पहली बार, जन्म से पहले ही किया गया जानलेवा बीमारी का इलाज
१० नवम्बर २०२२
दुनिया में पहली बार ऐसा हुआ है कि एक बच्चे की बीमारी का इलाज उसके जन्म के पहले ही कर दिया गया. अमेरिका और कनाडा के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक के जरिए एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी का इलाज किया.
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जिस जेनेटिक बीमारी ने आयला बशीर की दो बहनों की जान ले ली, उससे वह खुद पूरी तरह महफूज है. ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि डॉक्टरों ने उसके जन्म से पहले ही उसका इलाज कर दिया था. कनाडा के ओंटारियो में रहने वाली 16 महीने की आयला बशीर ऐसा इलाज पाने वाली दुनिया की पहली बच्ची है.
आयला बशीर के परिवार में ऐसा आनुवांशिक रोग है, जिसकी वजह से शरीर में कुछ या सभी प्रोटीन नहीं बनते और रोगी की जान चली जाती है. जाहिद बशीर और उनकी पत्नी सोबिया कुरैशी इस रोग के कारण अपनी दो बेटियों को खो चुके हैं. उनकी पहली बेटी जारा ढाई महीने में चल बसी थी जबकि दूसरी बेटी सारा आठ महीने में.
लेकिन आयला के बारे में बशीर बताते हैं कि वह इस रोग से मुक्त और पूरी तरह स्वस्थ है. उन्होंने बताया, "वह किसी भी दूसरे बच्चे जैसी डेढ़ साल की बच्ची है जो हमें खूब व्यवस्त रखती है.”
डॉक्टरों ने जिस तरह इस इलाज को अंजाम दिया उसका पूरा ब्योरा बुधवार को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ. शोध पत्र में बताया गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉक्टरों के सहयोग से यह इलाज संभव हो पाया.
कैसे हुआ इलाज?
डॉक्टर कहते हैं कि आयला की स्थिति उत्साहजनक लेकिन अनिश्चित है, फिर भी इस कामयाबी ने भ्रूण-पद्धति से इलाज के नए रास्ते खोले हैं. ओटावा अस्पताल में भ्रूण-दवा विशेषज्ञ डॉ. कैरेन फुंग-की-फुंग बताती हैं कि जन्म लेने के बाद उनका इलाज करना मुश्किल होता है क्योंकि नुकसान हो चुका होता है, इसलिए यह कामयाबी उम्मीद की एक किरण बनकर आई है.
लकवे का मरीज बच्चा जब चलने लगा
8 साल के डेविड जबाला ने रोबोटिक एक्सोस्केलेटन पहन कर मेक्सिको सिटी के थेरेपी रूम में जब चहलकदमी की तो उसके चेहरे पर विजेता की मुस्कान थी. सेरेब्रल पालसी के शिकार इस बच्चे के लिए यह कदम चांद छूने जैसा था.
तस्वीर: Claudio Cruz/AFP
सेरेब्रल पालसी ने किया बेबस
सेरेब्रल पालसी यानी मस्तिष्क के लकवे के कारण जबाला की जिंदगी व्हीलचेयर तक सिमट गयी थी. इसकी वजह से उसे सुनाई भी नहीं देता और उसे इशारों की भाषा से काम चलाना पड़ता है.
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एक्सोस्केलेटन से बदली जिंदगी
एटलस 2030 एक्सोस्केलेटन की मदद से अब वह चल सकता है और आइने के सामने खड़े हो कर मुस्कुराते हुए खुद को निहार सकता है. जबाला की मां गुआडलुपे कारडोसो ने कहा, "वह अपना पहला कदम उठा रहा है, उसके लिए यह मजेदार है. पहले उसे डर लगा और उसके हाथ बहुत तनाव में थे और अब मैं देख रही हूं कि उसने मार्कर पेन उठाया है या फिर गेंद से खेल रहा है."
