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ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी आने की वजह क्या है?

२० अगस्त २०१९

ऑटोमोबाइल सेक्टर भारत की जीडीपी में बड़े हिस्सेदारों में से एक है. जुलाई में वाहनों की बिक्री में 30 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है. इस मंदी का असर लाखों लोगों की नौकर पर पड़ने वाला है.

Výroba, Škoda Auto India
तस्वीर: SKODA AUTO

भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ाना और लाखों नए रोजगार पैदा करना. नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के सामने ये दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं.  मोदी के आलोचक कहते हैं कि उनकी सरकार का नौकरी देने पर बिल्कुल ध्यान नहीं हैं. मोदी सरकार का एक फ्लैगशिप कदम मेक इन इंडिया पिछले कार्यकाल में शुरू किया गया था. उम्मीद की गई थी कि इससे भारत एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा और नई नौकरियां पैदा होंगी. इस योजना के मुताबिक 2022 तक भारत की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 16 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करना और इस सेक्टर में करीब 10 करोड़ नौकरियां पैदा करना शामिल था.

इन सब महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर इस समय एक बुरे दौर से गुजर रहा है. अगस्त के तीसरे हफ्ते में जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक ऑटोमोबाइल उद्योग पिछले 19 साल के सबसे बुरे दौर में है. कारों की बिक्री पिछले साल की तुलना में करीब 30 प्रतिशत कम हो गई है. पिछले साल जुलाई में जहां 2,90,931 वाहन बिके थे, वहीं इस साल 2,00,790 वाहन ही बिके हैं. सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सिआम) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2000 में आई 35 प्रतिशत गिरावट के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है. यह लगातार नवां महीना है जब कारों की बिक्री में गिरावट दर्ज की गई है. यह विश्व के चौथे सबसे बड़े ऑटोमोबाइल बाजार में आई मंदी का संकेत है.

तस्वीर: Reuters/A. Mukherjee

कम हो रही है मांग

विश्लेषक कहते हैं कि बिक्री में कमी कमजोर पड़ रहे आर्थिक विकास और नकदी की कमी होने की निशानी है. इसकी वजह कुछ गैर बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों का खत्म हो जाना है जो ऑटोमोबाइल बाजार के लिए बहुत पैसा देती थीं. कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था की एक वजह वैश्विक कारोबारी युद्ध भी है. यही वजह है कि रिजर्व बैंक ने भारत की 2019-20 की विकास दर का अनुमान जून के अनुमान 7% से कम कर 6.9 % प्रतिशत कर दिया है. वाहन निर्माता भी फिलहाल पर्यावरण और सुरक्षा के लिए बनाए गए नए नियमों से जूझ रहे हैं. इन नियमों के लागू होने के बाद वाहनों की कीमत बढ़ जाएगी.

वायु प्रदूषण को कम करने की कोशिश में भारत सरकार वाहनों को ईंधन उत्सर्जन के भारत-6 मानक पर लाना चाहती है. 31 मार्च 2020 के बाद बाजार में सिर्फ भारत-6 मानक के ही वाहन आएंगे. यह अब तक का सबसे आधुनिक उत्सर्जन मानक है. यह यूरो-6 के समान है जो यूरोपीय देशों में चलता है. जानकारों के मुताबिक भारत-6 मानक लागू होने के बाद वाहनों की कीमतों में इजाफा हो जाएगा. इससे बिक्री में और कमी हो सकती है. साथ ही भारत-6 मानक लागू होने के बाद से डीजल इंजन तकनीक में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएंगे. इसी के चलते भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति ने अगले साल से अपनी डीजल कारों की बिक्री पर रोक लगाने का फैसला किया है.

