रायसीना डायलॉग में जहां पश्चिमी देशों ने भारत पर दबाव बनाना जारी रखा वहीं भारत ने और आक्रामकता से अपना रुख पेश किया. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अब दूसरों की स्वीकृति के लिए उनकी तरफ देखने की जरूरत नहीं है.
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विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन रायसीना डायलॉग के आखिरी दिन एक सत्र को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खुश करने की कोशिश करने की जगह दुनिया से लेन देन करने के लिए अपनी पहचान पर विश्वास को आधार बनाना चाहिए.
उन्होंने कहा, "हम कौन हैं इस बारे में हमें आत्मविश्वास-पूर्ण होना चाहिए. मुझे लगता है कि हमें दूसरे देशों की एक धुंधली परछाई बन कर उन्हें खुश करने की कोशिश करने की जगह दुनिया से हमारी असली पहचान के आधार पर ही लेन देन करना चाहिए."
जयशंकर ने आगे कहा, "दूसरे लोग हमें परिभाषित करते हैं, हमें किसी भी तरह दूसरों की स्वीकृति चाहिए, मुझे लगता है यह सब एक एक बीते हुए युग की बातें हैं जिसे अब हमें पीछे छोड़ देना चाहिए."
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जयशंकर ने सम्मेलन के दौरान अलग अलग सत्रों को संबोधित किया और और कई बार भारत के रुख को रेखांकित किया. बुधवार 27 अप्रैल को ही उन्होंने यूक्रेन संकट पर कहा कि इस समय "लड़ाई को रोकने और बातचीत शुरू करने" पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है और कि समय इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए भारत सबसे अच्छी स्थिति में है.
यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही पश्चिमी देश भारत के रुख को लेकर असहज रहे हैं, जिसकी उन्होंने बीच बीच में आलोचना भी की है. भारत ने कई बार युद्ध और हिंसा को खत्म करने की और बातचीत करने की अपील की है, लेकिन रूस की आलोचना करने में पश्चिम का साथ नहीं दिया है.
अमेरिका और यूरोपीय देश लगातार भारत पर रूस से दूरी बनाने का दबाव बना रहे हैं, लेकिन भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. रायसीना डायलॉग के दौरान भारत ने अपने रुख को और भी मुखर रूप से सामने रखा.
भारत की दो टूक
यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फोन डेय लायन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा की और कहा कि यूक्रेन में जो हो रहा है उसका असर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर भी पड़ेगा.
इशारों में ही रूस पर लगाए गए यूरोपीय प्रतिबंधों को समर्थन देने के लिए भारत से अपील करते हुए उन्होंने कहा, "हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभी सदस्यों से अनुनय करते हैं कि वो लंबी चलने वाली शांति के लिए हमारी कोशिशों का समर्थन करें."
लेकिन इसके बावजूद भारत अपनी स्थिति पर कायम रहा. बल्कि जयशंकर ने अगले दिन एक सत्र के दौरान बोलते हुए पश्चिमी देशों को आड़े हाथों लिया. उन्होंने पश्चिमी देशों पर चीन की आक्रामकता को नजरअंदाज करने और अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी जैसी एशिया की सबसे बड़ी चुनौतियों को लेकर बेपरवाह रहने का आरोप लगाया.
यह रायसीना डायलॉग का सातवां अध्याय था और इसमें 90 देशों से करीब 200 वक्ताओं ने भाग लिया. इनमें फोन डेय लायन के अलावा संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद, ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी एबॉट, स्वीडन के पूर्व प्रधानमंत्री कार्ल बिल्ट जैसे नेता शामिल रहे.
रूसी सेना पर भारी पड़ रहे हैं यूक्रेन को मिले ये हथियार
छोटी सी यूक्रेनी सेना, रूस को इतनी कड़ी टक्कर कैसे दे रही है? इसका जवाब है, यूक्रेन को मिले कुछ खास विदेशी हथियार. एक नजर इन हथियारों पर.
ये अमेरिकी पोर्टेबल एंटी टैंक मिसाइलें हैं. इन्हें आसानी से कंधे पर रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता है. पेड़ या इमारत की आड़ में छुपा एक सैनिक भी इसे अकेले ऑपरेट कर सकता है. इस मिसाइल ने यूक्रेन में रूसी टैंकों को काफी नुकसान पहुंचाया है.
