उत्तर, पश्चिम और पूर्वी भारत में हो रही बारिश के कारण करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी पर बन आई है. हजारों लोग छत खोज रहे हैं. जलवायु परिवर्तन घरों में घुसने लगा है.
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भगवान देवी, उनके पति शिव कुमार और उनके चार बच्चों के लिए अब मकसद बस बाढ़ के बाद बची-खुची जिंदगी समेटना रह गया है. 38 साल की भगवान अपने परिवार के साथ एक बार फिर जिंदगी को शून्य से शुरू करने की कोशिश में जुटी हैं. पिछले कुछ दिनों में दिल्ली में हुई बारिश के बाद यमुना में आई बाढ़ ने पिछले एक साल में जुटाईं सारी इच्छाओं, आकांक्षाओं और सपनों को बहा दिया.
देवी और उनके परिवार को तब अपनी यमुना किनारे बनी झोपड़ी छोड़कर भागना पड़ा जब पानी घर में घुस आया. यह अचानक हुआ और इन गरीब परिवार के पास अपना सामान बचाने का वक्त नहीं था. अपनी ठोड़ी पर हाथ रखकर देवी बताती हैं, "यहां तक पानी आ गया था.”
कमाल का आइडियाः सिगरेट-बट्स से बने खिलौने
दिल्ली में एक उद्यमी सिगरेट के बचे हुए हिस्से से कमाल की चीजें बना रहा है. देखिए, कैसे चुपचाप हो रही है एक क्रांति...
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
सिगरेट का उपयोग
ये खिलौने बने हैं सिगरेट के बचे हुए टुकड़ों से. दिल्ली के एक उद्योगपति के दिमाग में यह आइडिया आया और अब कई महिलाएं इस काम में लगी हैं.
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पहले जमा करो सिगरेट
जिस मैटेरियल से ये खिलौने बनाए जाते हैं उनमें सिगरेट के पिछले हिस्से को बनाने में इस्तेमाल फाइबर शामिल है. कचरा बीनने वाले और कुछ समाजसेवी ये टुकड़े जमा करते हैं.
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फिर करो साफ
उस फाइबर को रसायनों से साफ किया जाता है. ब्लीचिंग के बाद यह मैटेरियल एकदम नए जैसा हो जाता है.
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कागज भी बेकार नहीं
फैक्ट्री में मजदूर सिगरेट के जले हुए हिस्से और कागज को अलग करके उसमें से फाइबर निकालते हैं. उस कागज को भी फेंका नहीं जाता बल्कि उसे रीइसाइकल करके कंपोस्ट पाउडर बनाया जाता है.
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खिलौनों से लेकर तकिए तक
फाइबर को रिप्रोसेस करके खिलौने, तकिए और ऐसे ही कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं.
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नमन गुप्ता का कमाल
यह आइडिया नमन गुप्ता के दिमाग में आया था. वह बताते हैं, “हमने रोजाना दस ग्राम फाइबर से शुरुआत की थी. अब हम सालाना एक हजार किलोग्राम फाइबर का इस्तेमाल करते हैं. इसके लिए हम करोड़ों सिगरेट बट्स को प्रोसेस करते हैं.”
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कच्चे माल की कमी नहीं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में लगभग 26.7 करोड़ लोग यानी 30 प्रतिशत लोग तंबाकू का सेवन करते हैं.
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हजारों अन्य परिवारों की तरह इस परिवारों को भी अपनी झोपड़ी से करीब सौ मीटर दूर फुटपाथ पर शरण लेनी पड़ी. लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है. भगवान देवी और शिवकुमार उत्तर प्रदेश के बदायूं के रहने वाले हैं. बदायूं में उनका घर गंगा से दो किलोमीटर दूर हुआ करता था. वहां लगातार आती बाढ़ ने जीना दूभर कर दिया था. वे बताते हैं कि खराब मौसम के कारण खेती भी नहीं हो पा रही थी, इसलिए 15 साल पहले उन्होंने दिल्ली आने का फैसला किया था.
