संदेह था या फिर उसकी पुष्टि हो चुकी थी, उनमें से करीब 94 फीसदी बिना किसी लक्षण, या हल्के और मध्यम दर्जे के लक्षणों वाले थे.
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कुछ बच्चों में गंभीर क्यों
जो बच्चे कोरोना के संक्रमण के कारण बीमार पड़ रहे हैं उनमें अकसर पहले से कोई ना कोई स्वास्थ्य समस्या पाई गई. अमेरिका के शिकागो में एक स्टडी से पता चला कि मार्च और अप्रैल में जितने भी बच्चे अस्पताल में भर्ती कराए गए उनमें या तो पहले से कोई समस्या या फिर कोरोना के अलावा कोई और संक्रमण भी था.
हालांकि इस पर अभी काफी कम रिसर्च हुई है लेकिन अब तक मिली जानकारी के अनुसार, एक साल से छोटे बच्चों में इससे बड़े बच्चों के मुकाबले संक्रमण का खतरा थोड़ा अधिक है. आम तौर पर छोटे बच्चों को गंभीर फ्लू की समस्या होती है लेकिन कोविड-19 इस मामले में थोड़ा अलग पाया गया.
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क्या बच्चों की जान नहीं जाती
बच्चों की भी कोरोना के कारण जान जाती है लेकिन यह देखा गया है कि इसकी संभावना वयस्कों और बुजुर्गों के मुकाबले काफी कम है. इसीलिए बच्चों को कोरोना वायरस से इम्यून बताना एक गलत जानकारी है.
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स्कूल कितने सुरक्षित
अब तक इसे लेकर पर्याप्त सबूत नहीं हैं. इस्राएल में कई स्कूलों में बड़े स्तर पर संक्रमण फैलने की घटना सामने आई है. वहीं अमेरिका के शिकागो में हुई एक स्टडी से पता चला कि पांच साल से नीचे के बच्चों की नाक में वयस्कों की तुलना में वायरस का जेनेटिक पदार्थ 10 से 100 गुना तक ज्यादा होता है. यानि संक्रमण फैलाने में बच्चों की अहम भूमिका हो सकी है लेकिन अभी इसे साबित करने के लिए और रिसर्च की जरूरत है.
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बच्चों में कोरोना संक्रमण कम क्यों
इसके लिए कई संभावनाएं जताई जा रही हैं. जैसे कि शायद कोरोना वायरस बच्चों की कोशिकाओं से उतनी आसानी से नहीं चिपकता. या शायद इसलिए कि बच्चों को वैसे ही सर्दी-जुकाम काफी होता रहता है जिसके चलते उनके शरीर में फ्लू जैसे संक्रमणों से लड़ने वाली टी-कोशिकाएं पहले से ही मौजूद होती हैं.
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बच्चों में सामने आई एक दुर्लभ समस्या
ऐसा काफी कम मामलों में होता है लेकिन कभी कभी कोविड संक्रमण के एक महीने बाद कर बच्चों में एक पोस्ट-वायरल कंडीशन पैदा हो जाती है, जिसे मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेट्री सिंड्रोम (MIS-C) कहते हैं. इसके कारण शरीर के कई अंगों में एक साथ बहुत दर्द और सूजन आ जाती है.
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किन बच्चों में है सिंड्रोम का ज्यादा खतरा
औसत रूप से देखा जाए तो इस दुर्लभ सिंड्रोम से ग्रसित करीब दो फीसदी बच्चों की जान चली जाती है. इसका ज्यादा खतरा अमेरिका के अश्वेत या हिस्पैनिक मूल के लगभग आठ साल के आसपास की उम्र के बच्चों में पाया गया.
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क्या बच्चे जल्दी संक्रमित होते हैं
आइसलैंड में 13,000 पर हुए सर्वे में 10 साल के छोटे 850 बच्चे भी शामिल थे. इसमें औसतन 0.8 फीसदी लोगों में संक्रमण पाया गया जबकि 10 साल से कम वालों में एक भी संक्रमित नहीं था. इससे समझा जा सकता है कि बच्चे जल्दी संक्रमित नहीं होते. स्पेन, इटली और स्विट्जरलैंड में भी ऐसे सर्वे के समान ही नतीजे मिले.
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क्या बच्चों से आसानी से फैलता है वायरस
अमेरिका में संक्रामक बीमारियों के सबसे बड़े अधिकारी एंथनी फाउची खुद एक स्टडी का नेतृत्व कर रहे हैं जो बच्चों और बड़ों में संक्रमण दर को समझने के लिए है. इसके नतीजे दिसंबर तक आने की उम्मीद है. वहीं दक्षिण कोरिया में बड़े स्तर पर हुई एक स्टडी से पता चला है कि 10 साल से नीचे के बच्चों से घर के करीबी लोगों में संक्रमण होने की संभावना काफी कम है. जबकि 10 से ऊपर के बच्चों और वयस्कों से काफी ज्यादा.