यूक्रेन को अमेरिका और तुर्की ने बड़ी मात्रा में हमलावर ड्रोन मुहैया कराए हैं. बीते एक दशक में तुर्की हमलावर ड्रोन टेक्नोलॉजी में बहुत आगे निकल चुका है. अमेरिकी ड्रोन भी अफगानिस्तान में जांचे परखे जा चुके हैं. यूक्रेन को मिले इन ड्रोनों ने रूसी काफिले को काफी नुकसान पहुंचाया है.
तस्वीर: UPI Photo/imago images
S-300 मिसाइल डिफेंस सिस्टम
स्लोवाकिया की सरकार ने यूक्रेन को रूस में बने S-300 एयरक्राफ्ट एंड मिसाइल डिफेंस सिस्टम दिया है. यह सिस्टम 100 किलोमीटर की दूरी से लड़ाकू विमानों और मिसाइलों का पता लगा लेता है. इस सिस्टम के मिलने के बाद यूक्रेन के ऊपर रूसी लड़ाकू विमानों का प्रभुत्व कमजोर पड़ चुका है.
तस्वीर: AP
MI-17 हेलिकॉप्टर
अमेरिका ने यूक्रेन को रूसी MI-17 हेलिकॉप्टर भी दिए हैं. अमेरिका ने काफी पहले रूस से ये हेलिकॉप्टर खरीदे थे. रूस के यही हेलिकॉप्टर अब रूसी सेना के लिए आफत बन रहे हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के देश अब तक यूक्रेन को 1.5 अरब डॉलर की सहायता दे चुके हैं.
तस्वीर: Reuters/Kacper Pempel
NLAW-लाइट एंटी टैंक वीपन
टैंकों को निशाना बनाने वाला बेहद हल्का यह मिसाइल सिस्टम स्वीडिश कंपनी साब बनाती हैं. 12.5 किलोग्राम वजन वाला ये सिस्टम 800 मीटर दूर तक सटीक मार करता है. ब्रिटेन ने अब तक ऐसे करीब 3600 लाइट एंटी टैंक वीपन यूक्रेनी सेना को दिए हैं.
तस्वीर: picture alliance/Vadim Ghirda/AP Photo
हमर और रडार सिस्टम
अमेरिका ने यूक्रेन को 70 हमर गाड़ियां दी हैं. साथ ही यूक्रेन को दी गई करोड़ों डॉलर की सैन्य मदद के तहत अमेरिका ने आधुनिक रडार सिस्टम और गश्ती नाव भी दी हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images/S. Supinsky
FIM-92 स्ट्रिंगर
एक इंसान के जरिए ऑपरेट किया जाने वाला FIM-92 स्ट्रिंगर सिस्टम असल में एक पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम है. अमेरिका में बनाया गया यह सिस्टम तेज रफ्तार लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टरों को निशाना बनाता है. अमेरिका और जर्मनी ने ऐसी 1900 यूनिट्स यूक्रेन को दी हैं.
तस्वीर: picture alliance/newscom/D. Perez
बुलेटप्रूफ बख्तरबंद गाड़ियां
जर्मनी ने यूक्रेन की सेना को 80 बुलेटप्रूफ बख्तरबंद गाड़ियां दी हैं. इन गाड़ियों से फायरिंग और रॉकेट लॉन्च किए जा सकते हैं. जर्मनी ने यूक्रेन को 50 एंबुलेंस भी दिए हैं.
तस्वीर: Daniel Karmann/dpa/picture alliance
नीदरलैंड्स के हथियार
यूक्रेन को सबसे पहले सैन्य मदद देने वाले यूरोपीय देशों में नीदरलैंड्स भी शामिल है. डच सरकार ने कीव को 400 एंटी टैंक वैपन, 200 एंटी एयरक्राफ्ट स्ट्रिंगर मिसाइलें और 100 स्नाइपर राइफलें दीं.
तस्वीर: Bundeswehr/Walter Wayman
नाइट विजन इक्विपमेंट्स
अमेरिका से मिले नाइट विजन ग्लासेस भी यूक्रेनी सेना की बड़ी मदद कर रहे हैं. पश्चिमी देशों से मिले नाइट विजन चश्मे और ड्रोन, इंफ्रारेड व हीट सेंसरों से लेस है. रूस फिलहाल इस टेक्नोलॉजी में पीछे है.
तस्वीर: Philipp Schulze/dpa/picture alliance
इंटेलिजेंस सपोर्ट
अमेरिका और यूरोपीय संघ के पास ऐसी कई सैटेलाइट हैं जो बेहद हाई रिजोल्यूशन में धरती का डाटा जुटाती हैं. इन सैटेलाइटों और दूसरे स्रोतों से मिला खुफिया डाटा भी इस युद्ध में यूक्रेनी सेना की काफी मदद कर रहा है.