अरब सागर में भारत आ रहे व्यापारिक जहाज पर ड्रोन हमले के बाद भारतीय नौसेना ने तीन युद्धपोतों की तैनाती की है.
विज्ञापन
अरब सागर में शनिवार को व्यापारिक जहाज एमवी केम प्लूटो पर ड्रोन हमला हुआ था. इस जहाज पर पोरबंदर से 217 समुद्री मील की दूरी पर ड्रोन हमला हुआ था. इस जहाज में चालक दल के 21 सदस्यों में भारतीय हैं, जो पूरी तरह सुरक्षित हैं.
लाइबेरिया के झंडे वाले व्यापारिक जहाज प्लूटो के सोमवार को मुंबई पहुंचने पर भारतीय नौसेना ने उसका विस्तृत निरीक्षण किया. जहाज को तटरक्षक बल के जहाज विक्रम की सुरक्षा में मुंबई लाया गया. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक नौसेना के अधिकारियों ने कहा है कि हमले वाली जगह और जहाज पर पाए गए मलबे का विश्लेषण करने पर ड्रोन हमले का संकेत मिलता है.
विज्ञापन
ड्रोन हमले में किसका हाथ
नौसेना के प्रवक्ता ने कहा, "हालांकि, इस्तेमाल किए गए विस्फोटक के प्रकार और मात्रा समेत हमले के स्रोत को स्थापित करने के लिए आगे फॉरेंसिक और तकनीकी विश्लेषण की जरूरत होगी." प्रवक्ता ने कहा कि विस्फोटक आयुध रोधी दल द्वारा जहाज का विश्लेषण पूरा करने के बाद विभिन्न एजेंसियों ने संयुक्त जांच शुरू की.
तटरक्षक बल, नौसेना और खुफिया एजेंसियां मिलकर यह जांच कर रही है कि हमला कैसे हुआ था, जिससे जहाज पर आ लग गई थी. यह जहाज सऊदी अरब के अल जुबैल बंदरगाह से न्यू मैंगलोर बंदरगाह तक कच्चा तेल ले जा रहा था. ड्रोन हमले में किसी को चोट नहीं आई थी.
नौसेना के प्रवक्ता ने बताया, "एमवी प्लूटो को मुंबई में उसके कंपनी प्रभारी द्वारा आगे के संचालन के लिए मंजूरी दे दी गई है. जहाज को जहाज से जहाज तक माल ट्रांसफर करने से पहले विभिन्न तरह की अनिवार्य जांच से गुजरना होगा."
प्रवक्ता ने आगे बताया, "इसके बाद एमवी केम प्लूटो के क्षतिग्रस्त हिस्से की डॉकिंग और मरम्मत होने की संभावना है."
टकराने से बचे अमेरिकी और चीनी युद्धपोत
02:37
भारतीय नौसेना सतर्क
अधिकारियों ने कहा कि अरब सागर में वाणिज्यिक जहाजों पर हमलों के मद्देनजर, नौसेना ने क्षेत्र में निगरानी के लिए लंबी दूरी के पी-8आई गश्ती विमान, युद्धपोत आइएनएस मोरमुगाओ, आइएनएस कोच्चि और आइएनएस कोलकाता को तैनात किया है.
भारतीय रक्षा मंत्रालय का कहना है कि भारतीय नौसेना सभी हितधारकों के साथ स्थिति की बहुत बारीकी से निगरानी कर रही है और क्षेत्र में व्यापारिक नौवहन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.
इस्राएल और हमास संघर्ष के बीच लाल सागर और अदन की खाड़ी में ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों ने हाल के दिनों में विभिन्न मालवाहक जहाजों को निशाना बनाया है. लाल सागर और अदन खाड़ी से गुजरने वाले जहाजों को ड्रोन और मिसाइलों द्वारा निशाना बनाया गया.
पेंटागन के एक प्रवक्ता ने रविवार को कहा कि एमवी केम प्लूटो "ईरान से छोड़े गए एक ड्रोन के हमले की चपेट में आया था." इस बीच ईरान ने सोमवार अमेरिका के इस दावे को नकार दिया.
पिछले हफ्ते ही अमेरिका ने लाल सागर में समुद्री वाणिज्य की सुरक्षा के लिए एक बहुराष्ट्रीय अभियान की घोषणा की थी. सुरक्षा के उपाय के तरीके के रूप में, ब्रिटेन, बहरीन, कनाडा, फ्रांस, इटली, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, सेशेल्स और स्पेन दक्षिणी लाल सागर और अदन की खाड़ी में संयुक्त रूप से गश्त करेंगे.
क्षेत्र में अमेरिकी और ब्रिटिश युद्धपोतों ने हाल के दिनों में हूथी मिसाइलों और ड्रोनों को मार गिराना शुरू कर दिया है. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि बड़े नौसैनिक बल की मौजूदगी हमलों को पूरी तरह से रोकने के लिए पर्याप्त होगी या नहीं.
डूबने से पहले ऐसे थे टाइटैनिक के आखिरी पल
14 अप्रैल, 1912 को जब सूरज ढला, तब उस 882 फीट लंबे जहाज पर सवार लोगों में कोई नहीं जानता था कि यह उस जहाज की आखिरी शाम है. उन्हें नाज था कि वे दुनिया के सबसे आलीशान और अत्याधुनिक जहाज 'आरएमएस टाइटैनिक' पर सवार हैं.
तस्वीर: Disney Pictures/Mary Evans/imago images
गलतियां, लापरवाहियां...
