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प्रकृति और पर्यावरणदक्षिण अफ्रीका

अफ्रीकी लोगों की थाली से गायब हो रहा है मांस

३ नवम्बर २०२२

पारंपरिक रूप से मीट खाने के लिए विख्यात दक्षिण अफ्रीका में लोगों का शाकाहार के प्रति झुकाव तेजी से बढ़ रहा है. बीते एक दशक में शाकाहारी खाने के विकल्पों ने लोगों को इतना लुभाया है कि मीट उद्योग चिंता में है.

अफ्रीका में बढ़ता शाकाहार
प्लांट बेस्ड मीट के लिए लोगों का रुझान बढ़ रहा हैतस्वीर: Amir Cohen/REUTERS

दक्षिण अफ्रीका में पूरे दिन चलने वाला बारबेक्यू "ब्राइ" यहां के लोगों के लिए एक तरह से राष्ट्रीय मनोरंजन जैसा है. "ब्राइ" उस ग्रिल को भी कहते हैं, जिसमें मांस पकाया जाता है और इस तरह से साथ मिलकर बारबेक्यू का मजा लेना भी "ब्राइ" ही कहलाता है.

दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के साथ ही आसपास के कई देशों में इसका खूब चलन है. लोग परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इसका लुत्फ उठाते हैं. पार्कों और सार्वजनिक जगहों पर इसके लिए खास इंतजाम भी होते हैं. ब्राइ यानी बारबेक्यू के इतने अधिक चलन वाले देश में लोग शाकाहारी भोजन की तरफ मुड़ रहे हैं, यह देखना हैरानी भरा है.

दक्षिण अफ्रीका में प्लांट बेस्ड मीट और दूसरे शाकाहारी भोजन का उपयोग बड़ी तेजी से बढ़ने लगा है. पर्यावरण विज्ञानी इसे देखकर हैरान होने के साथ ही खुश भी हैं. जलवायु परिवर्तन को धीमा करने की मुहिम के केंद्र में लोगों को शाकाहारी भोजन की तरफ ले जाना शामिल है.

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प्लांट बेस्ड मीट

रिसर्च एंड मार्केट्स के ताजा रिसर्च से पता चला है कि प्लांट बेस्ड मीट का इस्तेमाल दक्षिण अफ्रीका में सालाना 6.5 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. 2023 तक इसका कारोबार 56.1 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने के आसार हैं. 2030 तक दुनिया में प्लांट बेस्ड मीट का बाजार 162 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है और इसमें आधी हिस्सेदारी अफ्रीका की होगी.

प्लांट बेस्ड मीट का रूप रंग और स्वाद काफी हद तक मीट जैसा ही होता हैतस्वीर: Felix Hörhager/dpa/picture alliance

दक्षिण अफ्रीका ने 2018 में 15 अरब डॉलर की रकम केवल मीट और मीट से बनी चीजों पर खर्च की. इस समय प्रति नागरिक बीफ की खपत में यह दुनिया का 9वां सबसे बड़ा देश है. 10 साल पहले तक इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, मगर आज शाकाहारी विकल्पों के प्रति लोगों के उमड़ते प्रेम ने इसे मांस की मांग में बढ़त के अनुमान से आगे पहुंचा दिया है.

मीट उद्योग बेचैन

दक्षिण अफ्रीका में प्रोसेस्ड मीट उद्योग इस ट्रेंड से इतना विचलित हुआ कि जून में उन्होंने प्लांट बेस्ड मीट से बनी चीजों के लिए सॉसेज, नगेट और बर्गर जैसे नाम लिखने पर सरकार से रोक लगाने की मांग के लिए खेमेबाजी शुरू कर दी.

उस वक्त कृषि मंत्रालय का कहना था कि यह कदम ग्राहकों में उलझन दूर करने के लिए उठाया गया है. वहीं सरकारी प्रवक्ता ने कई बार आग्रह के बाद भी इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

हालांकि, फूड प्रोड्यूसर इससे विचलित नहीं हैं. मीट प्रोसेस करने वाली कंपनी फाइन्शमेकर में एक कर्मचारी पाउडर सोया और पी प्रोटीन को मिलाकर रिहाड्रेट कर रहे हैं, ताकि उससे 'डेली स्लाइस' बन सके. 'हैम' पर प्रतिबंध की आशंका में इसे यह नाम दिया गया है.

फाइन्शमेकर के प्रबंध निदेशक अलिस्टेयर हेवार्ड ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "बहुत कुछ तो यह फ्लेक्सिटेरियनिज्म की वजह से हो रहा है. ये वे लोग हैं, जो कम मीट खाने के लिए कोशिश कर रहे हैं."

जलवायु के लिए शाकाहार

फूड प्रोड्यूस करने वाली बड़ी कंपनी टाइगर ने मार्च में मीट का विकल्प देने वाले स्टार्टअप हर्बिवोइर में हिस्सेदारी खरीदी है. वुलवर्थ जैसे सुपरमार्केट अपनी खुद की रेंज लाये हैं. जाहिर है कि पारंपरिक भोजन का संबंध समृद्धि से भी है. दक्षिण अफ्रीका के करीब एक चौथाई लोगों के लिए हर रोज भोजन का इंतजाम एक संघर्ष है और वे दूसरी चीजें भी खाने को तैयार हैं.

इस बात के कई सबूत मिल रहे हैं कि मांस और डेयरी उत्पाद के उपयोग में कमी से कम से कम 20 फीसदी उत्सर्जन घटाया जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र के जलवायु लक्ष्यों का हासिल करने के लिए यह जरूरी है.

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फरवरी में साइंस में छपे एक रिसर्च पेपर ने बताया कि भोजन के लिए जानवरों को पालना बंद कर दिया जाये, तो ग्रीनहाउस गैसों का स्तर 30 साल के लिए स्थिर हो जायेगा. इसके साथ ही इस सदी के 68 फीसदी कार्बन उत्सर्जन को खत्म किया जा सकेगा. इसी तरह 2018 की एक और स्टडी ने दिखाया कि प्लांट बेस्ड भोजन से खाद्य आधारित उत्सर्जन को आधा किया जा सकता है. कुल उत्सर्जन में इसकी हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है.

हालांकि, इसके बाद भी इस बार मिस्र के जलवायु सम्मेलन के दौरान सरकारें चीज बर्गर जैसी किसी चीज का प्रस्ताव नहीं देने वाली हैं. वैसे मांस का उपयोग कम करने से लोगों को सीधे फायदा मिल सकता है. 57 साल की एंजी राफालालानी ने जलवायु की चिंता में मांस खाना छोड़ दिया. इसके साथ ही उनकी डायबिटीज की मुश्किलें भी आसान हो गई. जोहानिसबर्ग में प्लांट बेस्ड भोजन परोसने वाले लेक्सी हेल्दी रेस्तरां में लंच करते हुए उन्होंने बताया, "मेरा परिवार तो सदमे में आ गया, लेकिन शायद वो लोग मेरी राह पर चलेंगे. मैं उनकी जिंदगी में काफी दखल रखती हूं."

एनआर/वीएस (रॉयटर्स)

मीट कम खाइए, पर्यावरण को बचाइए

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