ब्रिटेन के अधिकारियों ने कहा है कि एक प्रयोग के तहत इस्तेमाल की गई डीएनए तकनीक से पहली बार बच्चों को जन्म दिया गया है. इन बच्चों के लिए तीन लोगों का डीएनए प्रयोग किया गया.
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ब्रिटेन में पहली बार तीन लोगों का डीएनए मिलाकर बच्चों को जन्म दिया गया है. अधिकारियों ने बताया है कि बच्चों को जेनेटिक बीमारियों से बचाने के लिए यह तकनीक इस्तेमाल की गई. ब्रिटेन की ‘ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एंब्रियोलॉजी अथॉरिटी‘ ने बुधवार को इन बच्चों के जन्म की पुष्टि करते हुए बताया कि अब तक ऐसे पांच से कम बच्चों का जन्म हुआ है.
2015 में ब्रिटेन ने इस तकनीक को वैधता दी थी ताकि जिन महिलाओं का माइटोकांड्रिया अस्वस्थ है, वे रोग को अपने बच्चों में जाने से बचा सकें. इस तकनीक से पहली बार अमेरिका में 2016 में किसी बच्चे का जन्म हुआ था.
कैसे काम करती है तकनीक
जेनेटिक बीमारियां दुर्लभ होती हैं और माता-पिता से बच्चों में जा सकती हैं. इन बीमारियों में शारीरिक व मानसिक अक्षमताएं पैदा हो सकती हैं. ब्रिटेन में 200 में से कम से कम एक बच्चा माइटोकांड्रियल डिसऑर्डर के साथ पैदा होता है. अधिकारियों के मुताबिक अब तक 32 मरीजों को नया इलाज मिला है.
इस तकनीक में अस्वस्थ माइटोकांड्रिया वाली महिला के अंडाणु ये जेनेटिक मटिरियल लिया जाता है और उसे अंडाणु दान करने वाली स्वस्थ महिला के अंडाणु के साथ मिलाया जाता है. लेकिन उसका बाकी डीएनए हटा दिया जाता है.
उसके बाद अंडाणु को दोबारा मां के गर्भाश्य में स्थापित कर दिया जाता है. इस तकनीक से पैदा होने वाले बच्चे में अंडाणु दान करने वाली महिला का एक फीसदी से भी कम जेनेटिक मटिरियल होता है.
फिंगरप्रिंट का सबक: अनोखा है हर इंसान
125 साल पहले अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानियों ने कैदियों के फिंगरप्रिंट लिये. तब से अब तक कैसा रहा है पहचान और शिनाख्त की वैज्ञानिक दुनिया का सफर.
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125 साल बाद भी आधुनिक
1891 में अर्जेंटीना के अपराध विज्ञानी खुआन वुसेटिच ने मॉर्डन स्टाइल फिंगरप्रिंट आर्काइव बनाना शुरू किया. तब से फिंगरप्रिंट को अहम सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इस तस्वीर में चोरी के बाद पुलिस अफसर दरवाजे के हैंडल को साफ कर रहा है, ताकि फिंगरप्रिंट साफ दिखाई पड़ें.
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सहेजना और तुलना करना
मौके से फिंगरप्रिंट जुटाने के लिए एक चिपचिपी फिल्म का इस्तेमाल किया जाता है. अचूक ढंग से फिंगरप्रिंट जुटाने में कई घंटे लग जाते हैं. एक बार फिंगरप्रिंट जुटाने के बाद जांचकर्ता उनकी तुलना रिकॉर्ड में संभाले गए निशानों से करते हैं. इन दिनों तेज रफ्तार कंप्यूटर ये काम बड़ी तेजी से कर देते हैं.
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स्याही की जरूरत नहीं
पहले फिंगरप्रिंट जुटाना बहुत ही मुसीबत भरा काम होता था, स्याही से हाथ भी गंदे हो जाते थे. लेकिन अब स्कैनर ने स्याही की जगह ले ली है. स्कैन करती ही डाटा सीधे बायोमैट्रिक डाटा बैंक को भेज दिया जाता है.
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क्यों खास है फिंगरप्रिंट
कंप्यूटर अंगुली की बारीक लाइनों और उनके पीछे के उभार को पहचान लेता है. अंगुली के केंद्र से अलग अलग लाइनों की मिलीमीटर के बराबर छोटी दूरी, उनकी घुमावट, उनकी टूटन सब दर्ज हो जाती है. दो लोगों के फिंगरप्रिंट कभी एक जैसे नहीं हो सकते, भले ही वे हूबहू दिखने वाले जुड़वा क्यों न हों.
