उत्तर प्रदेश में एक गांव के पूर्व मुखिया ने दलितों के खिलाफ जुर्माना और जूतों से पिटाई की मुनादी करवाई थी. पूर्व मुखिया को गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन इस घटना ने एक बार फिर दलित विरोधी मानसिकता को रेखांकित कर दिया है.
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घटना मुजफ्फरनगर जिले के चरथावल थाना क्षेत्र के पावती खुर्द गांव की है. गांव के पूर्व मुखिया राजबीर त्यागी ने गांव में रहने वाले दलितों के घर के आगे मुनादी करवाई और कहलवाया कि दलितों का उनके खेत में और उनके ट्यूबवेल पर प्रवेश वर्जित है.
इतना ही नहीं, मुनादी में उसने यह भी कहलवाया कि आदेश का उल्लंघन करने वाले दलित को पांच हजार रुपये जुर्माना और 50 जूतों की सजा मिलेगी. सोशल मीडिया पर मौजूद इस मुनादी के वीडियो में कुंवरपाल नाम के एक व्यक्ति को ढोल बजा कर यह घोषणा करते हुए सुना जा सकता है.
वीडियो वायरल हो जाने के बाद स्थानीय पुलिस ने त्यागी और कुंवरपाल दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों पर आईपीसी की कई धाराओं और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत आरोप दर्ज किए गए हैं.
गांव के लोगों ने पत्रकारों को बताया कि गांव के दलितों ने त्यागी के खेतों में काम करने से मना कर दिया था, जिसके बाद गुस्से में आकर उसने यह मुनादी करवाई. राजबीर त्यागी गैंगस्टर विक्की त्यागी का पिता है. विक्की को एक विरोधी गिरोह के सदस्य ने 2015 में गोली मार दी थी.
मंगलवार 10 मई को इस मुनादी का वीडियो भीम आर्मी के संस्थापक चंद्र शेखर आजाद ने भी ट्विट्टर पर साझा किया था कि "हिंदू बनने का जिनको शौक चढ़ा था, उन्हें अब समझ आ गया होगा...ये है मोदी और योगी के रामराज्य की एक झलक."
उत्तर प्रदेश में कुछ ही महीनों पहले हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को दलितों का वोट भी मिलने की बात कही गई थी और माना जा रहा है कि आजाद का तंज उन दलितों को एक इशारा था जिन्होंने बीजेपी को वोट दिया.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज होते हैं. 2018 से 2020 के बीच, पूरे देश में दलितों पर अत्याचार के 1.3 लाख से भी ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 36,467 मामले उत्तर प्रदेश के थे.
दलितों के खिलाफ अपराध के 94 प्रतिशत मामले रह जाते हैं लंबित
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उन्हें न्याय भी नहीं मिलता. अधिकतर मामले अदालतों में लंबित ही रह जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
बढ़ रहे हैं अपराध
देश में 2019 में अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ 45,935 अपराध हुए, जो 2018 में हुए अपराधों के मुकाबले 7.3 प्रतिशत ज्यादा हैं. इस संख्या का मतलब है दलितों के खिलाफ हर 12 मिनट में एक अपराध होता है. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ अपराध में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
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सबसे ज्यादा अपराध उत्तर प्रदेश में
राज्यवार देखें, तो 11,829 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश में हालात सबसे गंभीर हैं. एक चौथाई मामले अकेले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए. इसके बाद हैं राजस्थान (6,794) और बिहार (6,544). 71 प्रतिशत मामले इन्हीं पांच राज्यों में थे. राज्य की कुल आबादी में अनुसूचित जाती के लोगों की आबादी के अनुपात के लिहाज से, अपराध की दर राजस्थान में सबसे ऊंची पाई गई. उसके बाद नंबर है मध्य प्रदेश और फिर बिहार का.
अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में सबसे बड़ा हिस्सा (28.89 प्रतिशत) शारीरिक पीड़ा या अंग-दुर्बलता के रूप में क्षति पहुंचाने के मामलों का है. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में भी सबसे बड़ा हिस्सा (20.3 प्रतिशत) क्षति पहुंचाने के मामलों का ही है.
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दलित महिलाओं का बलात्कार
अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में 7.59 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे. सबसे ज्यादा (554) मामले राजस्थान से थे और उसके बाद उत्तर प्रदेश से. अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ हुए अपराधों में 13.4 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे. सबसे ज्यादा मामले (358) मध्य प्रदेश से थे और उसके बाद छत्तीसगढ़ से. 10.7 प्रतिशत मामले एसटी महिलाओं की मर्यादा के उल्लंघन के इरादे से किए गए हमलों के थे.
पुलिस की कार्रवाई के लिहाज से कुल 28.7 प्रतिशत और सुनवाई के लिहाज से 93.8 प्रतिशत मामले लंबित रह गए. ये आम मामलों के लंबित रहने की दर से ज्यादा है.
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सुनवाई भी नहीं
2019 में अनुसूचित जातियों के लोगों के खिलाफ हुए 204,191 मामलों में सुनवाई होनी थी, लेकिन इनमें से सिर्फ छह प्रतिशत मामलों में सुनवाई पूरी हुई. इनमें से सिर्फ 32 प्रतिशत मामलों में दोषी का अपराध साबित हुआ और 59 प्रतिशत मामलों में आरोपी बरी हो गए.