दक्षिण एशिया में बढ़ता तापमान और भारी बारिश के कारण महिलाओं पर सबसे ज्यादा मार पड़ रही है. ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण घर से काम करने वाली महिलाओं की आय कम होती जा रही है.
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एक अध्ययन के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग का दक्षिण एशिया की गरीब महिलाओं की आय पर सीधा असर हो रहा है. तापमान और बारिश बढ़ने के कारण घर से काम करने वाली इन महिलाओं की आय में कमी देखी गई है क्योंकि उनके काम के घंटे कम हो रहे हैं.
घर से काम करने वाली महिलाओं के संगठन होमनेट साउथ एशिया ने भारत, नेपाल और बांग्लादेश की 202 महिलाओं का एक सर्वे करने के बाद एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है. यह रिपोर्ट बताती है कि ये महिलाएं अब कम काम कर पा रही हैं जिस कारण उनकी कमाई भी कम हो गई है.
2021 में घरेलू हिंसा के मामले बढ़े
कोविड महामारी के बीच भारत में घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली महिलाओं की संख्या में महत्वपूर्ण इजाफा हुआ है. 2020 के मुकाबले 26 फीसदी अधिक महिलाओं ने शिकायत की.
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घर में बढ़े अपराध
कोरोना के दूसरे साल में भी भारतीय महिलाओं को घरेलू हिंसा से छुटकारा नहीं मिला. राष्ट्रीय महिला आयोग से घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली महिलाओं की संख्या साल 2020 के मुकाबले 2021 में बढ़ी है.
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साल 2021 में 30,865 शिकायतें
2021 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा करीब 30 फीसदी बढ़ी. साल 2020 में महिला आयोग को 23,722 शिकायतें मिली थीं जबकि 2021 में 30,864 मामले दर्ज किए गए.
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महिलाओं के खिलाफ अपराध में यूपी आगे
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सबसे अधिक मामले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से सामने आए. यह करीब 51 फीसदी है. इसके बाद दिल्ली 10.8 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है.
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मदद के लिए रोज 400 कॉल्स
राष्ट्रीय महिला आयोग का कहना है कि महामारी सभी के लिए चुनौती बनकर आई है, खासकर महिलाओं के लिए. आयोग का कहना है कि अधिक से अधिक महिलाएं मदद मांग रही हैं और करीब 400 फोन कॉल्स आयोग की हेल्पलाइन पर आती हैं.
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गरिमा के साथ रहने के अधिकार का हनन
महिला आयोग का कहना है कि साल 2021 में 11,084 शिकायतें गरिमा के साथ रहने के हक के हनन की दर्ज की गईं. इसके बाद घरेलू हिंसा के 6,682 मामले दर्ज किए गए.
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दक्षिण एशिया में जितनी कामगार महिलाएं हैं उनका करीब एक चौथाई हिस्सा घर से काम करने वाली महिलाओं का है. पुरुषों के मुकाबले यह संख्या कहीं ज्यादा है क्योंकि सिर्फ 6 प्रतिशत पुरुष ही घर से काम करते हैं. होमनेट का कहना है कि घर से काम करने वाली महिलाओं का यह समूह सबसे कम आय वाले समूहों में से है और सबसे कमजोर तबका है.
रिपोर्ट के मुताबिक तापमान बढ़ने का असर महिलाओं की उत्पादकता पर हुआ है. अधिक गर्मी के कारण ये महिलाएं घर में ज्यादा देर काम नहीं कर पा रही हैं. रिपोर्ट कहती है कि ये महिलाएं अक्सर खाना या कपड़े आदि बनाने का काम करती हैं और इनकी उत्पादकता में 30 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है.
