विकलांगों को अब दिव्यांग कहा जाने लगा है, लेकिन इस सम्मानजनक संबोधन से उनकी समस्याओं में कोई कमी नहीं आयी है. अधिकतर सार्वजनिक जगहों पर उनके लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है.
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भारत में ढाई करोड़ से कुछ अधिक लोग विकलांगता से जूझ रहे हैं. इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इनकी परेशानियों को समझने और उन्हें जरूरी सहयोग देने में सरकार और समाज दोनों नाकाम दिखाई देते हैं. देश में हुए एक सर्वे से सामने आया है कि अधिकांश सार्वजनिक स्थलों पर सुविधाओं के लिहाज से विकलांगों का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है.
सुविधाओं का अभाव
विकलांगता की समस्या से दो चार हो रहे लोगों के लिए जो न्यूनतम आवश्यक सुविधाएं सार्वजानिक जगहों पर होनी चाहिए, उसका अभाव लगभग सभी शहरों में है. अस्पताल, शिक्षा संस्थान, पुलिस स्टेशन जैसी जगहों पर भी उनके लिए टॉयलेट या व्हील चेयर नहीं हैं. गैर सरकारी संस्था ‘स्वयं फाउंडेशन' ने देश के आठ शहरों में किये अपने सर्वे में पाया कि सार्वजानिक जगहों पर जो सुविधाएं विकलांगों के लिए होनी चाहिए, वे नहीं हैं.
मिलिए ऐसे फोटोग्राफर से जिसकी उंगलियां नहीं
फोटोग्राफर जिसकी उंगलियां नहीं हैं
यह महिला इंडोनेशिया ही नहीं, पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए एक मिसाल है. एक प्रेरणा है. ये तस्वीरें सारी कहानी खुद ही कह रही हैं. देखिए...
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असाधारण इंसान
रुसीदाह बदावी कोई सामान्य फोटोग्राफर नहीं हैं. उनके पास ना उंगलियां हैं ना हथेलियां. लेकिन वह फोटोग्राफी करती हैं. 1968 में जन्मीं बदावी को कोई विकलांगता रोक नहीं पाई.
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एक हादसे ने बदली जिंदगी
बदावी जब 12 साल की हुईं तो उनके साथ एक हादसा हुआ. और इस हादसे ने उनसे उनके हाथ छीन लिए. लेकिन उनके आदर्श नहीं छीन पाया. वह आगे बढ़ती रहीं.
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फोटोग्राफी
हाई स्कूल पास करने के बाद बदावी सोलो शहर के स्पेशल ट्रेनिंग सेंटर में पढ़ने लगीं. और तब फोटोग्राफी उनकी जिंदगी में आई, एक प्यार बनकर. और फिर वह कभी नहीं छूटा.
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और फिर सपना सच हुआ
पढ़ाई के बाद बदावी अपने शहर पुरवोरेद्यो लौटीं और अपना सपना पूरा किया. वह फोटोग्राफर बन गईं. इसके लिए उनके कैमरे में कुछ बदलाव किए गए थे ताकि वह बिना उंगलियों के उसे चला सकें. शुरुआत में सरकारी मदद भी मिली.
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कैद में पल
बदावी हर तरह की फोटोग्राफी करती हैं. वह सरकारी कार्यक्रमों में जाती हैं. शादियों की एलबम तैयार करती हैं. और प्रोफाइल फोटो भी खींच सकती हैं.
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साधारण सा स्टूडियो
बदावी अब डिजिटल कैमरा इस्तेमाल करती हैं. बयान जिले के बोतोरेयो गांव में उनका छोटा सा स्टूडियो है. उनके पति बर्फ बेचते हैं और उनका भी सहयोग करते हैं.
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परिवार
बदावी का एक बेटा है. वह उसे और घर के बाकी कामों को भी अच्छे से संभालती हैं. कोई काम छूटता नहीं है.
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और साथ में
बेटे के अलावा बदावी अपने भतीजे का भी ख्याल रखती हैं. भतीजा दया मानसिक रूप से विकलांग है और बदावी ही उसका ख्याल रखती हैं.