यह कहानी दक्षिण एशिया के करोड़ों परिवारों की है जो जलवायु परिवर्तन की मार झेलने वाली पहली पंक्ति का हिस्सा हैं. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक 21 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपने ही देश में विस्थापित होना पड़ सकता है. सिर्फ दक्षिण एशिया में चार करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित होने की आशंका है.
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जलवायु परिवर्तन हर ओर
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के राजनीतिक रणनीति प्रमुख हरजीत सिंह कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया में हालात लगातार खराब हो रहे हैं और भारत के हिमालयी राज्यों में हो रही भारी से बहुत भारी बारिश उस श्रंखला की ही एक कड़ी मात्र हैं.”
वह कहते हैं कि भारत और उसके पड़ोसी देश लगातार बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाएं झेल रहे हैं. सिंह बताते हैं, "हमने पाकिस्तान में अभूतपूर्व और विनाशकारी बाढ़ देखी. हम नेपाल और पाकिस्तान में हिमखंडों को पिघलते देख रहे हैं. भारत और बांग्लादेश में समुद्र का जलस्तर बढ़ता जा रहा है. चक्रवातीय तूफान और अत्याधिक तापमान पूरे इलाके में नजर आ रहे हैं. जलवायु परिवर्तन लगातार लाखों लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने को मजबूर कर रहा है. उन्हें आजीविका के नए साधन खोजने को मजबूर कर रहा है.”
मयूर विहार के यमुना खादर इलाके में रहने वाले देवी और उन जैसे सैकड़ों लोगों के लिए हर बारिश के बाद विस्थापित होना नियति बन गई है. इस बार ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हिमालय में भारी बारिश हुई और कई बांधों का मुंह खोलना पड़ा. नतीजतन, यमुना और अन्य नदियों में पानी का स्तर बढ़ गया और दिल्ली में यमुना का जल उनके घरों में घुस गया.
अब कहां जाएं!
बात यहीं खत्म नहीं हुई है. मौसम विभाग ने चेतावनी दी थी कि 8 से 11 अक्टूबर के बीच उत्तर और पश्चिम भारत के कई इलाकों बहुत भारी बारिश हो सकती है. इसमें उत्तराखंड, और उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात और मध्य प्रदेश के कई इलाके भी शामिल हैं. पहाड़ों में बारिश होते ही मैदानों में बहतीं नदियों का पानी हदें तोड़ देगा.
सस्टेनेबल पर्यटन: पर्यावरण के अनुकूल यात्रा करने के तरीके
दो साल महामारी से जुड़े प्रतिबंधों में गुजारने के बाद, बड़ी संख्या में लोग अब यात्राओं पर निकल रहे हैं. जानिए अपने कार्बन पदचिन्ह छोटे रखते हुए यात्रा करने के तरीके.
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हवाई यात्रा कम करें
अगर आप पर्यावरण के अनुकूल यात्रा करने के तरीके पसंद करते हैं, तो आपको हवाई यात्रा से दूर रहना चाहिए. रेल यात्रा एक बेहतर विकल्प है. और अगर ट्रेनों में साइकिल ले जाने की अनुमति हो, तब तो सोने पर सुहागा.
तस्वीर: Rüdiger Wölk/IMAGO
ट्रेन पर गाड़ी लाद दीजिए
जर्मनी में जिन्हें यात्रा पर अपनी गाड़ी की जरूरत पड़ सकती है उनके लिए ऑटोजुग नाम की विशेष ट्रेनें चलती हैं जिन पर आप अपनी गाड़ी को लाद सकते हैं. इससे सफर का ज्यादा हिस्सा ट्रेन से तय किया जा सकता है.
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रात की ट्रेन
रात की ट्रेन में सफर करना एक अविस्मरणीय तजुर्बा होता है. डॉयचे बान वैसे तो इस धंधे से सालों पहले निकल गई थी, लेकिन कंपनी अब फिर से दूसरे यूरोपीय देशों के सहयोग की बदौलत रात्रि सेवाएं चला रही है. ये ट्रेनें फ्रांस, पोलैंड और स्वीडन जैसे देशों में यातायात के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में स्थापित हो चुकी हैं.