पहले से ही गरीबी की मार
रिपोर्ट में नेपाल की एक कपड़ा सिलने वाली महिला गोमा दर्जी की कहानी बताई गई है. गोमा दर्जी कहती हैं, "हमारा घर पूरी तरह पक्का नहीं है. छत टीन की है जो गर्मी में इतनी गर्म हो जाती है कि दोपहर में काम करना मुश्किल हो जाता है. अगर पंखा चलाऊं तो बिजली का बिल ज्यादा आता है, जो मैं दे नहीं सकती.”
कुछ ऐसी ही कहानी भारत की एक रेहड़ी लगाने वाली महिला की है. ममताबेन नाम की इस महिला की आय गर्मी और बारिश के कारण कम हो गई है क्योंकि वह पहले से कम देर रेहड़ी लगा पा रही है. ममताबेन ने बताया, "गर्मी इतनी ज्यादा है कि जो भी खाना बनाते हैं अगर वो उसी दिन ना बिके तो खराब हो जाता है. और अब किसी भी मौसम में बरसात हो जाती है, साल में कभी भी बारिश हो जाती है. जब बारिश होती है तो लोग हमारी रेहड़ी पर नहीं आते. खाना नहीं बिकता तो बहुत नुकसान होता है.”
घर से काम करने वाली इन महिलाओं में बड़ा हिस्सा शहरी झुग्गी-बस्तियों में रहने वालों का है. ये गरीब महिलाएं पहले से ही बुरी आर्थिक स्थिति में जी रही हैं और आय घटने का उनके जीवन स्तर पर कई गुना बुरा असर होता है. रिपोर्ट कहती है कि इन महिलाओं की औसत आय 1.90 डॉलर यानी लगभग 140 रुपये रोजाना के औसत से कहीं काफी कम है.
मुश्किलें बड़ी हैं महिला कारोबारियों की राह में
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पिछले एक दशक में दक्षिण एशिया में मौसम में बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं. एकाएक मौसम का बदल जाना आम हो गया. सूखा, बाढ़, अत्याधिक गर्मी और सर्दी जैसी आपदाओं की पुनरावृत्ति बढ़ी है. होमनेट के मुताबिक सर्वे में शामिल दो तिहाई लोग मानते हैं कि यह सब ईश्वर कर रहा है.
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जागरूकता की कमी
लोगों में जागरूकता की कमी है और पर्यावरण परिवर्तन से निपटने के लिए जरूरी उपायों की जानकारी ना के बराबर है. रिपोर्ट के मुताबिक इस कारण अधिकतर महिलाएं ऐसे कदम उठा रही हैं जो मदद करने के बजाय नुकसानदायक साबित होते हैं. जैसे कि आय घटने पर ये महिलाएं काम बदल लेती हैं या फिर घर बदल लेती हैं.
रिपोर्ट की मुख्य शोधकर्ता धर्मिष्ठा चौहान ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि ऐसी महिलाएं अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन का हिस्सा हैं, इसलिए जरूरी है कि बड़ी कंपनियां इन महिलाओं की मदद के लिए निवेश करें. वह कहती हैं, "इन महिलाओं को कौशल विकास और पर्यावरण परिवर्तन से लड़ने में सक्षम बनाने के लिए मदद की जरूरत है.”
कानून से अनाथ बच्चों की भलाई
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में कई अहम संशोधन किए गए हैं. सरकार का कहना है कि इन संशोधनों से बच्चा गोद लेना आसान होगा और उनकी सुरक्षा भी बढ़ेगी. इस विधेयक में बाल संरक्षण को मजबूत करने के उपाय भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/STR
गोद लेने की प्रक्रिया आसान
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन करने के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 राज्यसभा में पारित हो चुका है और यह जल्द ही कानून बन जाएगा. इस कानून के तहत बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया आसान बनाई जा रही है.
सरकार का कहना है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन से कानून मजबूत होगा और बच्चों की सुरक्षा बेहतर ढंग से होगी.
