पूर्वोत्तर का उग्रवाद प्रभावित राज्य मणिपुर एक बार फिर गलत वजहों से सुर्खियों में है. अबकी बार मुद्दा है सदर हिल्स और जिरीबाम नामक दो नए जिलों के गठन का.
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नगा संगठन आंदोलन की राह पर हैं. उनका कहना है कि नए जिले बनाने से नगा बहुल इलाके प्रभावित होंगे. नगा संगठनों का कहना है कि ऐसा कदम उठाने से पहले नगा लोगों की सहमति जरूरी है. इन संगठनों की दलील है कि अतीत में हुए विभिन्न समझौतों में कहा गया है कि नए जिले बनाने में नगाओं की पैतृक जमीन से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. विभिन्न संगठनों ने सरकार के इस प्रस्ताव के विरोध में इस सप्ताह पहले 48 घंटे की हड़ताल की थी और उसके बाद बेमियादी नाकेबंदी शुरू कर दी है.
समर्थनवविरोध
राज्य में सदर हिल्स को पूर्ण जिले का दर्जा देने की मांग कोई पांच दशक पुरानी है. बीच में उग्रवाद, सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम और इरोम शर्मिला की भूख हड़ताल समेत विभिन्न मुद्दों के सामने आने की वजह से यह मुद्दा हाशिये पर चला गया था. लेकिन वर्ष 2011 में सदर हिल्स जिला मांग समिति ने नए सिरे से यह मुद्दा उठाया. अब ईबोबी सिंह की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए सेनापति जिले से अलग कर सदर हिल्स को पूर्ण जिले का दर्जा देने और जिरीबाम सबडिवीजन को अलग जिला बनाने की पहल की है. लेकिन सरकार के इस फैसले का भारी विरोध शुरू हो गया है. उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट कांउसिल आफ नगालैंड (एनएससीएन) के इसाक-मुइवा गुट के अलावा तमाम नगा संगठन सरकार के फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं.
देखिए, फिर जागा बोडोलैंड का भूत
फिर जागा बोडोलैंड का भूत
असम में विभिन्न बोडो संगठनों ने बीजेपी सरकार पर राजनीतिक साजिश रचने का आरोप लगाते हुए आंदोलन का बिगुल बजा दिया है.
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अखिल बोडो छात्र संघ (आब्सू), नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और पीपल्स जॉइंट एक्शन कमिटी फॉर बोडोलैंड ने अलग राज्य की मांग में नए सिरे से आंदोलन का फैसला किया है.
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इन संगठनों ने जातीय बोडो लोगों की सुरक्षा व अधिकार सुनिश्चित करने और एक संयुक्त बोडो राष्ट्र की मांग की है. उनका आरोप है कि बोडोलैंड मसले के समाधान का झूठा वादा कर एनडीए सरकार सत्ता पर काबिज हुई थी.
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असम के बोडोबहुल इलाके में अलग राज्य की मांग में आंदोलन का इतिहास आठ दशक से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन उपेंद्रनाथ ब्रह्म की अगुवाई में अखिल बोडो छात्र संघ (आब्सू) ने दो मार्च, 1987 को बोडोलैंड को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग में जोरदार आंदोलन छेड़ा था.
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इसी दौरान उग्रवादी संगठन बोडो सेक्यूरिटी फोर्स के गठन के बाद आंदोलन हिंसक हो उठा. यही संगठन आगे चल कर वर्ष 1994 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) बन गया.
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एनडीएफबी और आब्सू के नेताओं के बीच टकराव भी उसी समय शुरू हुआ.
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ताकतवर बोडो छात्र संघ आब्सू के नेता भारतीय संविधान के तहत अलग राज्य की मांग कर रहे थे लेकिन एनडीएफबी भारत से अलग होकर बोडोलैंड नामक आजाद देश की मांग कर रहा था.
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बोडोलैंड टेरीटोरियल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट के चार जिलों-कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुड़ी की आबादी में लगभग 30 फीसदी बोडो हैं. यही इलाके की सबसे बड़ी जनजाति है.
