भारत में क्या ‘मुस्लिम विरोधी’ हमले आम होते जा रहे हैं?
धारवी वैद
१४ दिसम्बर २०२१
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि धार्मिक घृणा अपराध से जुड़ी 'कम उग्रता वाली सामुदायिक हिंसा' पूरे भारत में फैल रही है.
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कट्टरपंथी हिंदू समूहों की ओर से बर्बरतापूर्ण धमकियों की वजह से दर्जनों शो रद्द किए जाने के बाद भारत के मुस्लिम कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी ने कॉमेडी छोड़ने का संकेत दिया. सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालते हुए उन्होंने कहा- 'नफरत जीत गई, कलाकार हार गया.'
गत 1 जनवरी को जैसे ही उनका शो खत्म हुआ, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर उन्होंने एक महीना जेल में बिताया. उन पर कथित तौर से अपने चुटकुलों में हिंदू धार्मिक भावनाओं का "अपमान" करने का आरोप थे, हालांकि वे उस शाम अपने उस शो के सेट में नहीं थे. तब से इस स्टैंड-अप कॉमेडियन को कुछ कट्टरपंथी हिंदू समूह लगातार निशाना बना रहे हैं.
तस्वीरेंः हर धर्म में है सिर ढकने की परंपरा
हर धर्म में है सिर ढंकने की परंपरा
दुनिया में अनेक धर्म हैं. इन धर्मों के अनुयायी अपने विश्वास और धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए सिर को कई तरह से ढंकते हैं. जानिए कैसे-कैसे ढंका जाता है सिर.
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दस्तार
भारत के पंजाब क्षेत्र में सिक्ख परिवारों में दस्तार पहनने का चलन है. यह पगड़ी के अंतर्गत आता है. भारत के पंजाब क्षेत्र में 15वीं शताब्दी से दस्तार पहनना शुरू हुआ. इसे सिक्ख पुरुष पहनते हैं, खासकर नारंगी रंग लोगों को बहुत भाता है. सिक्ख अपने सिर के बालों को नहीं कटवाते. और रोजाना अपने बाल झाड़ कर इसमें बांध लेते हैं.
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टागलमस्ट
कुछ नकाब तो कुछ पगड़ी की तरह नजर आने वाला "टागलमस्ट" एक तरह का कॉटन स्कार्फ है. 15 मीटर लंबे इस टागलमस्ट को पश्चिमी अफ्रीका में पुरुष पहनते हैं. यह सिर से होते हुए चेहरे पर नाक तक के हिस्से को ढाक देता है. रेगिस्तान में धूल के थपेड़ों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. सिर पर पहने जाने वाले इस कपड़े को केवल वयस्क पुरुष ही पहनते हैं. नीले रंग का टागलमस्ट चलन में रहता है.
पश्चिमी देशों में हिजाब के मसले पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है. सवाल है कि हिजाब को धर्म से जोड़ा जाए या इसे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार का हिस्सा माना जाए. सिर ढकने के लिए काफी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. तस्वीर में नजर आ रही तुर्की की महिला ने हिजाब पहना हुआ है. वहीं अरब मुल्कों में इसे अलग ढंग से पहना जाता है.
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चादर
अर्धगोलाकार आकार की यह चादर सामने से खुली होता है. इसमें बांह के लिए जगह और बटन जैसी कोई चीज नहीं होती. यह ऊपर से नीचे तक सब जगह से बंद रहती है और सिर्फ महिला का चेहरा दिखता है. फारसी में इसे टेंट कहते हैं. यह महिलाओं के रोजाना के कपड़ों का हिस्सा है. इसे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, सीरिया आदि देशों में महिलाएं पहनती हैं.
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माइटर
रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी की औपचारिक ड्रेस का हिस्सा होती है माइटर. 11 शताब्दी के दौरान, दोनों सिरे से उठा हुआ माइटर काफी लंबा होता था. इसके दोनों छोर एक रिबन के जरिए जुड़े होते थे और बीच का हिस्सा ऊंचा न होकर एकदम सपाट होता था. दोनों उठे हुए हिस्से बाइबिल के पुराने और नए टेस्टामेंट का संकेत देते हैं.
