कोर्ट: महिला को मां और सास के घर में रहने का अधिकार
आमिर अंसारी
३१ मई २०२२
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिला को मां और सास के घर पर रहने का अधिकार है और कोर्ट महिला को सिर्फ इसलिए घर से बाहर निकालने की इजाजत नहीं देगा क्योंकि वह अन्य सदस्यों को पसंद नहीं है.
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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की वैकेशन बेंच ने कहा, "यह कोर्ट महिला को घर से बाहर करने की इजाजत नहीं दे सकता क्योंकि उसको आप पसंद नहीं करते हैं. महिला को घर से बाहर करने का यह रवैया जिसमें वैवाहिक मुद्दे के कारण परिवार के बीच तकरार होता और परिवार टूट जाता है यह स्वीकार्य नहीं है."
हालांकि कोर्ट ने कहा कि अगर महिला पर ससुराल में बड़ों से बदसलूकी का आरोप लगता है तो कोर्ट इस पर नियम लागू कर सकता है.
दरअसल यह मामला एक महिला और उसके पति द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में आया जहां हाईकोर्ट ने महिला और उसके पति को ससुर के फ्लैट को खाली करने का आदेश दिया था. ससुर ने ट्राइब्यूनल में मैंनेटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजंस एक्ट के तहत फ्लैट में विशेष निवास का अधिकार मांगा था.
ट्राइब्यूनल ने महिला और उसके पति को फ्लैट खाली करने का आदेश दिया था और हर महीने सास-ससुर को 25 हजार रुपये भरण पोषण के तौर पर देने को कहा था. महिला ने ट्राइब्यूनल के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
हाईकोर्ट ने बुजुर्ग माता-पिता के बेटे को अपनी पत्नी और दो बच्चे के लिए वैकल्पिक रहने के इंतजाम करने के आदेश दिए थे लेकिन भरण पोषण के आदेश को वापस ले लिया था. महिला ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
भारत में 82 प्रतिशत महिलाएं सेक्स के लिए पति को कह सकती हैं ना
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) में एक नया सवाल जोड़ा गया - क्या पत्नी पति को सेक्स के लिए ना कह सकती है? जवाबों से निकले आंकड़े भारत में पति-पत्नी के बीच संबंधों को लेकर एक बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं.
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न कहने का अधिकार
82 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि अगर उनका मन नहीं है वो अपने पति के साथ सेक्स करने से मना कर सकती हैं. उनके सामने मना करने के तीन कारण रखे गए थे - पति को कोई यौन रोग हो, उसके किसी दूसरी महिला के साथ शारीरिक संबंध हों या पत्नी उस समय थकी हुई हो या उसका मूड न हो.
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गोवा में सबसे अच्छी स्थिति
यह स्थिति सभी राज्यों में एक जैसी नहीं है. हर जगह अलग अलग आंकड़े निकल कर आए हैं. गोवा इस मामले में सबसे आगे है, जहां 92 प्रतिशत महिलाएं न कह सकती हैं. 63 प्रतिशत के साथ सबसे निचले पायदान पर है अरुणाचल प्रदेश.
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पुरुष क्या मानते हैं
राष्ट्रीय स्तर पर औसतन 66 प्रतिशत पुरुष मानते हैं कि इनमें से किसी कारण से पत्नी सेक्स के लिए मना कर सकती है. 19 प्रतिशत पुरुषों को लगता है कि पत्नी के मना करने पर पति को नाराज होने का और उसे डांटने-फटकारने का अधिकार है.
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पत्नी के साथ हिंसा
इसके बावजूद कई लोग अभी भी मानते हैं कि कुछ कारणों से पति का पत्नी को मारना सही है. 44 प्रतिशत पुरुष और 45 प्रतिशत महिलाएं ऐसा मानती हैं. उन्होंने इसे सात स्थितियों में सही पाया.
