भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते की डगर कठिन क्यों है?
विवेक कुमार
२९ नवम्बर २०२२
भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते को लेकर तीसरे दौर की बातचीत शुरू हो गई है. 15 साल से दोनों पक्ष यह समझौता करने की कोशिश में हैं. ऐसी क्या दिक्कतें हैं कि इतना वक्त लग गया है?
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भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते के लिए तीसरे दौर की बातचीत हो रही है. इस हफ्ते नई दिल्ली में शुरू हुई यह बातचीत तीन हफ्ते तक चलेगी और इसमें कृषि उत्पाद, डिजिटल व्यापार, पर्यावरण और बौद्धिक संपदा जैसे मुद्दों पर बात होगी. दोनों पक्षों के बीच जियोग्राफिकल इंडिकेटर (जीआई) और निवेश सुरक्षा समझौते पर भी चर्चा होने की संभावना है.
इससे पहले दूसरे दौर की बातचीत अक्टूबर में ब्रसेल्स में हुई थी. कई यूरोपीय देश इस समझौते को लेकर उत्सुक हैं जिनमें जर्मनी भी है. भारत में जर्मनी के राजदूत डॉ. फिलिप आकरमान ने भारतीय अखबार फाइनैंशल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि जर्मनी इस समझौते को लेकर बहुत उत्सुक है लेकिन कई जटिल मुद्दों को सुलझाए जाने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, "जर्मनी बहुत उत्सुक है लेकिन कई मुश्किल सवाल हैं जिनका हल तलाशना है. यूरोपीय संघ ने मानकों के सवालों को उठाया है. भारत और यूरोपीय संघ, दोनों ही बात कर रहे हैं. मैं इस बात की गारंटी तो नहीं दे सकता कि 2023 से पहले यह हो जाएगा.”
गजब ट्रांसलेटरः इधर बोले, उधर ट्रांसलेशन
चीन के बीजिंग में शीत ओलंपिक के दौरान विदेशी मेहमानों से पैसा कमाने में एक छोटी सी डिवाइस स्थानीय व्यापारियों की खूब मदद कर रही है. देखिए यह कमाल का ट्रांसलेटर...
तस्वीर: Yiming Woo/REUTERS
कमाल का ट्रांसलेटर
बीजिंग में अंग्रेजी ना जानने वाले दुकानदारों को विदेशी ग्राहकों से बात करने में कोई दिक्कत नहीं होती. यह फोन जैसी डिवाइस उनके काम आती है.
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इधर बोला, उधर अनुवाद हाजिर
ग्राहक और दुकानदार एक दूसरे से इसी डिवाइस के जरिए बात करते हैं. कोई एक अपनी भाषा में बोलता है और यह डिवाइस फौरन उसे दूसरे की भाषा में ट्रांसलेट करके सुना देती है.
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स्मार्ट ट्रांसलेटर
यह डिवाइस स्मार्ट ट्रांसलेटर है जिसे चीन में ही विकसित किया गया है. यह ट्रांसलेटर मैंडरिन से कई भाषाओं में अनुवाद कर सकता है, मसलन, अंग्रेजी, जर्मन, नॉर्वेजियन, फ्रेंच और रशियन.
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बीजिंग ओलंपिक में प्रयोग
बीजिंग में ओलंपिक के लिए पहुंचे विदेश खिलाड़ी, कोच, पत्रकार, तकनीशियन आदि हजारों लोग हैं जो इसी डिवाइस के चलते स्थानीय व्यापारियों के आसान ग्राहक बन गए हैं.
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पहले से ज्यादा ग्राहक
कोविड के कारण कई महीनों से ग्राहकों की कमी झेल रहे व्यापारियों को बड़ी राहत पहुंची है. आइसक्रीम बेचने वाले वांग जियांशिन बताते हैं, “पिछले कुछ दिनों में हमें पहले से कहीं ज्यादा ग्राहक मिले हैं. और उनसे बात करने के लिए हम स्मार्ट फोन पर ही निर्भर हैं.” रॉयटर्स के पत्रकार को यह बात भी जियांशिन ने स्मार्ट ट्रांसलेटर से ही बताई.