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‘एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन' यानी ‘सुगम्य भारत अभियान' के तहत किए गये इस सर्वे में मुंबई के 51 सार्वजानिक स्थानों की पड़ताल की गयी. लगभग अस्सी फीसदी स्थानों पर रैम्प नहीं पाया गया. इस सर्वे में शामिल किसी भी बिल्डिंग में विकलांगों के लिए अलग से पार्किंग की व्यवस्था नहीं थी. जबकि अधिकतर बिल्डिंग में निर्धारित मानकों के अनुसार विकलांगों के लिए शौचालय तक नहीं पाया गया. मुंबई के आलावा चंडीगढ़, दिल्ली, फरीदाबाद, देहरादून, गुरुग्राम, जयपुर और वाराणसी में भी इस तरह के सर्वे किये गये. स्वयं फाउंडेशन' के सानू नायर के अनुसार इन सभी शहरों में स्थिति लगभग एक जैसी ही है.
सरकारी प्रयास
एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन के जरिये सरकार विकलांगों के लिए सक्षम और बाधारहित वातावरण तैयार करने पर जोर दे रही है. इस अभियान के तहत जुलाई 2018 तक राष्ट्रीय राजधानी और राज्य की राजधानियों की कम से कम 50 सरकारी इमारतों को दिव्यांगों के लिए ‘पूरी तरह उपयोग' लायक बनाया जाएगा. परिवहन प्रणाली में सुगम्यता और ज्ञान तथा आईसीटी पारिस्थितिकी तंत्र में विकलांगों की पहुंच को लक्ष्य बनाया गया है.
देखिए कृत्रिम अंग से नया जीवन पाने वाले जानवर
कृत्रिम अंग से नया जीवन पाने वाले जानवर
इंसान अपंग हो जाए तो परिवार उसकी मदद करता है, लेकिन जानवरों के लिए विकलांग होने का मतलब है मौत. लेकिन दुनिया भर में नेकदिल इंसान विकलांग हो चुके कई जानवरों की मदद करते हैं.
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इस समुद्री कछुए का जबड़ा एक नाव से टकराकर टूट गया. तुर्की के पशुप्रेमियों ने 3डी प्रिंटर की मदद से कृत्रिम जबड़ा बनाया और कछुए को नया जीवन दिया.
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ब्राजील में इस फ्लेमिंगो पंछी ने एक पैर गंवा दिया. कार्बन फाइबर की मदद से बनाए गए कृत्रिम पैर ने उसे फिर से उड़ने और चलने फिरने का हौसला दिया.
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चीन के जिलिन प्रांत में एक कुत्ते को लकवा मार गया. मालिक ने उसे छोड़ दिया. तभी कुछ पशुप्रेमी उसकी मदद के लिए आए आए.
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उन्होंने कुत्ते के पिछले पैरों की जगह एक व्हील स्ट्रक्चर लगाया गया. कुत्ता अब इन्हीं पहियों की मदद से इधर उधर जाता है.
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10वीं मंजिल से गिरने के बाद इस बिल्ली को पीछे के दोनों पैर खोने पड़े. लेकिन चीन के पशु चिकित्सकों ने बिल्ली के लिए खास व्हीलचेयर बना दी.
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थाइलैंड में हाथी एक बच्चा बारूदी सुरंग का शिकार बना. धमाके में उसका एक पैर उड़ गया. वैटनेरी डॉक्टरों ने नन्हे गजराज के लिए कृत्रिम पैर बना दिया.
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आगे का एक पैर खो चुके एक कछुए को वन्यजीव प्रेमियों ने भारत के एक चिड़ियाघर तक पहुंचाया.
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चिड़ियाघर के डॉक्टरों ने कछुए के अगले हिस्से में छोटे से पहिये लगा दिये. अब यह कछुआ इन्हीं पैरों की मदद से चहलकदमी करता है.
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पीछे के दोनों पैर खो चुकी इस बिल्ली को नकली पैरों ने बड़ा सहारा दिया है.
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एक शार्क के हमले में इस समुद्री कछुए के आगे के दोनों पैर बेकार हो गए. जापानी डॉक्टरों ने कृत्रिम पैरों की मदद से कछुए की मदद की.
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बारूदी सुरंग के चलते एक वयस्क हाथी को भी अपना पैर खोना पड़ा. लेकिन थाईलैंड के डॉक्टरों ने भारी भरकम शरीर को सहने लायक कृत्रिम पैर बना ही दिया.
