भारत और कनाडा में तनाव बढ़ा रहा है खालिस्तान का मुद्दा
आकांक्षा सक्सेना
९ नवम्बर २०२२
अलगाववादी सिखों द्वारा खालिस्तान की मांग को लेकर कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में लामबंदी बढ़ रही है. भारत और कनाडा के संबंध तो इससे सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं.
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एक अलगाववादी सिख संगठन ने कनाडा के ब्रैंपटन में बीते रविवार को एक कथित जनमत संग्रह आयोजित किया. इसमें उत्तर अमेरिकी आप्रवासी सिखों से इस बात पर राय मांगी गई थी कि भारत के सिख बहुल इलाकों को खालिस्तान नाम का स्वतंत्र देश घोषित किया जाना चाहिए या नहीं.
भारत में प्रतिबंधित संगठन‘सिख फॉर जस्टिस'का दावा है कि इस रायशुमारी में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया. हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है कि कितने लोगों ने मतदान किया और कब इस कथित जनमत संग्रह के नतीजे आएंगे.
सोशल मीडिया पर साझा किए जा रहे वीडियो दिखाते हैं कि खालिस्तान का पीला झंडा लिए पुरुष और महिलाएं एक मतदान केंद्र के सामने लाइन लगाए खड़े हैं. हालांकि डॉयचे वेले इस वीडियो की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं कर सकता.
हर धर्म में है सिर ढंकने की परंपरा
दुनिया में अनेक धर्म हैं. इन धर्मों के अनुयायी अपने विश्वास और धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए सिर को कई तरह से ढंकते हैं. जानिए कैसे-कैसे ढंका जाता है सिर.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto
दस्तार
भारत के पंजाब क्षेत्र में सिक्ख परिवारों में दस्तार पहनने का चलन है. यह पगड़ी के अंतर्गत आता है. भारत के पंजाब क्षेत्र में 15वीं शताब्दी से दस्तार पहनना शुरू हुआ. इसे सिक्ख पुरुष पहनते हैं, खासकर नारंगी रंग लोगों को बहुत भाता है. सिक्ख अपने सिर के बालों को नहीं कटवाते. और रोजाना अपने बाल झाड़ कर इसमें बांध लेते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Dyck
टागलमस्ट
कुछ नकाब तो कुछ पगड़ी की तरह नजर आने वाला "टागलमस्ट" एक तरह का कॉटन स्कार्फ है. 15 मीटर लंबे इस टागलमस्ट को पश्चिमी अफ्रीका में पुरुष पहनते हैं. यह सिर से होते हुए चेहरे पर नाक तक के हिस्से को ढाक देता है. रेगिस्तान में धूल के थपेड़ों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. सिर पर पहने जाने वाले इस कपड़े को केवल वयस्क पुरुष ही पहनते हैं. नीले रंग का टागलमस्ट चलन में रहता है.
पश्चिमी देशों में हिजाब के मसले पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है. सवाल है कि हिजाब को धर्म से जोड़ा जाए या इसे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार का हिस्सा माना जाए. सिर ढकने के लिए काफी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. तस्वीर में नजर आ रही तुर्की की महिला ने हिजाब पहना हुआ है. वहीं अरब मुल्कों में इसे अलग ढंग से पहना जाता है.
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चादर
अर्धगोलाकार आकार की यह चादर सामने से खुली होता है. इसमें बांह के लिए जगह और बटन जैसी कोई चीज नहीं होती. यह ऊपर से नीचे तक सब जगह से बंद रहती है और सिर्फ महिला का चेहरा दिखता है. फारसी में इसे टेंट कहते हैं. यह महिलाओं के रोजाना के कपड़ों का हिस्सा है. इसे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, सीरिया आदि देशों में महिलाएं पहनती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Kappeler
माइटर
रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी की औपचारिक ड्रेस का हिस्सा होती है माइटर. 11 शताब्दी के दौरान, दोनों सिरे से उठा हुआ माइटर काफी लंबा होता था. इसके दोनों छोर एक रिबन के जरिए जुड़े होते थे और बीच का हिस्सा ऊंचा न होकर एकदम सपाट होता था. दोनों उठे हुए हिस्से बाइबिल के पुराने और नए टेस्टामेंट का संकेत देते हैं.
