सेना में भर्ती की नई योजना अग्निपथ को लेकर देश के छात्र हिंसक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और सवाल कर रहे हैं चार साल बाद उनके भविष्य का क्या होगा. छात्रों का कहना है कि सेना में चार साल की नौकरी पर्याप्त नहीं है.
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अग्निपथ योजना की घोषणा के अगले दिन से ही बिहार में बवाल हो रहा है. गुरुवार को भी सबसे ज्यादा हंगामे की खबरें और तस्वीरें बिहार से ही आईं. बिहार से शुरू हुआ उबाल दूसरे राज्यों तक फैल चुका है. बिहार के गया, जहानाबाद, मुंगेर, आरा, कैमूर, सहरसा, बक्सर और नवादा में उग्र युवा शुक्रवार सुबह से सड़कों और रेल मार्गों पर प्रदर्शन करने उतर गए. बिहार के अलावा हरियाणा के गुरुग्राम और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी नौजवानों ने चार साल की भर्ती प्रक्रिया पर नाराजगी जताते हुए विरोध किया.
हिंसा और आगजनी
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बिहार के छपरा में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने एक पैसेंजर ट्रेन में आग लगा दी. यार्ड में खड़ी ट्रेन के इंजन और बोगी में भीड़ ने लगा दी. कैमूर में भी ट्रेन में आग लगा दिए जाने की रिपोर्ट है. वहीं आरा में प्लेटफॉर्म में नौजवानों ने हंगामा किया और लूटपाट की.
आरा रेलवे स्टेशन पर उग्र छात्रों को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले भी दागे.
जहानाबाद में प्रदर्शनकारी छात्रों ने पथराव किया जिसमें आम लोग और कुछ पुलिसकर्मी घायल बताए जा रहे हैं. यह छात्र रेलवे ट्रैक को जाम कर रेल ट्रैफिक को बाधित कर रहे थे. नवादा भी छात्रों ने रेलवे स्टेशन पर विरोध प्रदर्शन किया.
वहीं दिल्ली के नांगलोई रेलवे स्टेशन पर भी 20 के करीब प्रदर्शनकारी छात्र अग्निपथ योजना का विरोध करने के लिए जुटे थे, लेकिन दिल्ली पुलिस का कहना है कि उन्हें समझाकर वापस लौटा दिया गया.
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योजना पर उठ रहे हैं सवाल
बिहार में प्रदर्शन कर रहे छात्रों में से एक ने कहा, "हम सेना में जाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करते हैं. इसे चार साल के लिए सीमित कैसे किया जा सकता है? जिसमें ट्रेनिंग के दिन और छुट्टियां भी शामिल हों? सिर्फ तीन साल की ट्रेनिंग के बाद हम देश की सुरक्षा कैसे कर सकते हैं? सरकार को इस योजना को वापस लेना चाहिए."
एक और छात्र ने कहा, "हम चार साल के बाद काम करने कहां जाएंगे? चार साल की सर्विस के बाद हम लोग बेघर हो जाएंगे. इसलिए हम लोग सड़कों पर उतरे हैं. देश के नेताओं को समझना होगा कि जनता जागरूक है."
सेना के पू्र्व अफसर और रक्षा विशेषज्ञ भी योजना को लेकर सवाल उठा रहे हैं. रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने ट्वीट कर कहा, "48 साल पहले हम सेना से जुड़े थे. बहुत ही बेहतरीन सैनिकों के साथ सेवा करते हुए एक महान यात्रा की, उच्च जोखिम, रोमांच, उपलब्धियां, आजीवन बंधन, सैनिकों का प्यार और सम्मान जारी है. प्रशिक्षण को जोड़कर कुल 55 साल सेना में बिताए. मुझे संदेह है क्या अग्निवीर अपना उद्देश्य पूरा कर पाएंगे."
दूसरी ओर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा ने डीडब्ल्यू से कहा क्योंकि सेना ने इस योजना को लागू करने का फैसला ले लिया है तो हमें चार साल बीत जाने देना चाहिए और उसके बाद ही इस योजना की समीक्षा की जानी चाहिए.
भारत और चीन की सैन्यशक्ति की तुलना
पड़ोसी और प्रतिद्वन्द्वी भारत और चीन की सैन्य ताकत को आंकड़ों के आधार पर समझा जा सकता है. यूं तो भारत चीन से सिर्फ एक कदम पीछे, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है लेकिन शक्ति में अंतर बड़ा है.