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नन का पर्दा
अपने धार्मिक पहनावे को पूरा करने के लिए नन अमूमन सिर पर एक विशिष्ट पर्दे का इस्तेमाल करती हैं, जिसे हेविट कहा जाता है. ये हेविट अमूमन सफेद होते हैं लेकिन कुछ नन कालें भी पहनती हैं. ये हेबिट अलग-अलग साइज और आकार के मिल जाते हैं. कुछ बड़े होते हैं और नन का सिर ढक लेते हैं वहीं कुछ का इस्तेमाल पिन के साथ भी किया जाता है.
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हैट्स और बोनट्स (टोपी)
ईसाई धर्म के तहत आने वाला आमिश समूह बेहद ही रुढ़िवादी और परंपरावादी माना जाता है.इनकी जड़े स्विट्जरलैंड और जर्मनी के दक्षिणी हिस्से से जुड़ी मानी जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक अत्याचार से बचने के लिए 18वीं शताब्दी के शुरुआती काल में आमिश समूह अमेरिका चला गया. इस समुदाय की महिलाएं सिर पर जो टोपी पहनती हैं जो बोनट्स कहा जाता है. और, पुरुषों की टोपी हैट्स कही जाती है.
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बिरेट
13वीं शताब्दी के दौरान नीदरलैंड्स, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिक पादरी बिरेट को सिर पर धारण करते थे. इस के चार कोने होते हैं. लेकिन कई देशों में सिर्फ तीन कोनों वाला बिरेट इस्तेमाल में लाया जाता था. 19 शताब्दी तक बिरेट को इग्लैंड और अन्य इलाकों में महिला बैरिस्टरों के पहनने लायक समझा जाने लगा.
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शट्राइमल
वेलवेट की बनी इस टोपी को यहूदी समाज के लोग पहनते थे. इसे शट्राइमल कहा जाता है. शादीशुदा पुरुष छुट्टी के दिन या त्योहारों पर इस तरह की टोपी को पहनते हैं. आकार में बढ़ी यह शट्राइमल आम लोगों की आंखों से बच नहीं पाती. दक्षिणपू्र्वी यूरोप में रहने वाले हेसिडिक समुदाय ने इस परंपरा को शुरू किया था. लेकिन होलोकॉस्ट के बाद यूरोप की यह परंपरा खत्म हो गई. (क्लाउस क्रैमेर/एए)
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यारमुल्के या किप्पा
यूरोप में रहने वाले यहूदी समुदाय ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में यारमुल्के या किप्पा पहनना शुरू किया. टोपी की तरह दिखने वाला यह किप्पा जल्द ही इनका धार्मिक प्रतीक बन गया. यहूदियों से सिर ढकने की उम्मीद की जाती थी लेकिन कपड़े को लेकर कोई अनिवार्यता नहीं थी. यहूदी धार्मिक कानूनों (हलाखा) के तहत पुरुषों और लड़कों के लिए प्रार्थना के वक्त और धार्मिक स्थलों में सिर ढकना अनिवार्य था.
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शाइटल
अति रुढ़िवादी माना जाने वाला हेसिडिक यहूदी समुदाय विवाहित महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाता है. न्यूयॉर्क में रह रहे इस समुदाय की महिलाओं के लिए बाल मुंडवा कर विग पहनना अनिवार्य है. जिस विग को ये महिलाएं पहनती हैं उसे शाइटल कहा जाता है. साल 2004 में शाइटल पर एक विवाद भी हुआ था. ऐसा कहा गया था जिन बालों का शाइटल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उसे एक हिंदू मंदिर से खरीदा गया था.
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धार्मिक घृणा की एक अन्य घटना में, दक्षिणपंथी बजरंग दल समूह ने अक्टूबर में भोपाल में वेब श्रृंखला 'आश्रम' के सेट पर हमला किया. समूह ने दावा किया कि श्रृंखला का शीर्षक ‘हिंदू धर्म पर हमला' था. हमलावरों ने कथित तौर पर फिल्म निर्माता प्रकाश झा पर स्याही फेंक दी और चालक दल के एक अन्य सदस्य के साथ मारपीट की
अगस्त महीने में, उत्तर प्रदेश में एक 45 वर्षीय मुस्लिम रिक्शा चालक को कट्टरपंथी हिंदू भीड़ द्वारा पीटे जाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. हिंसक भीड़ ने उस व्यक्ति को घेर लिया और उसे ‘जय श्री राम' का नारा लगाने पर मजबूर किया. इस दौरान उसकी छोटी बेटी अपने पिता की सुरक्षा की गुहार लगा रही थी.
