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भारत ने और कड़े किए जलवायु संरक्षण के लक्ष्य

चारु कार्तिकेय
४ अगस्त २०२२

मोदी सरकार ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की पहल के तहत भारत की तरफ से पहले से भी बड़े लक्ष्यों की घोषणा की है. नए लक्ष्य पहले से ज्यादा महत्वाकांक्षी हैं. इनका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के अभियान को मजबूत करना है.

Indien | Luftverschmutzung in Chennai
तस्वीर: Sri Loganathan/ZUMAPRESS/picture alliance

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) को सूचित किए जाने वाले भारत के नए लक्ष्यों को मंजूरी दे दी है. एनडीसी के नाम से जाने जाने वाले इन लक्ष्यों के तहत भारत ने प्रतिबद्धता जताई है कि वो 2030 तक 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करेगा.

अभी तक यह लक्ष्य 33 से 35 प्रतिशत तक का था. इसके अलावा 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति की स्थापित क्षमता प्राप्त करने के लक्ष्य के प्रति भी प्रतिबद्धता जताई गई है. अभी तक यह लक्ष्य 40 प्रतिशत तक का था.

इन लक्ष्यों को हासिल करने का वादा सबसे पहले मोदी ने 2021 में ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित यूएनएफसीसीसी के पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी26) के 26वें सत्र में किया था. मोदी ने कुल पांच नए लक्ष्यों के बारे में बताया था और उन्हें अमृततत्व (पंचामृत) की संज्ञा दी थी. इनमें से दो को बाकायदा लक्ष्य बना कर भारत के एनडीसी में शामिल कर लिया गया है.

सरकार का कहना है कि नए लक्ष्य 2070 तक नेट-जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी देश की मदद करेंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी के बाकी तीनों वादे भी इन दोनों से जुड़े हुए हैं और एक मोर्चे पर भी अगर प्रगति होती हैं तो उसका सकारात्मक असर बाकी मोर्चों पर भी पड़ेगा.

यूएनएफसीसीसी में शामिल देशों को अपने अपने एनडीसी को समय समय पर अंतिम रूप दे कर संस्था के आगे रखना होता है. भारत ने 2015 में अपना पहला एनडीसी बनाया था जिसमें आठ गोल थे. इनमें से सिर्फ तीन को लक्ष्य बनाया गया था. उत्सर्जन और बिजली उत्पादन के अलावा तीसरा लक्ष्य जंगलों से संबंधित था.

लक्ष्य निर्धारित किया गया था कि भारत 2030 तक ढाई से तीन अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर एक अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाएगा. कार्बन सिंक यानी कार्बन को सोखने का एक कृत्रिम उपाय.

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