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पितृसत्ता
ये सात स्थितियां पितृसत्तात्मक समाज की सबसे रूढ़िवादी निशानियों में से हैं. इनमें शामिल हैं - पत्नी पति को बिना बताए बाहर जाती है, घर या बच्चों को नजरअंदाज करती है, पति से बहस करती है, उसके साथ सेक्स करने से मना करती है, खाना ठीक से नहीं बनाती है, पति उस पर बेवफाई का शक करता है या वो अपने सास-ससुर के प्रति निरादर दिखाती है.
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बढ़ती समस्या
पति द्वारा पत्नी को पीटने को सही ठहराने की प्रवृत्ति महिलाओं में घटी है लेकिन पुरुषों में बढ़ी है. एनएफएचएस के पिछले दौर में (2015-16) ऐसी महिलाओं का प्रतिशत 52 था जो अब गिर कर 45 पर आ गया है, जबकि पुरुषों का प्रतिशत 42 था जो बढ़ कर 44 पर आ गया है.
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इसी हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर दोबारा सुनवाई होगी और सुनवाई के दौरान महिला के सास-ससुर वीडियो लिंक के जरिए शामिल होंगे.
एक हफ्ते पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के हितों की रक्षा करने को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था. कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत साझे घर में रहने के अधिकार की व्यापक व्याख्या की थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला, चाहे वो मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास, बहू या घरेलू संबंधों में हो उसे साझे घर में रहने का अधिकार है.
घरेलू हिंसा पर क्या कहती हैं भारतीय महिलाएं
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डेटा से पता चलता है घरेलू हिंसा के बारे में महिलाओं की क्या सोच है और वे इसे कितना जायज मानती हैं.
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घरेलू हिंसा जायज?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के ताजा सर्वे के मुताबिक तीन राज्यों तेलंगाना (84 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (84 प्रतिशत) और कर्नाटक में (77 प्रतिशत) से अधिक महिलाओं ने पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों की पिटाई को सही ठहराया.
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महिलाओं और पुरुषों की राय
एनएफएचएस ने 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुरुषों और महिलाओं की घरेलू हिंसा पर राय ली. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की 83 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने खुद माना है कि पति द्वारा उनके खिलाफ हिंसा सही है. कर्नाटक की 80 प्रतिशत महिलाओं का ऐसा ही मानना है.
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पिटाई पर पुरुषों का पक्ष
घरेलू हिंसा पर इसी सवाल के जवाब में सबसे अधिक कर्नाटक में (81.9 प्रतिशत) पुरुषों ने इसको जायज माना है. पत्नियों की पिटाई को सबसे कम (14.2 प्रतिशत) हिमाचल प्रदेश के पुरुषों ने जायज माना.
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हिमाचल में सबसे कम सहमति
पतियों द्वारा पिटाई को जायज ठहराने वाली महिलाओं की सबसे कम संख्या हिमाचल प्रदेश में 14.8 प्रतिशत थी.
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क्या था सवाल?
इस सर्वे में सवाल किया गया था: "आपकी राय में पति का अपनी पत्नी को पीटना या मारना जायज है?" इस सर्वे में कई तरह की परिस्थितियों को भी शामिल किया गया था.
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घरेलू हिंसा का आम कारण
सर्वे के मुताबिक घरेलू हिंसा को सही बताने वाले सबसे आम कारणों का हवाला दिया गया. सबसे आम कारण जो सामने आए वे थे ससुराल वालों का अनादर करना और घर व बच्चों की उपेक्षा करना.
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घरेलू हिंसा एक वैश्विक समस्या
भारत ही नहीं कई विकसित देशों में भी घरेलू हिंसा आम समस्या है. अमेरिका और यूरोपीय देशों में भी महिलाएं इसकी शिकार होती हैं. हर साल 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है. इस दिन को दुनिया भर में महिला हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है.
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हिंसा की शिकार होतीं महिलाएं
लैंगिक बराबरी के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन वीमेन के मुताबिक दुनिया भर में हर तीसरी महिला के साथ शारीरिक या यौन हिंसा हुई है.