ग्रीस के सबसे बड़े पोर्ट का मालिक चीन
३१ अक्टूबर २०२२जर्मन सरकार ने देश के सबसे बड़े बंदरगाह हैम्बर्ग के एक टर्मिनल की आंशिक हिस्सेदारी चीन की सरकारी कंपनी कॉस्को को बेचने के सौदे को हरी झंडी दे दी है. जर्मनी में इस पर तीखी बहस हो रही है. हालांकि यूरोपीय संघ के एक और सदस्य देश ग्रीस में ऐसी कोई चर्चा नहीं होती है. एक दशक पहले बुरे आर्थिक संकट में फंसे ग्रीस ने अपने करीब सारे अहम बंदरगाह और एयरपोर्ट विदेशी कंपनियों को बेच दिए हैं. कर्ज संकट से निपटने और यूरोपीय आयोग, यूरोपीय सेंट्रल बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शर्तें पूरी करने के लिए ग्रीस को कई बदलाव करने थे. 2016 में एथेंस की सरकार ने देश के अहम परेयस पोर्ट की दो तिहाई हिस्सेदारी कॉस्को को बेच दी. परेयस ग्रीस का मुख्य बंदरगाह है.
क्या जर्मनी कारोबारी रूप से चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है?
ग्रीस की सरकार इस सौदे से अब भी संतुष्ट दिखाई पड़ती है. फरवरी 2021 में ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मिटसोटाकिस ने चीन और मध्य व पूर्वी यूरोप के 17 देशों के पहले सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "परेयस में चीन का निवेश दोनों देशों के लिए फायदेमंद है." चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी परेयस में कॉस्को के निवेश को "मिसाल पेश करने वाला प्रोजेक्ट करार" दिया. 2019 में शी ने खुद परेयस पोर्ट का दौरा किया और उसे "चीन और यूरोप के तेज भू-समुद्री लिंक का अहम ठिकाना" बताया. बिल्कुल ऐसे दोतरफा फायदे की बात जर्मन सरकार ने भी कही है.
चीन ने परेयस के पोर्ट का आधुनिकीकरण किया है. अब यह पूर्वी भूमध्यसागर का सबसे बड़ा और यूरोप का सातवां बड़ा बंदरगाह है. लोगों का रोजगार सुरक्षित है और काम करने की परिस्थितियां बाकी ग्रीस जैसी ही हैं. कॉस्को ग्रीस के श्रम कानून के दायरे में काम करती है. कागजों में ग्रीस के प्रशासन को पोर्ट के निरीक्षण का अधिकार है, लेकिन अधिग्रहण के बाद ऐसा शायद ही हुआ है.
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परेयस पोर्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों की यूनियन बार बार बुरे हालात में काम करने शिकायतें करती रही है. पिछले साल एक हादसे में एक डॉक कर्मचारी की मौत के बाद सुरक्षा पर कुछ समय तक चर्चा हुई. लेकिन ग्रीस के प्रशासन ने कॉस्को पर ज्यादा दबाव नहीं डाला.
चीनी प्रोडक्ट्स के लिए अहम ठिकाना
कॉस्को के परेयस पोर्ट खरीदने के बाद ग्रीस के इस बंदरगाह पर चीनी सामान की बाढ़ सी आ गई. इसका असर भूमध्यसागर के दूसरे बंदरगाहों पर पड़ा. अब उनकी अहमियत बहुत कम हो गई. उनके राजस्व में कमी आई है. नौकरियां खतरे में पड़ी हैं.
इस लिहाज से देखें तो ये सवाल पूछा जा सकता है कि क्या परेयस एक सफल कहानी है? परेयस यूनिवर्सिटी में मैरीटाइम स्टडीज के प्रोफेसर कोस्टास श्लोमाउडिस के मुताबिक अगर अपनी राष्ट्रीय पोर्ट नीति को लेकर आपके पास कोई नजरिया या पैसा नहीं है तो आप इसे सफल कह सकते हैं. डीडब्ल्यू को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि यूरोप में दूसरी जगहों पर जिस तरह चीन ने निवेश किया है, उसकी तुलना ग्रीस ने नहीं की जा सकती. वह कहते हैं कि यूरोपीय संघ के दूसरे देशों ने प्राइवेट कंपनियों को कुछ साल के लिए हिस्सेदारी बेची है. साथ ही कंटेनर टर्मिनल के भीतर कई कंपनियां प्रतिस्पर्धा के माहौल में काम करती हैं. लेकिन ग्रीस में स्थिति पूरी तरह अलग है.
