आए दिन धुर दक्षिपंथी हिंसा से जूझ रहे हैं जर्मनी के बच्चे
१५ मई २०२३रंग बिरंगे झंडे लहराते और हाथ से पेंट किये बोर्ड लेकर 150 से ज्यादा छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों ने कोटबुस स्कूल के दफ्तर के बाहर मार्च किया. जर्मनी की पूर्वी सीमा पर ब्रांडनबुर्ग प्रांत के शहर में लोग धुर दक्षिणपंथी हिंसा के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे.
शिक्षक माक्स टेस्के ने बुलंद आवाज में प्रदर्शनकारियों से कहा, "स्कूलों में नस्लवाद, लैंगिक भेदभाव और होमोफोबिया हम सब पर असर डाल रहा है. यह पूरे समाज के लिए खतरा है."
टेस्के और उनकी सहकर्मी लॉरा निकेल अप्रैल में पूरे जर्मनी में सुर्खियों में थे. उन्होंने कॉटबुस के पास अपने प्राइमरी और हाई स्कूल में नस्ली भेदभाव से प्रेरित हिंसा पर एक चिट्ठी छापी थी.
इस चिट्ठी में उन्होंने क्लास के दौरान धुर दक्षिणपंथी चरमपंथी संगीत बजने, फर्नीचर पर स्वास्तिक के निशान और स्कूल के गलियारों में गाली गलौच सुनने जैसी बातों का ब्यौरा दिया था.
दोनों टीचरों ने लिखा था, "हमारे स्कूल के विदेशियों जैसे दिखने वाले या ज्यादा उदार छात्र को अलगाव, दबंगई और हिंसा की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है." यही वजह थी कि उन्होंने "अब और चुप नहीं रहने का फैसला किया." इसकी बजाय वह ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ताओं, टीचरों के प्रशिक्षण स्कूलों में लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए नए कदमों की मांग कर रहे हैं.
500 से ज्यादा युवा दक्षिणपंथी हिंसा के शिकार
हाइके क्लेफनर दक्षिणपंथ, नस्लवाद और यहूदीविरोधी हिंसा के शिकार लोगों की मदद के लिए बने सेंटरों के एसोसिएशन, वीबीआरजी की प्रमुख हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "दुर्भाग्य से सिर्फ इतने ही मामले नहीं हैं, ये तो बस एक छोटा सा हिस्सा है."
जर्मनी में नसली भेदभाव लोगों के लिए रोजमर्रा की बात
क्लेफनर ने बताया, "नस्लभेद और यहूदीविरोध से प्रेरित हमलों के शिकार बच्चों और युवाओं की संख्या 2022 में दोगुनी हो गई. पीड़ितों के सहायता केंद्रों तक 520 से ज्यादा बच्चों और युवाओं के मामले पहुंचे जिन्हें शारीरिक चोट पहुंची थी. कुल मिलाकर पीड़ित सहायता केंद्रों ने 2,871 लोगों के इनकी चपेट में आने की पुष्टि की जो धुर दक्षिणपंथी, नस्लभेदी और यहूदीविरोध से जुड़े 2,100 हमलों के शिकार बने. यह पिछले साल की तुलना में करीब 700 ज्यादा है.
पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि राजनीति से प्रेरित हिंसा में भी इजाफा हुआ है. इसमें सिर्फ शारीरिक नहीं बल्कि जुबानी हमले भी शामिल हैं." क्लेफनर का कहना है, "ये वास्तव में नाटकीय सच्चाई की बस एक झलक है." हमलों की असल संख्या बहुत ज्यादा होने के आसार हैं. क्लेफनर ने कहा, "हम ऐसे बहुत से मामलों के बारे में जानते हैं जब पीड़ित कहते हैं कि हम सार्वजनिक रूप से यह नहीं कह सकते क्योंकि हमला करने वाले उनके पड़ोसी हैं. वो इस लिए भी सार्वजनिक नहीं जाना चाहते क्योंकि उन पर भी आरोप लगाया जा सकता है."