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आत्मगौरव का अनुभव
बैटरी से चलने वाली टिटेनियम सूट हर बच्चे की गति के हिसाब से आसानी और बड़ी चतुराई से ढल जाता है. यह काम मसल रिहैबिलेटेशन थेरेपी के जरिये किया जाता है. इसके फायदों में मांसपेशियों की मजबूती, पाचन और श्वसन प्रक्रिया में बेहतरी और सबसे ऊपर है मरीजों में आत्मगौरव की अनुभूति.
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धड़ से लेकर पैर तक सपोर्ट
एटलस 2030 एक्सोस्केल्टन धड़ से लेकर पैर तक को सपोर्ट देता है और इसमें सीने के हिस्से को शामिल करने की जरूरत नहीं पड़ती. अगर जरूरी हो तो सिर को संभालने के लिए अलग व्यवस्था की जा सकती है. इस एक्सोस्केलेटन में 8 जोड़ हैं जो हर दिशा में अंगों का मूवमेंट करा सकते हैं.
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सुरक्षित और बदलाव में सक्षम (63503472)
बच्चे के विकास के साथ एक्सोस्केलेटन के डायमेंशन बदले जा सकते हैं. महज पांच मिनट में यह फिट हो जाता है. इसके साथ एक बाहरी फ्रेम भी है जो बच्चे को सुरक्षित रखने के साथ ही ऐसा महसूस कराता है कि वो खुद से चल रहा हो. इसकी वजह से थेरेपिस्ट को पीछे खड़े हो कर सपोर्ट देने की जरूरत नहीं पड़ती
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स्मार्ट एक्सोस्केलेटन
मरीज किस तरफ जाना चाहता है एक्सोस्केलेटन उसे तुरंत समझ लेता है और फिर उसमें बिना दखल दिये हर कदम पर मदद करता है. इसकी इस खूबी को जरूरत के हिसाब से बदला भी जा सकता है और हर मरीज के लिए खास तौर से चलने के पैटर्न भी तैयार किये जा सकते हैं.
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महंगा लेकिन फायदेमंद
मेक्सिको एसोसिएशन फॉर पीपल विद सेरेब्रल पॉलसी ने यह एक्सोस्केलेटन मेक्सिको में मंगाया है. करीब 2,50,000 डॉलर की कीमत का दूसरा एक्सोस्केलेटन भी जल्दी ही यहां पहुंच रहा है. संस्था का कहना है कि इस एक्सोस्केल्टेन के बहुत फायदे हैं. संस्था इसकी मदद से शुरुआत में 200 बच्चों की मदद करना चाहती है.
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एटलस 2030
एक्सोस्केलेटन को स्पैनिश प्रोफेसर एलेना गार्सिया अरमादा ने तैयार किया है जो व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वाले बच्चों को चलने में मदद करता है. एटलस 2030 एक्सोस्केलेटन के लिए इस साल का यूरोपीय इनवेंटर अवॉर्ड दिया है. स्पेन और फ्रांस के बाद मेक्सिको तीसरा देश है जहां एटलस 2030 को बच्चों के इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है.
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डॉ. फुंग-की-फुंग ने इस इलाज के लिए एक नई पद्धति का इस्तेमाल किया जिसे अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर मेटर्नल-फीटर प्रीसिजन मेडिसन की सह-निदेशक और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. टिपी मैकिंजी ने विकसित किया है. चूंकि महामारी के कारण आयला के माता-पिता ओंटारियो से कैलिफॉर्निया नहीं जा पाए थे इसलिए दोनों डॉक्टरों ने परस्पर सहयोग से यह इलाज किया. मैकिंजी कहती हैं, "इस परिवार के लिए ऐसा कर पाने को लेकर हम सभी पूरे उत्साहित थे.”
वैसे, डॉक्टरों ने पहले भी गर्भस्त बच्चों का इलाज किया है और ऐसा तीन दशक से जारी है. अक्सर सर्जरी के जरिए डॉक्टर स्पिना बिफीडा जैसे रोगों का इलाज करते हैं. बच्चों को गर्भनाल के जरिए रक्त भी चढ़ाया गया है. लेकिन दवाएं कभी नहीं दी गई थीं.
