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भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच ऐतिहासिक नजदीकियों का राज

विवेक कुमार
२५ मार्च २०२२

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संबंध हाल के वर्षों में सबसे करीबी हैं. दोनों देशों के नेता लगातार एक-दूसरे के यहां आ-जा रहे हैं और बड़े निवेश के समझौते हुए हैं. ऐसा क्या घट रहा है दोनों देशों के बीच?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बाएं) और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन (दाहिने)
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बाएं) और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन (दाहिने)तस्वीर: Phil Noble/Getty Images

भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों के बीच इस हफ्ते की शुरुआत में वर्चुअल बैठक हुई. इस बैठक की औपचारिक शुरुआत में जिस तरह दोनों प्रधानमंत्रियों ने एक-दूसरे को सीधे पहले नाम से बुलाते हुए बेतकल्लुफी दिखाई, उससे नरेंद्र मोदी और स्कॉट मॉरिसन की दोस्ती तो दिखाई दी ही, साथ ही यह दोनों देशों के संबंधों में आईं नजदीकियों का भी बड़ा प्रतीक था.

भारत और ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सालाना वर्चुअल बैठक में कई बड़े एलान किए हैं. ऑस्ट्रेलिया ने भारत में 280 मिलियन डॉलर यानी लगभग 15 अरब रुपये के निवेश का एलान किया है. उसने 1.6 अरब रुपये की लागत से ‘सेंटर फॉर ऑस्ट्रेलिया-इंडिया रिलेशंस' स्थापित करने की घोषणा की है. इसका मकसद दोनों देशों के बीच नीतिगत व व्यापारिक बातचीत बढ़ाने के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय समुदाय की ऊर्जा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना भी है.

मुक्त व्यापार शुरू करने को तैयार भारत और ऑस्ट्रेलिया, किसे होगा फायदा

इस बारे में ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री मरीस पाएन ने कहा, "भारत हिंद-प्रशांत में ऑस्ट्रेलिया के सबसे अहम साझीदारों में से एक है. दोनों देशों के संबंध हाल के बरसों मे लगातार गाढ़े होते गए हैं, जो दोनों देशों के नेताओं के बीच लगातार दूसरे साल हुई सालाना बैठक में भी दिखाई दिया."

अन्य क्षेत्रों में भी हुए ऐलान

इसके अलावा भी कई बड़े व्यापारिक और रणनीतिक एलान किए गए हैं. मसलन एक इनोवेशन नेटवर्क स्थापित किया जाएगा. यह नेटवर्क व्यापारिक सहयोग बढ़ाने में के लिए काम करेगा. ऑस्ट्रेलिया बेंगलुरु में एक नया कॉन्स्युलेट-जनरल भी स्थापित करेगा.

विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग को लेकर दोनों देश खासे उत्सुक नजर आ रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया-इंडिया स्ट्रैटिजिक रिसर्च फंड के लिए एक अरब रुपये देने की घोषणा हुई है. अंतरिक्ष अनुसंधान में सहयोग बढ़ाने के लिए करीब डेढ़ अरब रुपये का समझौता हुआ है, जिसके तहत ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी भारत के साथ सहयोग करेगी. इसके अलावा दोनों देश क्लीन टेक्नोलॉजी, खनन और ऊर्जा में शोध और उत्पादन बढ़ाने के लिए दो अरब रुपये का सहयोग करेंगे.

क्या वाकई बुरा है भारतीय छात्रों का पढ़ने विदेश जाना?

सांस्कृतिक मोर्चे पर भी भारत और ऑस्ट्रेलिया नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. भारत से ऑस्ट्रेलिया जाकर पढ़ने वाले छात्रों के लिए वजीफे, फेलोशिप और ग्रांट आदि के रूप में बड़ी सुविधाएं देने का वादा किया गया है. साथ ही, भारत के शिक्षण संस्थानों की डिग्रियों को मान्यता देने के लिए एक टास्क फोर्स के गठन का भी एलान किया गया है.

ऑस्ट्रेलिया को हुआ है अहसास

भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों को लेकर पिछले कई साल से काम कर रहीं न्यूलैंड ग्लोबल ग्रुप की जनरल मैनेजर नताशा झा भास्कर कहती हैं कि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई दूसरी वर्चुअल बैठक और इन तमाम एलान का सबसे बड़ा सबक यह है कि आखिरकार ऑस्ट्रेलिया भारत को लेकर गंभीरता से सक्रिय हो गया है.

ऑस्ट्रेलिया की बॉलीवुड टैक्सी

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हाल ही में पर्थ यूएसएशिया सेंटर की नॉन रेजिडेंट इंडो-पैसिफिक फेलो चुनी गईं नताशा झा-भास्कर ने डॉयचे वेले को बताया, "ऑस्ट्रेलिया में भारत को लेकर जागरूकता बढ़ी हुई दिखती है. इस बात की जागरूकता बढ़ी है कि ऑस्ट्रेलिया की आर्थिक सुरक्षा और प्रतिरोध क्षमता के लिए भारत लंबे समय तक एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. इसकी वजह यह है कि भारत के पास विशाल अवसर उपलब्ध हैं. लिहाज़ा ऑस्ट्रेलिया समझ गया है कि भारत के बारे में सोच-समझकर फैसले न लेना और उसे सिर्फ एक विकल्प समझना उसके लिए ही नुकसानदेह होगा."

भारतीयों को नहीं मिलता ऑस्ट्रेलिया का यह खास वीजा

अपनी बात समझाने के लिए झा भास्कर कहती हैं कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के निर्माण के लिए एक सर्वांगीण दृष्टिकोण से काम हो रहा है.  वह बताती हैं, "राजनीतिक स्तर पर दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच सालाना शिखर वार्ताओं की घोषणा की गई है. भारत इससे पहले ऐसी वार्ताएं सिर्फ दो देशों के साथ करता रहा है, जिनका मकसद संबंधों की नियमित समीक्षा है. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया ने आर्थिक स्तर पर अपनी ‘भारत केंद्रित आर्थिक रणनीति 2035' को कुछ सुधार के साथ दोबारा पेश किया है. इसमें कोविड के बाद आर्थिक रिश्तों का रोडमैप दिखाया गया है. भारतीय नीतियों, वित्तीय संस्थानों और व्यापारिक साझेदारी के लिए केंद्रीकृत निवेश पर जोर दिया गया है."

भारत की अहमियत बढ़ी

चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. दोनों देशों के बीच 2021 में 1.77 खरब रुपये का व्यापार हुआ. यह भी तब है, जब पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच संबंध इतने ज्यादा खराब हो गए कि चीन ने ऑस्ट्रेलिया के कई उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया. इनमें वाइन जैसा ऑस्ट्रेलिया का अहम निर्यात भी शामिल है, जो चीन के प्रतिबंधों से इतना प्रभावित हुआ है कि 2020 के मुकाबले 2021 में वाइन का निर्यात 97 प्रतिशत घट गया था.

इन खराब होते संबंधों के चलते ऑस्ट्रेलिया में यह बात जोरों से उठी कि ऑस्ट्रेलिया को चीन का विकल्प खोजना होगा. कई विशेषज्ञों ने समय-समय पर चीन की जगह भारत को चुनने की सलाह दी.

पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी ऐबट ने पिछले साल द ऑस्ट्रेलियन में लिखे एक लेख में इन सलाहों का सार यूं लिखा था, "भारत और ऑस्ट्रेलिया कुदरती साझीदार हैं. हमारी सेनाएं गलीपली, मलाया और अल अलामीन में साथ लड़ी थीं. अब ऑस्ट्रेलिया में करीब दस लाख भारतीय रहते हैं, जो टीम ऑस्ट्रेलिया में फुर्ती से शामिल हो गए हैं. हम इतने बड़े और परिष्कृत हैं कि फायदेमंद हों, लेकिन इतने बड़े भी नहीं हैं कि खतरा बन जाएं. अन्य देशों की तरह हमारे भारत के साथ रिश्तों पर इतिहास का कोई बोझ भी नहीं है."

यह बात भारत को लेकर ऑस्ट्रेलिया की नीतियों में साफ झलक रही है. उसने भारत को कई तरह की छूट दी हैं और उसकी राजनीतिक व आर्थिक चिंताएं समझी हैं. भारत ने भी हाथ बढ़ाकर इसका जवाब दिया है. जैसे करीब एक दशक से अटका पड़ा मुक्त व्यापार समझौता अब मुकम्मल होने के काफी करीब पहुंच गया है.

हालांकि नताशा झा भास्कर इस बात को लेकर मुतमईन नहीं हैं कि भारत और ऑस्ट्रेलिया की बढ़ती नजदीकियों की वजह चीन है.

वह कहती हैं, "मुझे लगता है कि भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया के बेहतर होते संबंधों को ऑस्ट्रेलिया-चीन समीकरणों से अलग करके देखा जाना चाहिए. भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों में सुधार लोकतांत्रिक मूल्यों और कानून के राज के सम्मान के आधार पर हो रहा है. यहां सोच द्विपक्षीय नहीं, बल्कि चुनौतियों से मिलकर निपटने की है. यह समावेशी समझ पर आधारित है, फिर चाहे वह क्वॉड को लेकर हो या पूरे हिंद-प्रशांत को लेकर."

आप्रवासी भारतीयों में निवेश

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगों का एक विशाल समुदाय रहता है, जो लगातार बढ़ रहा है. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी की गई ‘ऑस्ट्रेलियाज इंडियन डायस्पोरा: अ नेशनल एसेट' नाम की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाइयों की संख्या 7,21,000 को पार कर चुकी थी. यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में जन्मे ये ऑस्ट्रेलियाई शैक्षणिक और आर्थिक रूप से अन्य सभी समुदायों से आगे हैं.

रिपोर्ट कहती है, "भारत में जन्मे लोग ऑस्ट्रेलिया के विदेशी मूल के नागरिकों का दूसरा सबसे बड़ा समूह है. यह टैक्स देने वाला भी दूसरा सबसे बड़ा आप्रवासी समुदाय है. उच्च शिक्षा और धन कमाने के मामले में यह समुदाय बाकी ऑस्ट्रेलियाई समुदायों से कहीं आगे है."

दरअसल, ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने समझा है कि भारत से बेहतर संबंध बनाने में यह विशाल समुदाय बेहद अहम भूमिका निभा सकता है. इसलिए उसने इस समुदाय पर खास निवेश भी किया है. 2018 में सरकार की पहल पर एक विशेष अध्ययन ‘ऑस्ट्रेलिया इंडिया इकनॉमिक स्ट्रैटिजी 2035' जारी की गई थी. इसमें ऐसे क्षेत्रों और माध्यमों की विशेष पहचान की गई थी, जिनके जरिए दोनों देशों के संबंध बेहतर किए जा सकें.

इस साल न सिर्फ उस अध्ययन को सुधार और बदलकर दोबारा जारी किया गया, बल्कि ‘ऑस्ट्रेलियाज इंडियन डायस्पोरा: अ नेशनल एसेट' नामक रिपोर्ट के रूप में भारतीय मूल के लोगों पर एक अलग रिपोर्ट भी जारी की गई. इस रिपोर्ट में समुदाय की खूबियों और ताकतों का गहन अध्ययन करके यह जानने की कोशिश की गई है कि देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में इसका कैसे समुचित उपयोग किया जाए.

‘ऑस्ट्रेलियाज इंडियन डायस्पोराः अ नेशनल एसेट' रिपोर्ट में कई सिफारिशें भी की गई हैं. रिपोर्ट सिफारिश करती है कि भारतीय समुदाय के साथ ज्यादा संवाद और तालमेल स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि इस बात को बेहतर तरीके से समझा जा सके कि भारत से रिश्तों की बेहतरी में यह कैसे योगदान दे सकता है. यह अपनी तरह की दुनियाभर में पहली रिपोर्ट है और शायद पहली बार किसी देश ने भारतीय समुदाय को इस तरह गहराई से समझने की कोशिश की है.

नताशा झा भास्कर कहती हैं, "द्विपक्षीय संबंधों की बेहतरी में ऑस्ट्रेलिया के भारतीय समुदाय की भूमिका अब भी शुरुआती स्तर पर है. मैत्री स्कॉलरशिप, सेंटर फॉर ऑस्ट्रेलिया इंडिया रिलेशंस और डायस्पोरा मैपिंग रिपोर्ट जैसे कदमों से इस भूमिका में मौजूद अंतर को पाटने में मदद मिलेगी. यह समुदाय दोनों देशों के बीच एक जीता-जागता पुल है, जिसके पास भाषाई, सांस्कृतिक और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के कुदरती फायदे उपलब्ध हैं. इसका इस्तेमाल बहुत बड़े रूप में किया जा सकता है."

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