मणिपुर में हिंसा के तीन महीने पूरे हो गए हैं, लेकिन राज्य में अभी भी शांति बहाल नहीं हो पाई है. अस्थिरता के कारण सबसे ज्यादा बच्चे और महिलाएं प्रभावित हुईं हैं.
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मणिपुर में 3 मई को मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा और आगजनी भड़की थी और यह कई दिनों बेकाबू रही. हिंसा में 160 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए. कई लोगों का मानना है कि मरने वालों की असल संख्या कहीं अधिक हो सकती है.
हिंसा के कारण मणिपुर से कुकी समुदाय के लोगों का पलायन भी हुआ है और वे सुरक्षित ठिकानों पर चले गए हैं. इस कारण बच्चों की पढ़ाई और लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ा है.
हिंसा के कारण बच्चों की शिक्षा प्रभावित
अब केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य में जातीय हिंसा के कारण 14 हजार से अधिक बच्चे विस्थापित हुए हैं. बुधवार को केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कहा कि इनमें से 93 प्रतिशत से अधिक बच्चों को पास के स्कूलों में दाखिला दिलाया गया है.
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उन्होंने अपने जवाब में कहा, "मणिपुर की मौजूदा स्थिति के कारण स्कूल जाने वाले कुल 14,763 बच्चे विस्थापित हुए हैं. विस्थापित छात्रों की प्रवेश प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रत्येक राहत शिविर के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है."
अन्नपूर्णा देवी ने आगे कहा, "93.5 प्रतिशत विस्थापित छात्रों को नजदीकी स्कूलों में मुफ्त में दाखिला दिया गया है." केंद्र सरकार ने बताया कि मणिपुर के चार जिले चूड़ाचांदपुर (4,099) कांगपोकपी (2,822), बिष्णुपुर (2,063) और इंफाल पूर्व (2,053) में विस्थापित स्कूली बच्चों की संख्या सबसे अधिक है.
तीन महीने पहले शुरू हुई हिंसा के बाद से 160 से अधिक लोग मारे गए हैं और 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं. केंद्र सरकार ने हिंसा को रोकने में मदद के लिए अब तक राज्य में केंद्रीय सुरक्षा बलों के 40,000 जवानों को तैनात किया है.
मणिपुर में बंदूक के सहारे आत्मरक्षा
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कैसे हुई थी हिंसा की शुरूआत
मणिपुर की लगभग 38 लाख की आबादी में से आधे से ज्यादा मैतेई समुदाय के लोग हैं. मणिपुर की इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल है. मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की मांग पर विचार करने और चार सप्ताह के भीतर केंद्र को अपनी सिफारिशें भेजने का निर्देश दिया था.
उसी के बाद मणिपुर में मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (एटीएसयू) मणिपुर ने एक रैली निकाली थी जो बाद में हिंसक हो गई.
मैतेई समुदाय के लोगों की दलील है कि 1949 में भारतीय संघ में विलय से पूर्व उनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त था. नगा और कुकी जनजाति इस समुदाय को आरक्षण देने के खिलाफ हैं.
नगा और कुकी जनजातियों को आशंका है कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से जनजातियों को और दिक्कत होगी. मौजूदा कानून के अनुसार मैतेई समुदाय को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है.
मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने और उनका यौन उत्पीड़न करने के वीडियो का सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान ले लिया और वह इस मामले की सुनवाई कर रहा है. मामले में राज्य के डीजीपी को भी तलब किया गया है.
मणिपुर हिंसा से बेपटरी हुई जिंदगी
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर बीते कई दिनों से हिंसा की चपेट में है. हिंसा के बाद वहां स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं है. कई लोग प्रदेश से भागकर पड़ोसी राज्यों में शरण लेने को मजबूर हैं. जानिए, वहां के हालात.
तस्वीर: ARUN SANKAR/AFP
हिंसा की कहानी
मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले के कारण राज्य में हिंसा भड़क गई थी. दरअसल मैतेयी संगठनों ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी. हाईकोर्ट में मैतेयी संगठनों ने एक याचिका दायर की थी. उस पर सुनवाई के दौरान अदालत ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार से इस मांग पर विचार करने और चार महीने के भीतर केंद्र को अपनी सिफारिश भेजने का निर्देश दिया था.
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जमीन, नौकरी और संसाधन का झगड़ा
गैर-आदिवासी मैतेयी समुदाय लंबे अरसे से अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा है. मैतेयी समुदाय की दलील है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बाद वे लोग राज्य के पर्वतीय इलाकों में जमीन खरीद सकेंगे. आदिवासी संगठनों को चिंता है कि अगर मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया तो सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों से आदिवासियों को वंचित होना पड़ेगा.
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हिंसा के बाद सेना की तैनाती
राज्य में हिंसा के फौरन बाद वहां सेना की तैनाती कर दी गई थी और तनावपूर्ण स्थिति के मद्देनजर देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए थे. हिंसा से निपटने के लिए सेना और असम राइफल्स के 10 हजार सैनिकों को तैनात किया गया है. हिंसाग्रस्त इलाकों में शांति बहाली के लिए सेना फ्लैग मार्च कर रही है.
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हिंसा में कई मरे
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि हिंसा में कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई. हालांकि सेना ने कहा है कि 7 मई को हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई. राज्य में कर्फ्यू में भी ढील दी गई है. सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित चूड़ाचांदपुर में भी हालात सामान्य बताए जा रहे हैं.
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जला दिए गए आशियाने
बीते दिनों हुई हिंसा में कई मकान, दुकान और गाड़ियां आग के हवाले कर दी गईं. और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित ठिकानों पर शरण लेनी पड़ी.
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बन गए शरणार्थी
हिंसा के बाद सेना ने कई हजार लोगों को कैंपों तक सुरक्षित पहुंचाने का काम किया और उनके रहने का इंतजाम किया. करीब 23 हजार लोगों को सेना ने अपने कैंपों में रखा है.
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मणिपुर छोड़ कर जाते लोग
हिंसा के बाद से ही कई लोग राज्य छोड़कर चले गए हैं. इनमें ऐसे लोग शामिल हैं जो पढ़ाई के लिए मणिपुर में थे. असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम आदि के राज्यों ने अपने छात्रों को निकालने का इंतजाम किया है. दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सरकार ने भी अपने छात्रों को वहां से निकालने का फैसला किया है.
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खाने के लिए कतार में लोग
सेना के कैंपों में कई परिवार रह रहे हैं और वे अपने घर से बहुत दूर हैं. ऐसे में सेना ने उनके रहने और भोजन का इंतजाम किया है. कई लोग अब इन्हीं कैंपों में फिलहाल रहने को मजबूर हैं.
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मामला सुप्रीम कोर्ट में
मणिपुर की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में मणिपुर में हिंसा की जांच एसआईटी से कराए जाने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है.