ज्ञानवापी मामले में अदालत ने हिंदू पक्ष की अपील सुनने के लिए हामी भरी है, लेकिन इस मुद्दे पर राजनीति इतनी गर्मा गई है जिससे कहा जा रहा है कि यह मामला भी बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद की दिशा में बढ़ता नजर आ रहा है.
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ज्ञानवापी मामले में सोमवार 12 सितंबर को बनारस की एक निचली अदालत का जो फैसला आया वो सिर्फ इस सवाल पर था कि हिंदू पक्ष द्वारा दायर की गई अपील सुनवाई के लायक है या नहीं. हिंदू पक्ष की अपील है कि उसे मस्जिद के परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा करने की अनुमति दी जाए.
अदालत का इस अपील को सुनवाई के लायक बताना इस पर सुनवाई करने के लिए हामी भरने तक ही सीमित है. अपील मानी या जाएगी या नहीं इस पर अभी फैसला नहीं आया है. इस सवाल पर अब सुनवाई और जिरह होगी और उसके बाद फैसला आएगा.
हिंदू पक्ष की अन्य मांगें
लेकिन सोमवार के फैसले के बाद मामले पर राजनीति गर्मा गई है. हिंदू पक्ष ने इसके बाद मस्जिद परिसर में और भी बड़े स्तर पर पूजा करने के लिए अदालत से अनुमति मांगने की बात कही है तो मुस्लिम नेता इस मामले में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के हश्र की आहट देख रहे हैं.
फैसले के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने पत्रकारों को बताया कि इसके बाद वो मस्जिद के वजुखाने में मिले कथित शिवलिंग की आराधना करने की भी अदालत से अनुमति मांगेंगे.
टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में छपे जैन के बयान के मुताबिक, "वजुखाने में मिला शिवलिंग अदालत द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से पहले अदृश्य था. लेकिन अब जब वह दिखाई दे रहा है तो हम उसकी आराधना करने के अधिकार की भी मांग करेंगे."
हागिया सोफिया अब मस्जिद है
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जैन ने यह भी कहा कि यह 'शिवलिंग' उन देवी-देवताओं में से है जिनका जिक्र हिंदू पक्ष ने अपनी अपील में अदृश्य देवी-देवताओं के रूप में किया था. अप्रैल 2022 में सिविल न्यायाधीश ने मस्जिद के अंदर एक वीडियो सर्वेक्षण की अनुमति दी थी और उसी में वजुखाने के पानी के नीचे एक फव्वारा-नुमा चीज दिखाई दी थी जिसे हिंदू पक्ष तब से शिवलिंग बताता आया है.
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बाबरी की राह पर?
इतना ही नहीं, अखबार के मुताबिक जैन ने यह भी कहा है कि वो इस 'शिवलिंग' के अर्घ को खोजने के लिए मस्जिद की दीवार गिराने की भी अदालत से अनुमति मांगेंगे. इसके अलावा 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग की भी अनुमति मांगी जाएगी जिससे उसकी उम्र का पता लगाया जा सके.
मामले में अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी. विश्व हिंदू परिषद् ने अदालत के फैसले को "संतोषजनक" बताते हुए कहा है कि इससे "ज्ञानवापी मंदिर मुक्ति की पहली बाधा पार" हो गई है.
हालांकि मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि वो निचली अदालत के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिव्यू याचिका दायर करेगा. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले को निराशाजनक बताया.
बोर्ड के महासचिव खालिद सैफुल्ला रहमानी ने एक बयान जारी कर फैसले को "निराशाजनक और दुखदायी" बताया और कहा है कि इससे "देश की एकता प्रभावित" होगी.
सांसद और एआइएमआइएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस फैसले पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसा लग रहा है कि यह मामला भी उसी दिशा में बढ़ रहा है जिसमें बाबरी मामला बढ़ा था. उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मुस्लिम पक्ष फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जरूर जाएगा.
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तस्वीर: dpa - Bildarchiv
1528
कुछ हिंदू नेताओं का दावा है कि इसी साल मुगल शासक बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी.
तस्वीर: DW/S. Waheed
1853
इस जगह पर पहली बार सांप्रदायिक हिंसा हुई.
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1859
ब्रिटिश सरकार ने एक दीवार बनाकर हिंदू और मुसलमानों के पूजा स्थलों को अलग कर दिया.
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1949
मस्जिद में राम की मूर्ति रख दी गई. आरोप है कि ऐसा हिंदुओं ने किया. मुसलमानों ने विरोध किया और मुकदमे दाखिल हो गए. सरकार ने ताले लगा दिए.
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1984
विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया जिसे रामलला का मंदिर बनाने का जिम्मा सौंपा गया.
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1986
जिला उपायुक्त ने ताला खोलकर वहां हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी. विरोध में मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
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1989
विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद से साथ लगती जमीन पर मंदिर की नींव रख दी.
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1992
वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी नेताओं की अगुआई में सैकड़ों लोगों ने बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई की और उसे गिरा दिया.
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जनवरी 2002
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दफ्तर में एक विशेष सेल बनाया. शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.
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मार्च 2002
गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को जलाकर मारे जाने के बाद भड़के दंगों में हजारों लोग मारे गए.
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अगस्त 2003
पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां मस्जिद बनी है, कभी वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं.
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जुलाई 2005
विवादित स्थल के पास आतंकवादी हमला हुआ. जीप से एक बम धमाका किया गया. सुरक्षाबलों ने पांच लोगों को गोलीबारी में मार डाला.
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2009
जस्टिस लिब्रहान कमिश्न ने 17 साल की जांच के बाद बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना की रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया गया.
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सितंबर 2010
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवादित स्थल को हिंदू और मुसलमानों में बांट दिया जाए. मुसलमानों को एक तिहाई हिस्सा दिया जाए. एक तिहाई हिस्सा हिंदुओं को मिले. और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. मुख्य विवादित हिस्सा हिंदुओं को दे दिया जाए.
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मई 2011
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित किया.
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मार्च 2017
रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों को यह विवाद आपस में सुलझाना चाहिए.
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मार्च, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की मध्यस्थता के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई. श्रीश्री रविशंकर, श्रीराम पांचू और जस्टिस खलीफुल्लाह इस समिति के सदस्य थे. जून में इस समिति ने रिपोर्ट दी और ये मामला मध्यस्थता से नहीं सुलझ सका. अगस्त, 2019 से सुप्रीम कोर्ट ने रोज इस मामले की सुनवाई शुरू की.
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नवंबर, 2019
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया कि विवादित 2.7 एकड़ जमीन पर राम मंदिर बनेगा जबकि अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन सरकार मुहैया कराएगी.
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अगस्त, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी. कोरोना वायरस की वजह से इस कार्यक्रम को सीमित रखा गया था और टीवी पर इसका सीधा प्रसारण हुआ.