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जर्मनी के बांडेन-वुटरेम्बर्ग राज्य में सिर्फ एक छोटे से पहिये ने इस कछुए को नया जीवन दे दिया.
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कृत्रिम पैर के साथ एक कुत्ता.
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आगे के दोनों पैर खो चुका ये कुत्ता भी अब कृत्रिम पैरों के सहारे काम चला लेता है.
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बुरी तरह घायल होने के बाद अमेरिका में पुलिस के इस कुत्ते को आर्टिफिशियल पैर ने सहारा दिया.
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दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के अनुसार भवनों को पूरी तरह सुगम्य बनाने के लिए 31 शहरों के 1098 भवनों में से 1092 भवनों की जांच का कार्य पहले ही पूरा हो चुका है. विकलांगों के लिए विशेष व सुगम शौचालय का डिजाइन बना कर राज्यों को भेजा जा रहा है. इसके तहत पानी की उपलब्धता, दरवाजे, कमोड की उंचाई, पकड़ने के लिए दोनों तरफ रॉड, स्वच्छ टोंटी तथा नल, लीवर हैंडल नल सहित वाश बेसिन व हवादार तथा प्रकाश जैसे मानक बनाये गये हैं. इसी के आधार पर पूरे देश भर में शौचालय बनाये जायेंगे.
सोच बदलनी होगी
आधुनिक होने का दावा करने वाला समाज अब तक विकलांगों के प्रति अपनी बुनियादी सोच में कोई खास परिवर्तन नहीं ला पाया है. अधिकतर लोगों के मन में विकलांगों के प्रति तिरस्कार या दया भाव ही रहता है, यह दोनों भाव विकलांगों के स्वाभिमान पर चोट करते हैं. शारीरिक रूप से असक्षम के लिए काम करने वाले किशोर गोहिल कहते हैं, "दिव्यांग कह भर देने से इनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा. यह केवल छलावा है." उनका कहना है, "हमें इंसान ही समझ लो वही काफी है. असक्षमता के चलते जो असुविधा है, उसके लिए इंतजाम होने चाहिए."
देखिए जरूरी है अंगदान
जरूरी है अंगदान
अंग प्रत्यारोपण मरीजों की जान बचाने में अहम साबित हो सकता है, लेकिन दानकर्ताओं के अभाव में बहुत से मरीज प्रत्यारोपण के इंतजार में रहते हैं. जानिए स्थिति को बदलने के लिए दुनिया भर में क्या क्या किया जा रहा है.
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किसी और का अंग
ट्रांसप्लांट में अक्सर यह दिक्कत होती है कि शरीर किसी और के अंग को स्वीकार नहीं कर पाता. परिवार के किसी सदस्य का अंग हो तो शरीर को उसे अपनाने में आसानी होती है.
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दिल के लिए..
मरने से पहले दिल दान करने का फैसला लिया जा सकता है, अधिकतर लोगों का इस ओर ध्यान केवल तब जाता है जब किसी अपने को इसकी जरूरत पड़ती है.
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गरीबी का दाम
भारत की कई झुग्गियों में यह बात फैली हुई है कि गुर्दा बेचना गरीबी से बाहर निकलने का एक रास्ता है. एक गुर्दे के करीब 55,000 रुपये तक मिल जाते हैं.
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डॉक्टरों की मिलीभगत
आरोप लगाया जाता है कि तस्करी में शामिल डॉक्टर ऑपरेशन करने के लिए एक से दूसरे देश यात्रा करते रहते हैं. ये ऑपरेशन अधिकतर ऐसे देशों में होते हैं जहां कानून कड़े नहीं हैं और पकड़े जाने का खतरा कम है.
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वेटिंग लिस्ट
दिल और गुर्दे समेत कई तरह के अंगों के लिए लोग लम्बी वोटिंग लिस्ट में हैं. जब तक ट्रांसप्लांट ना हो सके, तब तक स्टेम सेल की मदद से फायदा मिल सकता है.
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नए कानून
जर्मनी में अब बीमा कम्पनियां लोगों से पूछ रही हैं कि क्या वे अंग दान करना चाहेंगे. हर व्यक्ति को यह कार्ड भरना है.