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कहां कहां इस्तेमाल
नाइजीरिया में चुनावों में धांधली रोकने के लिए अधिकारियों ने फिंगरप्रिंट स्कैनर का इस्तेमाल किया. यही वजह है कि सिर्फ रजिस्टर्ड वोटर ही वोट डाल पाए वो भी सिर्फ एक बार.
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कौन कहां से कब आया
शरणार्थी संकट का सामना करते यूरोप में भी अधिकारी फिंगरप्रिंट का सहारा ले रहे हैं. यूरोपीय संघ के जिस भी देश में शरणार्थी पहली बार पहुंचेगा, उसका फिंगरप्रिंट वहीं लिया जाएगा. फिंगरप्रिंट लेने के लिए स्थानीय पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग दी गई है, उन्हें स्कैनर भी दिये गए हैं.
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ये मेरा डाटा है
अब कई स्मार्टफोन फिंगरप्रिंट डिटेक्शन के साथ आ रहे हैं. आईफोन और सैमसंग में टच आईडी है. फोन को सिर्फ मालिक ही खोल सकता है, वो भी अपनी अंगुली रखकर. अगर फोन खो जाए या चोरी भी हो जाए तो दूसरे शख्स को फोन का डाटा नहीं मिल सकता.
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ATM बैंकिंग
स्कॉटलैंड के डुंडी शहर में ऑटोमैटिक टेलर मशीन (एटीएम). इस मशीन से सिर्फ असली ग्राहक पैसा निकाल सकते हैं. फिंगरप्रिंट के जरिये मशीन कस्टमर की बायोमैट्रिक पहचान करती है. यह मशीन फर्जीवाड़े की संभावना को नामुमकिन कर देती है.
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पासपोर्ट की सेफ्टी
जर्मनी समेत कई देशों ने 2005 से पासपोर्ट में डिजिटल फिंगरप्रिंट डाल दिया. पासपोर्ट में एक RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी कंट्रोल्ड आईडी) चिप होती है. चिप के भीतर बायोमैट्रिक फोटो होती है, यह भी फिंगरप्रिंट की तरह अनोखी होती है.
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चेहरे की बनावट से पहचान
फेशियल रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर भी पहचान को बायोमैट्रिक डाटा में बदलता है. कंप्यूटर और उससे जुड़े कैमरे की मदद से संदिग्ध को भीड़ में भी पहचाना जा सकता है. इंटरनेट और कंप्यूटर कंपनियां भी अब फेशियल रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर का काफी इस्तेमाल कर रही हैं.
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जेनेटिक फिंगरप्रिंट के जनक
एलेक जेफ्रीज ने 1984 में किसी संयोग की तरह डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की खोज की. उन्होंने जाना कि हर इंसान के डीएनए का पैटर्न भी बिल्कुल अलग होता है. डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की उन्होंने एक तस्वीर तैयार की जो बारकोड की तरह दिखती है.
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हर इंसान के लिये बारकोड
जर्मनी की फेडरल क्रिमिनल पुलिस ने 1998 से अपराधियों का डीएनए फिंगरप्रिंट बनाना शुरू किया. जेनेटिक फिंगरप्रिंट की मदद से जांचकर्ता अब तक 18,000 से ज्यादा केस सुलझा चुके हैं.
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निर्दोष की मदद
परिस्थितिजन्य सबूतों या वैज्ञानिक सबूतों के अभाव में कई बार निर्दोष लोग भी फंस जाते हैं. घटनास्थल की अच्छी जांच और बायोमैट्रिक पहचान की मदद से निर्दोष लोग झेमेले से बचते हैं. किर्क ब्लड्सवर्थ के सामने नौ साल तक मौत की सजा खड़ी रही. अमेरिका में डीएनए सबूतों की मदद से 100 से ज्यादा बेकसूर लोग कैद से बाहर निकले.
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पीड़ित परिवारों को भी राहत
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का पहली बार बड़े पैमाने पर इस्तेमाल स्रेब्रेनित्सा नरसंहार के मामले में हुआ. सामूहिक कब्रों से शव निकाले गए और डीएनए तकनीक की मदद से उनकी पहचान की गई. डीएनए फिंगरप्रिंट को परिजनों से मिलाया गया. पांच साल की एमा हसानोविच को तब जाकर पता चला कि कब्र में उनके अंकल भी थे. 6,000 मृतकों की पहचान ऐसे ही की गई.
