ईरान ने अमेरिका से कहा है कि वह 2015 के परमाणु समझौते पर लौटे. अमेरिका ने इसके जवाब में कहा है कि जब तक ईरान अपने वादे को पूरा नहीं करता है उस पर लगे प्रतिबंध नहीं हटाए जाएंगे.
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राष्ट्रपति बाइडेन ने रविवार को स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका ईरान के खिलाफ एकतरफा प्रतिबंध नहीं हटाएगा और तेहरान को पहले अपने परमाणु वादों को पूरा करना होगा. बाइडेन ने पुष्टि की कि ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि वह परमाणु समझौते की शर्तों का अनुपालन नहीं करता है. सीबीएस के साथ इंटरव्यू में जब बाइडेन से पूछा गया कि क्या अमेरिका ईरान पर पहले प्रतिबंधों को हटाकर बातचीत की मेज पर लौटने के लिए राजी है, तो बाइडेन ने स्पष्ट तौर पर "नहीं" में जवाब दिया. जब उनसे आगे पूछा गया कि ईरान के लिए यूरेनियम संवर्धन रोकना प्रतिबंध हटाने के लिए शर्त है तो बाइडेन ने सिर हिलाया.
साल 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस समझौते से एकतरफा बाहर होते हुए ईरान पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए थे. इसी के साथ समझौते के रद्द होने का डर पैदा हो गया था. 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और अमेरिका के साथ ही जर्मनी के साथ परमाणु समझौता हुआ था.
ईरान ने जनवरी में यूरेनियम को 20 प्रतिशत तक समृद्ध करना शुरू कर दिया था. परमाणु समझौते के तहत केवल 3.76 प्रतिशत के यूरेनियम संवर्धन की सीमा तय की गई थी. पिछले महीने बाइडेन ने राष्ट्रपति पद संभालने के बाद, अमेरिका और ईरान ने 2015 के समझौते को पुनर्जीवित करने में रुचि व्यक्त की थी, लेकिन दोनों अपनी शर्तों पर जोर दे रहे हैं.
"अमेरिका को पहले प्रतिबंधों को हटाना चाहिए"
इससे पहले ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई ने रविवार को कहा, "अगर वे चाहते हैं कि ईरान समझौते में वापस लौट आए, तो अमेरिका को लगभग सभी प्रतिबंधों को हटाना होगा." उन्होंने कहा, "एक बार सभी प्रतिबंधों के हटने की पुष्टि हो जाने के बाद हम अपने सभी वादों पर लौटेंगे. यह निर्णय अंतिम और अपरिवर्तनीय है."
खमेनेई का बयान उसी दिन आया जब यमन में चल रहे युद्ध का राजनीतिक समाधान खोजने के अमेरिकी प्रयासों के तहत यमन के लिए अमेरिका के विशेष दूत ने तेहरान का दौरा किया. अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि यमन में युद्ध वास्तव में ईरान और सऊदी अरब के बीच एक छद्म युद्ध है.
ईरान और अमेरिका के बीच पिछले साल तनाव तब चरम पर पहुंच गया जब उसने ईरान के शीर्ष जनरल को हवाई हमले में मार दिया था और देश पर दोबारा प्रतिबंध लगा दिए थे. इसके जवाब में ईरान ने तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था और आसपास के अमेरिकी सैन्य अड्डे पर फायरिंग भी की थी. बाइडेन ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान यह संकेत दिया था कि वह ईरान के साथ परमाणु समझौते में फिर से शामिल हो सकते हैं.
रूस के साथ जब भी पश्चिमी देशों का विवाद बढ़ता है तो नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन सबके निशाने पर आ जाती है. इसके जरिए बाल्टिक सागर से होते हुए रूसी गैस सीधे जर्मनी आएगी. लेकिन अमेरिका समेत कई देश इस पाइपलाइन के खिलाफ है.
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रूसी गैस की जरूरत
रूस की गिनती दुनिया में तेल और प्राकृतिक गैस से सबसे ज्यादा मालामाल देशों में होती है. खासकर यूरोप के लिए रूसी गैस के बिना सर्दियां काटना बहुत मुश्किल होगा.
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पारंपरिक गैस रूट
अभी रूसी गैस यूक्रेन होकर यूरोप तक पहुंचती है. 2019 में रूसी कंपनी गाजप्रोम के साथ हुई डील के मुताबिक यूक्रेन को 2024 तक 7 अरब डॉलर गैस ट्रांजिट फीस के तौर पर मिलेंगे.
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यूक्रेन का डर
रूस यूरोपीय बाजार के लिए अपनी 40 प्रतिशत गैस यूक्रेन के रास्ते ही भेजता है. लेकिन यूक्रेन को डर है कि नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन चालू होने के बाद उसकी ज्यादा पूछ नहीं होगी.
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नॉर्ड स्ट्रीम 2
नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन रूसी गैस को सीधे जर्मनी तक पहुंचाने के लिए बनाई जा रही है. यह बाल्टिक सागर से गुजरेगी और इस पर 10 अरब यूरो की लागत आएगी.
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क्या है फायदा
माना जाता है कि नॉर्ड स्ट्रीम 2 के जरिए यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी को होने वाली रूसी गैस की आपूर्ति दोगुनी हो जाएगी. जर्मनी रूस गैस का सबसे बड़ी खरीददार है.
जर्मनी उत्साहित
इस पाइपलाइन से हर साल रूस से जर्मनी को 55 अरब क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस की आपूर्ति होगी. जर्मनी में चांसलर अंगेला मैर्केल की सरकार इस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत उत्साहित है.
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दबाव
नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन का 90 फीसदी काम पूरा हो गया है. लेकिन इसके खिलाफ आवाजें लगातार तेज हो रही हैं. यूरोप के कई देशों के साथ-साथ अमेरिका भी इसे बंद करने के लिए दबाव डाल रहा है.
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बुरी डील?
अमेरिका भी इसे जर्मन की लिए बुरी डील बताता है. नए अमेरिकी राष्ट्रपति भी बाइडेन भी इसके खिलाफ हैं. वैसे कई जानकार कहते हैं कि अमेरिका दरअसल यूरोप को अपनी गैस बेचना चाहता है.
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रूस पर निर्भरता
फ्रांस और पोलैंड समेत कई यूरोपीय देशों का कहना है कि इस पाइपलाइन से रूस पर यूरोपीय संघ की निर्भरता बढ़ेगी और गैस का पारंपरिक ट्रांजिट रूट कमजोर होगा.
रूसी विपक्षी नेता एलेक्सी नावाल्नी को हुई सजा के बाद नॉर्ड स्ट्रीम 2 के खिलाफ फिर आवाजें तेज हो गई हैं. लेकिन जर्मन सरकार का कहना है कि उसने पाइपलाइन को लेकर अपना रुख नहीं बदला है.
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घरेलू राजनीति
जर्मनी में विपक्षी ग्रीन पार्टी और कारोबार समर्थक एफडीपी पार्टी भी इस प्रोजेक्ट को खत्म करने या रोकने की मांग कर रही हैं. मैर्केल के सत्ताधारी गठबंधन में भी इस पाइपलाइन के खिलाफ स्वर उभरने लगे हैं.