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नन का पर्दा
अपने धार्मिक पहनावे को पूरा करने के लिए नन अमूमन सिर पर एक विशिष्ट पर्दे का इस्तेमाल करती हैं, जिसे हेविट कहा जाता है. ये हेविट अमूमन सफेद होते हैं लेकिन कुछ नन कालें भी पहनती हैं. ये हेबिट अलग-अलग साइज और आकार के मिल जाते हैं. कुछ बड़े होते हैं और नन का सिर ढक लेते हैं वहीं कुछ का इस्तेमाल पिन के साथ भी किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Baumgarten
हैट्स और बोनट्स (टोपी)
ईसाई धर्म के तहत आने वाला आमिश समूह बेहद ही रुढ़िवादी और परंपरावादी माना जाता है.इनकी जड़े स्विट्जरलैंड और जर्मनी के दक्षिणी हिस्से से जुड़ी मानी जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक अत्याचार से बचने के लिए 18वीं शताब्दी के शुरुआती काल में आमिश समूह अमेरिका चला गया. इस समुदाय की महिलाएं सिर पर जो टोपी पहनती हैं जो बोनट्स कहा जाता है. और, पुरुषों की टोपी हैट्स कही जाती है.
तस्वीर: DW/S. Sanderson
बिरेट
13वीं शताब्दी के दौरान नीदरलैंड्स, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिक पादरी बिरेट को सिर पर धारण करते थे. इस के चार कोने होते हैं. लेकिन कई देशों में सिर्फ तीन कोनों वाला बिरेट इस्तेमाल में लाया जाता था. 19 शताब्दी तक बिरेट को इग्लैंड और अन्य इलाकों में महिला बैरिस्टरों के पहनने लायक समझा जाने लगा.
तस्वीर: Picture-alliance/akg-images
शट्राइमल
वेलवेट की बनी इस टोपी को यहूदी समाज के लोग पहनते थे. इसे शट्राइमल कहा जाता है. शादीशुदा पुरुष छुट्टी के दिन या त्योहारों पर इस तरह की टोपी को पहनते हैं. आकार में बढ़ी यह शट्राइमल आम लोगों की आंखों से बच नहीं पाती. दक्षिणपू्र्वी यूरोप में रहने वाले हेसिडिक समुदाय ने इस परंपरा को शुरू किया था. लेकिन होलोकॉस्ट के बाद यूरोप की यह परंपरा खत्म हो गई. (क्लाउस क्रैमेर/एए)
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto
यारमुल्के या किप्पा
यूरोप में रहने वाले यहूदी समुदाय ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में यारमुल्के या किप्पा पहनना शुरू किया. टोपी की तरह दिखने वाला यह किप्पा जल्द ही इनका धार्मिक प्रतीक बन गया. यहूदियों से सिर ढकने की उम्मीद की जाती थी लेकिन कपड़े को लेकर कोई अनिवार्यता नहीं थी. यहूदी धार्मिक कानूनों (हलाखा) के तहत पुरुषों और लड़कों के लिए प्रार्थना के वक्त और धार्मिक स्थलों में सिर ढकना अनिवार्य था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/W. Rothermel
शाइटल
अति रुढ़िवादी माना जाने वाला हेसिडिक यहूदी समुदाय विवाहित महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाता है. न्यूयॉर्क में रह रहे इस समुदाय की महिलाओं के लिए बाल मुंडवा कर विग पहनना अनिवार्य है. जिस विग को ये महिलाएं पहनती हैं उसे शाइटल कहा जाता है. साल 2004 में शाइटल पर एक विवाद भी हुआ था. ऐसा कहा गया था जिन बालों का शाइटल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उसे एक हिंदू मंदिर से खरीदा गया था.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Y. Dongxun
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ब्रैंपटन में रहने वाले हिमांशु भारद्वाज कहते हैं, "ब्रैंपटन के बाहर से भी लोग कारों और बसों से आए थे. कनाडा के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले लोगों के लिए खाने और रहने की जगह का प्रबंध था. सिर्फ उन्हीं लोगों को आयोजन स्थल में आने की इजाजत थी, जो इस आंदोलन का समर्थन करते हैं.”
कनाडा को चेतावनी
भारत ने इस मतदान की और इसकी इजाजत देने के लिए कनाडा सरकार की कड़ी निंदा की है. पिछले हफ्ते ही भारत ने इस बारे में एक तीखा बयान जारी किया था और कनाडा की सरकार से इस मतदान के आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया था.
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, "यह बेहद आपत्तिजनक है कि उग्रवादी तत्वों द्वारा राजनीति से प्रेरित गतिविधियां एक मित्र देश में हो रही हैं. भारत विरोधी तत्वों द्वारा कथित खालिस्तान जनमत संग्रह कराने की कोशिशों को लेकर हमारा रुख सर्वविदित है और नई दिल्ली व कनाडा, दोनों जगहों पर कनाडा की सरकार को इससे अवगत कराया जा रहा है.”
