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भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ रहे हैंः अमेरिका

३ जून २०२२

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने एक बार फिर भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर की है. धार्मिक स्वतंत्रता पर सालाना रिपोर्ट जारी करते हुए ब्लिंकेन ने कहा कि हमले बढ़ रहे हैं.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेनतस्वीर: Jacquelyn Martin/AP/picture alliance

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने इस बात पर चिंता जाहिर की है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ रहे हैं. अपने उभरते अंतरराष्ट्रीय सहयोगी भारत की अपरोक्ष आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में हमने धर्मस्थलों में लोगों पर हमलों में बढ़ोतरी देखी है.

अमेरिकी विदेश मंत्री धार्मिक स्वतंत्रता पर सालाना रिपोर्ट जारी कर रहे थे. इस रिपोर्ट में चीन, ईरान और म्यांमार जैसे उन देशों की तीखी आलोचना की गई है, जो अमेरिका के विरोधी माने जाते हैं. ब्लिंकेन ने कहा आमतौर पर दुनिया में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर खतरे बढ़े हैं. भारत के बारे में ब्लिंकेन ने कहा, "जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और विशाल धार्मिक विविधता का घर है, उस भारत में हमने धर्मस्थलों में लोगों पर हमलों में वृद्धि देखी है."

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के अमेरिकी राजदूत रशद हुसैन ने कहा कि भारत में "कुछ नेता लोगों और धर्मस्थलों पर बढ़ते हमलों को नजरअंदाज ही नहीं बल्कि समर्थन भी कर रहे हैं."

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इस रिपोर्ट में अमेरिका ने भारत में ऐसे कानूनों की ओर संकेत किया है जो धर्म परिवर्तन पर पाबंदियां लगाते हैं. रिपोर्ट में मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा ऐसे उदाहरण दिए गए हैं जबकि उनके साथ धर्म के नाम पर भेदभाव हुआ. रिपोर्ट कहती है, "नेताओं ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काऊ टिप्पणियां की हैं या सोशल मीडिया पर लिखा है." भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार ने ऐसे कई कानून बनाए हैं जिन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता और आलोचक भेदभावकारी बताते हैं.

अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट

ब्लिंकेन द्वारा जारी यह सालाना रिपोर्ट अमेरिकी सरकार का दुनियाभर में धार्मिक स्वतंत्रता का आकलन है. यह रिपोर्ट अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग द्वारा तैयार की जाती है. हालांकि आयोग अपनी रिपोर्ट अलग से भी जारी करता है, जो इस साल अप्रैल में आ चुकी है. अपनी रिपोर्ट में आयोग ने सिफारिश की थी कि भारत को उन देशों की सूची में डाला जाए, जहां धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति चिंताजनक है. ये वे देश होते हैं, जहां अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति सबसे खराब है. अमेरिका सरकार ने लगातार तीसरी बार भारत को चिंताजनक स्थिति वाले देशों की श्रेणी में शामिल करने की आयोग सिफारिश को स्वीकार नहीं किया है.

रिपोर्ट को जारी करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री ने जिन देशों का विशेष तौर पर नाम लिया उनमें सऊदी अरब, चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान शामिल हैं. उन्होंने कहा, "चीन मुख्यतौर पर उइगुर मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों का संहार और दमन जारी रखे हुए है. अप्रैल 2017 से 10 लाख से ज्यादा उइगुर, कजाख मूलवासी और अन्यों को शिनजियांग के शिविरों में हिरासत में रखा गया है."

ब्लिंकेन ने पाकिस्तान की स्थिति पर बात की. उन्होंने कहा कि 2021 में पाकिस्तान में कम से कम 16 लोगों को या तो ईशनिंदा के आरोप में या तो अदालत ने मौत की सजा सुनाई या फिर उन पर ऐसे आरोप लगाए गए.