बॉर्न ए मुस्लिम: सम ट्रुथ अबाउट इस्लाम इन इंडिया की लेखिका गजाला वहाब चेतावनी देती हैं कि ‘कम उग्रता वाली सांप्रदायिक हिंसा' की घटनाएं भारत में बड़े पैमाने पर होने लगी हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं, "यह अधिक स्थानीय होता जा रहा है. यह सभी नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन पर भारी पड़ गया है लेकिन इसका खामियाजा मुसलमानों को भुगतना पड़ रहा है. मैं ऐसे लोगों को भी जानती हूं जो मुसलमान नहीं हैं लेकिन चिंतित हैं. इस तरह का व्यापक भय अभूतपूर्व है."
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सत्तारूढ़ दल के अधीन धार्मिक ‘अन्याय' बढ़ रहा है
दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर तनवीर एजाज कहते हैं कि कम उग्रता वाली सांप्रदायिक हिंसा की जड़ें साल 1947 के भारत विभाजन के दौर में देखी जा सकती हैं. एजाज कहते हैं, "भारत में, यह कम-उग्रता वाली सांप्रदायिक हिंसा विभाजन के बाद से ही मौजूद है. भारत में मुसलमान विभाजन के अपराधबोध में जी रहे हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था क्योंकि जो मुसलमान भारत में रहे, उन्होंने कभी विभाजन के लिए नहीं कहा. शीर्ष स्तर पर केवल कुछ राजनेताओं ने ही इन पर बातचीत की."
तस्वीरेंः किस धर्म में क्या खाने की पाबंदी
किस धर्म में क्या खाने पर है पाबंदी
हर धर्म में कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता है जिसे खाने की सख्त मनाही होती है, भले ही दूसरे धर्म के लोग उसे चाव से खाते हों. इस पाबंदी के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार अब तक नहीं मिला है. देखिए, किस धर्म में क्या हराम है.
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अंडा
जैन धर्म के लोग मांस-मछली के साथ अंडा खाने से भी परहेज करते हैं. वेगन भी अंडा नहीं खाते.
तस्वीर: ComZeal - Fotolia
गाय
हिंदू धर्म में गाय का मांस खाने को बुरा माना जाता है.
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सूअर
इस्लाम में सूअर का मांस खाने को हराम कहा गया है.
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चमगादड़
कुछ यहूदी तबकों में चमगादड़ खाने पर सख्त पाबंदी है.
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भालू
यहूदी धर्म के लोग भालू का मांस खाना अच्छा नहीं मानते.
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बिल्ली
इस्लाम और यहूदी धर्म के कारण पश्चिमी जगत के बड़े हिस्सों में बिल्ली का मांस नहीं खाया जाता.
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मछली
सोमाली लोगों में मछली खाने को बहुत बुरा माना जाता है.
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एजाज के मुताबिक, भारत में धार्मिकता का एक हिस्सा धार्मिक समुदायों से इतर है. वह कहते हैं, "लेकिन हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के साथ ही यह प्रक्रिया तेज हो गई है."
उन्होंने कहा कि भारतीय प्रेस ने उजागर किया है कि ‘लंबे, कम तीव्रता वाले संघर्ष' ‘नागरिक समाज के चेहरे पर काफी दिखाई देते हैं.'
एजाज कहते हैं, "स्वयं की पूरी परिभाषा बड़े पैमाने पर जातीय और धार्मिक आधार पर हो रही है और फिर यह ‘हम' बनाम ‘उन' का सवाल है. यहां सांस्कृतिक/धार्मिक टकराव है...धार्मिक आक्रामकता है."
‘दंड से मुक्ति' के लिए धर्म का उपयोग
हाल के वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा की ज्यादातर घटनाओं को बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों ने अंजाम दिया है. वहाब के मुताबिक, पंजीकृत संगठनों के भीतर कई ‘छोटे संगठन हैं' जिन्हें पुलिस छूना नहीं चाहती. वह कहती हैं, "दण्ड से मुक्ति की एक डिग्री है. क्योंकि वे धर्म की आड़ में काम कर रहे हैं. ये समूह बहुत ज्यादा उत्साहित होते जा रहे हैं."