कनाडा की सरकार ने यह तो कहा कि वह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करती है, लेकिन उसने मतदान को रोकने से इनकार कर दिया.
पाकिस्तान के करतारपुर कॉरिडोर की खासियत क्या है
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म मौजूदा पाकिस्तान में हुआ और वहीं उन्होंने आखिरी सांस भी ली. वह जहां पैदा हुए, उसे आज ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है और उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी साल करतारपुर में बिताए.
तस्वीर: AFP/Getty Images/N. Nanu
सिख धर्म के संस्थापक
माना जाता है कि गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी नाम के एक कस्बे में हुआ. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित यह कस्बा अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है. उनका निधन 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में हुआ. उन्होंने अपने जीवन के लगभग आखिरी 18 साल यहीं पर बिताए.
दरबार साहिब करतारपुर को पाकिस्तान में सिखों के सबसे पवित्र स्थलों में गिना जाता है. ननकाना साहिब में जहां गुरु नानक पैदा हुए, वहां गुरुद्वारा जनम अस्थान है. इसके अलावा गुरुद्वारा पंजा साहिब और गुरुद्वारा सच्चा सौदा पाकिस्तान में स्थित सिखों के अन्य पवित्र स्थल हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
दरबार साहिब करतार पुर
सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने करतारपुर गुरुद्वारे की बुनियाद 1504 में रखी. जहां रावी नदी पाकिस्तान में दाखिल होती है, उसके पास ही यह गुरुद्वारा स्थित है. उन्होंने अपने जीवन का आखिरी समय इस जगह पर बिताया, इसलिए सिखों के लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K.M. Chaudary
श्री करतारपुर साहिब
दुनिया भर के सिखों की ओर से लंबे समय से करतारपुर कॉरिडोर खोलने की मांग चली आ रही थी. इससे पहले वे भारतीय पंजाब से दूरबीनों की मदद से करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन करते थे. तस्वीर में आप इस गुरुद्वारे का एक मॉडल देख सकते हैं जिसे गुरदीप सिंह नाम के एक कलाकार ने बनाया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu
करतारपुर कॉरीडोर
भारतीय पंजाब में स्थित डेरा बाबा नानक साहब को पाकिस्तान में पड़ने वाले दरबार साहिब से जोड़ने वाले कॉरिडोर को करतारपुर कॉरिडोर का नाम दिया गया है. यह लगभग पांच किलोमीटर लंबी सड़क है. सिख अनुयायी खास वीजा लेकर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
गुरु नानक की 550वीं जयंती
गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर दुनिया भर में कार्यक्रम हुए. इसी मौके पर करतारपुर कॉरिडोर को खोला गया. अनुमान है कि दुनिया भर के 50 हजार सिखों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया.
तस्वीर: PID
इमरान खान का फैसला
इमरान खान ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद ही करतारपुर कॉरिडोर को खोलने का फैसला किया था. इसे बनाने का काम नवंबर 2018 में शुरू हुआ. कॉरिडोर बनाने के अलावा यात्रियों के रुकने की व्यवस्था और गुरुद्वारे की साज सज्जा का काम रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K.M. Chaudary
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सीबीसी से सेवानिवृत्त हो चुके एक वरिष्ठ पत्रकार और ‘ब्लड फॉर ब्लडः 50 ईयर्स ऑफ द ग्लोबल खालिस्तान प्रोजेक्ट' के लेखक टेरी मिलेव्स्की ने डॉयचे वेले को बताया, "इस विषय पर कनाडा का रुख बहुत पुराना है. यहां कोई अपराध नहीं हो रहा है, जिसके लिए सजा हो. कंजरवेटिव और लिबरल दोनों ही पार्टियां इस बात को लेकर सचेत हैं कि यह अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा ना बन जाए.”
बड़ी होती सिख राजनीतिक शक्ति
बीते कुछ सालों में कनाडा, अमेरिका और युनाइटेड किंग्डम में ऐसे संगठनों की शक्ति और संख्या बढ़ी है, जो कथित खालिस्तान के समर्थक हैं. इन सभी जगहों पर सिख आप्रवासी बड़ी तादाद में हैं. कनाडा की कुल आबादी का लगभग 1.4 फीसदी यानी पांच लाख सिख हैं. वे तेजी से उभरती हुई राजनीतिक ताकत बनते जा रहे हैं. देश के कई सांसद सिख हैं और स्थानीय व केंद्रीय सरकारों में भी हैं.