अमेरिकी विदेश नीति का जरूरी तत्व

अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता ना सिर्फ एक मूलभूत अधिकार है बल्कि "विदेश नीति की महत्वपूर्ण प्राथमिकता" भी है. अप्रैल में भारत और अमेरिका के वरिष्ठ मंत्रियों के बीच 2+2 वार्ता के दौरान एक प्रेस सम्मेलन में भी ब्लिंकेन ने भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर टिप्पणी की थी. ब्लिंकेन ने 11 अप्रैल को वॉशिंगटन में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की मौजूदगी में कहा था कि अमेरिका भारत में मानवाधिकारों के मोर्चे पर कुछ "चिंताजनक घटनाओं" पर नजर बनाए हुए है.

उसके कुछ ही दिन बाद 14 अप्रैल कोभारतीय विदेश मंत्री ने पलटवार करते हुए एक बयान दियाथा. जयशंकर ने पत्रकारों से कहा था, "लोगों को हमारे बारे में राय रखने का अधिकार है. हमें भी उतना ही अधिकार है कि उनकी राय, उसके पीछे के हित और उसे बनाने वाली लॉबियों और वोट बैंक पर अपनी राय रखें. तो इस पर जब भी कभी चर्चा होगी, मैं आपको बता सकता हूं कि हम अपनी पूरी बात रखेंगे."

12 अप्रैल को न्यूयॉर्क में दो सिखों पर हुए एक कथित नस्ली हमले के संदर्भ में जयशंकर ने कहा, "हम भी दूसरे देशों में मानवाधिकारों की स्थिति पर राय रखते हैं और इनमें अमेरिका भी शामिल है. जब भी इस देश में मानवाधिकार का कोई मुद्दा सामने आता है, हम उसे उठाते हैं, विशेष रूप से जब वो हमारे समुदाय का हो. बल्कि, हाल ही ऐसा एक मामला सामने आया था...हमारा इस विषय पर यही रुख है."

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति

2021 में भारत में धार्मिक पर हमले को लेकर आयोग की रिपोर्ट ने काफी तल्ख टिप्पणियां की थीं. रिपोर्ट कहती है कि सालभर में भारत सरकार ने अपनी हिंदू-राष्ट्रवादी नीतियों को और मजबूत करने के लिए कई नीतियां अपनाई हैं जो मुसलमान, ईसाई, सिख, दलित और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ काम कर रही हैं. रिपोर्ट कहती है कि भारत सरकार व्यवस्थागत तरीके से मौजूदा और नए कानूनों के जरिए अपने हिंदू-राष्ट्रवाद के दर्शन को आगे बढ़ाने पर काम कर रही है.

रिपोर्ट में कहा गया है, "2021 में भारत सरकार ने आलोचना करने वाली आवाजों, खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके लिए बोलने वालों कों यातनाओं, जांच-पड़ताल, हिरासत और यूएपीए (UAPA) जैसे कानूनों के जरिए परेशान करके दबाया गया.”

भारत में मानवाधिकार और खासकर अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने चिंता जाहिर की है. पिछले साल पहले हरिद्वार में हुई धर्म संसद में मुसलमानों के नरसंहार की अपील और उसके बाद एक ऐप बनाकर उस पर मुस्लिम महिलाओं की नीलामी की कोशिश जैसी घटनाओं की तीखी अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई है.

जेनोसाइड वॉच नामक संस्था के संस्थापक ग्रेगरी स्टैंटन ने कहा कि उन्हें भारत में बड़े नरसंहार के पूर्व लक्षण नजर आ रहे हैं. स्टैंटन ने ही 1990 के दशक में रवांडा में नरसंहार की चेतावनी दी थी.

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भारत के बारे में ग्रेगरी स्टैंटन ने जनवरी में अमेरिकी संसद को बताया, "हम मानते हैं कि हरिद्वार में हुई बैठक का असली मकसद नरसंहार को भड़काना ही था. जेनोसाइड कन्वेंशन के तहत नरसंहार को भड़काना एक अपराध है, और भारत में भी यह गैरकानूनी है.

उन्होंने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हिंसा के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोला है. स्टैंटन ने कहा, "हरिद्वार की बैठक में मुसलमानों के खिलाफ जो भाषा प्रयोग की गई, वह अल्पसंख्यक समुदाय का अमानवीयकरण करती है और ध्रुवीकरण पैदा करती है, जो नरसंहार के लिए हालात पैदा करते हैं.”

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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