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असम सरकार ने वर्ष 1993 में बोडोलैंड स्वायत्त परिषद के गठन के लिए आब्सू के साथ समझौता किया था. लेकिन यह प्रयोग नाकाम रहने के बाद आब्सू ने वर्ष 1996 में नए सिरे से अलग राज्य के लिए आंदोलन शुरू कर दिया. उसी साल बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) नामक उग्रवादी संगठन का भी उदय हुआ.
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फरवरी, 2003 में केंद्र ने बीएलटी के साथ बोडो समझौता किया. बीएलटी ने समझौते के बाद हथियार डाल दिए और बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल पर इसी संगठन का कब्जा हो गया. बाद में इसने बोडो पीपल्स पार्टी नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया जो फिलहाल राज्य में बीजेपी सरकार की सहयोगी है.
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दरअसल, ये दोनों इलाके नगा और आदिवासी बहुल हैं. इन संगठनों की दलील है कि यह जमीन नगाओं की पैतृक संपत्ति है. ऐसे में उनसे सलाह-मशविरा किए बिना अलग जिलों के गठन से उनके हित प्रभावित हो सकते हैं. नगा छात्र संघ (एनएसएफ) ने कहा है कि सदर हिल्स के गठन में नगा लोगों की राय ली जानी चाहिए. इसके बिना कोई एकतरफा फैसला राज्य के सांप्रदायिक सद्भाव के हित में नहीं होगा. नगा संगठन अपने समर्थन में मणिपुर के देश में विलय के दौरान और उसके बाद हुए विभिन्न समझौतों की दलील देते हैं. उनमें कहा गया था कि नए जिलों के गठन के दौरान नगाओं के पूर्वजों की एक इंच भी जमीन नहीं ली जाएगी और उनको छुआ भी नहीं जाएगा.
पुरानीहैमांग
वर्ष 1917-1919 के कूकी विद्रोह से पहले राज्य के पर्वतीय इलाकों में कोई प्रशासन नहीं था. उस विद्रोह के बाद ब्रिटिश शासकों ने पर्वतीय इलाकों पर प्रशासनिक पकड़ मजबूत करने के लिए उसे तीन हिस्सों में बांट दिया. वर्ष 1933 में सदर सब डिवीजन का गठन किया गया. 21 सितंबर 1949 को मणिपुर के महाराज बोधाचंद्र सिंह के साथ हुए करार के तहत यह राज्य भारत का हिस्सा बना. वर्ष 1969 में इसे पांच जिलों में बांटा गया. पर्वतीय इलाकों के लोगों के हितों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 1971 में मणिपुर (पर्वतीय क्षेत्र) जिला परिषद अधिनियम तैयार किया. इसके तहत पर्वतीय क्षेत्र को छह स्वायत्त जिला परिषदों में बांट दिया गया. इनमें सदर हिल्स भी शामिल था. वर्ष 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से ही सदर हिल्स के लोग इसे पूर्ण जिले का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं.
यह भी देखिए: बंगाल में क्या है
बंगाल में पर्यटन
पश्चिम बंगाल भारत के अहम पर्यटन केंद्रों में शामिल है. बंगाल की सरकार विदेशी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आधारभूत ढांचों में सुधार कर रही है.
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टॉय ट्रेन
हिमालय की तलचटी में 2045 मीटर की ऊंचाई पर बसे दार्जिंलिंग का एक आकर्षण नैरो गेज रेल भी है. पर्यटक इसकी सवारी का आनंद लेने दार्जिलिंग जाते हैं.
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चाय बागान
दार्जिलिंग पूर्वी हिमालय रेंज का हिस्सा है. आल्पीन जंगलों वाला यह इलाका अपने मशहूर चाय के बागानों के लिए भी जाना जाता है. दार्जिलिंग चाय पश्चिमी देशों में भी बहुत लोकप्रिय है.
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रेल रोड का साथ
रोड के साथ साथ चलती रेलगाड़ी. दार्जिलिंग जाते हुए रेल और रोड का खेल चलता रहता है. सैलानी कभी ट्रेन पर होते हैं तो कभी नीचे उतरकर तस्वीर खींचते हैं.
