यूक्रेन युद्ध के रूप में भारत की जी20 अध्यक्षता के लिए बड़ी चुनौती अब खुल कर सामने आ रही है. वित्त मंत्रियों के बाद अब विदेश मंत्रियों की बैठक में यूक्रेन पर मतभेद हावी रहे और साझा बयान जारी नहीं हो पाया.
विज्ञापन
फरवरी के अंत में बेंगलुरु में हुई जी20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक की तरह ही नई दिल्ली में हुई जी20 विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद भी साझा बयान जारी नहीं किया जा सका. भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने माना कि सदस्य देशों के बीच यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेदों की वजह से ऐसा नहीं हो सका. जयशंकर ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "यूक्रेन संकट पर मतभेद थे जिन पर हम कई पक्षों के बीच सामंजस्य नहीं बना सके."
बैठक में शामिल होने वाले रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अलग से एक प्रेस वार्ता में कहा कि साझा बयान पर चर्चा कई मुद्दों पर लड़खड़ाई, जिनमें पिछले साल नॉर्थ स्ट्रीम को ध्वंस किए जाने की जांच की रूस की मांग शामिल है.
लावरोव ने कहा, "साझा बयान को ब्लॉक कर दिया गया और चर्चा का नतीजा उस सारांश में बताया जाएगा जिसके बारे में भारत बोलेगा." उन्होंने यह भी कहा, "हम शिष्टाचार की बात करते हैं. हमारे पश्चिमी समकक्षों के शिष्टाचार तो बहुत खराब हो गए हैं. वो अब कूटनीति के बारे में नहीं सोच रहे हैं, अब वे सिर्फ ब्लैकमेल कर रहे हैं और सबको धमका रहे हैं."
भारत की जिम्मेदारी बड़ी
04:46
भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने इस बात को भी रेखांकित किया कि कई विषयों पर बैठक में सहमति भी व्यक्त की गई, विशेष रूप से उन विषयों पर जो सदस्य देशों को जोड़ते हैं. उन्होंने कहा कि बैठक का "आउटकम डॉक्यूमेंट" जारी किया जाएगा और उसमें खाद्य पदार्थों, उर्वरकों और ऊर्जा की आपूर्ति प्रणाली की स्थिरता पर जोर दिया जाएगा.
जयशंकर ने कहा, "कई मुद्दे थे जिन पर सहमति थी, जैसे बहुराष्ट्रवाद को मजबूत करना, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देना, जलवायु परिवर्तन, जेंडर के विषय, आतंकवाद का मुकाबला...वैश्विक साउथ के लिए जरूरी ज्यादातर मुद्दों पर काफी हद तक एक जैसी सोच थी और इसे आउटकम डॉक्यूमेंट में दिखाया गया है."
बैठक की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के सामने खड़ी चुनौती को रेखांकित करते हुए कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाई गई थी वो अपने लक्ष्यों को हासिल करने में विफल हो गई है और इस असफलता का दमित करने वाला असर अधिकांश रूप से विकासशील देश महसूस कर रहे हैं.
उन्होंने बैठक के लिए आए सदस्य देशों से सहमति बनाने पर ध्यान देने की अपील करते हुए कहा, "आप गांधी और बुद्ध की धरती पर एक दूसरे से मिल रहे हैं, ऐसे में मैं प्रार्थना करता हूं कि आप भारत की सभ्यता की आत्मा से प्रेरणा लेंगे और उस पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो हमें एक करता है, ना कि उस पर जो हमें विभाजित करता है."
भारत के लिए क्यों अहम है जी-20?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15-16 नवंबर को इंडोनेशिया के बाली में जी-20 सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं. इस दौरान मोदी इंडोनेशिया में रह रहे भारतीयों से भी मिलेंगे. जानिए इस बार जी-20 सम्मेलन क्यों भारत के लिए इतना अहम है.
तस्वीर: Willy Kurniawan/REUTERS
जी-20 क्या है?
जी-20 बीस सदस्य देशों का समूह है. इसमें भारत, चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन समेत 19 देश हैं और बीसवां है यूरोपीय संघ.
