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भारत, चीन बने रूसी तेल के बड़े खरीदार

१३ जून २०२२

भारत 2022 में अभी तक छह करोड़ बैरल रूसी तेल खरीद चुका है. चीन और दूसरे एशियाई देशों में भी रूसी तेल की खपत बढ़ रही है.

Russland, Petschorasee | Bohrinsel
तस्वीर: ITAR-TASS/imago

रूस से तेल ना खरीदने के अमेरिका के भारी दबाव के बावजूद भारत और दूसरे एशियाई देशों में रूसी तेल की खपत बढ़ती जा रही है. ऐसा ऐसे समय में हो रहा है जब यूरोपीय संघ और अमेरिका के दूसरे सहयोगी देश रूस से ऊर्जा के आयात से मुंह मोड़ रहे हैं. 

एशिया में इस खपत की वजह से रूस का निर्यात राजस्व बढ़ रहा है. कमोडिटी डाटा कंपनी कप्लर के मुताबिक भारत तो 2022 में अभी तक छह करोड़ बैरल रूसी तेल खरीद चुका है, जब कि 2021 में उसने सिर्फ 1.2 करोड़ बैरल रूसी तेल खरीदा था.

(पढ़ें: रूसी तेल का 90 फीसदी आयात रोकेगा यूरोपीय संघ)

भारत ने बढ़ाई खरीद

भारत ने फरवरी में प्रतिदिन रूसी तेल के 1,00,000 बैरल खरीदे थे जो अप्रैल में बढ़ कर 3,70,000 हो गए और मई में 8,70,000 हो गए. इसमें से एक बड़े हिस्से ने इराक और सऊदी अरब से तेल की जगह ले ली.

अमेरिका दूसरे देशों को रूसी तेल खरीदने से मना कर रहा हैतस्वीर: Evan Vucci/AP Photo/picture alliance

इसमें से अधिकांश तेल भारत के पश्चिमी तट पर सिका और जामनगर रिफाइनरियों में गया. अप्रैल तक रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी में संसाधित किए जाने वाले कच्चे तेल में पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सेदारी रूसी तेल की थी. सेंटर फॉर रिसर्चों ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के मुताबिक मई में ये बढ़ कर 25 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गई.

भारत से निर्यात होने वाले डीजल और अन्य तेल उत्पादों की मात्रा भी बढ़ गई है. यूक्रेन पर हमले से पहले यह 5,80,000 बैरल प्रतिदिन था और अब यह बढ़ कर 6,85,000 बैरल प्रतिदिन हो गया है.

(पढ़ें: रूसी गैस बंद हुई तो कोयला जलाकर मिलेगी जर्मनी को बिजली)

चीन और दूसरे एशियाई देशों को भी रूसी तेल की आपूर्ति बढ़ी है, हालांकि उसमें इतनी ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है. समाचार एजेंसी एपी को दिए एक साक्षात्कार में श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि संभव है आर्थिक संकट से गुजर रहे उनके देश को चलाते रहने के लिए उन्हें भी रूस से तेल खरीदना पड़े.

दूसरे एशियाई देश भी उसी राह पर

मई के आखिरी सप्ताह में श्रीलंका ने अपनी एकलौती रिफाइनरी को फिर से शुरू करने के लिए रूस से 90,000 मीट्रिक टन कच्चा तेल खरीदा था. फिलीपींस में रूस के राजदूत मरात पावलोव सोमवार को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति फर्डीनांड मार्कोस जूनियर से मिले और उनके देश को जितने तेल और गैस की जरूरत है उतना देने का प्रस्ताव दिया.

यूरोप भी रूसी तेल के बहिष्कार को लेकर दबाव बना रहा हैतस्वीर: Michal Dyjuk/AP/picture alliance

उन्होंने इस प्रस्ताव की शर्तें विस्तार से नहीं बताईं. मार्कोस जूनियर ने भी नहीं बताया कि वो प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं या नहीं. रूस उसके प्रस्ताव में रुचि ले रहे देशों को कच्चा तेल भारी छूट के बाद 30 से 35 डॉलर प्रति बैरल के दाम पर दे रहा है. इसके मुकाबले ब्रेंट और अन्य कच्चे तेलों का दाम इस समय 120 डॉलर प्रति बैरल चल रहा है.

