भारत के जंगलों के हाल पर ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में जंगलों के इलाके में 1,540 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है. लेकिन साथ ही 1,643 वर्ग किलोमीटर के घने जंगलों का नाश भी हुआ है.
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केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय हर दो सालों पर स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (2021) जारी करता है. पिछली रिपोर्ट 2019 में जारी की गई थी. 2021 की रिपोर्ट 1987 से शुरू हुई इस श्रंखला की 17वीं रिपोर्ट है.
मोटे तौर पर ताजा रिपोर्ट में जंगलों के विकास की स्थिति सकारात्मक ही बताई गई है. 2019 से 2021 के बीच देश में जंगलों के इलाके में 1,540 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई. इसी के साथ देश में जंगलों का इलाका बढ़ कर 7,13,789 वर्ग किलोमीटर हो गया.
यह देश के कुल भौगोलिक इलाके का 21.71 प्रतिशत है, जो 2019 के प्रतिशत (21.67 प्रतिशत) के मुकाबले बस थोड़ी से वृद्धि है. पेड़ों के इलाके में 721 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है.
घने जंगलों का सवाल
खारे पानी में पाए जाने वाले मैंग्रोव 17 प्रतिशत बढ़े हैं और अब 4,992 वर्ग किलोमीटर में फैल गए हैं. जिन राज्यों में जंगलों में सबसे ज्यादा इजाफा हुआ है उनमें शामिल हैं तेलंगाना (3.07%), आंध्र प्रदेश (2.22%) और ओडिशा (1.04%).
11 राज्यों में जंगलों का इलाका कम हुआ है. पूर्वोत्तर में जंगलों को काफी नुकसान हुआ है और पांच राज्यों में जंगल काफी कम हो गए हैं. इनमें अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड शामिल हैं.
लेकिन रिपोर्ट को बारीकी से देखने पर पता चलता है कि जंगलों के इलाके में बढ़त घने नहीं बल्कि कम घने जंगलों में आ रही है. घने जंगल लगातार घटते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है.
इस समय जंगलों के कुल इलाके में घने जंगलों की हिस्सेदारी सिर्फ 3.04 प्रतिशत है, जबकि सबसे ज्यादा हिस्सेदारी (9.34 प्रतिशत) खुले जंगलों की है.
पिछले दो सालों में "बहुत घने जंगल" श्रेणी में सिर्फ 501 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है, जबकि खुले जंगल 2,612 वर्ग किलोमीटर बढ़े हैं. "सामान्य घने जंगल" श्रेणी में 1,582 वर्ग किलोमीटर जंगल नष्ट हुए हैं. जानकारों का कहना है कि यह दिखाता है कि देश में प्राकृतिक जंगल खुले जंगलों में बदलते जा रहे हैं जिसका मतलब कुल मिला कर जंगलों का घटना ही है.
धरती के सबसे महत्वपूर्ण सात वन
धरती के ये सात वन पर्यावरण का जीवन हैं. लेकिन इनके अपने जीवन पर कई तरह के खतरे मंडरा रहे हैं. देखिए, पृथ्वी के सात सबसे महत्वपूर्ण जंगलों को और सोचिए, कैसे बचेंगे ये जंगल...
तस्वीर: Sergi Reboredo/picture alliance
अमेजोन के जंगल
दक्षिण अमेरिका में अमेजन के जंगल दुनिया के सबसे अधिक जैव विविधता वाल जगहों में से एक हैं. कार्बन को सोखने का यह सबसे अहम स्रोत है इसलिए इसे धरती के फेफड़े भी कहते हैं. लेकिन कटाई और पशुपालन ने 20 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल खत्म कर दिए हैं. एक हालिया अध्ययन के मुताबिक अमेजोन के कुछ हिस्से अब जितनी कार्बन सोखते हैं उससे ज्यादा उत्सर्जित करते हैं.
तस्वीर: Florence Goisnard/AFP/Getty Images
टाएगा
स्कैंडेनीविया और रूस में फैले ये वन ज्यादातर शंकुधारी वृक्षों से बने हैं. सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस में पिछले कुछ दशकों की आर्थिक गिरावट ने इन वनों को खतरे में डाल दिया है.
तस्वीर: Sergi Reboredo/picture alliance
बोरियल वन
टाएगा वनों का जो हिस्सा उत्तरी अमेरिका में पड़ता है उसे बोरियल कहते हैं. यह अलास्का से क्यूबेक तक फैले हैं और कनाडा के लगभग एक तिहाई हिस्से को कवर करते हैं. इनका आठ प्रतिशत हिस्सा ही सुरक्षित श्रेणी में है और कागज व लकड़ी का सबसे बड़ा निर्यातक कनाडा हर साल 4,000 वर्ग किलोमीटर वन काट रहा है.
तस्वीर: Jon Reaves/robertharding/picture alliance
कॉन्गो बेसिन
कॉन्गो नदी दुनिया के सबसे पुराने और घने जंगलों को पाल पोस रही है. अफ्रीका के सबसे प्रसिद्ध जानवरों जैसे गोरिल्ला, हाथी और चिंपाजी आदि के घर ये वन ही हैं. लेकिन यहां तेल, सोना और हीरे जैसी बेशकीमती चीजें भी खूब मिलती हैं जो इन वनों के लिए खतरा बन गई हैं.
ब्रुनई, इंडोनेशिया और मलयेशिया में लगभग 14 करोड़ साल पुराने ये जंगल कुछ अद्भुत जीवों के घर हैं. लेकिन लकड़ी, पाम ऑयल, रबर और अन्य खनिजों ने इन वनों को खतरे में डाल दिया है.
तस्वीर: J. Eaton/AGAMI/blickwinkel/picture alliance
प्रिमोराइ वन
रूस के सुदूर उत्तर में स्थित ये साइबेरियाई बाघ और दर्जनों अन्य ऐसी प्रजातियों को सहेजे हैं जिनका वजूद खतरे में है. इनका दूर होना फिलहाल इन्हें बचाए रखे है लेकिन व्यवसायिकता की आंच यहां भी महसूस होने लगी है.
तस्वीर: Zaruba Ondrej/dpa/CTK/picture alliance
वाल्दीवियाई वन
प्रशांत महासागर और आंदेस के बीच एक पतली सी पट्टी पर यह घना वन बसा है. यहां सदियों तक जीवित रहने वाले और धीमा जीवन जीने वाले वृक्ष हैं. लेकिन उनकी लकड़ी के कारण अब वक्त की आरी इन की ओर बढ़ रही है.
तस्वीर: Kevin Schafer/NHPA/photoshot/picture alliance