तस्वीर: IANS
अनाथ बच्चों का कल्याण
सरकार का कहना है कि यह एक बेहतर कानून है जिससे अनाथ बच्चों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना सुनिश्चित किया जा सकता है. कानून के प्रभावी तरीके से लागू होने से अनाथ बच्चों को शोषण से बचाया जा सकता है.
तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir
किशोर अपराध से जुड़े मामले जल्द निपटेंगे
संशोधित कानून में एक अहम बदलाव ऐसे अपराध से जुड़ा है जिसमें भारतीय दंड संहिता में न्यूनतम सजा तय नहीं है. 2015 में पहली बार अपराधों को तीन श्रेणियों में बांटा गया-छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध. तब ऐसे केसों के बारे में कुछ नहीं बताया गया था जिनमें न्यूनतम सजा तय नहीं है. संशोधन प्रस्तावों के कानून बन जाने से किशोर अपराध से जुड़े मामले जल्द निपटेंगे.
तस्वीर: DW/M. Kumar
बाल कल्याण समिति
संशोधन प्रस्तावों में बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) को ज्यादा ताकत दी गई है. इससे बच्चों का बेहतर संरक्षण करने में मदद मिलेगी. एक्ट में प्रावधान है कि अगर बाल कल्याण समिति यह निष्कर्ष देती है कि कोई बच्चा, देखरेख और संरक्षण की जरूरत वाला बच्चा नहीं है, तो समिति के इस आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती है. बिल इस प्रावधान को हटाता है.
तस्वीर: Manish Swarup/AP Photo/picture-alliance
बढ़ेगी जवाबदेही, तेजी से होगा निस्तारण
संशोधन विधेयक में बच्चों से जुड़े मामलों का तेजी से निस्तारण सुनिश्चित करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट व अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को ज्यादा शक्तियां देकर सशक्त बनाया गया है. इन संशोधनों में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट समेत जिला मजिस्ट्रेट को जेजे अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करना शामिल है.
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और भी बदलाव
विधेयक में सीडब्ल्यूसी सदस्यों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानकों को फिर से परिभाषित किया गया है. सीडब्ल्यूसी सदस्यों की अयोग्यता के मानदंड भी यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किए गए हैं कि, केवल आवश्यक योग्यता और सत्यनिष्ठा के साथ गुणवत्तापूर्ण सेवा देने वालों को ही सीडब्ल्यूसी में नियुक्त किया जाए.
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बदलाव की जरूरत क्यों
बाल अधिकार सुरक्षा पर राष्ट्रीय आयोग ने देश भर के बाल संरक्षण गृहों का ऑडिट कर साल 2020 में रिपोर्ट दी थी. 2018-19 के इस ऑडिट में सात हजार के करीब बाल गृहों का सर्वेक्षण किया गया, ऑडिट में पाया गया कि 90 प्रतिशत संस्थानों को एनजीओ चलाते हैं और करीब 1.5 फीसदी कानून के हिसाब से काम नहीं कर रहे थे.
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चौहान कहती हैं, "पर्यावरण परिवर्तन को ये महिलाएं भारी बारिश वाले ज्यादा दिन या गर्मी में बढ़ोतरी आदि से पहचानती हैं. लेकिन ज्यादातर महिलाएं मानती हैं कि पर्यावरण परिवर्तन के बारे में वे कुछ भी नहीं कर सकतीं.”
होमनेट ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि महिलाओं को गर्मी से बचाने वाली सामग्री से बने ऐसे घर मिलने चाहिए जिनमें ऊर्जा की कम खपत होती है. इसके अलावा उन्हें पीने के पानी की बेहतर सुविधा और अपना घर ठीक से बनाने के लिए आर्थिक मदद की भी जरूरत बताई गई है.
वीके/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
ये हैं भारत के सबसे गरीब राज्य
नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि भारत की 25.01 प्रतिशत आबादी गरीब है. कुछ राज्य तो ऐसे हैं जहां लगभग आधी आबादी गरीब है. ये हैं सबसे गरीब दस राज्यः