हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक देश में कोरोना वायरस महामारी के दौरान 20,000 लोगों को बलपूर्वक मकानों से बाहर कर दिया गया.
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कोरोना वायरस महामारी के दौरान राज्य प्रशासन की तरफ से बलपूर्वक कम से कम 20,000 लोगों को घरों से निकाला गया. गैर लाभकारी संगठन हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क (एचएलआरएन) ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का दावा किया है. रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौरान 16 मार्च और 31 जुलाई 2020 के बीच देश में बलपूर्वक घर खाली कराने की घटनाएं दर्ज की गई. एचएलआरएन की एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर शिवानी चौधरी डीडब्ल्यू से कहती हैं यह संख्या मीडिया रिपोर्ट्स और संपर्कों से इकट्ठा की गई हैं. वह कहती हैं, "लेकिन असलियत शायद इससे भी गंभीर होगी, क्योंकि देश भर के सभी आंकड़े हमारे पास नहीं है. अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक आवास अधिकार एक मानव अधिकार है. भारत के सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्ट ने भी यह माना है और दोहराया है, लेकिन फिर भी कानून का उल्लंघन करते हुए, सरकार लोगों का घर जबरदस्ती तोड़ती है और उन्हें बेदखल करती है."
एचएलआरएन का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों और परिवार कल्याण मंत्रालय के 'घर पर रहने' की सलाह के बावजूद राज्य की एजेंसियों ने कम आय वाले लोगों के घर को मनमाने ढंग से ढहा दिया. शिवानी अफसोस जताकर कहती हैं कि बेदखल करने वालों पर कभी कोई कार्यवाही नहीं होती और ना ही जबरन बेदखली करने वालों को कोई सजा होती है. शिवानी के मुताबिक, "कोरोना महामारी के समय जब सभी को घर में रहने के लिए कहा गया, ऐसे समय में लोगों का घर तोड़ना और उन्हें बेघर करना सिर्फ गैर कानूनी ही नहीं है बल्कि बहुत ही क्रूर और दुख की बात है."
एचएलआरएन के मुताबिक महामारी के समय में इस तरह से प्रशासन और एजेंसियों द्वारा घर खाली कराना पीड़ितों में कोरोना के जोखिम को बढ़ाता है. शिवानी कहती हैं, "महामारी के कारण देशभर में गंभीर आर्थिक संकट है और मजदूर खासकर बहुत मुश्किल झेल रहे हैं. इनमें से आवासहीन लोगों के लिए खास समस्याएं हैं. सरकार को पर्याप्त आवास सभी को देना चाहिए, तोड़फोड़ बंद करना चाहिए और रोजगार गारंटी कानून को शहरी और ग्रामीण इलाको में लागू करना चाहिए. शहर और गांव में लोगो के आवास और भूमि अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए."
महामारी के दौरान बलपूर्वक बेदखल किए गए लोग.तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain
संगठन ने लगातार होते बलपूर्वक घर खाली कराने और घर ढहाए जाने के मामले की निंदा करते हुए राज्यों से तत्काल प्रभाव से कार्रवाई को स्थगित करने की मांग की है. एचएलआरएन के मुताबिक जबरन घर खाली कराना मानवाधिकार का उल्लंघन है, साथ ही यह गरीबों के लगातार होने वाले व्यवस्थित बेदखली को भी दर्शाता है. संगठन का कहना है कि निरंतर घर ढहाने का कार्य और बेदखली सीधे तौर पर बेघर, भूमिहीनता, विस्थापन, गरीबी और आय में असमानता को बढ़ावा देता है. प्रभावित लोग मानवाधिकार उल्लंघन का सामना करने के अलावा उनके जीवन के स्तर में काफी गिरावट आती है. कोविड-19 महामारी ने पर्याप्त आवास को स्वास्थ्य, सुरक्षा और जीवन के प्रमुख निर्धारक के रूप में दोहराया है.
साथ ही रिपोर्ट में बीते तीन सालों का भी जिक्र है जिसमें कहा गया है कि देश में 5,68,000 लोगों को बलपूर्वक घर से बेदखल किया गया. शिवानी कहती हैं, "जबरन बेदखली से लोगों के कई मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है. लोगों के पास बहुत ही कम रास्ते हैं न्याय पाने के लिए. हमारी रिपोर्ट के मुताबिक 2018 और 2019 में, सिर्फ 29 प्रतिशत केस में लोगों को तोड़फोड़ के बाद पुनर्वास मिला, बाकि लोगों को अपने आप ही कोई रास्ता निकालना पड़ा. ज्यादातर लोग बेघर हो गए." रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में 1.49 करोड़ लोग बेदखली और विस्थापन के बीच रह रहे हैं.
रिपोर्ट में संभावित विस्थापन के कारण "बुनियादी ढांचा परियोजनाएं, वन संरक्षण, जल निकायों की बहाली, 'अतिक्रमणों को हटाना', कोर्ट का आदेश लागू कराना और पर्यटन विकास" बताए गए हैं.
देखिए कोरोना के कारण स्कूलों में क्या क्या हो रहा है
कोरोना वायरस ने सब कुछ बदल दिया. भारत जैसे कई देश अब तक संक्रमण की पहली लहर से ही जूझ रहे हैं तो कई जगह दूसरी लहर दस्तक दे रही है. ऐसे में दुनिया भर के स्कूलों में बच्चों को कैसे पढ़ाया जा रहा है देखिए.