मिलेव्स्की कहते हैं, "कनाडा के नेता सिख मतों को खोना नहीं चाहते. लेकिन उनका यह मानना गलत है कि ऊंचा बोलने वाले अल्पसंख्यक सिख खालिस्तानियों की आवाज, सारे कनाडाई सिखों की आवाज है. अगर आप मान लें कि एक लाख सिख मतदान करने आए, जो कि बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहने वाली बात है, तब भी 80 फीसदी सिखों को इस बात से कोई लेना देना नहीं है. ऐसा लगता है कि यह एक जनसंपर्क अभियान है, एक धन-कमाऊ समूह है जो इसके जरिए खूब धंधा चमका रहा है.”
रविवार को मतदान से पहले भारत ने कनाडा को1985 के एयर इंडिया उड़ान 182 पर हुआ आतंकवादी हमलाभी याद कराया था, जिसमें 268 कनाडाई नागरिकों समेत कुल 182 लोग मारे गए थे. इस हमले के लिए कनाडा में रहने वाले सिख चरमपंथी जिम्मेदार था. 9/11 से पहले यह दुनिया का सबसे घातक आतंकवादी हमला था.
पिछले सितंबर में मतदान के पहले चरण से पहले भारत ने कनाडा के खिलाफ एक यात्रा चेतावनी भी जारी की गई थी जिसमें भारत विरोधी घटनाओं में वृद्धि का हवाला दिया गया था. ओटावा और नई दिल्ली के बीच यह मुद्दा लगातार तनाव की वजह बनता जा रहा है.
मिलेव्स्की जोर देकर कहते हैं, "कनाडा के लिए यह ज्यादा बड़ा मामला नहीं है लेकिन दोनों देशों के बीच घर्षण की एक वजह तो है. भारत के एक राज्य के लिए कनाडा की धरती पर मतदान होना अजीब बात है.”
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हिंदू-सिख तनाव का डर
भारत में ऐसे लोगों को सख्ती से दबाया जा रहा है, जो खालिस्तान आंदोलन से संबंधित हो सकते हैं. ऐसे मामलों में वकालत करने वाले मानवाधिकार वकील आर एस बैंस कहते हैं, "अनलॉफुल एक्टीविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए) जैसे कड़े कानून के तहत कुछ सिख युवकों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. ये सभी 20 साल से कम उम्र के हैं. उन्हें खालिस्तान जनमत संग्रह संबंधी सामग्री रखने या पोस्टर लगाने जैसे आरोपों में जेल में डाल दिया गया है.”
बैंस कहते हैं कि विदेशों में बैठे आयोजक नहीं समझते हैं कि इन युवाओं के जीवन और परिवारों को कितना नुकसान उठाना पड़ रहा है. डॉयचे वेले को उन्होंने बताया, "वे गुमराह युवकों का प्रयोग करते हैं जिन्हें अक्सर ऐसी गतिविधियों के लिए पैसा दिया जाता है. दुख की बात है ये लोग सालों तक जेल में सड़ते हैं.”
इन कथित जनमत संग्रहों के कारण सिखों और हिंदुओं के बीच कनाडा में भी खाई बढ़ रही है. पिछले कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं भी हुई हैं, जो तनाव को दिखाती हैं. भारत से कनाडा गए अकाउंटेंट हिमांशु भारद्वाज कहते हैं कि उन्हें तनाव बढ़ने का डर लगता है. भारद्वाज बताते हैं, "हिंदू समुदाय भड़क सकता है और मेरा डर है कि वैसे तो हम यहां सिखों के साथ शांतिपूर्ण रूप से रहते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि ऐसे जनमत संग्रहों से हालात बिगड़ सकते हैं और विवाद बढ़ सकता है.” वह कहते हैं कि उनके आसपास के लोग आपस में बढ़ती दूरियों से चिंतित हैं.
ट्रूडो ने किया जी भर कर भारत दर्शन
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो के भारत दौरे पर खूब लिखा गया. कहीं खालिस्तान का मुद्दा हावी रहा तो कहीं उन्हें भारत में ज्यादा तवज्जो ना मिलने की बात कही गई. लेकिन ट्रूडो और उनके परिवार ने खूब आनंद किया. देखिए तस्वीरें.
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नमस्ते इंडिया...
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी पत्नी सोफिया और तीनों बच्चों के साथ भारत के दौरे पर पहुंचे. दिल्ली में जब उनका परिवार विमान से बाहर निकला तो इस तरह उन्होंने अपने मेजबानों का अभिवादन किया.
