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बाजार में 2000 रुपये के नोट को लेकर असमंजस

२५ मई २०२३

2000 रुपये के नोट की विदाई 2019 में ही तय हो गई थी जब इस मूल्य-वर्ग के नए नोट छापने बंद कर दिए गए थे. लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसे लाया ही क्यों गया था और अगर यह काम का था तो अब हटाया क्यों जा रहा है.

2000 रुपये का नोट
2000 रुपये का नोटतस्वीर: Janusz Pienkowski/Zoonar/picture alliance

करीब चार साल पहले ही इस नोट की छपाई बंद हो जाने के बावजूद इस समय 3,620 अरब रुपये मूल्य के नोट, यानी करीब 1.81 अरब नोट, चलन में हैं. जाहिर है इन्हें या तो बैंकों में जमा करने की या खर्च करने की कोशिश की जाएगी.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस समय इन नोटों को लेकर काफी असमंजस चल रहा है. एक तरफ लोग यह भी जानना चाह रहे हैं कि अगर नोट 30 सितंबर के बाद कानूनी रूप से वैध रहेगा तो इसे लौटाने के लिए क्यों कहा जा रहा है. दूसरी तरफ नोट को अपने पास से निकालने की होड़ भी लगी हुई है.

बड़ी रकम का इस्तेमाल संपत्ति और सोना खरीदने में किया जा रहा है तो छोटी रकम में ये नोट ई-कॉमर्स कंपंनियों से सामान मंगवाने और सुपरमार्केटों और पेट्रोल पंप पर खर्च करने के काम आ रहे हैं.

कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक अब लोगों का 500 रुपये के नोट में भी विश्वास कम हो सकता हैतस्वीर: ingimage/IMAGO

इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक पेट्रोल पंपों पर 90 प्रतिशत नगद लेन देन इस समय 2,000 के नोटों से हो रहा है और डिजिटल भुगतान 40 प्रतिशत से 10 प्रतिशत पर आ गया है.

क्यों वापस लिया गया 2000 का नोट

आरबीआई ने कहा है कि 2000 रुपये के नोट को नवंबर 2016 में नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था में आई मुद्रा की कमी को पूरा करने के लिए लाया गया था. दूसरे मूल्य वर्गों के नोटों के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के बाद यह उद्देश्य पूरा हो गया था. इसलिए 2018-19 में इसकी छपाई बंद कर दी गई थी.

आरबीआई ने यह भी कहा कि इन नोटों की आयु चार से पांच साल तक ही थी. चूंकि करीब 89 प्रतिशत 2,000 के नोट मार्च 2017 से पहले जारी किए गए थे, इसलिए इनकी आयु समाप्त ही होने वाली है. इसके अलावा यह भी देखा गया है कि इस नोट का लेन देन के लिए कम ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

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इसके अलावा आरबीआई ने नोट को वापस लेने के लिए "क्लीन नोट पॉलिसी' का भी हवाला दिया. इस नीति का ध्येय है अच्छी गुणवत्ता और बेहतर सुरक्षा की विशेषताओं वाले नोट और सिक्के जनता को उपलब्ध करना और गंदे हो चुके नोटों को चलन से निकाल देना.

हालांकि जानकारों की इस पर अलग राय है. अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है कि इस नोट को छापने की तैयारी नोटबंदी से महीनों पहले शुरू कर दी गई थी, बल्कि नोटबंदी ही इसलिए की गई ताकि इस नोट को बाजार में लाया जा सके.

कुमार के मुताबिक आरबीआई ने 2015 में ही केंद्रीय वित्त मंत्रालय से 2,000, 5,000 और 10,000 के नोट छापने की इजाजत मांगी थी. मंत्रालय ने 5,000 और 10,000 के नोटों की इजाजत तो नहीं दे, लेकिन 2,000 के नोट छापने की इजाजत दे दी.

हालांकि कुमार का यह भी कहना है कि अब इस नोट को बंद कर देने से डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने के लक्ष्य को और मजबूती मिल सकती है. उनके मुताबिक अब लोगों का 500 रुपये के नोट में भी विश्वास कम हो सकता है और ऐसे लोग डिजिटल लेन देन और बचत की तरफ बढ़ने को मजबूर हो जाएंगे.

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