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कभी कभी गड़बड़ भी
ट्रांसलेटर आखिर है तो मशीन ही. कई बार गड़बड़ भी कर देता है. जैसे कि मशरूम को फंगस यानी फफूंदी बता दिया. एक बार एक जर्मन पत्रकार ने काओ मिल्क मांगा तो ट्रांसलेटर ने कफ यानी खांसी समझ लिया.
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यूरोपीय संघ के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत 2007 से जारी है. तब दोनों पक्षों ने रणनीतिक साझादारी को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. तब से छह साल तक मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत चलती रही लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाने के चलते आखिर यह समझौता सिरे नहीं चढ़ सका. जिन मुद्दों पर बात अटकी उनमें पेशेवर कामगारों की आवाजाही और गाड़ियों पर टैक्स लगाने की बात भी शामिल थी.
उसके बाद आठ साल तक यह मुद्दा ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहा. 2018 में यूरोपीय संघ ने भारत के लिए अपनी रणनीति की घोषणा की और जुलाई 2020 में ईयू-इंडिया समिट हुई. वहां मुक्त व्यापार समझौता दोबारा एजेंडे में आया और मई 2021 में ईयू और भारत के नेताओं की बैठक हुई जिसमेंसमझौते पर बातचीत दोबारा शुरू करने पर सहमति बनी.
यूरोपीय संघ भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को अहम मानता है. उसकी वेबसाइट पर भारत के बारे में लिखा है, "भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से है और वैश्विक आर्थिक प्रशासन में अहम स्थान रखता है. भारत पहले ही ईयू का एक महत्वपूर्ण निवेश और व्यापार साझीदार है और अपार संभावनाएं रखता है. वह एक विशाल और गतिशील बाजार है जिसके लिए आईएमएफ ने आठ फीसदी की जीडीपी विकास दर का अनुमान जाहिर किया है."
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भारत-ईयू व्यापार
फिलहाल, यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार-साझीदार है. दोनों के बीच 2021 में 88 अरब यूरो का व्यापार हुआ है जो भारत के कुल व्यापार का 10.8 प्रतिशत है. अमेरिका (11.6 फीसदी) इस मामले में सबसे ऊपर है और चीन (11.4 प्रतिशत) दूसरे नंबर पर है. अमेरिका (18.1 प्रतिशत) के बाद भारत का सबसे ज्यादा निर्यात यूरोपीय संघ (14.9 फीसदी) को ही जाता है.
इसके उलट यूरोपीय संघ के व्यापारिक साझीदारों में भारत दसवें नंबर पर है और 2021 में ईयू के कुल व्यापार का सिर्फ 2.1 प्रतिशत भारत के साथ हुआ. चीन के साथ सबसे ज्यादा 16.2 प्रतिशत व्यापार हुआ जबकि अमेरिका 14.7 फीसदी पर रहा. इस वजह से यूरोप में भारत को एक बड़ी गुंजाइश के रूप में देखा जाता है. पिछले एक दशक में दोनों दशों के बीच सामानों के व्यापार में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है. 2020 में दोनों पक्षों के बीच सेवाओं का व्यापार 30.4 अरब यूरोप पर पहुंच गया था.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के 60 साल
राजनीतिक बंदियों के समर्थन से लेकर हथियारों के वैश्विक व्यापार के विरोध तक, जानिए कैसे कुछ वकीलों की एक पहल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का एक अग्रणी नेटवर्क बन गई.
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राजनीतिक बंदियों के लिए क्षमा
1961 में पुर्तगाल के तानाशाह ने दो छात्रों को आजादी के नाम जाम उठाने पर जेल में डाल दिया था. इस खबर से व्यथित होकर वकील पीटर बेनेनसन ने एक लेख लिखा जिसका पूरी दुनिया में असर हुआ. उन्होंने ऐसे लोगों के लिए समर्थन की मांग की जिन पर सिर्फ उनके विश्वासों के लिए अत्याचार किया जाता है. इसी पहल से बना एमनेस्टी इंटरनेशनल नाम का एक वैश्विक नेटवर्क जो मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ कैंपेन करता है.
