मौसम के अनुमान सुधारने के लिए एआई इस्तेमाल करेगा भारत
२७ दिसम्बर २०२३
भारत एक ऐसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीक का परीक्षण कर रहा है जिसका इस्तेमाल मौसम की जानकारी देने वाले एआई मॉडल बनाने में किया जाएगा.
विज्ञापन
भारत में मौसम के पूर्वानुमानों की सटीकता बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल को बढ़ाए जाने की कोशिशें हो रही हैं. मौसम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऐसी तकनीकों का परीक्षण किया जा रहा है जिनके जरिए एआई आधारित क्लाइमेट मॉडल बनाए जा सकें जो भारी बारिश, बाढ़ और सूखे जैसी कुदरती आपदाओं के बेहतर और ज्यादा सटीक पूर्वानुमान दे सकें.
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बाकी दुनिया की तरह भारत में भी हाल के सालों में मौसम के उतार-चढ़ाव में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को मिले हैं. इससे मौसमी आपदाओं की बारंबारता और सघनता भी बढ़ी है और वे ज्यादा घातक हुए हैं. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के अनुमान के मुताबिक इस साल मौसमी आपदाओं में 3,000 से ज्यादा लोगों की जान गई है.
विज्ञापन
पूरी दुनिया में एआई पर ध्यान
दुनियाभर में मौसम विभाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर ध्यान दे रही हैं जो ना सिर्फ लागत में कमी कर सकती है बल्कि रफ्तार भी सुधार सकती है. ब्रिटेन के मौसम विभाग के मुताबिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल मौसम के पूर्वानुमान में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है. ऐसी कई मिसाल वैज्ञानिकों के सामने हैं. मसलन हाल ही में गूगल के दिए धन से तैयार किया गया मौसम के पूर्वानुमान जाहिर करने वाला एक मॉडल अब तक के पारपंरिक मॉडलों से कहीं ज्यादा सफल साबित हुआ.
भारत में मौसम के पूर्वानुमान में सटीकता और ज्यादा अहमियत रखती है क्योंकि यहां बड़े पैमाने पर आबादी कृषि पर निर्भर है. भारत चावल, गेहूं और चीनी जैसे मूलभूत उत्पादों का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और देश ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे झेलने वालों की सूची में बहुत अग्रिम पंक्ति में है.
इंडियन इंस्टिट्यूट फॉर ट्रोपिकल मीटिरियोलॉजी में जलवायु वैज्ञानिक पार्थसारथी मुखोपाध्याय कहते हैं कि एआई का फायदा उठाने के लिए बेहतर डेटा की जरूरत होगी.
शोध: हीटवेव के डेंजर जोन में भारत का 90 फीसदी हिस्सा
एक शोध के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत में रहने वाले 80 फीसदी लोगों के लिए लू खतरा बन रही है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
तप रहा है भारत
इस वक्त भारत के ज्यादातर भाग तेज गर्मी और गर्म हवाओं के थपेड़ों से तप रहे हैं. एक शोध में बताया गया है कि इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
लू के प्रभाव में देश का 90 फीसदी हिस्सा
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण लू लगातार और खतरनाक हो रही है. अब हाल यह है कि भारत का 90 फीसदी हिस्सा लू के प्रभाव से डेंजर जोन में हैं.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
शोध में क्या चेतावनी दी गई
ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के रामित देबनाथ और उनके सहयोगियों ने पीएलओएस क्लाइमेट में एक अध्ययन "लीथल हीट वेव्स आर चैलेंजिंग इंडियाज सस्टेनेबल डेवलपमेंट" छापा है. इसमें सुझाव दिया गया है कि लू की आशंका जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ गई हैं. इसकी वजह से सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में भारत की प्रगति बाधित हो सकती है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
दिल्ली के लिए बड़ा खतरा बनेगी लू?
इस शोध में कहा गया है कि हीट इंडेक्स के लिहाज से पूरी दिल्ली डेंजर जोन में है. दिल्ली में अप्रैल महीने में हीटवेव के कारण लोगों को खासी परेशानी हुई थी.
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS
और ज्यादा बढ़ेगी हीटवेव
इस शोध के लेखक लिखते हैं कि भारत में लू की तीव्रता बढ़ रही है. इससे देश के 80 प्रतिशत लोग खतरे में हैं. देश के वर्तमान जलवायु संकट आकलन में इसके बारे में नहीं सोचा गया है. अगर इसका तुरंत समाधान नहीं किया जाता है तो सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में भारत की प्रगति सुस्त पड़ सकती है.
