भारतीय फुटबॉल में जान फूंकने के लिए सुनील छेत्री की वापसी
७ मार्च २०२५
6 जून 2024 को 11 नंबर की नीली जर्सी पहने भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री, कुवैत के खिलाफ मैदान पर थे. कोलकाता में हो रहा ये मैच, वर्ल्ड कप-2026 का क्वालिफाईंग गेम था. कुवैत के खिलाफ पहला अवे मैच भारत 1-0 से जीत चुका था. अब खेल अपने घर में था. भारत के स्टार स्ट्राइकर छेत्री ने पूरा जोर लगा दिया और लेकिन नतीजा 0-0 के ड्रृॉ पर छूटा. दो मैचों के गोल अंतर के लिहाज से भारत को 1-0 से जीत मिली.
मैच के बाद पसीने से तर-बतर सुनील ने कोलकाता के स्टेडियम में मौजूद 59,000 फैन्स के सम्मान में सिर झुकाया और कुछ दिन बाद शालीनता से अपने प्रिय खेल को अलविदा कह दिया. बाद में उन्होंने कहा कि उनकी "भीतरी आवाज" कह रही थी कि कुवैत के खिलाफ यह गेम उनका आखिरी अंतरराष्ट्रीय मुकाबला होना चाहिए. इसके बाद भारत को अफगानिस्तान और कतर के खिलाफ हार का सामना करना पड़ना. और इस तरह 1950 के बाद पहली बार वर्ल्ड कप में क्लालिफाई करने का सपना, फिर आह भर रह गया.
कोच ने किया सुनील छेत्री की वापसी का एलान
अब करीब साल भर बाद खेल प्रेमियों और फुटबॉल जगत को चौंकाते हुए, छेत्री नेशनल टीम में वापसी कर रहे हैं, वो भी 40 साल की उम्र में. इस वापसी में, स्पेन के पूर्व फुटबॉलर और भारतीय टीम के कोच मानोलो मार्केज की भूमिका अहम है. गुरुवार को छेत्री की वापसी का एलान करते हुए मार्केज ने कहा कि भारत के लिए सबसे ज्यादा मैच खेलने वाला खिलाड़ी, मार्च में ही अंतरराष्ट्रीय खिड़की पर लौट आएगा.
मुझे मैरी कॉम से प्रेरणा मिलती है : सुनील छेत्री
भारतीय फुटबॉल संघ की तरफ से बयान जारी करते हुए मार्केज ने कहा, "एशियन कप के लिए क्वालिफाई करना हमारे लिए बहुत अहम है. टूर्नामेंट की अहमियत और आगे के मैच देखते हुए मैंने सुनील छेत्री से वापसी की बात की ताकि राष्ट्रीय टीम मजबूत हो सके."
मार्केज के मुताबिक, "वह मान गए और इसीलिए हमनें उन्हें टीम में शामिल कर लिया है." एशियन कप 2027 में खेला जाएगा.
एशियन कप के क्वालिफाईंग मुकाबले में भारत में 25 मार्च को बांग्लादेश से भिड़ना है. लेकिन इससे पहले टीम 19 मार्च को मालदीव के साथ एक दोस्ताना मैच खेलेगी.
फुटबॉल में फुस्स क्यों है भारत
1.4 अरब की आबादी वाले भारत में क्रिकेट को लेकर तूफानी जुनून है. बीच बीच में हॉकी टीम के अच्छे प्रदर्शन से फील्ड हॉकी को लेकर भावनाओं का ज्वार घुमड़ता है. लेकिन फुटबॉल के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं होता.
अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संघ के पूर्व प्रमुख सेप ब्लाटर ने एक बार भारत को फुटबॉल का "सोया हुआ दिग्गज" कहा था. भारत में फुटबॉल प्रेमियों की बड़ी संख्या है. वे जज्बाती फैन की तरह यूरोपियन लीगों और अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंटों को फॉलो भी करते हैं. देश के कई हिस्सों में फुटबॉल खेला भी जाता है. लेकिन इसके बावजूद भारतीय फुटबॉल को लेकर कभी आशा नहीं जगती.
इसकी एक बड़ी वजह भारतीय फुटबॉल टीम का लचर प्रदर्शन भी है. 1960 के दशक तक भारत को एशिया की दिग्गज टीमों में गिना जाता था. 1951 और 1962 के एशियन गेम्स में भारत फुटबॉल का गोल्ड मेडल जीत चुका था. 1956 के ओलंपिक्स में टीम चौथे नंबर पर रही. लेकिन इसके बाद भारत में फुटबॉल ढलान पर लुढ़कती रही.
नेताओं और कुछ अधिकारियों के चंगुल में फुटबॉल
घटिया सिस्टम और टीम, प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को निगल जाते हैं. जुनूनी खेलप्रेमी इस बात को कई उदाहरणों से साबित कर सकते हैं. भारतीय फुटबॉल टीम के साथ भी कुछ ऐसी ही स्थिति है. फुटबॉल नेताओं और अधिकारियों की जकड़न में नजर आता है. इसका उदाहरण 2022 में हुए फुटबॉल महासंघ के चुनाव से भी समझा जा सकता है. संघ के 85 साल के इतिहास में कल्याण चौबे अध्यक्ष बनने वाले ऐसे पहले इंसान बने जो खिलाड़ी रह चुके हैं.
तब तक कभी फुटबॉल न खेलने वाले ही भारत में इस खेल को संवारने का झंडा ढो रहे थे. मसलन, महाराष्ट्र के दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल. 2020 में अपना तीसरा कार्यकाल खत्म होने के बावजूद एनसीपी (अजित पवार गुट) के दिग्गज नेता पटेल ने अध्यक्ष पद छोड़ने से इनकार कर दिया. बाद में कोर्ट के दखल और फीफा के निलंबन के बाद पटेल को पद से इस्तीफा देना पड़ा.
भारतीय फुटबॉल टीम की तुलना 1990 के दौर की भारतीय क्रिकेट टीम से की जा सकती है. तब टीम में कुछ चुनिंदा इलाकों के खिलाड़ियों और अधिकारियों की भरमार थी. टीम में सेलेक्शन को लेकर सिफारिशों की खबरें आती रहती थीं. लेकिन 1996 के बाद भारतीय क्रिकेट प्रशासन में बदलाव हुए और क्रिकेट के ढांचे में निष्पक्षता और पेशेवर मानसिकता उभरने लगी. इसका असर ये हुआ कि टीम में छोटे छोटे शहरों और नए नए इलाकों के खिलाड़ी आने लगे और प्रतिभाओं को सही मौके मिलने लगे. तबसे भारतीय क्रिकेट की तस्वीर भी बदलने लगी और बाकी का बढ़ावा देने का काम बाजार ने कर दिया.