100 शहरों में दौड़ेंगी 10 हजार नयी इलेक्ट्रिक बसें
आमिर अंसारी
१७ अगस्त २०२३
भारत सरकार ने नयी योजना पीएम ई-बस सेवा के लिए 57,613 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. यह योजना इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के विस्तार के लिए लायी जा रही है.
इलेक्ट्रिक बसतस्वीर: Hindustan Times/imago images
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ग्रीन मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने देश के 100 शहरों में 10 हजार नयी इलेक्ट्रिक बसें चलाने का फैसला किया है. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल पर सिटी बस संचालन के विस्तार के लिए बस योजना "पीएम-ईबस सेवा" को मंजूरी दी.
इस योजना की अनुमानित लागत 57,613 करोड़ रुपये होगी, जिसमें से 20,000 करोड़ रुपये का समर्थन केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किया जाएगा. यह योजना 10 वर्षों तक बस संचालन का समर्थन करेगी.
यह योजना 2011 की जनगणना के मुताबिक तीन लाख और उससे अधिक आबादी वाले शहरों को कवर करेगी, जिसमें केंद्र शासित प्रदेशों, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और पर्वतीय राज्यों की सभी राजधानियां शामिल हैं. योजना के तहत उन शहरों को प्राथमिकता दी जाएगी, जहां कोई सुव्यवस्थित बस सेवा उपलब्ध नहीं है.
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केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया, देश में 3 लाख से 40 लाख की आबादी वाले 169 शहर हैं, इनमें से चैलेंज मोड के आधार पर 100 शहरों का चयन किया जाएगा.
कई राज्यों में इलेक्ट्रिक बसें चलाई जा रही हैंतस्वीर: Hindustan Times/imago images
ई-मोबिलिटी को बढ़ावा
योजना के तहत पांच लाख से कम आबादी वाले शहरों में 50 ई-बसें, पांच लाख से 20 लाख आबादी वाले शहरों में 100 ई-बसें और 20 लाख से 40 लाख की आबादी वाले शहरों में 150 इलेक्ट्रिक बसें उतारी जाएंगी.
जो राज्य या शहर पुरानी बसों को हटाएंगे वैसे शहरों के लिए अतिरिक्त बसें दी जाएंगी. इस योजना के तहत होने वाले खर्च पर केंद्र सरकार 20,000 करोड़ रुपये का समर्थन देगी और बाकी पैसे राज्य सरकारें देंगी.
सरकार का दावा है कि योजना के तहत सिटी बस संचालन में लगभग 10,000 बसें चलाई जाएंगी, जिससे 45,000 से 55,000 प्रत्यक्ष रोजगार पैदा होंगे. सरकार का कहना है कि शहरों को ग्रीन अर्बन मोबिलिटी पहल के तहत चार्जिंग सुविधाओं के विकास के लिए भी समर्थन दिया जाएगा.
बस की प्राथमिकता वाले बुनियादी सुविधाओं के समर्थन से न केवल अत्याधुनिक, ऊर्जा कुशल इलेक्ट्रिक बसों के प्रसार में तेजी आएगी, बल्कि ई-मोबिलिटी क्षेत्र में नवाचार के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सशक्त आपूर्ति श्रृंखला के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा.
भारत हर साल कच्चे तेल के आयात पर 7 लाख करोड़ डॉलर खर्च करता है और इसके इस्तेमाल से प्रदूषण भी बढ़ता है. साथ ही यह स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी समस्या है. ई-मोबिलिटी अपनाने से परिवहन क्षेत्र से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होगा तथा शहरों में प्रदूषण का स्तर घटेगा.
इन शहरों से सीखिए ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ना
इलेक्ट्रिक बसें चलाने से लेकर प्रदूषण को सोखने वाले अर्बन गार्डनों तक, दुनिया भर के शहर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए काफी कुछ कर रहे हैं. जानिए ऐसे सात शहर जो इस मामले में दुनिया के लिए मिसाल हो सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Kielwasser
मेडेलिन, कोलंबिया
लातिन अमेरिकी देश कोलंबिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर मेडेलिन 2016 से 30 ग्रीन कोरिडोर बनाने में जुटा है. इसके लिए शहर भर में नौ हजार पेड़ लगाए गए हैं जिन पर 1.6 करोड़ डॉलर खर्च हुए. प्रदूषक तत्वों को सोखने के अलावा इन पेड़ों ने शहर के औसत तापमान को दो डिग्री सेल्सियस कम किया है. इससे शहर में जैवविविधता भी बढ़ी है और वन्यजीवों को बसेरे मिल रहे हैं.
तस्वीर: DW/D. O'Donnell
अकरा, घाना
पश्चिमी अफ्रीकी देश घाना की राजधानी अकरा का प्रशासन वर्ष 2016 से अनौपचारिक तौर पर कचरा उठाने वाले 600 लोगों के साथ काम कर रहा है. ये लोग पहले कचरा जमा करते थे और उसे जला देते थे, जिससे प्रदूषण होता था. अब पहले से ज्यादा कचरा जमा हो रहा है, उसे रिसाइकिल किया जा रहा है और सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगाया जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Thompson
कोलकाता, भारत
कोलकाता 2030 तक ऐसी पांच हजार बसें खरीदने की योजना बना रहा है जो बिजली से चलेंगी. गंगा में बिजली से चलाने वाली नौकाएं लाने की भी तैयारी हो रही है. अभी तक ऐसी 80 बसें खरीदी जा चुकी हैं और अगले साल ऐसी 100 बसें और खरीदी जानी हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar
लंदन, ब्रिटेन
लंदन ने 2019 में दुनिया का सबसे पहला अल्ट्रा लो एमिशन जोन बनाया. इसके तहत सिटी सेंटर में आने वाले सभी वाहनों को सख्त उत्सर्जन मानकों को पूरा करना होगा, वरना भारी जुर्माना देना होगा. चंद महीनों में ही प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की संख्या घटकर एक तिहाई रह गई. लोग पैदल, साइकिल या फिर सार्वजनिक परिवहन से चलने लगे.
सैन फ्रांसिस्को के क्लीनपावरएसएफ कार्यक्रम के तहत लोगों को उचित दामों पर अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बनने वाली बिजली मुहैया कराई गई. शहर प्रशासन को उम्मीद है कि वे 2025 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 40 प्रतिशत कटौती के अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे.
तस्वीर: Getty Images/J. Revillard
गुआंगजू, चीन
शहर प्रशासन ने 2.1 अरब डॉलर की रकम खर्च कर शहर की सभी 11,200 बसों को इलेक्ट्रिक बसों में तब्दील कर दिया और उनके लिए चार हजार चार्जिंग स्टेशन भी बनाए. इससे ना सिर्फ शहर में वायु प्रदूषण घटा है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण भी कम हुआ है. यही नहीं, बसों को चलाने पर लागत भी कम हुई है.
तस्वीर: CC/Karl Fjellstorm, itdp-china
सियोल, दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया की राजधानी में दस लाख घरों की बालकनी और छत पर सोलर पैनल लगाने के लिए सब्सिडी दी गई है. स्कूल और पार्किंग सेंटर जैसी जगहों पर ऐसे पैनल लगाए जा रहे हैं. शहर को उम्मीद है कि वह 2022 तक एक गीगावॉट सोलर बिजली पैदा कर पाएगा. इतनी ही बिजली परमाणु रिएक्टर से वहां पैदा हो रही है.