तस्वीर: Willy Kurniawan/REUTERS
क्यों अहम है जी-20?
जी-20 में दुनिया के विकसित और विकासशील दोनों तरह के देश शामिल हैं. दुनिया की तो तिहाई आबादी इन देशों में रहती है और दुनिया भर की कुल GDP का 80 से 85 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों से आता है.
तस्वीर: Ajeng Dinar Ulfiana/REUTERS
भारत के लिए अहम
भारत के लिए जी-20 इस साल खास तौर से अहम है क्योंकि उसे जी-20 की अध्यक्षता मिलने जा रही है. यानी 2023 में जी-20 सम्मेलन भारत में होगा. 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक समूह की अध्यक्षता भारत के पास रहेगी.
तस्वीर: Sergei Bobylev/Sputnik/Kremlin Pool Photo/AP/picture alliance
अध्यक्षता मिलने का मतलब क्या है?
जी-20 का कोई एक केंद्रीय सचिवालय नहीं होता है. सदस्य देशों में से किसी एक को अध्यक्षता मिलती है. वही देश एजेंडा तैयार करता है, वही सारा कार्यभार संभालता है. दिसंबर से भारत में जी-20 के इर्दगिर्द कई तरह बैठकें शुरू हो जाएंगी.
तस्वीर: Made Nagi/REUTERS
क्या है इस बार का मुद्दा?
इस साल का नारा है – "रिकवर टुगेदर, रिकवर स्ट्रॉन्गर." यानी महामारी के बाद के दौर में दुनिया के देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को कैसे संभालेंगे, इस पर फोकस है.
तस्वीर: Donald Husni/ZUMA Wire/IMAGO
प्रधानमंत्री मोदी का एजेंडा
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 की तीन बैठकों में हिस्सा लेंगे. तीनों किसी ना किसी तरह कोरोना महामारी और दुनिया पर उसके असर से जुड़ी हैं. पहली है स्वास्थ्य, दूसरी महामारी के बाद के दौर में अर्थव्यवस्था और तीसरी ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा.
तस्वीर: Celestino A. Lavin/Zuma/picture alliance
रूस और यूक्रेन का मुद्दा
रूस और यूक्रेन का मुद्दा अभी भी छाया हुआ है और जी-7 देशों की कोशिश है कि उस पर भी बात की जाए लेकिन भारत ने साफ किया है कि इस शिखर सम्मेलन के लिए एक अलग एजेंडा है और भारत उसी पर ध्यान देना चाहेगा.
तस्वीर: Alexandr Demyanchuk/SPUTNIK/AFP
रूस की शिरकत
रूस से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं. उनकी जगह यहां सिर्फ रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव रहेंगे. इंडोनेशिया पर इस बीच काफी दबाव रहा कि वह रूस का आमंत्रण खारिज करे और यूक्रेन युद्ध को ध्यान में रख कर रूस को जी-20 से ही बाहर कर दे. हालांकि इंडोनेशिया का कहना था कि वो अकेले इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकता.
तस्वीर: Sonny Tumbelaka/Poo/AP/picture alliance
भारत के लोगो पर विवाद
भारत ने अगले साल का थीम और लोगो जारी किया तो इस पर विवाद हो गया. थीम है वसुधैव कुटुम्बकम् - एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य. यानी वैश्विक समस्याओं को मिल कर सुलझाना होगा. लोगो है कमल का फूल जिस पर दुनिया टिकी है. हंगामा इस बात पर हुआ कि प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न को अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस्तेमाल कर रहे हैं.
कब शुरू हुआ जी-20?
जी-20 की शुरुआत 1999 में हुई थी. उस वक्त दुनिया मंदी से गुजर रही थी और जी-7 देशों के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नर इसका हल निकालने लिए साथ आए थे. उसके बाद से वे हर साल मिलने लगे. धीरे धीरे विकासशील देशों को भी इसमें शामिल किया गया.
तस्वीर: Dita Alangkara/AP Photo/picture alliance
2008 में बदला रूप
2008 में जी-20 उस रूप में आया जिसे हम आज जानते हैं. सभी सदस्य देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री इसमें शिरकत करने लगे. मुद्दा रहा है वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना.