कोयले की कमी से जूझने के लिए स्थानीय कोयले में 10 प्रतिशत आयातित कोयला मिलाने के निर्देश को वापस ले लिया गया है. इसे देश में कोयले की उपलब्धता में आई बेहतरी का संकेत माना जा रहा है.
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भारत ने बिजली उत्पादन करने वाले उपक्रमों के लिए कोयला आयात करने के लक्ष्यों को वापस ले लिया है. यह जानकारी विद्युत मंत्रालय के एक नोटिस में सामने आई. रॉयटर्स ने यह नोटिस देखा है.
नए नोटिस के तहत राज्य सरकारों और निजी बिजली कंपनियों को कोयला आयात करने की मात्रा खुद तय कर लेने की छूट दे दी गई है. नोटिस में मंत्रालय ने कहा है, "तय किया गया है कि अब से राज्य/स्वतंत्र बिजली निर्माता और कोयला मंत्रालय स्थानीय कोयले की आपूर्ति का मूल्यांकन कर मिश्रण का प्रतिशत तय कर सकते हैं."
केंद्रीय बिजली कंपनी एनटीपीसी और डीवीसी को एक अलग नोटिस भेज कर उन्हें मिश्रण के प्रतिशत को गिरा कर पांच प्रतिशत पर लाने का निर्देश दिया गया है.
कोयला संकट टला
नोटिस में यह भी कहा गया है, "अगर भंडार कम होने लगता है तो मिश्रण के प्रतिशत को फिर से समीक्षा की जा सकती है." दोनों कंपनियों को नए आर्डर ना देने के लिए और पहले से पड़े हुए आयातित कोयले का इस्तेमाल करने के लिए भी कहा गया है.
मई में उपक्रमों को कहा गया था कि वो कोयले की अपनी कुल जरूरत में से 10 प्रतिशत आयात से पूरा करें. राज्य सरकारों की कंपनियों को तो यहां तक कह दिया गया था कि वो अगर वो अपनी जरूरतों के लिए 10 प्रतिशत आयातित कोयले का इस्तेमाल नहीं करेंगी तो उनकी ईंधन सप्लाई काट दी जाएगी.
ऐसा अक्टूबर 2021 और अप्रैल 2022 में आए बिजली संकट के बाद किया गया था. इसके पहले कोयले के आयात को निरंतर कम करने की नीति लागू थी लेकिन इन संकटों की वजह से नीति को पलट दिया गया था.
कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि देश में अब कोयले की पर्याप्त उपलब्धता है लेकिन अगर आयातित कोयले के मिश्रण का फैसला नहीं लिया गया होता तो कोयले का संकट बना रहता.
भारत में बिजली की सालाना मांग 38 सालों में सबसे तेज गति से बढ़ रही है. दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले के दाम लगभग रिकॉर्ड स्तर पर हैं. इस साल एक भीषण हीटवेव की वजह से एयर कंडीशनर की मांग भी बढ़ी है. इसके अलावा कोविड के प्रतिबंधों के हटने के बाद आर्थिक गतिविधि भी बढ़ी है जिससे बिजली की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची है.
सीके/एए (रॉयटर्स)
कोयला-मुक्त भविष्य का सपना कैसे पूरा करेगा जर्मनी
जर्मन सरकार का कहना है कि आने वाले सालों में वह कोयले का इस्तेमाल पूरी तरह खत्म करना चाहता है. देश के ऊर्जा परिदृश्य में ऐसा महात्वाकांक्षी लक्ष्य कैसे हासिल किया जाएगा, इसके लिए कुछ अहम आंकड़ों पर नजर डालते हैं.
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2038
यह वह साल है जब तक जर्मनी पूरी तरह कोयला मुक्त हो जाना चाहता है. इसके लिए साल दर साल कोयले से मिलने वाली ऊर्जा का हिस्सा घटाते जाने की योजना है. इसे देश में लागू करने के उपाय सुझाते हुए जर्मनी के सरकारी आयोग ने 278 पेजों की अंतिम रिपोर्ट दी है.
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35.4
सन 2018 में जर्मनी में कोयले से देश की कुल ऊर्जा का 35.4 फीसदी पैदा किया गया. तुलना करें तो जर्मनी के पड़ोसी देश फ्रांस में साल 2018 में ही केवल 3 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन कोयले से किया गया था.
फिलहाल केवल चार ऊर्जा कंपनियां जर्मन सरकार के साथ बातचीत कर रही हैं. कंपनियों को उनकी कोयला आधारित परियोजनाएं बंद करने के लिए कई अरब यूरो का मुआवजा दिया जाना है.
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40 अरब यूरो
यह वह रकम है जो इलाके में ढांचागत बदलाव के लिए 2018 से लेकर 20 सालों की अवधि में निवेश करने की जरूरत है. इतना खर्च करने से कोयले पर आधारित इलाकों में आर्थिक संरचना की वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकेगी.
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20+40
जर्मनी में करीब 20 हजार नौकरियां सीधे तौर पर कोयले से जुड़ी हैं. करीब 40 हजार और नौकरियां भी कोयला क्षेत्र से परोक्ष तौर पर जुड़ी हैं. ये सारी नौकरियां ब्रांडेनबुर्ग और सैक्सनी जैसे देश के आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत पिछड़े क्षेत्र में हैं.
तस्वीर: Reuters/T. Schmuelgen
2015
यह पेरिस जलवायु समझौते का साल था जब जर्मनी ने वादा किया कि वह अपना ग्लोबल वॉर्मिंग का लक्ष्य 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखेगा. इसके लिए ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत तेजी से कम करने की जरुरत होगी. जर्मनी के कोयले के कारखाने पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करते हैं.
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2020
माना जा रहा है कि जर्मनी पेरिस जलवायु समझौते में 2020 के लिए दिया हुआ लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएगा. देश में भूरे कोयले की खदानों को तो बंद कर दिया गया है मगर विदेशों से जीवाश्म ईंधन अभी भी आयात होता है.