न्यूजक्लिक के पत्रकारों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई ऐसी पहली घटना नहीं है. बीते कुछ सालों में कई मीडिया संस्थानों और दर्जनों पत्रकारों के खिलाफ पुलिस, ईडी और इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों ने कार्रवाई की है.
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मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि मंगलवार तीन अक्टूबर को वेबसाइट न्यूजक्लिक से जुड़े लोगों के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने जो कार्रवाई की, उसके तहत कम से कम 35 पत्रकारों से घंटों पूछताछ की गई और उनके उपकरण जब्त कर लिए गए.
इनमें प्रबीर पुरकायस्थ, उर्मिलेश, परंजॉय गुहा ठाकुरता, भाषा सिंह, अभिसार शर्मा, ऑनिंद्यो चक्रवर्ती जैसे वरिष्ठ पत्रकार तो हैं ही, कॉपी डेस्क कर काम करने वाले कई युवा पत्रकार भी शामिल हैं. न्यूजक्लिक के साथ तीन साल से कॉपी एडिटर का काम कर रहीं एक ऐसी ही पत्रकार ने वेबसाइट 'द वायर' को बताया कि पुलिस की टीम सुबह छह बजे उनके घर पर आ गई.
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मालिकों से लेकर फ्रीलान्स पत्रकार निशाने पर
तीन घंटों तक पुलिस उनके घर की तलाशी लेती रही. उनके मुताबिक पुलिस वालों के पास एक कागज था जिसमें लिखे सवाल वो पूछे जा रहे थे. जाते जाते वो इस कॉपी एडिटर के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और पासपोर्ट भी ले गए. दिन के अंत तक पुलिस ने कम से कम 46 लोगों से पूछताछ कर ली थी और दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया था.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.
इनमें न्यूजक्लिक के संस्थापक और प्रमुख संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और कंपनी के एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती शामिल थे. इससे पहले भी कई मीडिया संस्थानों के खिलाफ पुलिस, इनकम टैक्स, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी एजेंसियों ने छापे मारे हैं, लेकिन यह शायद पहली बार है जब संस्थान के मालिक या मालिकों के अलावा सभी कर्मचारियों, पत्रकारों और यहां तक कि संस्थान के लिए फ्रीलान्स करने वालों को भी निशाना बनाया गया है.
इस कार्रवाई की देश के कई मीडिया संगठनों ने निंदा की है, लेकिन इसके साथ ही बीते कुछ सालों में अलग-अलग सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई का सामना करने वाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों की सूची और लंबी हो गई है.
चार सितंबर को एडिटर्स गिल्ड की एक समिति की मणिपुर के स्थानीय मीडिया की भूमिका पर आई एक रिपोर्ट के बाद मणिपुर सरकार ने रिपोर्ट बनाने वाले पत्रकारों और गिल्ड की अध्यक्ष के खिलाफ पुलिस केस दायर कर दिया था.
पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती कार्रवाई
उसके पहले फरवरी 2023 में इनकम टैक्स ने नई दिल्ली और मुंबई में बीबीसी के दफ्तर की तलाशी ली थी और कुछ कर्मचारियों के मोबाइल फोन के डाटा की एक कॉपी ले ली थी.
पेगासस जासूसी कांड पर सिद्धार्थ वरदराजन से बातचीत
06:07
फरवरी और जून, 2021 में इनकम टैक्स विभाग ने ऐसी ही कार्रवाई वेबसाइट 'न्यूजलॉन्ड्री' के खिलाफ की थी. जुलाई, 2021 में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में दैनिक भास्कर मीडिया समूह से जुड़े 32 ठिकानों पर इनकम टैक्स विभाग ने तलाशी ली थी. कश्मीर में तो अक्टूबर 2020 में ग्रेटर कश्मीर अखबार के दफ्तर पर एनआईए का छापा पड़ा था.
कश्मीर में ही मार्च 2022 में 'द कश्मीरवाला' अखबार के प्रमुख संपादक फहद शाह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इसी तरह एनडीटीवी, क्विंट, भारत समाचार, कश्मीर टाइम्स, द न्यूज मिनट जैसे संस्थानों के खिलाफ इनकम टैक्स विभाग, ईडी और पुलिस की कार्रवाई हो चुकी है.
दिसंबर, 2022 से जनवरी, 2023 के बीच अडानी समूह ने एनडीटीवी को खरीद लिया था. संस्थानों के अलावा स्वतंत्र रूप से काम करने वाले पत्रकारों के खिलाफ भी कार्रवाई होती रही है.
इनमें सिद्दीक कप्पन, मोहम्मद जुबैर, दिवंगत पत्रकार विनोद दुआ, राणा अय्यूब, इरफान मेहराज, किशोरचंद्र वानखेम, पवन जायसवाल, पाओजेल चाओबा जैसे पत्रकार शामिल हैं.