(पढ़ें: रूसी गैस पर निर्भरता खत्म करने में क्या इस्रायल मददगार होगा)

कप्लर में लीड एनालिस्ट मैट स्मिथ कहते हैं, "ऐसा लगता है कि एक स्पष्ट ट्रेंड जड़ें जमा रहा है. लोगों को अहसास हो रहा है कि भारत रिफाइनिंग का बड़ा हब है जो इस तेल को सस्ते दाम पर खरीद रहा है, रिफाइन कर रहा है और उसे दूसरे उत्पादों के रूप में बेच कर भारी मुनाफा कमा रहा है."

मई में करीब 30 रूसी टैंकर कच्चा तेल लिए भारत पहुंचे और देश में रोज लगभग 4,30,000 बैरल तेल प्रतिदिन उतारा. फिनलैंड स्थित सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के मुताबिक जनवरी से मार्च के बीच सिर्फ 60,000 बैरल तेल प्रतिदिन पहुंचा.

जरूरत पड़ी तो कार्टेल भी बनेगा

चीन में भी सरकारी और स्वतंत्र रिफाइनिंग कंपनियों ने खरीद बढ़ा दी है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक 2021 में ही चीन रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार था और वो औसतन 16 लाख बैरल तेल प्रतिदिन खरीद रहा था.

भारत ने यूरोप से कहा है कि पहले वो रूस से गैस खरीदना बंद करेतस्वीर: Michael A. McCoy/Pool/REUTERS

इस बीच अमेरिका और यूरोपीय देश रूसी तेल के दाम पर एक सीमा लगाने के लिए तरह तरह के कदमों पर "बेहद सक्रिय" स्तर पर चर्चा कर रहे हैं. यह अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने संसद की एक समिति को पिछले सप्ताह बताया. उन्होंने यह भी बताया कि इसके लिए अगर आवश्यक को तो एक कार्टेल बनाने पर भी चर्चा चल रही है. 

(पढ़ें: बिना रूसी तेल के क्या यूरोप चल पायेगा)

इसका उद्देश्य है वैश्विक बाजार में कच्चे तेल को पहुंचने से रोकना ताकि कच्चे तेल के बढ़े हुए दामों को और बढ़ने से रोका जा सके. इस साल दाम पहले ही 60 प्रतिशत बढ़ चुके हैं. येलेन ने कहा कि उद्देश्य रूस को पहुंचने वाले राजस्व को सीमित करना है. हालांकि उन्होंने संकेत दिया कि इसके बारे में पक्की रणनीति पर अभी फैसला नहीं हुआ है.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जोर दे कर कहा है कि उनके देश का इरादा अपने हितों के लिए काम करने का है. उन्होंने हाल ही में स्लोवाकिया में एक फोरम में कहा, "अगर भारत के रूसी तेल खरीदने से रूस के युद्ध का वित्त पोषण हो रहा है तो मुझे बताइए कि क्या रूस से गैस खरीदने से युद्ध का वित्त पोषण नहीं हो रहा है? हमें थोड़ा निष्पक्ष होना चाहिए."

वो यूरोप के रूसी गैस खरीदने की बात कर रहे थे. सीआरईए में लीड एनालिस्ट लॉरी मिलिवर्ता ने बताया कि भारत के डीजल निर्यात का काफी हिस्सा एशिया में बिक जाता है लेकिन इसमें से करीब 20 प्रतिशत माल सुएज नहर के रास्ते यूरोप या अमेरिका के लिए गया.

(पढ़ें: युद्ध के 2 महीने में जर्मनी ने खरीदा सबसे ज्यादा रूसी तेल)

उन्होंने बताया कि भारत से बाहर भेजे जा रहे रिफाइंड उत्पादों में कितना रूसी तेल यह कह पाना असंभव है, उन्होंने कहा कि फिर भी, "भारत रूस तेल के बाजार तक पहुंचने का एक रास्ता उपलब्ध करा रहा है."

सीके/एए (एपी)

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