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बजट: मंदी से उबरने के उपाय नदारद

१ फ़रवरी २०२२

महामारी काल के दूसरे बजट में अर्थव्यवस्था को मंदी से निकालने का मानचित्र गायब रहा. सरकारी खर्च बढ़ाने की घोषणा तो की गई लेकिन जानकार इस बढ़ोतरी के पर्याप्त होने पर संदेह जता रहे हैं.

Indien | Finanzministerin Nirmala Sitharaman
तस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

जैसा की उम्मीद की जा रही थी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने चौथे बजट में अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए सरकारी खर्च को बढ़ाने का वादा तो किया है, लेकिन यह बढ़ोतरी मौजूदा हालात और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए अपर्याप्त लग रही है.

पूंजी खर्च या कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए 7.50 लाख करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं, जो पिछले साल के मुकाबले 35.4 प्रतिशत ज्यादा है. लेकिन यह अपने आप में कितना कारगर सिद्ध होगा यह देखना पड़ेगा.

खर्च से झिझकी सरकार

इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि सबसे पहले तो सरकार ने पिछले साल भी जितने खर्च की योजना बनाई थी उतना खर्च नहीं कर पाई. इसलिए इस बात पर संदेह है की इस साल भी सरकार इतना खर्च कर पाएगी.

वित्त मंत्री के हाथ में डिजिटल बजटतस्वीर: Anushree Fadnavis/REUTERS

दूसरी बात यह कि खपत को बढ़ाने के लिए सिर्फ पूंजी खर्च ही नहीं बल्कि पूरे बजट के आकार को बढ़ाना चाहिए लेकिन अरुण कुमार कहते हैं कि अगर महंगाई दर के हिसाब से इस बजट के आकार को देखा जाए तो यह मोटे रूप से पिछले बजट जितना ही है.

इसके अलावा वित्त मंत्री ने ऐसी किसी भी दूसरी सीधी राहत की घोषणा नहीं की जो मंदी के बोझ के तले दबे गरीबों, गरीबी में जा चुके मध्यम वर्गीय परिवारों और छोटे और मझोले व्यापारियों के काम आ सके. इनकम टैक्स की दरों में कोई बदलाव नहीं किया है और न ही गरीबों के लिए कोई आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है.

कैसे मिलेगा रोजगार

अर्थशास्त्री आमिर उल्ला खान कहते हैं कि कॉर्पोरेट टैक्स बढ़ाना और इनकम टैक्स दरों को घटाने का मुश्किल फैसला लेने का यह बहुत अच्छा मौका था लेकिन सरकार ने यह फैसला नहीं लिया.

रोजगार के मोर्चे पर भी कोई ठोस घोषणा बजट में नहीं थी. अरुण कुमार कहते हैं कि कृषि और संबंधित क्षेत्रों में ही रोजगार के बड़े अवसरों का सृजन होता है लेकिन इन क्षेत्रों के लिए असली आबंटन को नहीं बढ़ाया गया, बल्कि ग्रामीण रोजगार देने वाली योजन मनरेगा के आबंटन को घटा दिया गया.

न किसी बड़े सरकारी खर्च की बात हुई न गरीबों को पैसा सीधा देने कीतस्वीर: Rafiq Maqbool/AP Photo/picture alliance

गरीबों के हाथों में सीधे पैसे दिए जा सकते थे लेकिन वो भी नहीं किया गया. उलटे खाद्य सब्सिडी और फर्टिलाइजर सब्सिडी भी कम कर दी गई. 

शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत क्षेत्रों के हाल पर भी समीक्षक निराश हैं. आमिर कहते हैं कि इस बजट में तो स्वास्थ्य और शिक्षा को तो जैसे नजरअंदाज ही कर दिया गया है. वहीं अरुण कुमार ने बताया कि स्वास्थ्य कर तो खर्च को बढ़ाया नहीं ही गया, शिक्षा पर बढ़ाया है लेकिन उसमें भी ज्यादा डिजिटल कदमों की बात की गई.

न स्कूलों के नेटवर्क और सुविधाओं के विस्तार की बात की गई और ना और शिक्षकों को भर्ती करने की. आर्थिक सर्वेक्षण ने कहा है कि महामारी के दौरान निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे बड़ी संख्या में सरकारी स्कूलों में आए हैं. सरकारी स्कूलों को और समर्थन देने की बात सर्वेक्षण ने की थी लेकिन बजट में इसकी ठोस घोषणाएं नजर नहीं आईं.

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