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पहाड़ी वादियां
दार्जिंलिंग शहर से कंचनजंगा पहाड़ों की चोटियां देखी जा सकती हैं. यहां केवेंटर रेस्तरां से धुंध में लिपटे पहाड़ी शहर दार्जिलिंग का नजारा.
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संग्रहालय
कलिम्पोंग के निकट मुंगपो में स्थित इस घर में महाकवि रबींद्रनाथ टैगोर अक्सर ठहरा करते थे. अब यहां उनी यादगार चीजों से बना संग्रहालय है.
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मिशनरी स्कूल
कलिम्पोंग का प्रसिद्ध जेसुइट मिशनरी स्कूल. यहां 300 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं. उनमें से अधिकतर गरीब परिवारों से आते हैं.
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बंगाल टाइगर
सुंदरबन का इलाका अपने बंगाल टाइगर्स के लिए मशहूर है. ताजा जनगणना के अनुसार भारत में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है.
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आकर्षक शहर
बंगाल की राजधानी कोलकाता भी अपनी लंबी सांस्कृतिक विरासत के कारण हर मौसम में यात्रा के लायक है. क्रिसमस के समय सड़कों पर जगमगाती रोशनी.
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भव्य पंडाल
कोलकाता अपने रंगारंग दशहरा के लिए भी जाना जाता है. दुर्गा पूजा के मौके पर सुंदर मूर्तियों के अलावा सारे शहर में ढेर सारे भव्य पंडाल भी बनाए जाते हैं.
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सुंदर तालाब
अंग्रेजों की पहली राजधानी रहा कोलकाता अपने अत्यंत खूबसूरत तालाबों के लिए भी जाना जाता है.
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सदर हिल्स को अलग जिले का दर्जा देने की मांग सबसे पहले कूकी तबके के मुखियाओं की बैठक में 3 सितंबर 1970 को उठी थी. तब उस तबके के नेताओं ने तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री के. सी. पंत से मुलाकात भी की थी. वर्ष 1974 में सदर हिल्स जिला मांग समिति का गठन किया गया. वैसे सदर हिल्स को जिले का दर्जा देने के प्रयास पहले भी होते रहे हैं. वर्ष 1982 में रिशांग कीशिंग की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार ने इसके लिए एक अध्यादेश जारी कर दिया था और राज्यपाल ने उस पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे. लेकिन मणिपुर नगा काउंसिल के भारी विरोध के चलते उसे वापस लेना पड़ा था. वर्ष 1990-91 में आर. के. रणबीर सिंह सरकार ने भी सदर हिल्स को जिले का दर्जा देने का एलान किया था. लेकिन राजनीतिक अस्थिरता व केंद्र में यूनाइटेड फ्रंट सरकार के समय से पहले गिर जाने की वजह से राज्य सरकार को भी सत्ता से जाना पड़ा था. बाद में आर. के. डोरेंद्र सिंह और फिर नीपामाचा सिंह सरकार ने वर्ष 1997 में इसे जिले का दर्जा देने का एलान किया था. इसके लिए जरूरी इमारतें बना कर आधारभूत सुविधाएं भी जुटाई गईं. लेकिन नगा संगठनों के विरोध की वजह से सरकार ने पांव पीछे खींच लिए.
उसके बाद से ही यह मुद्दा नगाओं और मणिपुरियों में विवाद की वजह बना हुआ है. सदर हिल्स को जिले का दर्जा देने के समर्थन व विरोध में राज्य में कई बंद व नाकेबंदी हो चुकी है. इस आंदोलन के दौरान आधा दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है.
मिलिए, बंगाल की शेरनी से
बंगाल की शेरनी: मार्गरिटा मामुन
चाहे हाथ में बॉल हो, रिबन हो या फिर स्टिक्स, रिदमिक जिमनास्टिक के कोर्ट पर जब मार्गरिटा मामुन उतरती हैं तो सबकी नजरें उन पर टिक जाती हैं. मिलिये बंगाल टाइग्रेस रिटा मामुन से.
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पिता बांग्लादेशी
मार्गरिटा को रिटा नाम से जाना जाता है. रूस में पैदा हुई रिटा के पिता अब्दुल्लाह अल मामुन बांग्लादेश के हैं और मरीन इंजीनियर हैं, जबकि मां अना रूसी हैं.
