मणिपुर में ताजा हिंसा में चार लोगों की जान चली गई और पांच अन्य लोग घायल हो गए. प्रशासन ने राज्य के पांच जिलों में कर्फ्यू लगा दिया है.
विज्ञापन
नए साल के पहले दिन मणिपुर में ताजा हिंसा में चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई और कई अन्य घायल हो गए, जिसके बाद राज्य के पांच घाटी जिलों में फिर से कर्फ्यू लगा दिया गया. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक थौबल जिले के स्थानीय लोगों और अज्ञात हथियारबंद लोगों के बीच सोमवार को झड़प हो गई.
इस गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई है और पांच लोग घायल हो गए. हथियारबंद लोगों की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है. रिपोर्टों के मुताबिक पुलिस ने कहा कि घटना लिलोंग चिंगजाओ में हुई, जहां लोगों से जबरन वसूली को लेकर हुए झगड़े के बाद हथियारबंद हमलावरों ने लोगों पर गोलियां चला दीं.
घायलों में से कई की हालत गंभीर बताई जा रही है और उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया है. मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने एक वीडियो संदेश में हिंसा की निंदा की और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की.
विज्ञापन
पांच जिलों में कर्फ्यू
इस घटना के बाद इलाके में भारी तनाव हो गया और गुस्साई भीड़ ने हमलावरों द्वारा इस्तेमाल किए गए दो वाहनों को जला डाला. इस बीच, थौबल हिंसा को देखते हुए घाटी के सभी पांच जिलों- थौबल, इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम, काकचिंग और बिष्णुपुर के प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया है.
बीरेन सिंह ने कहा, "मैं निर्दोष लोगों की हत्या पर दुख व्यक्त करता हूं. हमने अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस टीमें लगा दी हैं. मैं लिलोंग के लोगों से अपील करता हूं कि वे दोषियों को पकड़ने में सरकार की मदद करें. मैं वादा करता हूं कि सरकार कानून के तहत न्याय देने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी."
मणिपुर में एशिया की पहली ट्रांस फुटबॉल टीम
01:43
पिछले साल भड़की थी जातीय हिंसा
दो दिन पहले ही मणिपुर के सीमावर्ती शहर मोरेह में संदिग्ध विद्रोहियों और पुलिस कमांडो के बीच गोलीबारी में सुरक्षा बल के चार जवान घायल हो गए थे. अधिकारियों ने कहा कि विद्रोहियों ने कई आरपीजी फायर किए जो मोरेह के तुरेलवांगमा लीकाई में सीडीओ चौकी भवन के अंदर फट गए, वहीं पर कमांडो रह रहे थे.
मणिपुर की लगभग 38 लाख की आबादी में से आधे से ज्यादा मैतेई समुदाय के लोग हैं. मणिपुर की इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल है. पिछले साल मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की मांग पर विचार करने को कहा था.
उसी के बाद मणिपुर में मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में 3 मई 2023 को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (एटीएसयू) ने एक रैली निकाली थी जो बाद में हिंसक हो गई.
मैतेई समुदाय के लोगों की दलील है कि 1949 में भारतीय संघ में विलय से पूर्व उनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त था. नगा और कुकी जनजाति इस समुदाय को आरक्षण देने के खिलाफ हैं.
नगा और कुकी जनजातियों को आशंका है कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से जनजातियों को और दिक्कत होगी. मौजूदा कानून के अनुसार मैतेई समुदाय को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है.
बीते साल राज्य में भड़की हिंसा में अब तक 160 से अधिक लोग मारे गए हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए.
2023 की कुछ सबसे दमदार तस्वीरें
2023 के आखिरी कुछ दिन बचे हैं. देखिए, इस साल की कुछ झलकियां. कुछ चर्चित, तो कुछ औचक तस्वीरें. कुछ मुस्कुराने, तो कुछ उदास करने वाली तस्वीरें. सारी तस्वीरें बड़ी बातूनी हैं क्योंकि वो खुद ही अपनी कहानी बता देती हैं.
तस्वीर: Satya Prakash/AP
हाथी मरा नहीं, मारा गया
हाथी के पांव पर गुड़हल के फूल रखकर एक बच्ची की हथेली लौट रही है. गुवाहाटी के बाहर कुरक्रिया नाम का गांव है. वहां एक मालगाड़ी ने इस हाथी को धक्का मारा और वो चल बसी. एक नहीं, दो जानें गईं क्योंकि मादा हाथी गर्भवती थी. ग्रामीणों ने फूल-माला चढ़ाकर उसका अंतिम संस्कार किया. असम में हाथियों के कई प्राचीन गलियारे हैं, लेकिन यहां भी जंगली जीवों के इलाकों में इंसानी अतिक्रमण जारी है. नतीजा सामने है.
तस्वीर: Anupam Nath/AP
होली है...