इस तरह के हमलों का पीड़ितों पर अकसर दूरगामी नतीजा होता है. क्लेफनर 8 साल के एक बच्चे का उदाहरण दे कर बताती हैं जिसे एक 71 साल के आदमी ने नस्ली तौर पर अपमानित और स्विमिंग पुल में धक्का दिया. यह फरवरी 2022 में जर्मन राज्य थुरिंजिया की घटना है. क्लेफनर का कहना है, "इस हमले की वजह से बच्चा अब भी डरा हुआ है, असुरक्षित महसूस करता है और उसका इलाज किया जा रहा है."
हॉलीडे कैंप में धमकियां
बर्लिन के पास हाइडेसी में झील के किनारे सैरसपाटे वाली एक जगह पर मई की शुरुआत में अपमान और धमकियों को हमले तक पहुंचने से रोकने के लिए पुलिस को दखल देना पड़ा. बर्लिन के एक स्कूल की 10वीं क्लास के बच्चे वहां गणित की परीक्षा के लिए तैयारी करने गये थे. क्लास के छात्रों में ज्यादातर आप्रवासी पृष्ठभूमि के थे. हालांकि इसी दौरान कई स्थानीय युवाओं ने उनके खिलाफ नस्लभेदी गालियां दी और उनके खिलाफ हिंसा की धमकियां भी. छात्रों और उनके टीचर को मध्य रात्रि में पुलिस की सुरक्षा में वहां से भागना पड़ा.
जर्मनी में उग्र दक्षिणपंथियों की संख्या रिकॉर्ड पर
क्लेफनर बताती हैं, "सच्चाई यह है कि स्कूल ने हिम्मत जुटाई और धुर दक्षिणपंथी हिंसा और नस्लभेद के अनुभवों के बारे में सार्वजनिक रूप से बताया. यह एक अहम संकेत है. सिर्फ यही एक तरीका है जिससे चीजें बदली जा सकेंगी."
जर्मन गृह मंत्री नैंसी फेजर ने इस घटना को "डरावनी" कहा. उनका यह भी कहना था, "वह इतनी भयानक थी कि जिन पर हमला हुआ उन्हें वापस जाना पड़ा (बजाय दोषियों के)." जर्मनी में राजनीति से प्रेरित हिंसा की घटनाओं के बारे में सालाना आंकड़े जारी किये जाने के दौरान मंगलवार को उन्होंने यह बातें कहीं. फेजर ने इस मामले की पूरी छानबीन का आदेश दिया ताकि ऐसी घटनाओं से भविष्य में बचा जा सके.
पीड़ितों का क्या सोचना है
इस तरह की धुर दक्षिणपंथी हिंसक घटनाओं ने कुछ पर्यवेक्षकों को 1990 के दौर की याद दिला दी है जब पूरे जर्मनी में नस्लभेदी हमलों की लहर चल पड़ी थी और भय का वातावरण बन गया था. उस वक्त की तरह इस समय भी ऐसे हमलों का शिकार बनने की आशंका उन राज्यों में खासतौर से बढ़ गई है जो पूर्वी जर्मनी का हिस्सा रहे थे.
हालांकि क्लेफनर ने उस दौर से अब में एक प्रमुख अंतर भी देखा है. उन्होंने बताया, "20 या 30 साल पहले ध्यान हमलावर पर था ना कि उन लोगों पर जिन्होंने हमला झेला या घायल हुए." जिस तरह से इन घटनाओं के बारे में बताया जा रहा है उसमें बदलाव आया है. क्लेफनर ने यह भी कहा, "इसकी भी बहुत जरूरत है क्योंकि अकसर पीड़ितों का यह अनुभव रहता है कि उनकी सोच, उनके अनुभवों पर भरोसा नहीं किया जा रहा है या संदेह किया जा रहा है."
क्लेफनर का कहना है कि अकसर पीड़ित सहायता केंद्र अकेली ऐसी जगहें होती हैं, जो धुर दक्षिणपंथी हिंसा से प्रभावित लोगों की बात पर भरोसा करती हैं.