आयला के मामले में डॉक्टरों ने गर्भनाल के जरिए उसे महत्पूर्ण एंजाइम दिए. इसके लिए आयला की मां के पेट में सुई डालकर नस के जरिए उसे गर्भनाल तक पहुंचाया गया. गर्भ धारण करने के 24 हफ्ते बाद हफ्ते में दो बार यह प्रक्रिया तीन हफ्ते तक दोहराई गई.
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क्यों अहम है यह इलाज?
सालों से आयला के परिवार की देखभाल करने वाले डॉक्टर प्रणेश चक्रवर्ती भारतीय मूल के हैं. वह पूर्वी ओंटारियो में बच्चों के विशेष अस्पताल में काम करते हैं. वह कहते हैं, "यहां नई बात दवाई या गर्भनाल के जरिए बच्चे तक दवाई पहुंचाना नहीं थी. जो पहली बार हुआ, वह था तब भ्रूण का इलाज करना जबकि वह यूट्रो में है, और जल्दी इलाज करना.”
पहली बार हुआ आंत का प्रत्यारोपण
स्पेन की एक साल की बच्ची दुनिया में आंतों का ट्रांसप्लांट पाने वाली पहली इंसान बन गई है. मैड्रिड के अस्पताल में यह ऐतिहासिक सर्जरी हुई.
तस्वीर: La Paz Hospital/REUTERS
ऐतिहासिक सर्जरी
डेढ़ साल की एम्मा की आंत बदली गई है. ऐसा मानव इतिहास में पहली बार हुआ है जब किसी इंसान को दूसरे की आंत लगा दी गईं.
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मृत व्यक्ति से मिले अंग
मैड्रिड के ला पाज अस्पताल में 11 अक्टूबर को यह ऐतिहासिक काम पूरा हुआ. दिल के दौरे से एक व्यक्ति का देहांत हो गया था जिसकी आंत एम्मा को लगाई गई हैं.
तस्वीर: La Paz Hospital/REUTERS
जन्म से थी समस्या
एम्मा जब एक महीने की थी तो उसकी आंतों ने काम करना बंद कर दिया था. डॉक्टरों का कहना था कि एम्मा की आंत बहुत छोटी थी. उसकी हालत लगातार खराब हो रही थी.
तस्वीर: La Paz Hospital/REUTERS
कई अंग बदले गए
सर्जरी के बाद डॉक्टरों ने कहा कि एम्मा अब बिल्कुल ठीक है और घर जा चुकी है. उसके लिवर, पेट, स्पलीन और पेंक्रियाज का भी प्रत्यारोपण हुआ है.
तस्वीर: La Paz Hospital/REUTERS
स्पेन बना अगुआ
अंग प्रत्यारोपण में स्पेन एक अगुआ देश है. अमेरिका के बाद वहां दुनिया के सबसे ज्यादा प्रत्यारोपण होते हैं.
तस्वीर: La Paz Hospital/REUTERS
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इस पूरी प्रक्रिया में अमेरिका के डरहम की ड्यूक यूनिवर्सिटी और सिएटल की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक भी शामिल हुए, जिन्होंने पॉम्पे रोग का इलाज खोजा है. पॉम्पे रोग से पीड़ित बच्चों का जन्म के फौरन बाद इलाज किया जाता है. इसके तहत एंजाइम रिप्लेसमेंट किया जाता है ताकि रोग के असर की रफ्तार को धीमा किया जा सके.
हर एक लाख में से एक बच्चे में यह आनुवांशिक रोग होता है. लेकिन आयला की बहनों जैसे बहुत से बच्चों में स्थिति इतनी गंभीर होती है कि कुछ वक्त बाद शरीर थेरेपी का विरोध करने लगता है और थेरेपी काम करना बंद कर देती है और बच्चों की जान चली जाती है. आयला के मामले में शरीर के प्रतिरोध को धीमा कर दिया गया है. उम्मीद की जा रही है आयला के शरीर का प्रतिरोध गंभीर होने से रोका जा सकेगा.