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एजाज कहते हैं कि भारतीय संस्थानों के भीतर मजबूत जवाबदेही होनी चाहिए. वह कहते हैं, "मैं देख रहा हूं कि राज्य की संस्थाएं काफी कमजोर होती जा रही हैं, खासकर पुलिस और कानून-व्यवस्था की संस्थाएं. उन्हें अपना काम करना चाहिए."
वहाब कहती हैं कि धार्मिक घृणा की बढ़ती घटनाओं के खतरनाक परिणाम होंगे और यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह भारतीय समाज में दरारों को और गहरा कर देगा. वह कहती हैं, "अगर ऐसा ही कुछ होता रहा तो समुदायों के बीच दूरियां और गलतफहमियां बढ़ती ही जाएंगी. हम मूल रूप से एक बहुत ही खंडित समाज का निर्माण कर रहे हैं और इन विभाजनों को पाटने में लंबा समय लगेगा."
हर धर्म में पाई जाती हैं कुछ क्रूर प्रथाएं
धर्म लोगों को साथ लाने के लिए बने थे. लेकिन हर धर्म में ऐसी प्रथाएं हैं जो उसका पालन करने वाले लोगों के प्रति ही अमानवीय हैं. हर परंपरा की अपनी व्याख्याएं हैं जिनके आधार पर विवाद होते हैं.
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ट्रिपल तलाक
इस्लाम में कोई पुरुष यदि अपनी पत्नी से अलग होना चाहे तो उसे तीन बार तलाक बोलकर अलग हो सकता है. तलाक शब्द कब बोला जाएगा, और तलाक कब माना जाएगा, इसे लेकर अलग अलग विचार हैं.
तस्वीर: DW
बाल विवाह
दक्षिण एशिया और अफ्रीका में कई धर्मों में यह प्रथा प्रचलित है. इसके तहत छोटे छोटे बच्चों की शादी कर दी जाती है. भारत में आज भी बहुतायत में बाल विवाह होते हैं.
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खतना
इस्लाम और यहूदी धर्म में यह प्रथा प्रचलित है. बच्चों के लिंग के अगले हिस्से की त्वचा को काट दिया जाता है. प्राचीन मिस्र की गुफाओं में बने चित्रों में भी खतना दिखाया गया है. अफ्रीका के कुछ ईसाई चर्चों में भी खतना प्रचलित है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट है कि दुनिया के 30 फीसदी पुरुषों का खतना हुआ है जिनमें से 68 फीसदी मुसलमान हैं.
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महिलाओं का खतना
खतने की परंपरा कई धर्मों की महिलाओं में भी प्रचलित है. मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों की महिलाओं में खतना काफी होता है. इसमें महिलाओं की योनी के अग्रभाग को काट दिया जाता है.
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दोखमेनाशीनी
दखमा या टावर ऑफ साइलेंस पारसियों के कब्रिस्तान को कहते हैं. पारंपरिक रूप से पारसी अपने लोगों के शवों को जलाते या दफनाते नहीं हैं बल्कि दखमा में फेंक देते हैं जहां उन्हें चील-कव्वे खा जाते हैं. दरअसल, पारसी पृथ्वी, जल और अग्नि को बहुत पवित्र मानते हैं इसलिए मृत देह को इनके हवाले नहीं करते बल्कि आकाश के हवाले कर दिया जाता है.
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केशलोंच
शरीर के बालों को हाथों से उखाड़ना केशलोंच कहलाता है. यह जैन धर्म की एक प्रक्रिया है. दिगंबर मुनि को हर 2 से 4 महीने में केशलोंच करना होता है. माना जाता है कि बालों में छोटे छोटे जीव पैदा हो जाते हैं और इंसान के हाथों मारे जाते हैं. यह हिंसा है जिससे बचने के लिए केशलोंच किया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
सती
भारत में किसी महिला के पति के मर जाने पर उसे लाश के साथ जिंदा जल जाना होता था. अब काफी समय से सती प्रथा चलन में नहीं है लेकिन इसके समर्थक आज भी हैं. 1989 में राजस्थान के सीकर जिले में आखिरी बार सती का मामला सामने आया था.