ऑटोमोबाइल कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों के समूब ऑटोमोटिव कम्पोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसीएमए)  ने जुलाई में एक बयान जारी कर कहा," कम होती मांग, भारत-4 मानक से भारत-6 मानक के बदलाव के लिए किया गया निवेश और दो पहिया और तीन पहिया वाहनों को बिजली से संचालित करने की योजना की स्पष्ट नीति नहीं होने की वजह से इस उद्योग का भविष्य अधर में लटका हुआ है. इनकी वजह से अब नया निवेश भी नहीं आ रहा है. "

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

खतरे में नौकरियां

ऑटोमोबाइल सेक्टर की मंदी भारत की पूरी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि ऑटोमोबाइल सेक्टर भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है. सिआम के महानिदेशक विष्णु माथुर बताते हैं, "ऑटोमोबाइल सेक्टर की मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी में करीब 49 प्रतिशत और जीएसटी कलेक्शन में करीब 13-14 प्रतिशत हिस्सेदारी है. ऑटोमोबाइल उद्योग में करीब 3 करोड़ 70 लाख लोग काम करते हैं. अगर इस क्षेत्र में मंदी आई तो इसके बहुत व्यापक असर देखने को मिलेंगे. हाल के महीनों में आई मंदी से मोटे अनुमान के मुताबिक 15 कंपनियों में काम करने वाले करीब सात प्रतिशत अस्थाई कर्मचारियों की नौकरियां जा चुकी हैं."

समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक मारुति सुजुकी ने अपने अस्थाई कर्मचारियों में छह प्रतिशत की कमी की है. इस उद्योग में कमी आने से इससे जुड़े हुए दूसरे उद्योगों जैसे स्टील उत्पादकों, कलपुर्जे बनाने वालों और कार डीलरों पर भी असर होगा. एसीएमए के अध्यक्ष राम वेंकटरमानी कहते हैं, "ऑटोमोटिव उद्योग में एक अभूतपूर्व मंदी छाई हुई है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो करीब 10 लाख लोगों की नौकरियां जाने वाली हैं." ऑटोमोटिव कलपुर्जे बनाने वाले उद्योग भारत की जीडीपी में 2.3 प्रतिशत का योगदान देते हैं. मैन्युफैक्चरिंग उद्योग का 25 प्रतिशत जीडीपी इसी उद्योग से आता है. करीब 50 लाख लोग इस काम से जुड़े हुए हैं.

संकट में चल रहे उद्योग के बीच अब कारोबारी सरकार से किसी राहत पैकेज की उम्मीद कर रहे हैं. व्यापारियों का एक प्रतिनिधिमंडल वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से भी मिला. इस प्रतिनिधिमंडल ने उद्योग को संकट से निकालने के लिए सरकार से राहत पैकेज, टैक्स में कटौती और सब्सिडी देने की मांग की है. सिआम के महानिदेशक माथुर उम्मीद करते हैं कि सरकार जल्दी ही कोई बड़ा कदम उठाएगी जिससे उद्योग अपने पुराने रास्ते पर वापस आ सके.

मुश्किल में बाजार

परिस्थितियां जैसी भी हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उम्मीद है कि जल्दी ही ये बदल जाएंगी. इकनोमिक टाइम्स को दिए गए इंटरव्यू में मोदी ने कहा, "यह मंदी अस्थाई है. जल्दी ही उद्योग जगत में तेजी आएगी. यह तेजी पहले से अच्छी होगी." भारत के बाजार में जो भी हो रहा है उस पर दुनियाभर के कारनिर्माताओं की नजरें हैं. भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ रहे ऑटोमोटिव बाजारों में से एक है. एमकिंसकी का अनुमान है कि 2021 तक भारत जापान को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर आ जाएगा. फिर वह सिर्फ चीन और अमेरिका से ही पीछे रहेगा.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

कई कार निर्माता भारत को एक बड़ा बाजार मानकर उसमें दिलचस्पी ले रहे हैं. उनका मानना है कि अगले दशक में यह और भी बड़ा बाजार बनेगा. लेकिन कुछ विदेशी कंपनियों जैसे फॉक्सवैगन और फिएट के अनुभव भारत में अच्छे नहीं रहे हैं. भारत में लोग सस्ती और छोटी कार खरीदना चाहते हैं जिससे वे देश की संकरी सड़कों पर भी आसानी से चल सके हैं. प्रीमियम वाहनों के लिए भारतीय बाजार अभी उतना बड़ा नहीं है. बड़े लग्जरी ब्रांड जैसे मर्सडीज, ऑडी, बीएमडब्ल्यू, वॉल्वो और जगुआर लैंड रोवर ने कुल मिलाकर पिछले साल 40 हजार कारें बेचीं.

श्रीनिवास मजूमदार/ऋषभ शर्मा

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