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बदले मानसिकता
अंगदान के बारे में लोगों की मानसिकता अगर बदल जाए तो लाखों जानें बच सकेंगी.
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केन्द्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू का कहना है कि दिव्यांग लोगों के प्रति अपनी सोच और मानसिकता को बदलने का समय आ गया है. विकलांगों को समाज की मुख्यधारा में तभी शामिल किया जा सकता है जब समाज इन्हें अपना हिस्सा समझे, इसके लिए एक व्यापक जागरूकता अभियान की जरूरत है.
आत्मनिर्भर बनाने पर हो जोर
हाल के वर्षों में विकलांगों के प्रति सरकार की कोशिशों में तेजी आयी है. विकलांगों को कुछ न्यूनतम सुविधाएं देने के लिए प्रयास हो रहे हैं या कम से कम प्रयास होते हुए दिख रहे हैं. वैसे, योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर सरकार पर सवाल उठते रहे हैं. पिछले दिनों क्रियान्वयन की सुस्त चाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगायी है. सकारात्मक परिणाम के लिए दीर्घकालीन उपायों पर जोर देते हुए सानू नायर कहते हैं कि विकलांग व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार और व्यवसाय के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए तभी वह बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
विकलांगों को शिक्षा से जोड़ना बहुत जरूरी है. इस वर्ग के लिए, खासतौर पर, मूक-बधिरों के लिए विशेष स्कूलों का अभाव है जिसकी वजह से अधिकांश विकलांग ठीक से पढ़-लिखकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पाते. किशोर गोहिल का मानना है कि विकलांगों को अवसर प्रदान करना या उन पर निवेश करना घाटे का सौदा नहीं है बल्कि इससे देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी.
देखिए, पांच अंग जो छप सकते हैं
पांच अंग जो छप सकते हैं
3डी प्रिंटिग तकनीक से कई बड़ी उपलब्धियां सामने आ रही हैं. अब शरीर के अंग 3डी प्रिंटर की मदद से बनाए जा सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
किडनी
3डी तकनीक से किडनी बनाना जटिल प्रक्रिया है क्योंकि यह बहुत जटिल अंग है. लेकिन अमेरिका के वेक फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ रिजनरेटिव मेडिसिन में यह संभव हो सका है. बायोप्रिंटेड किडनी अभी काम नहीं कर रही लेकिन शोध जारी है. जल्द ही यह संभव होने की उम्मीद है.
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कान
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के बायोइंजीनियरों ने 3डी कान सफलतापूर्वक डिजाइन कर लिया है. यह कान गाय की उपास्थि और चूहे की पूंछ से निकाले रेशेपूर्ण कोलेजन के 25 करोड़ कोषिकाओं से बनाया गया है. अविकसित बाहरी कान (माइक्रोशिया) के साथ पैदा होने वाले बच्चों या सुनने में गड़बड़ी वाले लोगों के लिए यह अहम साबित हो सकता है.
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धमनियां
पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी और एमआईटी के रिसर्चरों ने ओपन सोर्स रेपरैप प्रिंटर और कस्टम सॉफ्टवेयर की मदद से ये शिराएं और धमनियां बनाई हैं. उन्होंने इसके लिए चीनी के तंतुओं का एक नेटवर्क का सांचा बनाया और इसे मक्के से बनाए गए पोलिमर से ढंक दिया. ढांचा बनने के बाद इसे धो दिया जाता है जिससे चीनी धुल जाती है.
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स्किन ग्राफ्टिंग
पहले बायोप्रिंटर स्कैन की मदद से मरीज के घाव को नापा जाता है. एक वॉल्व थ्रॉम्बिन एंजाइम निकालता है और दूसरा कोलेजन और फाइब्रिनोजन वाली कोषिकाएं. इसके बाद इंसानी फाइब्रोब्लास्ट की परत और फिर केराटिनोसाइट्स यानि त्वचा की कोषिकाओं की परत लगाई जाती है. उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही सीधे घाव में नई त्वचा प्रिंट की जा सकेगी.
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हड्डियां
वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी ने सिरामिक पावडर से बनी त्रिआयामी हड्डियां प्रिंट करने में सफलता पाई है. ये उन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती हैं जो एक्सीडेंट के दौरान हुए मल्टीपल फ्रैक्चर से जूझ रहे हैं.