सारा नियंत्रण तीसरे देश को
परेयस के अधिकतर शेयर कॉस्को के पास है. शुरू में यह हिस्सेदारी 51 फीसदी थी, जो बाद में 67 फीसदी हो गई. अब चीनी कंपनी इस पोर्ट का भविष्य तय कर सकती है. कॉस्को पोर्ट हर टर्मिनल और पियर (एक तरह का डॉकिंग स्ट्रक्चर) को कंट्रोल करती है. प्रोफेसर श्लोमाउडिस कहते हैं, "जिस तरह से यह किया उसे देखें तो कॉस्को को परेयस का पोर्ट बेचना एक दुखदायी गलती है." परेयस का पोर्ट अब सीधे तौर पर पूरी तरह एक तीसरे देश, यानी चीन पर निर्भर है.
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उत्तरी ग्रीस के एक और अहम पोर्ट आलेक्जांड्रोपोलिस का भी निजीकरण होने जा रहा है. इसे अमेरिका खरीदना चाहता है. आलेक्जांड्रोपोलिस में अमेरिकी हथियारों की खेप आती है. श्लोमोउडिस इस तरह के निजीकरण के आलोचक हैं. वह कहते हैं, "अहम आधारभूत ढांचे के निजीकरण वाले ऐसे सौदे, यूरोपीय संघ की भूरणनैतिक अहमियत खत्म कर तीसरे देश को बड़ी शक्ति दे देते हैं."
यूरोपीय संघ को दखल देना चाहिए
श्लोमोउडिस कहते हैं कि परेयस को उदाहरण बनाते हुए स्पष्ट नियम कानूनों की जरूरत है. यूरोपीय संघ की सुरक्षा को जोखिम में डालने वाले सौदे को लेकर सजग और सक्रिय होना जरूरी है. वह मानते है कि भूरणनीतिक लिहाज से अहम ठिकानों के सौदों के लेकर पूरे यूरोपीय संघ में समान दिशा निर्देश लागू होने चाहिए, यानी ग्रीस के परेयस, जर्मनी के हैम्बर्ग, नीदरलैंड्स के रोटरडैम पोर्ट के लिए एक से नियम.
श्लोमोउडिस कहते हैं, "जर्मनी में इस वक्त जिन समस्याओं पर बहस हो रही है, उसे आधार बनाते हुए यूरोपीय संघ को एक कॉमन गाइडलाइंस स्थापित करने पर काम करना चाहिए, ताकि तीसरे देश के संदर्भ में यूरोप के हितों की रक्षा की जा सके."
निजीकरण वाली दवा
इस शताब्दी की शुरुआत से ही यूरोप ने आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए निजीकरण नाम की जादुई दवा का सहारा लिया. आधारभूत ढांचे का निजीकरण: इसके तहत पोर्ट, एयरपोर्ट, बिजली और पानी सप्लाई निजी हाथों में सौंप दी गई. निवेश के लिए छटपटाते ग्रीस ने भी यही किया.
परेयस और थेसालोनिकी के पोर्ट को लेकर सबसे पहले चीन ने दिलचस्पी दिखाई. तब ग्रीस के कर्मचारियों ने दबाव बनाकर ऐसे सौदों को टलवा दिया. 2007 के आर्थिक मंदी और उसके बाद दिवालिया होने की हद तक पहुंचे ग्रीस में कोस्टास कारोमानलिस की सरकार परेयस का कंटेनर टर्मिनल 2009 में कॉस्को को बेच दिया.
2010 में ग्रीस बुरे कर्ज संकट में फंस गया. तब उसके सामने बचने का एक ही रास्ता था, सरकारी संपत्तियों की बिक्री. इसी के तहत कॉस्को ने परेयस के पोर्ट की ज्यादातर हिस्सेदारी खरीद ली. खराब आर्थिक संकट के कारण दूसरे देश ग्रीस में निवेश करने से हिचक रहे थे, चीन ने ऐसी झिझक नहीं दिखाई.
आर्थिक सुधारों के नाम पर यूरोपीय संघ, यूरोपीय सेंट्रल बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ग्रीस पर निजीकरण का दबाव बनाया. इसके चलते एथेंस ने अपने 14 एयरपोर्ट भी बेच दिए. ये सारे एयरपोर्ट जर्मन कंपनी फ्रैपोर्ट को मिले. अब जर्मन कंपनी तय कर सकती है, उसे किस एयरपोर्ट से फायदा हो रहा है और किससे नहीं. फ्रैपोर्ट के फैसलों में ग्रीस का बहुत ज्यादा दखल नहीं होगा. फ्रैपोर्ट यूरोपीय संघ की कंपनी है, लिहाजा उसकी गतिविधियों से वैसा भूरणनीतिक खतरा पैदा नहीं होगा, जैसा किसी अमेरिकी या चीनी निवेशक से हो सकता है.
रिपोर्ट: काकी बेल