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मासूमों का जीवन बचाने के लिए
शुरुआत में एमनेस्टी का सारा ध्यान अहिंसक राजनीतिक बंदियों को बचाने की तरफ था. एमनेस्टी का समर्थन पाने वाले एक्टिविस्टों की एक लंबी सूची है, जिसमें दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला से लेकर रूस के ऐलेक्सी नवाल्नी शामिल हैं. संस्था यातनाएं और मौत की सजा का भी विरोध करती है.
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यातना के खिलाफ अभियान
जब पहली बार संस्था ने 1970 के दशक में यातना के खिलाफ अपना अभियान शुरू किया था, उस समय कई देशों की सेनाएं राजनीतिक बंदियों के खिलाफ इनका इस्तेमाल करती थीं. एमनेस्टी के अभियान की वजह से इसके बारे में जागरूकता फैली और इससे यातनाओं के इस्तेमाल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का जन्म हुआ. इन प्रस्तावों पर अब 150 से ज्यादा देश हस्ताक्षर कर चुके हैं.
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युद्ध के इलाकों में जांच
एमनेस्टी के अभियान उसके एक्टिविस्टों द्वारा इकठ्ठा किए गए सबूतों के आधार पर बनते हैं. युद्ध के इलाकों में युद्धकालीन अपराधियों की जवाबदेही तय करने के लिए मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिखित प्रमाण की जरूरत पड़ती है. संस्था ने सीरिया के युद्ध के दौरान रूसी, सीरियाई और अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन के युद्धकालीन अपराधों के दस्तावेज सार्वजनिक स्तर पर रखे.
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हथियारों के प्रसार के खिलाफ
एमनेस्टी का लक्ष्य युद्ध के इलाकों तक हथियारों के पहुंचने को रोकने का है, क्योंकि वहां उनका इस्तेमाल नागरिकों के खिलाफ किया जा सकता है. हालांकि एक अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत हथियारों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का नियंत्रण करने के लिए नियम लागू तो हैं, लेकिन इसके बावजूद हथियारों की खरीद और बिक्री अभी भी बढ़ रही है. रूस और अमेरिका जैसे सबसे बड़े हथियार निर्यातकों ने संधि को मंजूरी नहीं दी है.
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कानूनी और सुरक्षित गर्भपात का अधिकार
एमनेस्टी के अभियानों में लैंगिक बराबरी, बाल अधिकार और एलजीबीटी+ समुदाय के समर्थन जैसे मुद्दे भी शामिल हैं. सरकारों और धार्मिक नेताओं ने गर्भपात का अधिकार जैसे मुद्दों को संस्था के समर्थन की कड़ी आलोचना की है. इस तस्वीर में अर्जेंटीना में एक्टिविस्ट राजधानी ब्यूनोस एरेस में राष्ट्रीय संसद के दरवाजों पर पार्सले और गर्भपात के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दूसरी जड़ी-बूटियां रख रहे हैं.
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एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क
1960 के दशक ने एमनेस्टी इंटरनैशनल बढ़ कर ऐसे एक्टिविस्टों का एक व्यापक वैश्विक नेटवर्क बन गया है जो सारी दुनिया में एकजुटता के अभियानों में हिस्सा लेने के अलावा स्थानीय स्तर पर हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुकाबला भी करते हैं. संस्था के पूरी दुनिया में लाखों सदस्य और समर्थक हैं जिनकी मदद से उसने हजारों बंदियों को मृत्यु और कैद से बचाया है. (मोनिर घैदी)
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भारत में विदेशी निवेश के मामले में भी ईयू की हिस्सेदारी बढ़ रही है. 2017 में ईयू का निवेश 63.7 अरब यूरो का था जो 2020 में बढ़कर 87.3 अरब यूरो हो गया. लेकिन चीन (201.2 अरब यूरो) या ब्राजील (263.4 अरब यूरोप) की तुलना में यह काफी कम है.
भारत में यूरोप की 6,000 कंपनियां काम कर रही हैं जो कुल मिलाकर 17 लाख लोगों को सीधे रोजगार उपलब्ध करवा रही हैं जबकि 50 लाख लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है.