अपना कार्बन पदचिन्ह कम करने का एक तरीका और है - सिर्फ जरूरत की चीजें ही सूटकेस में भरिए अपने सामान में थोड़ी जगह खाली रखिए. ऐसा करने से आपको सामान भी कम ढोना पड़ेगा और लौटते समय यादगार के लिए कुछ वापस भी ला सकते हैं.
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खाने-पीने के लिए बार बार काम आने वाली चीजें
किसी मनोरम जगह पर पिकनिक आनंद लेने की चीज है. ऐसे में पिकनिक के स्थान पर कूड़ा ना फैले इसके लिए बार बार काम आने वाले डब्बे, प्लेटें, चम्मच आदि का इस्तेमाल करें. और बचा हुआ खाना भी अपने साथ वापस ले जाएं.
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छोटे होटलों को चुनें
बड़े रिजॉर्टों में कई बार कम कीमत में अच्छे यात्रा पैकेज मिल जाते हैं, लेकिन सस्ते ऑफर की कीमत वहां के कर्मचारियों को चुकानी पड़ती है. वो कम वेतन पाते हैं और बुरे हालात में काम करते हैं जबकि सारा मुनाफा मैनेजर हथिया लेते हैं. इसीलिए छोटे होटलों में रहना बेहतर है, जैसे मॉन्टेंगरो के स्टावना गांव का यह छोटा सा होटल.
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नई तरह के होटल चुनें
अगर आप परंपरागत होटलों से बोर हो गए हैं तो अपरंपरागत या ऐसे होटल चुनें जो जरा हट कर हों. जैसे क्रोएशिया के राजवोड का यह "बैरल होटल". यहां मेहमान वाइन के पुराने बैरलों में रहते हैं जिनका इंटीरियर आलीशान है. हर बैरल का अपना बाथरूम है और बाहर सब के इस्तेमाल के लिए एक स्विमिंग पूल भी है.
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स्थानिया विक्रेताओं को चुनें
सस्टेनेबिलिटी का ख्याल रखने वाले यात्रियों को स्थानीय विक्रेताओं को समर्थन देना चाहिए. आप जब स्थानीय कारीगरों, होटल वालों और सब्जी वालों से सामान खरीदते हैं तब उनका जबरदस्त फायदा होता है.
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गाइड भी स्थानीय ही लें
कई स्थानों पर पर्यटकों के लिए यह जानना मुमकिन होता है कि कौन से टूर ऑपरेटर टूर गाइडों को अच्छे वेतन देते हैं. जर्मनी में फेयरउनटरवेग्स.ऑर्ग वेबसाइट पर ऐसे ऑपरेटरों की एक सूची है जिन्हें उनकी सच्चाई के लिए जाना जाता है. ऐसे लोगों को समर्थन देना एक अच्छा आईडिया है.
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अंदर की बात अंदर ही रखें
अगर आप किसी अनछुई जगह पर पहुंच जाएं तो उसके बारे में सोशल मीडिया पर डाल कर सारी दुनिया को उसके बारे में ना बताएं. थाईलैंड की माया खाड़ी को भी कभी एक अनछुई जगह के रूप में जाना जाता था, लेकिन लोगों ने इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि पर तस्वीरें डाल डाल कर अब यहां पर्यटकों की भीड़ लगा दी है. इसलिए बेहतर है कि इन छुपे हुए हीरों को छुपा हुआ ही रहने दिया जाए. (मार्टिन कोच)
तस्वीर: YAY Images/IMAGO
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मौसम विभाग कह चुका है कि बारिश सर्दियों में कुछ और समय तक जारी रह सकती है. संभव है कि दिल्ली और उसके आसपास के इलाके 12-13 अक्टूबर तक इसी तरह बारिश झेलते रहें. इसके अलावा आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के इलाकों में भी भारी से बहुत भारी बारिश का अनुमान है.
दिल्ली में देवी और शिव कुमार यमुना किनारे थोड़ी सी जमीन पर सब्जियां उगाकर अपना घर चला रहे थे. लेकिन अब गाहे बगाहे यमुना घर और खेत में घुस आती है जो जुड़ता है, बहा ले जाती है. उनके सामने बदायूं एक बार फिर हो रहा है. सवाल यह है कि क्या वे यहां से कहीं और जा सकते हैं!