तस्वीर: Nasir Kachroo/NurPhot/picture alliance
हीटवेव बन रही जानलेवा
16 अप्रैल को महाराष्ट्र के नवी मुंबई में एक कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान 13 लोगों की हीटवेव से मौत हो गई थी. कई और लोग अस्पताल में भर्ती कराए गए थे.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
लू ज्यादा चलने लगी
भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में लू ज्यादा चल रही है और ज्यादा लंबे समय के लिए चल रही है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सही समय है कि जलवायु विशेषज्ञ और नीति निर्माता देश के जलवायु संकट का आकलन करने के लिए मेट्रिक्स का पुनर्मूल्यांकन करें.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
7 तस्वीरें1 | 7
भारतीय मौसम विभाग सुपर कंप्यूटरों का इस्तेमाल करता है और गणितीय मॉडलों के आधार पर पूर्वानुमान जारी करता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि एआई के प्रयोग से पर्यवेक्षण के नेटवर्क का विस्तार किया जा सकता है जिससे कम लागत पर ज्यादा अच्छी गुणवत्ता वाला डेटा मिल सकेगा.
पूर्वानुमानों में सुधार
भारतीय मौसम विभाग में क्लाइमेट रिसर्च के प्रमुख केएस होजालीकर कहते हैं कि विभाग को उम्मीद है कि जो एआई-आधारित क्लामेट मॉडल वे तैयार कर रहे हैं उनसे पूर्वानुमानों में सुधार होगा.
गिलगित-बल्तिस्तान के पिघलते ग्लेशियरों से बड़ा खतरा
ग्लेशियर, ताजे पानी के सबसे बड़े भंडार हैं. दुनिया में हर चार में से एक इंसान, ऐसे इलाके में रहता है जो पानी के लिए ग्लेशियर और मौसमी बर्फ पर निर्भर है. अकेले एशिया में ही 10 बड़ी नदियां हिमालयी क्षेत्र से निकलती हैं.
तस्वीर: Volodymyr Goinyk/Design Pics/IMAGO
पृथ्वी को ठंडा रखते हैं ग्लेशियर
ग्लेशियर एक सुरक्षा कवच की तरह हैं. ये सूर्य से आने वाली अतिरिक्त गर्मी को वापस अंतरिक्ष में भेज देते हैं. नतीजतन, ये हमारे ग्रह को ठंडा रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. ग्लेशियरों की परत एकाएक नहीं जमी. ये सैकड़ों-हजारों सालों की जमापूंजी हैं. लेकिन अब ग्लेशियर नाटकीय रफ्तार से पिघल रहे हैं. तस्वीर: तिब्बत का सापु ग्लेशियर
तस्वीर: zhang zhiwei/Zoonar/picture alliance
कोई भी हिस्सा अछूता नहीं
वैज्ञानिक कहते हैं, जो चीजें आमतौर पर पृथ्वी की जिंदगी के एक लंबे हिस्से के दौरान होती हैं, वो हमारे सामने कुछ ही साल में घट रही हैं. कुछ दशकों में ग्लेशियरों का एक बड़ा हिस्सा गायब हो चुका होगा. शोधकर्ताओं का कहना है कि मध्य और पूर्वी हिमालयी क्षेत्र के ज्यादातर ग्लेशियर शायद अगले एक दशक में मिट जाएंगे. तस्वीर: स्विट्जरलैंड में ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए उन पर इंसूलेटेड कंबल रखा गया.
तस्वीर: Vincent Isore/IMAGO
कुछ देशों पर ज्यादा जोखिम
कुछ हिस्सों पर खतरा ज्यादा तात्कालिक और गंभीर है. ग्लेशियरों के पिघलने और इसके कारण आने वाली बाढ़ से जिन देशों को सबसे ज्यादा जूझना होगा, उनमें पाकिस्तान भी है. काराकोरम पर्वत श्रृंखला में पिघलते ग्लेशियरों के कारण नई झीलें बनने लगी हैं. तस्वीर: गिलगित-बल्तिस्तान की यासिन घाटी. एक ग्लेशियर झील के नजदीक का यह इलाका बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित रहा.