यूरोपीय संघ कहता है कि भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों में उसका मुख्य उद्देश्य "ठोस, पारदर्शी, खुला, भेदभाव से मुक्त" संबंध स्थापित करना है जहां यूरोपीय कंपनियों को अपने निवेश और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा मिले. ईयू कहता है, "मकसद द्विपक्षीय व्यापार और निवेश की अनछुई संभावनाओं को वास्तविकता बनाना है.”
क्या हैं चुनौतियां?
2013 में जब भारत और ईयू के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत खटाई में पड़ गई तो उसकी वजह कुछ बड़े मतभेद थे, जिन्हें सुलझाना अब भी आसान नहीं. यूरोपीय संघ का मानना है कि भारत में व्यापारिक वातावरण बहुत ज्यादा पाबंदियों से भरा है. अपनी वेबसाइट पर उसने लिखा है, "टेक्निकल बैरियर्स टु ट्रेड (टीबीटी), सैनिटरी एंड फाइटो-सैनिटरी मेजर्स (एसपीएस), अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा ना उतरना और भारत का कानूनी या प्रशासनिक तरीकों से भेदभाव करना जैसे मुद्दे कई क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं जिनमें सामान और सेवाओं के अलावा निवेश और सरकारी खरीद भी शामिल हैं.”
टेक्निकल ट्रेड बैरियर्स (टीबीटी) से अर्थ उन तकनीकी नियम-कानूनों और खुद तय किए गए मानकों से है जिनके आधार पर उत्पादों के रूप और आकार, डिजाइन, लेबलिंग, मार्किंग, पैकेजिंग, फंक्शनैलिटी और परफॉरमेंस आदि तय किया जाता है. एसपीएस में यह सुनिश्चित किया जाता है कि उपभोक्ताओं को सुरक्षित और उचित उत्पाद मिलेंगे.
सबको सबसे ज्यादा मौके देने वाली अर्थव्यवस्था कौन सी है
सिंगापुर पिछले दो साल से वैश्विक प्रतियोगितात्मकता रैंकिंग में अव्वल दर्जे पर था, लेकिन 2021 की सूची में वह नीचे खिसक गया है. जानिए कौन सा देश अब बन गया है सबको बराबर अवसर देने वाली अर्थव्यवस्था.
तस्वीर: Novartis
फिसला सिंगापुर
स्विट्जरलैंड के लॉजेन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर मैनेजमेंट डेवलपमेंट की वैश्विक प्रतियोगितात्मकता रैंकिंग में पिछले दो सालों से चोटी पर रहा सिंगापुर अब फिसल गया है. वह अब दुनिया की सबसे प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था नहीं रहा. संस्थान के मुताबिक, रोजगार कम होने, उत्पादकत में आई गिरावट और महामारी के असर की वजह से सिंगापुर अब गिर कर पांचवें पायदान पर पहुंच गया है.
तस्वीर: Yeen Ling Chong/AP Photo/picture-alliance
अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड गिरावट
पिछले साल सिंगापुर की अर्थव्यवस्था में 5.4 प्रतिशत की रिकॉर्ड गिरावट आई, हालांकि अब वहां हालात सुधर रहे हैं. सरकार ने कहा है कि पिछले छह महीनों से निर्यात लगातार बढ़ रहा है और मई में तो नौ प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसी बदौलत रैंकिंग में चोटी के पांच देशों में सिंगापुर एशिया का एकमात्र प्रतिनिधि था.
तस्वीर: Reuters/E. Su
टॉप10 में कौन
चोटी के 10 देशों में एशिया से दो और इलाके हैं - हांग कांग और ताइवान. भारत और मलेशिया भी टॉप 10 तक में नहीं हैं. दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर महामारी का बड़ा असर पड़ा है.
तस्वीर: Kokhanchikov/ Zoonar/picture alliance
चीन का बेहतर प्रदर्शन
महामारी के दौरान भी वृद्धि दर्ज करने की वजह से चीन 20वें से 16वें स्थान पर पहुंच गया. संस्थान के मुताबिक चीन में "गरीबी का कम होना जारी रहा और बुनियादी ढांचा और शिक्षा को बढ़ावा मिलता रहा."