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ताज का दीदार
भारत पहुंचने के अगले दिन कनाडा के प्रधानमंत्री आगरा गए जहां उन्होंने मोहब्बत की निशानी के तौर पर मशहूर ताज का दीदार किया. अपने पूरे परिवार के साथ उन्होंने भी इस बेंच पर फोटो खिंचाई, जहां दुनिया के बहुत से नेता पहले बैठ चुके हैं.
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साबरमती के संत
कनाडा के प्रधानमंत्री अपने परिवार के साथ साबरमती आश्रम भी पहुंचे. पूरी तरह भारतीय परिधान में दिखाई दिए ट्रूडो और उनके परिवार ने अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को नमन किया.
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बापू की कर्मभूमि
साबरमती के इस आश्रम में गांधी जी ने अपनी जिंदगी के 12 साल गुजारे. यहीं से उनका दांडी मार्च शुरू हुआ था. अब इस आश्रम को एक संग्राहलय का रूप दे दिया गया है. दुनिया की अहम शख्सियतें यहां आती हैं.
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बेरुखी
गुजरात के दौरे के तहत कनाडा के प्रधानमंत्री गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर भी गए. हालांकि गुजरात प्रधानमंत्री मोदी का गृह राज्य है और जब वे गुजरात में ट्रूडो के साथ नहीं दिखे तो कई लोगों ने इसे ट्रूडो से उनकी बेरुखी बताया. इससे पहले कई विश्व नेताओं के गुजरात दौरे में वह साथ रहे.
तस्वीर: picture alliance/PTI/dpa/Gan-Amd
माई नेम इज खान..
ट्रूडो का परिवार मुंबई भी गया और उनकी मुलाकात किंग खान कहे जाने वाले बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान से हुई. शाहरुख खान बॉलीवुड के उन चंद सितारों में शामिल हैं जिनके चाहने वाले दुनिया भर में मौजूद हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/S. Kilpatrick
वाहेगुरु का खालसा..
कनाडा के प्रधानमंत्री ने अमृतसर के स्वर्णमंदिर में जाकर मत्था टेका और लंगर की सेवा भी की. कनाडा में रहने वाले भारतीय मूल के लगभग 12 लाख लोगों में सिखों की बड़ी तादाद है और ट्रूडो के मंत्रिमंडल में कई सिख भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/S. Kilpatrick
खालिस्तान का साया
ट्रूडो को अपने भारत दौरे में खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरम रवैया अपनाने से जुड़े आरोपों का सामना करना पड़ा. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि वह कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों से चिंतित हैं. ट्रूडो ने इस बारे में कदम उठाने का वादा किया.
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क्रिकेट के मैदान पर
वापस दिल्ली पहुंचने के बाद ट्रूडो एक स्कूल में भी गए और वहां उन्होंने क्रिकेट में भी हाथ आजमाया. कनाडा की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम तो है, लेकिन वहां इस खेल को ज्यादा लोकप्रियता हासिल नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Swarup
मोदी से मुलाकात
और आखिरकार ट्रूडो की मोदी से मुलाकात हुई. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चिर परिचितित अंदाज में कनाडा के प्रधानमंत्री को गले से लगाया. राष्ट्रपति भवन में उनका भव्य स्वागत हुआ. दोनों नेताओं के बीच आंतकवाद, चरमपंथी और आपसी सहयोग के मुद्दों पर चर्चा हुई.
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कैबिनेट में ज्यादा सिख
46 साल के ट्रूडो ने एक बार कहा था कि उनकी कैबिनेट में मोदी की कैबिनेट से ज्यादा सिख हैं. कनाडा में स्थानीय सिख वोटरों को लुभाने के लिए कहा गया उनका यह जुमला भारत यात्रा के दौरान सोशल मीडिया पर छाया रहा.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Swarup
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कनाडा में भारत के राजदूत रह चुके अजय बिसारिया कहते हैं कि घरेलू राजनीति अक्सर आप्रवासियों के साथ विदेशों में पहुंच जाती है. उन्होंने कहा, "आप्रवासी अपने पुराने घर की पहचान को नए घर में लाते हैं. सरकारों का रुख उसे प्रभावित करता है. वे अक्सर घरों को ध्रुवीकृत राजनीति को विदेशों में ले आते हैं. सोशल मीडिया, तकनीक और आवाजाही बढ़ने के साथ घर से संपर्क भी मजबूत हुआ है. ब्रैंपटन और लीस्टर में तनाव रोकने के लिए आपके पास सीमाओं की सुविधा नहीं है. और हम देख चुके हैं कि पाकिस्तान की सरकारी एजेंसियां कश्मीर या खालिस्तान जैसे भारत विरोधी मुद्दों पर विरोध को हवा देती हैं.”