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शुरुआत
सात साल की उम्र में रिटा ने रिदमिक जिमनास्टिक की ट्रेनिंग लेनी शुरू की और आज वह रूस की अहम खिलाड़ी हैं. पहली नवंबर 1995 को पैदा हुई रिटा लंबी मेहनत के बाद इस जगह पर पहुंची हैं.
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पारंगत
जूनियर के तौर पर बांग्लादेश का और फिर सिनियर श्रेणी में रूस का प्रतिनिधित्व करने वाली मार्गरिटा रिदमिक जिमनास्टिक की हर विधा में पारंगत हैं.
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लचीली और आकर्षक
चाहे हाथ में रिबन हो, बॉल हो, रिंग या फिर स्टिक्स. मार्गरिटा ताल और लय में डूबी रहती हैं और साथ ही विधा के लिए जरूरी हर कलाबाजी को शानदार ढंग से पेश करती हैं. उनकी पहली बड़ी जीत रूस की ऑल अराउंड चैंपियनशिप 2011 में रही.
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कड़ी मेहनत
2011 में ही मॉन्ट्रियाल वर्ल्ड कप में रीटा ने ऑल अराउंड विधा में कांस्य पदक जीता. प्रैक्टिस के दौरान बैले की सारी मूवमेंट के अलावा पैर की अंगुलियां मोड़ कर उस पर चलने का अभ्यास वह वीडियो में करती दिखाई देती हैं.
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जर्मनी में
मार्च 2014 में श्टुटगार्ट में हुई प्रतियोगिता के दौरान रिटा ने अलग अलग विधाओं में तीन स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीता.
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बंगाल टाइगर
उनकी कोच इरीना वाइनर कहती हैं कि मामून बंगाल टाइगर हैं. दुनिया भर की कई प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुकी 18 साल की रिटा रिदमिक जिमनास्टिक में तेजी से उभरता नाम है.
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मुश्किल कला
बैले, योग, कलाबाजी और नृत्य के अद्भुत मेल का नाम है रिदमिक जिमनास्टिक. बैले की शालीनता जहां इसके लिए जरूरी है वहीं शरीर का अति लचीला होना भी इसकी एक जरूरत है.
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ऑल अराउंड
रिटा की खासियत है कि वह रिदमिक जिमनास्टिक की हर विधा में शानदार प्रदर्शन करती हैं. और उनका यही लाजवाब प्रदर्शन 2014 के दौरान जर्मनी के श्टुटगार्ट में भी देखने को मिला.
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कई फैन
मार्गरिटा मामुन के फैंस ने उनके लिए फेसबुक पेज बनाया है. फैंस उन्हें इंस्टाग्राम पर भी फॉलो करते हैं.
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वर्ष 2011 में सदर हिल्स जिला मांग समिति ने नए सिरे से आंदोलन शुरू करते हुए बेमियादी आर्थिक नाकेबंदी शुरू की जो 92 दिनों तक चली थी. उस दौरान हिंसा में तीन छात्राओं की मौत हो गई थी. समिति के महासचिव तोंघेन किपगेन कहते हैं, ‘सरकार लगातार झूठे वादे करती रही है. तमाम सरकारों ने अब तक सदर हिल्स के लोगों का शोषण ही किया है.'
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सदर हिल्स का मुद्दा दशकों से राज्य के कूकी नगा और मैतेयी लोगों के बीच विवाद की वजह बना है. अब अगले साल होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए ईबोबी सिंह सरकार ने एक बार फिर इस दिशा में पहल की है. एक राजनीतिक पर्यवेक्षक आर. बाबू सिंह कहते हैं, "यह मामला बेहद संवेदनशील है. सरकार को इसके लिए तमाम पक्षों का भरोसा हासिल करना होगा." वह कहते हैं कि राज्य सरकार का कोई भी एकतरफा फैसला आत्मघाती साबित हो सकता है. इसके अलावा समर्थक व विरोधी संगठनों के आंदोलनों की वजह से राज्य के आम लोगों का जीवन दूभर होने का भी अंदेशा है.