तस्वीर: Xinhua/imago Images
भारत और चीन की तुलना
थिंकटैंक ग्लोबल फायर पावर ने चीन को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना है और भारत को चौथी. यह तुलना 46 मानकों पर परखने के बाद की गई है, जिनमें से 38 में चीन भारत से आगे है.
तस्वीर: Manish Swarup/AP/picture alliance
सैनिकों की संख्या
चीन के पास 20 लाख से ज्यादा बड़ी सेना है जबकि भारत की सेना में 14 लाख 50 हजार जवान हैं. यानी चीन की सेना साढ़े पांच लाख ज्यादा जवानों के साथ मजबूत है.
तस्वीर: Ding Kai/Xinhua/picture alliance
अर्धसैनिक बल
भारत में 25 लाख 27 हजार अर्धसैनिक बल हैं जबकि चीन में मात्र छह लाख 24 हजार. यानी भारत 19 लाख तीन हजार अर्धसैनिक बलों के साथ हावी है.
तस्वीर: Sourabh Sharma
रक्षा बजट
भारत रक्षा मद में 70 अरब डॉलर यानी लगभग साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये खर्चता है. इसके मुकाबले चीन का बजट तीन गुना से भी ज्यादा यानी लगभग 230 अरब डॉलर है.
तस्वीर: Stringer/ Photoshot/picture alliance
लड़ाकू विमान
चीन के पास 1,200 लड़ाकू विमान हैं जबकि भारत के पास 564. चीन के पास कुल विमान भी ज्यादा हैं. भारत के पास कुल 2,182 विमान हैं जबकि चीन के पास 3,285.
तस्वीर: Nie Haifei/Xinhua/picture alliance
टैंक
भारत के पास 4,614 टैंक हैं जो चीन के 5,250 टैंकों से कम हैं. बख्तरबादं गाड़ियां भी चीन के पास ज्यादा हैं. उसके पास 35,000 बख्तरबंद गाड़ियां हैं जबकि भारत के पास 12,000.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
विमानवाहक युद्धक पोत
भारत के पास सिर्फ एक विमानवाहक पोत है जबकि चीन के पास दो. भारत के पास 10 डिस्ट्रॉयर जहाज हैं और चीन के पास 41.
तस्वीर: Zuma/picture alliance
पनडुब्बियां
भारत के पास 17 पनडुब्बियां हैं और चीन के पास 79.
तस्वीर: Xinhua/imago Images
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विपक्षी दल भी अग्निपथ योजना पर सवाल उठा रहे हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को देश के बेरोजगार युवाओं की आवाज सुननी चाहिए. उन्होंने ट्वीट कर कहा, "न कोई रैंक, न कोई पेंशन. न 2 साल से कोई डायरेक्ट भर्ती. न 4 साल के बाद स्थिर भविष्य. न सरकार का सेना के प्रति सम्मान. देश के बेरोजगार युवाओं की आवाज सुनिए, इन्हें 'अग्निपथ' पर चला कर इनके संयम की 'अग्निपरीक्षा' मत लीजिए, प्रधानमंत्री जी."
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी ट्वीट किया, "सेना में काफी लंबे समय तक भर्ती लंबित रखने के बाद अब केन्द्र ने सेना में 4 वर्ष अल्पावधि वाली 'अग्निवीर' नई भर्ती योजना घोषित की है, उसको लुभावना व लाभकारी बताने के बावजूद देश का युवा वर्ग असंतुष्ट एवं आक्रोशित है. वे सेना भर्ती व्यवस्था को बदलने का खुलकर विरोध कर रहे हैं."
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट कर लिखा, "देश की सुरक्षा कोई अल्पकालिक और अनौपचारिक विषय नहीं है. ये अति गंभीर और दीर्घकालिक नीति की अपेक्षा करती है. सैन्य भर्ती को लेकर जो खानापूर्ति करने वाला लापरवाह रवैया अपनाया जा रहा है, वो देश और देश के युवाओं के भविष्य की रक्षा के लिए घातक साबित होगा.'अग्निपथ' से पथ पर अग्नि न हो."
इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि अग्निवीर सैनिकों को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) और असम राइफल्स की भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी. गृह मंत्री अमित शाह के दफ्तर से ट्वीट किया गया कि गृह मंत्रालय ने फैसला किया है कि इस योजना के तहत 4 साल पूरा करने वाले अग्निवीरों को सीएपीएफ और असम राइफल्स में प्राथमिकता दी जाएगी.