होली की यह तस्वीर हैदराबाद की है. बसंत का यह उत्सव मुख्य तौर पर भारत और नेपाल में मनाया जाता है. हालांकि अब तो विदेशों में भी ये बड़ा लोकप्रिय हो गया है. जर्मनी में भी कई जगहों पर होली पार्टियां होती हैं, जहां जर्मन लोग भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
तस्वीर: Mahesh Kumar A./AP
मणिपुर हिंसा
जून 2023 की यह तस्वीर मणिपुर में जारी संघर्ष की है. मैतेई समुदाय की महिलाओं का एक निगरानी दस्ता एक घटनास्थल की ओर जा रहा है, जहां गोलीबारी हुई थी. मई 2023 से ही प्रदेश में हिंसक स्थितियां बनी हुई हैं.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP
आषाढ़ पंद्रा
नेपाल में धान की रोपाई एक उत्सव है. ये तस्वीर आषाढ़ पंद्रा की है, जो हर साल आषाढ़ की 15 तारीख को मनाया जाता है. इस दिन लोग खेत जोतते हैं, पानी के बहाव के लिए नालियां दुरुस्त करते हैं, गीत गाते हैं, पकवान खाते हैं और ये सब करते हुए, बारिश से नहाई खेत की गीली मिट्टी में कीचड़ से सन जाते हैं. जो खेत में नहीं उतर पाते, वो दर्शक की भूमिका निभाते हैं. यह तस्वीर नुआकोट जिले के बाहुनबेशी की है.
तस्वीर: Niranjan Shrestha/AP
जानलेवा थपेड़े
यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के बलिया की है. इसमें दिख रही आग, चिताओं से उठ रही है. इन लोगों की जान गर्मी और गर्मी से जुड़ी बीमारियों के कारण हुई. उत्तर प्रदेश और बिहार में लू के थपेड़ों ने इतने लोगों को बीमार किया कि अस्पताल भर गए. कई अस्पतालों में तो नए मरीजों के लिए जगह नहीं बची. एक डॉक्टर ने समाचार एजेंसी एपी से कहा, "गर्मी से इतने लोग मर रहे हैं कि हम एक मिनट भी आराम नहीं कर पा रहे हैं."
तस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP
क्योंकि क्रिकेट "इमोशन" है...
यह तस्वीर आईसीसी मेन्स वर्ल्ड कप के फाइनल की है. अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में मैच शुरू होने से पहले दर्शक भीतर घुस रहे हैं. पूरी शृंखला में एक भी मैच ना हारने वाली भारतीय टीम फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार गई. जैसे-जैसे हार स्पष्ट होती गई, ब्लू जर्सी से नहाए स्टेडियम में सन्नाटा फैलता गया.
तस्वीर: Ajit Solanki/AP
अग्निवीर
अपने बच्चे को थामकर चलता यह सैनिक अग्निवीर की पहली खेप का हिस्सा है. ये उसके ग्रैजुएशन समारोह की तस्वीर है. अग्निवीर योजना की घोषणा के बाद देश में कई जगहों पर युवाओं ने विरोध प्रदर्शन किया था. जानकारों ने भी इस योजना में कई समस्याएं गिनाईं. भारत में बेरोजगारी की स्थिति गंभीर होती जा रही है. कई आलोचक सरकारी नौकरियों में नियमित भर्ती ना होने को भी रेखांकित करते हैं.
तस्वीर: Aijaz Rahi/AP
संगम स्नान
यह तस्वीर प्रयागराज के माघ मेला की है. मौनी अमावस्या के दिन हिंदू श्रद्धालुओं का हुजूम संगम में डुबकी लगा रहा है. प्रयागराज में गंगा, यमुना और विलुप्त मानी जाने वाली सरस्वती नदी का संगम होता है, जो हिंदू आस्था में काफी अहमियत रखता है. प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) भारत के सबसे लोकप्रिय धार्मिक पर्यटन स्थलों में है.
तस्वीर: Satya Prakash/AP
सबको नहीं मिलता नल का सुख
घर में लगा नल, नल से बहता पानी...चौबीसों घंटे, 365 दिन. अगर आपको ये सहूलियत नसीब है, तो शुक्र मनाइए. भारत में कई इलाके हैं, जहां एक घड़ा पानी के लिए लड़कियों-महिलाओं को कई-कई मील का फेरा लगाना पड़ता है. जैसे, महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले का ये तेलमवाडी गांव, जहां महिलाएं कुएं से पानी खींच रही हैं. गौर से देखिए, कुछ एक बच्चों के अलावा सभी महिलाएं ही हैं.
तस्वीर: Dar Yasin/AP
बड़ी महंगी होती जा रही हैं शादियां
यह तस्वीर कश्मीर में हुए एक सामूहिक विवाह की है, जहां कई मुसलमान जोड़ों ने शादी की. भारत में सामूहिक विवाह का प्रचलन बहुत नया नहीं है. सामाजिक संगठन आमतौर पर कमजोर आर्थिक परिवारों की मदद के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित करते हैं. भारत में शादी एक इंडस्ट्री बन चुकी है. महंगा आयोजन, दावतें और ऊपर से अब भी जारी दहेज की कुरीति, इन सबका खर्च उठाना कई लोगों के लिए बड़ा मुश्किल होता है.