बसंत के महीने में नॉर्थ अटलांटिक के भीतर आइसबर्ग की मौजूदगी आम थी. 14 अप्रैल, 1912 को भी समुद्र जमा हुआ था. कैप्टन एडवर्ड जे स्मिथ जानते थे कि रास्ते में आइसबर्ग मिल सकता है. फिर भी जहाज की रफ्तार धीमी नहीं की गई. तब किसी को आभास नहीं था कि कुछ ही घंटों में टाइटैनिक सागर की ठंडी सतह के नीचे डूब जाएगा. वो मिलेगा, लेकिन 73 साल बाद... 1985 में. करीब 12,500 फुट की गहराई में, समंदर की तलहटी पर.
तस्वीर: Mary Evans Picture Library/ONSLO/picture-alliance
चेतावनियों की अनदेखी
उस शाम 7:30 बजे तक टाइटैनिक को नजदीकी जहाजों से पांच चेतावनियां भी मिलीं, मगर इनपर सजगता नहीं दिखाई गई. रात के 11 बजने में पांच मिनट थे, जब कुछ दूरी से 'कैलिफॉर्नियन' नाम के एक जहाज ने रेडियो पर संदेश भेजा. ऑपरेटर ने बताया कि इतनी बर्फ है कि जहाज को रुकना पड़ा है.
तस्वीर: Disney Pictures/Mary Evans/imago images
"आइसबर्ग, राइट अहेड"
उस रात समंदर पर नजर रखने की ड्यूटी फ्रेडरिक फ्लीट और रेजनल्ड ली की थी. रात करीब 11:40 पर फ्लीट को जहाज के सामने कुछ दिखा, समंदर से भी स्याह. जहाज करीब पहुंचा, तो दिखा कि वह एक विशाल आइसबर्ग था. फ्लीट ने झटपट तीन बार वॉर्निंग बेल बजाई और ब्रिज पर फोन किया. वहां फर्स्ट ऑफिसर विलियम मरडॉक ने रिसीवर उठाकर पूछा, "क्या देखा तुमने?" फ्लीट का जवाब था, "आइसबर्ग, बिल्कुल सामने." (तस्वीर में, कैप्टन स्मिथ)
तस्वीर: picture alliance / Design Pics
बहुत देर हो चुकी थी
ऑफिसर मरडॉक ने इंजन रूम (टेलिग्राफ मॉडल) के हैंडल को झटके से खींचा और रोकने की कोशिश की. बायें जाने का निर्देश दिया. उस निर्णायक घड़ी में आइसबर्ग से भिड़ंत टालने के लिए जो समझ आया, वो निर्देश दिया. अब बारी थी यह देखने की कि कोशिश कामयाब हुई कि नहीं. करीब 30 सेकेंड तक क्रू दम साधे इंतजार करता रहा. उन्हें लगा, बाल-बाल बचे. लेकिन असल में जो हुआ था, वो उनकी आंखें देख नहीं पाई थीं.
तस्वीर: Disney Pictures/Mary Evans/imago images
दो घंटे का वक्त बचा था
आइसबर्ग का बड़ा हिस्सा पानी की सतह से नीचे होता है. यही हिस्सा टाइटैनिक के स्टारबोर्ड हल प्लेट्स से लगा. जहाज के 'वेल डेक' पर बर्फ के टुकड़े गिरे. समझ आ गया कि आइसबर्ग से टक्कर हुई है. फॉरवर्ड बॉइलर और मेल रूम्स में क्रू ने देखा कि कंपार्टमेंटों में पानी घुस रहा है. स्पष्ट हो गया कि एक-एक करके कंपार्टमेंट्स में पानी भरता जाएगा. अनुमान लगाया गया कि अब टाइटैनिक के पास तकरीबन दो घंटे का समय बचा है.
तस्वीर: AFP/Fox/dpa/picture-alliance
सबके लिए नहीं थे लाइफबोट
टाइटैनिक का सफर शुरू होने से पहले ऐसा माना जा रहा था कि अगर इसमें दुर्घटना होती भी है, तो भी यह इतने समय तक पानी पर तैरता रहेगा कि यात्रियों को सुरक्षित बचाने का समय मिल जाएगा. शायद इसीलिए टाइटैनिक पर लाइफबोट का अनुपात यात्रियों के मुकाबले काफी कम था. करीब 2,200 यात्री थे और लाइफबोट और 'कोलैप्सिबल्स' मिलाकर 1,178 की ही जगह थी. तस्वीर में: मारे गए यात्रियों में से एक इजिडोर स्ट्रॉस.
आइसबर्ग को जहाज से टकराए करीब दो घंटे, चालीस मिनट बीते थे कि 'अनसिंकेबल' कहलाने वाले टाइटैनिक का पिछला हिस्सा पानी से बाहर ऊपर की ओर उठा और आगे के हिस्से ने समंदर में डुबकी लगाई. जहाज के पिछले हिस्से में बने आफ्टरडेक को कसकर पकड़े लोग अब समंदर में छलांग लगाने लगे. तस्वीर में: चीन में बनाई जा रही टाइटैनिक की एक प्रतिकृति.
तस्वीर: Noel Celis/AFP/Getty Images
केवल 705 लोग जिंदा बचे
14 और 15 अप्रैल, 1912 की दरम्यानी रात करीब 2:20 बजे टाइटैनिक डूब गया. 1,500 से ज्यादा लोग या तो डूबकर मर गए, या अटलांटिक के ठंडे पानी ने उनकी जान ले ली. अपने इस दुखांत के साथ टाइटैनिक का किस्सा, दुनिया की सबसे मशहूर और नाटकीय कहानियों में शुमार हो गया. तस्वीर में: टाइटैनिक हादसे में मारी गईं एक यात्री ईडा स्ट्रॉस.