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थाईलैंड: बॉक्स में क्लास
थाई राजधानी बैंकॉक के वाट ख्लोंग टेयो स्कूल में आने वाले लगभग 250 बच्चे इस तरह क्लास में बनाए गए बॉक्स में बैठकर पढ़ रहे हैं. क्लास के बाहर सिंक और साबुन भी है. सुबह स्कूल आने पर बच्चों का टेम्परेचर चेक होता है. इसका असर भी हो रहा है. जुलाई से इस स्कूल में कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है.
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न्यूजीलैंड: सबकी किस्मत कहां ऐसी
राजधानी वेलिंग्टन के ये स्टूडेंट खुश हैं कि फिर से स्कूल जा पा रहे हैं. लेकिन ऑकलैंड में रहने वाले स्कूली बच्चे इतने खुशकिस्मत नहीं हैं. तीन महीने से न्यूजीलैंड में कोरोना का कोई मामला नहीं देखा गया था. लेकिन 11 अगस्त को देश के सबसे बड़े शहर ऑकलैंड में चार नए मामले सामने आए. इसके बाद शहर प्रशासन ने स्कूल और अन्य गैर जरूरी प्रतिष्ठान बंद कर लोगों से घर पर ही रहने को कहा है.
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स्वीडन: कोई विशेष उपाय नहीं
स्वीडन में स्कूली बच्चों की अभी गर्मी की छुट्टियां ही चल रही हैं. लेकिन यह तस्वीर छुट्टियों से पहले की है, जो कोरोना महामारी को लेकर स्वीडन के अलग नजरिए को दिखाती है. पूरी दुनिया से उलट स्वीडन में सरकार ने कभी लोगों से मास्क पहनने को नहीं कहा. वहां व्यापारिक प्रतिष्ठान, बार, रेस्तरां और स्कूल, सभी खुले रहे.
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जर्मनी: फिर से स्कूल, लेकिन पर्याप्त दूरी
ये बच्चे जर्मनी में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के डॉर्टमुंड शहर के एक स्कूल के हैं. राज्य के सभी स्कूलों में बच्चों को मास्क पहनना जरूरी है. उन्हें क्लास में भी मास्क पहने रहना है. हालांकि देश के बाकी 15 राज्यों में क्लास में मास्क पहनना जरूरी नहीं है. यह कहना जल्दबाजी होगा कि इसका कितना असर हो रहा है. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में 12 अगस्त से स्कूल खुल गए.
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वेस्ट बैंक: पांच महीने बाद खुले स्कूल
येरुशलम से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित हेब्रोन में भी स्कूल खुल गए हैं. यहां भी बच्चों के लिए क्लास में मास्क पहनना जरूरी है, कुछ स्कूल तो बच्चों से ग्लव्स पहनने को भी कह रहे हैं. मास्क के बावजूद टीचर का उत्साह साफ दिख रहा है. फिलीस्तीनी इलाकों में मार्च में स्कूल बंद किए गए थे. सबसे ज्यादा कोरोना के मामले हेब्रोन में ही सामने आए थे.
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ट्यूनीशिया: मई से मास्क में
ट्यूनिशिया की राजधानी ट्यूनिस के स्कूलों में मई से ही बच्चों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया गया था. आने वाले हफ्तों में वहां फिर स्कूल खुलेंगे. मार्च में कोरोना के कारण ट्यूनिशिया में स्कूलों को कई हफ्तों तक बंद रखा गया. तब माता-पिता को ही अपने बच्चों को घर पर पढ़ाना पड़ा. स्कूल खुलने तक उन्हें ऑनलाइन क्लासों का ही सहारा था.
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भारत: लाउडस्पीकर से पढ़ाई
यह फोटो भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र के शहर डंडवा के एक स्कूल की है. जिन बच्चों के पास इंटरने की सुविधा नहीं है, यहां उनके लिए खास प्रबंध किया गया है. उन्हें यहां क्लास की रिकॉर्डिंग लाउडस्पीकर पर सुनाई जा रही है ताकि वे अपना स्कूल का छूटा हुआ काम पूरा कर सकें. महाराष्ट्र भारत में सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में शामिल है.
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कांगो: टेम्परेचर टेस्ट जरूरी
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किंगशासा के पास लिंगवाला इलाके के इस स्कूल में कोरोना के खतरे को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. स्कूल आने वाले हर छात्र का टेम्परेचर टेस्ट करने के बाद ही उसे अंदर आने दिया जाता है. स्कूल में मास्क पहनना भी जरूरी है.
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अमेरिका: कोरोना के बीच पढ़ाई
अमेरिका के स्कूलों में भी बच्चों का रोज टेम्परेचर चेक किया जाता है ताकि कोरोना के संभावित मामलों का पता लगाया जा सके. यह बहुत जरूरी है क्योंकि अमेरिका में कोरोना वायरस के मामले अब भी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार देश में कोरोना के मामले 54 लाख से ज्यादा हो गए हैं जबकि अब तक लगभग 1.70 लाख लोग मारे गए हैं.
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ब्राजील: ग्लव्स और गले मिलना
मौरा सिल्वा (बाएं) पश्चिमी रियो दे जेनेरो में एक बड़ी झुग्गी बस्ती के स्कूल में टीचर हैं. वह अपने छात्रों के घर जा रही हैं और अपने साथ "हग किट" लेकर जाती हैं. अपने छात्रों को गले लगाने से पहले सिल्वा और उनके छात्र मास्क पहनते हैं और वह उन्हें ग्लव्स पहनने में भी मदद करती हैं.