प्रेस फ्रीडम : भारत की रैंकिंग और लुढ़की, अब 161वें स्थान पर
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने साल 2023 की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स रिपोर्ट जारी कर दी है. इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग और गिर गई है. जानिए, प्रेस फ्रीडम के मामले में कहां खड़ा है भारत.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
भारत 161वें पायदान पर लुढ़का
वैश्विक मीडिया पर नजर रखने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक भारत की रैंकिंग और गिरी है. पिछले साल जहां भारत इस सूचकांक में 150वें स्थान पर था वहीं वह 2023 में 11 पायदान लुढ़कर 161वें स्थान पर जा पहुंचा है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भारत में प्रेस की स्थिति क्यों हो रही खराब
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट 180 देशों और क्षेत्रों में पत्रकारिता के लिए अनुकूल वातावरण का मूल्यांकन करती है. यह रिपोर्ट विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जारी की जाती है. इस रिपोर्ट में भारत के बारे में लिखा गया, "भारत में प्रधानमंत्री मोदी के करीबी उद्योगपति द्वारा मीडिया संस्थानों के अधिग्रहण ने बहुलवाद को खतरे में डाल दिया है."
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
पत्रकारों के लिए "स्थिति बेहद गंभीर"
रैंकिंग पांच व्यापक श्रेणियों में देश के प्रदर्शन पर आधारित है; जिनमें राजनीतिक संदर्भ, कानूनी ढांचा, आर्थिक संदर्भ, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ और पत्रकारों की सुरक्षा शामिल हैं. इन पांचों श्रेणियों में भारत में पत्रकारों की सुरक्षा श्रेणी (172) में सबसे कम अंक मिले है. आरएसएफ को लगता है कि भारत उन 31 देशों में शामिल हैं जहां पत्रकारों के लिए स्थिति "बहुत गंभीर" है.
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भारत से बेहतर पाकिस्तान और अफगानिस्तान
इस रैंकिंग में भारत से बेहतर स्थिति में पाकिस्तान (150वें) और अफगानिस्तान (152वें) स्थान पर है. हालांकि इन दोनों देशों में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर संकेत दिखाये गये हैं.
तस्वीर: Hussein Malla/AP Photo/picture alliance
लगातार गिर रही है भारत की रैंकिंग
भारत पिछले कुछ सालों में प्रेस फ्रीडम के मामले में नीचे जाता रहा है, इस साल उसकी रैंकिंग और गिरी है और वह 161वें स्थान पर जा पहुंचा है. पिछले साल फरवरी में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के विचारों और देश की रैंकिंग से सहमत नहीं है क्योंकि यह एक "विदेशी" एनजीओ द्वारा प्रकाशित किया गया है.
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सबसे नीचे उत्तर कोरिया
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत से नीचे बांग्लादेश (163), तुर्की (165), सऊदी अरब (170), ईरान (177), चीन (179) और उत्तर कोरिया 180वें स्थान पर है.
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शीर्ष के तीन देश
प्रेस फ्रीडम के मामले में नॉर्वे, आयरलैंड और डेनमार्क इस साल शीर्ष पर हैं. लगातार सातवें साल नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है.
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अमेरिका में प्रेस फ्रीडम का क्या हाल
अमेरिका प्रेस फ्रीडम सूचकांक में तीन पायदान नीचे खिसकर 45वें सथान पर जा पहुंचा है. अमेरिका में 2022 और 2023 में हुई दो पत्रकारों की हत्या का असर रैंकिंग पर पड़ा है. इंडेक्स के लिए प्रश्नावली का उत्तर देने वालों ने अमेरिका में पत्रकारों के लिए माहौल के बारे में नकारात्मक जवाब दिये थे.
आरएसएफ की 2023 की रिपोर्ट डिजिटल इकोसिस्टम पर फेक सामग्री उद्योग के प्रेस की स्वतंत्रता पर पड़ने वाले प्रभावों पर रोशनी डालती है. इंडेक्स के लिए जिन देशों का मूल्यांकन किया गया उनमें से दो-तिहाई यानी 118 देशों में लोगों ने फेक न्यूज के बारे में कहा कि नेता अक्सर या बड़े पैमाने पर गलत सूचना या प्रोपगैंडा अभियानों में व्यवस्थित रूप से शामिल थे.
तस्वीर: M. Gann/picture alliance/blickwinkel/McPHOTO
रूस का प्रोपगैंडा युद्ध
आरएसएफ ने रूस के बारे में लिखा है कि वह बढ़ चढ़ कर प्रोपगैंडा फैला रहा है. 2023 में रूस की रैंकिंग 9 स्थान गिरकर 164 पर पहुंच गई. आरएसएफ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "मॉस्को ने दक्षिणी यूक्रेन में कब्जे वाले क्षेत्रों में क्रेमलिन के संदेश को फैलाने के लिए समर्पित एक नया मीडिया शस्त्रागार खड़ा कर दिया है.