तस्वीर: AKHTAR SOOMRO/REUTERS
डेढ़ करोड़ लोगों पर मंडरा रहा है जोखिम
नेचर कम्युनिकेशंस नाम के जर्नल में छपे शोध के मुताबिक, दुनिया में करीब डेढ़ करोड़ लोगों पर ग्लेशियर झीलों में संभावित बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. इनमें लगभग 20 लाख लोग पाकिस्तान में हैं. तस्वीर: गिलगित-बल्तिस्तान की हुंजा घाटी का एक गांव. यहां ग्लेशियर से बनी झील में आई बाढ़ के कारण काफी नुकसान हुआ.
तस्वीर: AKHTAR SOOMRO/REUTERS
पस्सु गांव के साथ ऐसा ही हुआ
जलस्तर बढ़ने पर झील का पानी किनारा तोड़कर निकलेगा और ढेर सारा पानी हरहराता हुआ नीचे भागेगा. ऐसे में रास्ते के रिहायशी इलाकों को बड़ा नुकसान हो सकता है. 2008 में पस्सु गांव के साथ ऐसा ही हुआ. तब से यहां रहने वालों की हिफाजत के लिए जल्दी चेतावनी देने की एक व्यवस्था बनाई गई है.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
ग्लोबल वॉर्मिंग का असर
बढ़ती गर्मी का असर काराकोरम में बहुत गहराई तक दिखता है. यह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में है. एवरेस्ट के बाद दूसरी सबसे बड़ी चोटी के2 है, जो इसी काराकोरम श्रृंखला का हिस्सा है. इसके अलावा ब्रॉड पीक, गाशेरब्रुम 1 और गाशेरब्रुम 2, यहीं हैं. ये सभी 26,000 फुट से ज्यादा ऊंची चोटियां हैं. सोचिए, ग्लोबल वॉर्मिंग इन ऊंचे पहाड़ों पर क्या कहर बरसा रही है. तस्वीर: स्विट्जरलैंड का एक ग्लेशियर
तस्वीर: GIAN EHRENZELLER/Keystone/picture alliance
जोखिम का जल्द अंदाजा लगाकर बच सकती हैं जानें
यह अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है कि झील से पानी कब उफनने लगेगा. फिर भी, एक्सपर्ट्स इसपर काम कर रहे हैं. तारिक जमील, हुंजा घाटी की निगरानी करने वाले जोखिम प्रबंधन केंद्र के प्रमुख हैं. उनकी टीम अर्ली वॉर्निंग सिस्टम विकसित करने पर काम कर रही है. जोखिम की घड़ी में लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की भी योजना बनाई जा रही है.
तस्वीर: Akhtar Soomro/REUTERS
ग्लेशियरों के नुकसान की भरपाई नहीं
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अगली सदी, यानी 2100 तक हिमालयी ग्लेशियरों का 75 फीसदी हिस्सा खत्म हो सकता है. जानकारों के मुताबिक, ये ऐसा नुकसान है जिसकी शायद ही कोई भरपाई हो सके. इस इलाके में 200 से ज्यादा ग्लेशियर झीलें खतरनाक मानी जा रही हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, इनसे होने वाले हादसों के कारण बचाव और पुनर्निर्माण के लिए हर साल कम-से-कम 200 अरब डॉलर चाहिए होगा. तस्वीर: तिब्बत का सापु माउंटेन
तस्वीर: zhang zhiwei/Zoonar/picture alliance
8 तस्वीरें1 | 8
होजालीकर बताते हैं कि विभाग ने लोगों के लिए चेतावनियां जारी करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया है. ये चेतावनियां हीटवेव से लेकर मलेरिया जैसी बीमारी तक विभिन्न आपदाओं के लिए जारी की गई हैं. अब विभाग की कोशिश है कि गांव के स्तर पर डेटा उपलब्ध कराने वाली वेधशालाओं में एआई का इस्तेमाल किया जाए ताकि वहां से पूर्वानुमान के लिए उच्च गुणवत्ता वाला डेटा मिले.
आईआईटी दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर सौरभ राठौर कहते हैं कि एआई के इस्तेमाल के और भी कई फायदे हैं. वह बताते हैं, "एआई-आधारित मॉडल को चलाने के लिए आपको सुपर कंप्यूटर की जरूरत नहीं है. इसे आप किसी अच्छे डेस्कटॉप पर भी चला सकते हैं.”