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नौसेना के पूर्व अफसरों के परिजनों ने कहा मोदी दें दखल

आमिर अंसारी
३० अक्टूबर २०२३

कतर में आठ पूर्व भारतीय नौसैनिकों को मौत की सजा सुनाए जाए के बाद भारत में उनके परिवार चिंतित हैं. वे चाहते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री दखल दें और पूर्व नौसैनिकों की सुरक्षित वापसी मुमकिन कराएं.

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीरतस्वीर: Rajanish Kakade/AP/picture alliance

कतर में अपराध बताए बिना इन पूर्व नौसैनिकों को मौत की सजा सुनाई गई है. कतर में पिछले साल से हिरासत में बंद आठ भारतीय पूर्व नौसैनिकों को वहां कि एक निचली अदालत ने पिछले हफ्ते मौत की सजा सुनाई थी और भारत ने इस पर हैरानी जताई थी.

लेकिन जिस तरह से अचानक वहां की अदालत ने इन्हें मौत की सजा सुना दी , उससे साफ है कि यह मामला भारत सरकार के लिए बड़ी कूटनीतिक चुनौती साबित होने वाला है. अभी तक इन भारतीयों की गिरफ्तारी की वजह नहीं बताई गई है. लेकिन वहां की मीडिया रिपोर्टों में जासूसी की बात कही जा रही है.

"ज्यादा समय नहीं बचा है"

मौत की सजा पाए आठ लोगों में शामिल कमांडर (रिटायर्ड) पुर्नेंदु तिवारी की बहन मीतू भार्गव ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने समय की कमी का हवाला देते हुए सभी आठ भारतीयों को वापस लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से "व्यक्तिगत हस्तक्षेप" की मांग की है.

उन्होंने अखबार को बताया कि जब कतर की अदालत ने मौत की सजा सुनाई तो उनके पास सबसे कठिन काम अपनी 85 वर्षीय मां को इसके बारे में बताना था. उन्होंने बताया उनकी मां इस खबर से बहुत परेशान हैं और वह दिल की मरीज हैं.

ग्वालियर की रहने वाली भार्गव उन आठ भारतीयों की पहली रिश्तेदार थीं जिन्होंने पिछले साल अक्टूबर में उन लोगों की रिहाई के लिए केंद्र से मदद मांगी थी. एक साल बाद उन्हें लगता है कि अब प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत तौर पर हस्तक्षेप करने का समय आ गया है.

उन्होंने कहा, "हम पहले रक्षा मंत्री से मिल चुके हैं. पिछले साल संसद में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और ये लोग हमारी प्राथमिकता हैं... लेकिन अब किसी और के हस्तक्षेप का समय नहीं है... हमारे पास ज्यादा समय नहीं बचा है."

भार्गव ने कहा, "हम अपने आठ वीरों को वापस लाने के लिए अपने प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत हस्तक्षेप का अनुरोध और अपील करते हैं. हम किसी और के बारे में नहीं सोच सकते."

क्या कर रही है भारत सरकार

सोमवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने मौत की सजा पाए आठ भारतीय नागरिकों के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की. विदेश मंत्री जयशंकर ने इन लोगों को आश्वस्त किया कि सरकार इस मामले को "सर्वोच्च महत्व" देती है. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार कतर में मौत की सजा पाने वाले भारतीयों की रिहाई के लिए हर संभव प्रयास करेगी. 

जयशंकर ने कहा कि सरकार इस मामले को प्राथमिकता दे रही है और उनके परिवारों की चिंताओं और दर्द में सहभागी है. उन्होंने परिवार के सदस्यों से मुलाकात के बाद ट्वीट किया, "हम इस मामले में परिवारों के साथ निकटता से समन्वय करेंगे."

मौत की सजा पाने वाले पूर्व अफसर कतर की कंसल्टिंग कंपनी अल-दाहरा के लिए काम करते थे. मौत की सजा पाने वाले पूर्व अफसरों में कई सम्मानित अफसर भी शामिल हैं, जिन्होंने कभी प्रमुख भारतीय युद्धपोतों की कमान संभाली थी, वे कतर में रहकर अल-दाहरा टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए काम कर रहे थे, जो एक निजी फर्म है जो कतर के सशस्त्र बलों को ट्रेनिंग और संबंधित सेवाएं देती थी.

रमजान में माफी संभव

कतर में भारत के पूर्व राजदूत रहे केपी फाबियान ने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए लिखे में उम्मीद जताई है कि कतर में मौत की सजा पाने वाले आठ भारतीयों की सजा अमल नहीं की जाएगी. उन्होंने इस सजा को हैरान और परेशान करने वाला बताया है.

फाबियान के मुताबिक भारत के पास इन आठों को बचाने के चार विकल्प मौजूद हैं. पहला अपील करना, दूसरा मामले को कूटनीतिक स्तर पर आगे बढ़ाना, तीसरा इसे शिखर वार्ता स्तर पर आगे बढ़ाना और चौथा इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय स्तर समर्थन हासिल करना.

उनका कहना है कि अगर सबकुछ विफल रहता है तो अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाना चाहिए है. वह बताते हैं कि कुलभूषण जाधव के मामले में, जिन्हें पाकिस्तान की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, आईसीजे में जाने से उनकी रिहाई तो नहीं हुई लेकिन उन्हें फांसी नहीं दी गई.

फाबियान का कहना है कि भारत औपचारिक रूप से माफी की मांग भी कर सकता है और साथ ही भारतीय पीएम और कतर के अमीर के बीच समिट स्तर की बैठक हो सकती है. फाबियान कहते हैं कि अमीर अगले साल ईद के मौके पर इन भारतीयों के लिए अच्छी खबर भी सुना सकते हैं.

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