वहीं बीजेपी शासित राज्यों मध्य प्रदेश, यूपी, उत्तराखंड और हरियाणा की सरकारों ने अपने-अपने यहां राज्यों की पुलिस और दूसरी भर्तियों में अग्निवीरों को प्राथमिकता देने की घोषणा की.
क्या है संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना, जिसके सबसे ज्यादा सैनिक दक्षिण एशिया से हैं
शांति मिशनों में जान गंवाने वाले कर्मियों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 29 मई को संयुक्त राष्ट्र शांति सेना का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. 2022 की थीम है- "लोग. शांति. प्रगति. साझेदारियों की ताकत."
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क्या है संयुक्त राष्ट्र शांति सेना
शांति सेना संयुक्त राष्ट्र का एक संगठन है जिसे हिंसाग्रस्त देशों में शांति बहाल करने के लिए तैनात किया जाता है. इसमें सैन्य, पुलिस और आम नागरिक शामिल होते हैं. यह उन इलाकों में तैनात किए जाते हैं जहां कोई अन्य देश या संस्था जा नहीं पाती या फिर जा नहीं सकती. 29 मई 1948 को इस्राएल-अरब शांति के लिए पहला मिशन शुरू करने के बाद से अब तक 72 मिशनों में शांति सैनिकों की तैनाती हो चुकी है.
तस्वीर: AFP
कहां तैनात हैं शांति सैनिक
2022 में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के तीन महाद्वीपों में 12 मिशन चल रहे हैं. यह इलाके हैं- पश्चिमी सहारा, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, माली, डी.आर. कांगो, गोलान (इस्राएल), साइप्रस, लेबनान, सूडान-दक्षिण सुडान सीमा, कोसोवो, दक्षिण सूडान, जम्मू-कश्मीर (भारत और पाकिस्तान) और मध्य-पूर्व एशिया. इस्राएल-अरब शांति के लिए 1948 में चलाया गया मध्य-पूर्व एशिया मिशन शांति सेना का पहला मिशन था, जो आज भी जारी है.
तस्वीर: Mahmoud Zayyat/AFP
किन देशों से आते हैं शांति सैनिक
शांति सेना में इस वक्त संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के करीब 87,000 कर्मी (सैनिक, पुलिस, नागरिक) सेवाएं दे रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा हिस्सा दक्षिण एशियाई देशों का है. बांग्लादेश (6,709) नेपाल (5,706) और भारत (5,581) पहले तीन स्थानों पर हैं. पांचवें स्थान पर मौजूद पाकिस्तान(4,123) समेत भूटान(27) और श्रीलंका(565) के कर्मी भी शांति सेना का हिस्सा हैं. आज तक दुनियाभर के 10 लाख लोग शांति सैनिक रहे हैं.
तस्वीर: Dharvi Vaid/DW
शांति सेना का खर्च
शांति सेना का खर्च संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों की साझा जिम्मेदारी होती है. हालांकि शांति सेना से जुड़े मामले, देखरेख और शांति मिशनों को बढ़ाने के फैसले सुरक्षा परिषद लेती है. 2021-2022 में शांति सेना का बजट 6.38 अरब डॉलर था. दुनिया के कुल रक्षा बजट (1981 अरब डॉलर) से तुलना करें तो यह मात्र आधा प्रतिशत है. इसमें सबसे ज्यादा योगदान देने वाले पहले तीन देश हैं- अमेरिका, चीन और जापान.
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शांति मिशनों में अब तक गई जानें
1948 से आज तक 72 शांति मिशनों में 4197 शांति सैनिकों की जान जा चुकी है. इन शांति मिशनों में भारत के भी 175 कर्मियों की मौत हुई है. यह अप्रत्याशित हो सकता है लेकिन शांति मिशनों में ज्यादा मौतें बीमारियों की वजह से हुई हैं. इसके बाद दुर्घटनाओं और हमलों की वजह से हुई मौतों की बारी आती है. 2021 भी शांति सेना के लिए बुरा था. इस साल 135 शांति सैनिकों की जान गई.
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संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने दी श्रद्धांजलि
शांति सेना के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि "शांति को कभी हल्के में नहीं लिया जा सकता. हम 87,000 कर्मियों के शुक्रगुजार हैं जो संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले काम कर रहे हैं. बढ़ती हिंसा ने उनका काम और मुश्किल कर दिया है. उन्होंने दोहराया, "इस साल हम साझदारियों की ताकत पर ध्यान दे रहे हैं ताकि बातचीत से समस्याएं सुलझाई जा सकें और अहिंसा की संस्कृति फले-फूले."