तस्वीर: Tang Maika/HPIC/dpa/picture alliance
अमेरिका और ब्रिटेन स्थिर
अमेरिका 10वें स्थान पर बना रहा और ब्रिटेन एक पायदान की बढ़त हासिल कर 18वें स्थान पर आ गया. संस्थान का कहना है कि दोनों देशों ने महामारी के दौरान "प्रभावशाली" आर्थिक नीतियां लागू कीं.
तस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS
यूरोप की हालत सबसे अच्छी
संस्थान का आकलन है कि कोरोना वायरस महामारी का काफी भारी असर झेलने के बावजूद यूरोप की अर्थव्यवस्थाओं ने "अधिकांश दूसरे देशों के मुकाबले संकट का बेहतर सामना किया."
तस्वीर: Robin Utrecht/picture alliance
सबसे बेहतर देश
इस साल रैंकिंग में स्विट्जरलैंड ने शीर्ष स्थान पाया है. संस्थान के मुताबिक, स्विट्जरलैंड ने महामारी के दौरान "एक अनुशासित वित्तीय रणनीति अपनाई". चोटी के पांच देशों में इसके अलावा यूरोप के तीन देश और रहे - स्वीडन, डेनमार्क और नीदरलैंड. (डीपीए)
तस्वीर: Nataliya Nazarova/Zonnar/picture alliance
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भारत की तरफ से भी कई आपत्तियां हैं जिन्हें यूरोप के लिए मानना मुश्किल हो रहा है. मसलन, भारत चाहता है कि आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स की 15 श्रेणियों को उसके यहां पंजीकृत कराया जाना चाहिए. इसी तरह टेलीकॉम नेटवर्क एलिमेंट्स की अनिवार्य टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन का मुद्दा भी है. भारत यह भी चाहता है कि उसे डेटा-सुरक्षित देश के रूप में मान्यता मिले.
इन्हीं सब बातों को लेकर आकरमन कहते हैं कि हरेक मुक्त व्यापार समझौता जटिल होता है. उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा, "भारत एक विशाल और आत्मविश्वास से भरा साझीदार है इसलिए मुझे लगता है कि कई दौर की बातचीत होगी. तो क्या हम 2023 तक तैयार हो पाएंगे? मुझे लगता है, नहीं.”
लचीला हुआ है भारत
भारत अपने बाजार की सुरक्षा को लेकर काफी सजग रहता है. इसी कारण उसके साथ मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर कई देशों को मुश्किल होती रही है. भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार संबंधों पर काम करने वालीं न्यूलैंड ग्लोबल ग्रुप की जनरल मैनेजर और पर्थ यूएसएशिया सेंटर की नॉन रेजिडेंट इंडो-पैसिफिक फेलो नताशा झा-भास्कर कहती हैं कि भारत को संरक्षणवादी देश के रूप में देखा जाता है लेकिन उसकी वजहें भी हैं.
वह कहती हैं, "इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि कोई भी मुक्त व्यापार समझौता भारत की 60 फीसदी आबादी को प्रभावित करता है, जो कृषि, दूध, ऑटो और कपड़ा उद्योग में काम करती है. अगर हम भारत के समझौतों वाले देशों को देखें तो 15 में से 13 देशों के साथ भारत व्यापार घाटे में है. यह दिखाता है कि मुक्त व्यापार समझौतों से भारत को उतना फायदा नहीं हुआ है क्योंकि वह उपभोग-आधारित अर्थव्यवस्था है. हर देश अपने हितों को देखकर ही फैसले लेता है.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस तरह के समझौतों के लिए ज्यादा उत्सुक दिखाई देती है. इस साल भारत ने दो व्यापार समझौते किए हैं जिनमें से एक ऑस्ट्रेलिया के साथ है जिस पर मार्च में हस्ताक्षर हुएऔर इसी महीने ऑस्ट्रेलिया की संसद से उसे मंजूरी मिली है. इसके अलावा यूएई के साथ व्यापार समझौते पर अगस्त में दस्तखत हुए थे. पिछले साल उसने मॉरिशस के साथ एक व्यापार समझौता किया था. ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत आखरी चरण में है जबकि अमेरिका के साथ भी बातचीत काफी तेजी से आगे बढ़ रही है.