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फोन और कंप्यूटर में बायोमैट्रिक डाटा
बायोमैट्रिक डाटा के मामले में काफी काम हो रहा है. वैज्ञानिक अब आवाज के पैटर्न को भी बायोमैट्रिक डाटा में बदलने लगे हैं. वॉयस रिकॉगनिशन सॉफ्टवेयर की मदद से धमकी देने वालों को पहचाना जा सकता है. फिंगरप्रिंट की ही तरह हर इंसान के बोलने के तरीका भी अलग होता है. मुंह से निकलती आवाज कई तरंगों का मिश्रण होती है और इन्हीं तरंगों में जानकारी छुपी होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Warmuth (
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अथॉरिटी ने एक बयान में कहा, "माइटोकोंड्रिया के डोनेशन के इलाज से अस्वस्थ माता-पिता को स्वस्थ बच्चे पैदा होने की संभावना मिलती है.” हालांकि, एजेंसी ने कहा है कि अभी प्रक्रिया शुरुआती दौर में है लेकिन न्यू कासल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक इस इलाज की प्रक्रिया को प्रकाशित करेंगे.
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तकनीक की आलोचना
कई विशेषज्ञ बच्चे पैदा करने की कृत्रिम तकनीकों की आलोचना करते हैं. उनका तर्क है कि बच्चों में जेनेटिक बीमारियों को रोकने के लिये अन्य तरीके भी उपलब्ध हैं, मसलन एग डोनेशन या स्क्रीनिंग टेस्ट आदि, जबकि नये प्रयोग अब तक सुरक्षित साबित नहीं हुए हैं.
कुछ आलोचकों का कहना है कि यह तकनीक डिजाइनर बच्चों के जन्म के लिए भी रास्ते खोल सकती है. डिजाइनर बेबी तकनीक काफी समय से विवादों में रही है, जिसके जरिये माता-पिता से कहीं ज्यादा सुंदर, मजबूत और लंबे बच्चे पैदा करने की बात कही जाती रही है.
एक देश जहां लापता हो जाते हैं अपने
मेक्सिको की एक मां अपने लापता बेटे की तलाश में सात साल से भटक रही है. इन सात सालों में उसे अपना बेटा तो नहीं मिला लेकिन कई लाशें मिलीं.
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एक तलाश
अपने बेटे की खोज करते हुए उत्तरी मेक्सिको में मानकी लुगो को पिछले सात सालों में इतनी लाशें मिली कि उनकी गिनती अब उन्हें याद भी नहीं है. जब भी कोई शव मिलता है तो उनकी उम्मीद टूट जाती है कि वह उनका बेटा जुआन नहीं है.
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दर-दर भटकती मां
2014 में 21 साल के बेटे रॉबर्टो के घर नहीं लौटने के बाद मां मिर्ना मेडिना काफी परेशान थीं. उसके बाद 52 साल की मां ने अपने बेटे को खोजने का फैसला किया. यह काम आसान नहीं था. तीन साल बाद उन्हें रॉबर्टो के शरीर के कुछ अंग मिले. तलाश जारी रही और कुछ सालों की मेहनत के बाद कुछ और हिस्सा मिला. डीएनए जांच में शरीर के अंग रॉबर्टो के पाए गए.
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अपनों की तलाश के लिए बना समूह
मेक्सिको में ऐसी कई औरतें हैं जो अपनों की तलाश के लिए एक समूह के तौर पर काम कर रही हैं. वे कड़ी धूप में जंगलों और नदियों के किनारे लापता हुए लोगों की तलाश करती हैं.
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पहचान पाने की दिक्कत
पहचान को कठिन बनाने के लिए कभी-कभी लापता लोगों के अलग-अलग पीड़ितों के अंग एक साथ दफना दिए जाते हैं. कई बार सिर कहीं और धड़ कहीं और छिपे हुए होते हैं. शवों की पहचान के लिए डीएनए जांच की जाती है.
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ड्रग्स विवाद में हत्याएं
इस साल मई में मेक्सिको में लापता लोगों की संख्या दस लाख को पार कर गई. मारे जाने वाले लोगों में अधिकतर ड्रग्स से जुड़ी हिंसा के शिकार होते हैं. देश में लापता होने वालों की संख्या बढ़ ही रही है. कई जानकारों का कहना है कि असल संख्या इससे अधिक हो सकती है.
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लंदन स्थित फ्रांसिस क्रिक इंस्टिट्यूट में स्टेम सेल विशेषज्ञ रोबिन लोवेल-बैद कहते हैं कि इन बच्चों के विकास को देखना दिलचस्प होगा. उन्होंने कहा, "यह देखना दिलचस्प होगा कि व्यवहारिक रूप में यह तकनीक कितनी सफल होती है और बच्चे वाकई माइटोकोंड्रियल रोग से मुक्त रहते हैं या नहीं. साथ ही, भविष्य में उन्हें कोई और समस्या तो नहीं होती है.”
यूरोपीय वैज्ञानिकों ने इसी साल एक शोधपत्र प्रकाशित किया था जिसमें दिखाया गया था कि माइटोकांड्रिया बच्चों में तब भी जा सकता है, जब बच्चा यूट्रस में होता है. इससे बच्चों में जेनेटिक रोग पैदा हो सकता है.