ऑस्ट्रेलियाई फिल्मनिर्माता को नहीं मिला भारत में प्रवेश
२७ सितम्बर २०२४
ऑस्ट्रेलियाई फिल्मनिर्माता डेविड ब्रैडबरी को चेन्नई हवाई अड्डे से वापस भेज दिए जाने के बाद भारत में अभिव्यक्ति की आजादी और सरकारी एजेंसियों द्वारा उनकी शक्ति के दुरूपयोग को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है.
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डेविड ब्रैडबरी 11 सितंबर, 2024 की रात अपनी 21 साल की बेटी और 14 साल के बेटे के साथ बैंकॉक से कुछ दिनों की यात्रा के लिए भारत पहुंचे थे. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, चेन्नई हवाई अड्डे पर इमीग्रेशन अधिकारियों ने उनके बच्चों को तो जाने दिया, लेकिन उन्हें रोक लिया.
उसके बाद उन्हें हवाई अड्डे पर ही एक कमरे में ले जाया गया, 24 घंटे वहीं पर रखा गया और अंत में बैंकॉक वापस भेज दिया गया. उनके बच्चे भारत में ही रह गए. ब्रैडबरी ने कुछ मीडिया संगठनों से बात की है और उनके बताया है कि अधिकारियों ने उनके प्रति किए गए इस बर्ताव का कारण नहीं बताया, लेकिन उनसे कई साल पहले भारत में किए गए उनके काम के बारे में पूछताछ जरूर की गई.
कौन हैं डेविड ब्रैडबरी
डेविड ब्रैडबरी एक जाने माने फिल्मनिर्माता हैं. उन्होंने कई विषयों पर फिल्में बनाई हैं, जिनमें से दो के लिए उन्हें ऑस्कर पुरस्कारों के लिए मनोनीत भी किया जा चुका है. उन्होंने परमाणु ऊर्जा पर अपनी एक डाक्यूमेंट्री के लिए 2012 में तमिलनाडु के कुडनकुलम में परमाणु ऊर्जा प्लांट के निर्माण के खिलाफ इडिनतकरई में चल रहे प्रदर्शनों को अपने कैमरे में कैद किया था.
73 साल के ब्रैडबरी ने दन्यूजमिनट वेबसाइट को बताया कि हवाई अड्डे पर सादी वर्दी में दो पुरुषों ने उनसे पूछताछ की और विशेष रूप से कुडनकुलम प्रदर्शनों में उनकी भूमिका के बारे में सवाल पूछे. ब्रैडबरी ने वेबसाइट को बताया कि उन्होंने उन अधिकारियों से कहा कि वो इडिनतकरई के लोगों से सहमत थे और उनका मानना है कि ऐसी जगह पर एक नहीं छह परमाणु प्लांट बनाना "पागलपन" था, जहां प्रमुख भूकंप फॉल्टलाइन है और जहां 2004 में सुनामी 1,000 लोगों को बहा ले गई थी.
वेबसाइट के मुताबिक उन्होंने अधिकारियों से यह भी कहा कि अगर भारत सही में एक लोकतंत्र है, तो उसे वंचित लोगों तक पहुंचने और उनकी कहानी में उनका पक्ष सामने रखने के मीडिया के अधिकार को महत्व देना चाहिए. ब्रैडबरी की पार्टनर और उनके बेटे की मां ट्रीना लेन्थाल का कुछ ही महीने पहले देहांत हुआ है. इस यात्रा में ब्रैडबरी अपने बच्चों को बनारस भी ले जाने वाले थे ताकि वे हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु को लेकर मानी जाने वाली मान्यताओं को भी समझ सकें.
ब्रैडबरी की गैर-मौजूदगी में उनके बच्चों को यह काम अकेले ही करना पड़ा. उनकी बेटी ने दन्यूजमिनट को बताया कि यात्रा से पहले उनके पिता का वीजा आने में थोड़ी देर हुई थी लेकिन वह अंत में आ गया था. यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अगर ब्रैडबरी को वीजा मिल गया था तो उनको भारत में रुकने क्यों नहीं दिया गया.
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क्या थे कुडनकुलम प्रदर्शन
कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा प्लांट भारत का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा प्लांट है. यह तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के कुडनकुलम शहर में स्थित है. इसे बनाने में रूस ने भारत का सहयोग किया है. इसका निर्माण 2002 में शुरू किया गया था और अक्टूबर, 2013 से यहां बिजली बनाई भी जा रही है.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.
लेकिन 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु हादसे के बाद कुडनकुलम में भी बन रहे प्लांट के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए और धीरे धीरे व्यापक हो गए. 2011 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी डाली गई, जिसमें मांग की गई कि जब तक प्लांट को लेकर सुरक्षा की चिंताएं दूर नहीं हो जाती हैं, तब तक प्लांट का काम रोक दिया जाए. मई, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्लांट के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि प्लांट का निर्माण जनहित में है.